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तुफैल चतुर्वेदी
ेसत्ताइस अगस्त के समाचारपत्रों में एक सामान्य सा समाचार था। अमरीका ने पाकिस्तान स्थित खतरनाक हक्कानी नेटवर्क के शीर्ष नेता अब्दुल अजीज हक्कानी को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया है। अजीज ने अपने भाई बदरुद्दीन हक्कानी की मौत के बाद अल कायदा से जुड़े हक्कानी नेटवर्क में नेतृत्व संभाला था। इसका पता-ठिकाना बताने वाले को 50 लाख डालर यानी 33 करोड़ रुपये इनाम में मिलेंगे। इस संगठन के अन्य नेता जलालुद्दीन हक्कानी, सिराजुद्दीन हक्कानी, नसीरुद्दीन हक्कानी इत्यादि हुए हैं। अफगानिस्तान-पाकिस्तान में इस संगठन की प्रभावी उपस्थिति है। भारत के खिलाफ इस संगठन ने अफगानिस्तान में कई घातक आतंकी गतिविधियां की हैं जिसमें काबुल स्थित भारतीय दूतावास में 2008 में हुआ बम-विस्फोट भी है, जिसमें 58 लोग मारे गए थे। इन सब नामों में एक बात समान है और वह है हक्कानी। जाहिर है किसी भी ऐसे व्यक्ति, संस्थान, राष्ट्र के लिये, जो इस विषैले नेटवर्क से निबटना, उसकी योजना बनाना चाहता है, इसे जानना जरूरी है कि इन नामों में हक्कानी क्यों है।
पाकिस्तान के अफगानिस्तान से सटे उत्तर-पश्चिमी प्रान्त में खैबर दर्रे की पूर्व दिशा में कोई दो घंटे की दूरी पर उत्तरी वजीरिस्तान में हक्कानी एक देवबंदी विचारधारा का मदरसा है। इस मदरसे में अनुमानत: 3000 से 5000 लड़के कुरआन, हदीस, इस्लामी तारीख जैसे विषय पढ़ते हैं। मुहम्मद का कहा गया, जो उनके अनुसार अल्लाह का भेजा हुआ ज्ञान था, 'कुरआन' के रूप में संकलित है और यहां उसका विषद् अध्ययन किया जाता है। मुहम्मद का जीवन, जो हदीसों में संकलित है, यहां उसकी पढ़ाई भी होती है। इन दोनों पुस्तक समूह के अध्ययन के आधार पर इस्लामी दृष्टि से व्यवस्था देने के लिये यहां मुफ्ती भी तैयार किये जाते हैं। मुफ्ती वह इस्लामी मुल्ला है जो फतवे देने का अधिकारी है। फतवे, पाजामा कितना नीचा पहनना जायज है, दाढ़ी कितनी बड़ी रखनी जायज है, जिस बकरी के साथ यौन संबंध हो चुका है उसकी कुरबानी जायज है या नहीं, से लेकर किसी इस्लामी मुल्क में गैर मुस्लिम जीने के अधिकारी हैं कि नहीं हैं, से होते हुए जिहाद आदि इस्लाम को स्पर्श करने वाले हर विषय पर दिए जाते हैं। फतवे वस्तुत: संसार के हर विषय पर दिए जाते हैं। इस मदरसे में पाकिस्तान के अलावा अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, यहां तक कि अरबी देशों के बच्चे भी पढ़ते हैं। यहां के पढ़े हुए छात्र ही अपने नाम के साथ हक्कानी लगाते हैं।
