आवरण कथा - वैश्विक समुदाय बढ़ा रहा है हिन्दी को
May 10, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

आवरण कथा – वैश्विक समुदाय बढ़ा रहा है हिन्दी को

by
Sep 4, 2015, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 04 Sep 2015 12:43:40

भारतवर्ष के प्रसंग में भाषा का प्रश्न स्वतंत्रता पूर्व से ही जटिल था क्योंकि इस देश की भौगोलिक संरचना व कश्मीर से कन्याकुमारी पर्यन्त फैली जनता विभिन्न भाषाओं, मान्यताओं व सभ्यताओं की वाहक रही है। यद्यपि भाषा का यह प्रश्न जटिल था किन्तु इतना रूढ़ नहीं था जितना कि गुलामी से मुक्त होकर भारत के स्वार्थी राजनेताओं ने इसे बना दिया था। स्वतंत्रता का महासमर और सामाजिक आंदोलनों का श्रीगणेश राष्ट्रभाषा हिन्दी के माध्यम से हुआ था। स्वाधीनता की बलिवेदी पर चढ़ने वाले महानायकों ने आम जनता का आह्वान हिन्दी भाषा में ही किया और सच्चे अर्थों में इसी भाव ने राष्ट्र की जनता को एक किया जिसके महत्व को स्वतंत्रता के उपरान्त एकदम नकार दिया गया।
हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग कहे जाने वाले काल में भक्तकवियों व दार्शनिकों ने हिन्दी को ही अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। रामानंद, वल्लभाचार्य, नामदेव, नरसी, गुरु नानक आदि जीवन व्यवहार के धरातल पर शंकराचार्य से महत्वपूर्ण इसलिए सिद्ध हुए कि उन्होंने जनवाणी हिन्दी में अपने निश्छल विचार प्रकट किए।
इसके उपरांत हिन्दी साहित्य में नवजागरण के पुरोधा भारतेंदु बाबू ने राष्ट्रभाषा की उन्नति के अभाव में किसी भी प्रगति व विकास को
अधूरा माना-
निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान कै मिटै न हिय को शूल।
भारतेंदु व द्विवेदी युग में भाषा को सीधे राष्ट्रवाद व स्वाधीनता के साथ जोड़ा गया इसलिए इसने एक व्यापक जन आंदोलन का रूप धारण किया। देश की स्वाधीनता के लिए राष्ट्रकवियों ने जो गीत लिखे वह हिन्दी भाषा में ही थे चाहे वह बंकिमचंद्र चटर्जी का 'वंदेमातरम्' हो, मोहम्मद इकबाल का 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' अथवा रवीन्द्रनाथ ठाकुर का 'जनगणमन अधिनायक जय हे'- इन सभी को हिन्दी भाषा के ही शब्द प्रदान किये गये जो कि क्रांतिकारियों के साथ ही साथ जन-जन के कंठ में रच-बस गये थे।
विडंबना यह रही कि स्वतंत्रता के पश्चात देश को कभी स्वाभिमानी और प्रभावी नेतृत्व नहीं मिल पाया और आज आजादी के लगभग 70वें प्रवेश द्वार में भी हमारी कोई ठोस भाषा नीति नहीं है। हमारे राजनेताओं को प्रत्येक मुद्दा चुनावी रंग में रंगने वाला और 'वोट बैंक' को प्रभावित करने वाला दिखा है। इसी कारण जयललिता और करुणानिधि आज भी संस्कृत और हिन्दी के विरोध पर एक दिखाई देते हैं। गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग व अनेकों हिन्दी की संस्थाएं बनाई गईं किंतु उन पर सर्वत्र स्वार्थी लोग बिठाये गये अत: ये साल में एकाध बार कोई किटी पार्टीनुमा संगोष्ठी व सेमीनार आयोजित करती हैं जिनमें हीनग्रन्थि से युक्त लोगों को माल्यार्पण व मानदेय प्रदान कर सम्मान प्रदान किया जाता है अथवा वर्ष में एक बार 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के नाम पर घडि़याली आंसू बहाए जाते हैं।
जिस राष्ट्रभाषा हिन्दी के माध्यम से स्वाधीनता की लड़ाई लड़ी गई थी, अंग्रेजों की दासता से मुक्ति के उपरांत अपना संविधान बनाते समय हमारे नीतिनियंता कर्णधारों ने संविधान में न तो राष्ट्र शब्द को समाहित किया और न ही राष्ट्रभाषा की अवधारणा को इसमें वैधानिक मान्यता दिलाने के लिए कोई ठोस कानून ही बनाया।
14 सितम्बर 1949 को राजभाषा के रूप में अगले 15 वर्षों अर्थात 1965 तक हिन्दी को सर्वमान्य बनाने की तत्कालीन राष्ट्रीय नेताओं की  मंशा आज तक भी शक के घेरे में है। उत्तर और दक्षिण के नाम पर हिन्दी के विवाद को सीमित करना ओछी राजनीति कहा जा सकता है। आजादी की लड़ाई में राष्ट्रभाषा हिन्दी के स्वरों को मुखरित करने वालों मे गुजरात के मोहनदास करमचंद गांधी, महाराष्ट्र के बालगंगाधर तिलक, बंगाल के सुभाषचंद्र बोस और दक्षिण के राष्ट्रकवि सुब्रह्मण्यम भारती प्रमुख थे। इसी प्रकार सामाजिक जागरण के क्षेत्र में स्वामी दयानंद और महर्षि अरविंद ने हिन्दी को प्रोत्साहन दिया। आजादी के बाद गांधीजी के साथ-साथ संविधान निर्माता डॉ. भीमाराव आंबेडकर, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और पुरुषोत्तमदास टँडन आदि नेता ईमानदारी से चाहते थे कि जब राष्ट्र का एक गान, एक ध्वज, एक पशु और एक पक्षी घोषित करना है तो एक भाषा भी होनी चाहिए और वह हिन्दी थी। डॉ. आंबेडकर ने तो यहां तक सुझाव दिया था कि सभी प्रदेशों की राजभाषा भी अनिवार्यरूपेण हिन्दी बनाई जाए ताकि प्रभावी ढंग से हिन्दी राष्ट्रभाषा बनाई जा सके। गांधीजी के समधी राजा जी जब संयुक्त मद्रास प्रांत के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने प्राथमिक कक्षाओं में  हिन्दी भाषा को अनिवार्य बना दिया था। राष्ट्रपिता गांधी ने अपने पुत्र देवदास गांधी को दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के पूर्णकालिक प्रचारक के रूप में भेजा था और आज भी दक्षिण में यह संस्था उत्तर भारतीय हिन्दी संस