इस मदरसे में हथियार चलाना नहीं सिखाया जाता मगर जिस वहाबी-देवबंदी विचारधारा की उपज इस्लाम का विश्वव्यापी आतंकी रूप है, पाकिस्तान में उसके ये सबसे बड़े केन्द्रों में से एक है। काफिर वाजिबुल-कत्ल, कत्ताल फी सबीलिल्लाह, जिहाद फी सबीलिल्लाह का हिंसक दर्शन यहीं सिखाया जाता है। पाकिस्तान में ऐसे हजारों मदरसे हैं जिनमें पाकिस्तानी सरकार के आंकड़ों के अनुसार दस लाख से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं। ऐसे ही एक पाकिस्तानी मदरसे के मीठी, शरारती, मुस्कुराती आंखों वाले 6-7 साल के छात्र का वीडियो व्हाट्सएप, फेसबुक इत्यादि सोशल मीडिया में बहुत तेजी से फैल रहा है। बच्चे से एक महिला पूछ रही है 'बड़े हो कर तुम क्या बनोगे', बच्चा जवाब देता है 'शहीद'। कहां पर गोली खाओगे? यह पूछने पर बच्चा सीने पर उंगली रख कर जवाब देता है 'यहां पर'। ऐसे मदरसे ही मानसिक हत्यारों की जन्मस्थली हैं। यहां एक बहुत गंभीर बात हमें निश्चित रूप से ध्यान रखनी चाहिये कि इस विचारधारा का प्रारंभिक मदरसा तो देवबंद में है और इसी के कारण इन्हें देवबंदी कहा जाता है। यानी विष-बेल का नाभि-कुण्ड भारत में ही है।
जलालुद्दीन हक्कानी इसी देवबंदी विचारधारा के मदरसे का पढ़ा हुआ है और इसीने हक्कानी नेटवर्क की स्थापना की है। ओसामा बिन लादेन और अब्दुल्ला आजम जैसे दुष्ट आतंकियों ने इसी नेटवर्क के माध्यम से अपना जिहादी सफर शुरू किया था। अफगानिस्तान, पाकिस्तान दोनों देश वैसे ही निर्धन हैं और जिस भाग में ये मदरसा है, वहां गरीबी अपने चरम पर है। इस मदरसे के छात्र ऐसे परिवारों से आते हैं जहां माता-पिता बच्चों को दो समय का भोजन भी उपलब्ध नहीं करा पाते और यह विवशता भी उनके माता-पिता को अपने बच्चे इन केन्द्रों में धकेलने पर विवश करती है। यही बच्चे आगे चलकर जलालुद्दीन हक्कानी, सिराजुद्दीन हक्कानी, नसीरुद्दीन हक्कानी, कसाब, नावेद बनते हैं।
यह वैचारिक संघर्ष है और इससे जमीनी लड़ाई में निबटने के साथ-साथ विचारधारा के स्तर पर निबटना पड़ेगा ही पड़ेगा। इस विचारधारा को हर तरह से, हर तरफ से दबोचना, परास्त करना, कुचलना अनिवार्य है और विचारधारा से लड़ाई दूर तक, देर तक चलने वाली होती है। इससे सतत् लड़ना होता है। यह विचारधारा स्वयं को अल्लाह का असली उत्तराधिकारी और अन्य को शैतानी मानती है, उन्हें नष्ट कर देना चाहती है। इससे निबटने के लिये इसके इस दर्शन, चिंतन को चुनौती देना अनिवार्य है।
यह काम बहुत कठिन नहीं है। केवल स्वतंत्र मानवाधिकार, स्त्री-पुरुष के बराबरी के अधिकार, वयस्क मताधिकार यानी जनतंत्र की कसौटी ही इस अधिनायकवादी, मनमानी करती चली आई इस उत्पाती विचारधारा को नष्ट कर देगी। इस के पक्षधर पाकिस्तान-अफगानिस्तान में भी बहुत नहीं हैं। वे चुप हैं, कई बार भयभीत लगते हैं मगर इनको चुनौती मिलने पर विरोध करेंगे ही करेंगे। कमाल पाशा ने जब तुर्की में इन दुष्टों का दमन किया था तो परिवर्तन की हवा चलने में 6 माह भी नहीं लगे थे और बदलाव आ गया था। अत: हमारे हित के लिये आवश्यक है कि भारत अफगानिस्तान में प्रजातांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार के साथ खड़ा हो। हक्कानी दुष्टों को जड़ से समाप्त करने की हर योजना का अंग बने। हर प्रकार से उसकी सहायता करे। पाकिस्तान की शक्ति भी पूरी तरह क्षीण करनी होगी। पाकिस्तान के भरपूर विखंडन से ही भारत के शांत भविष्य का मार्ग निकलता है। ल्ल
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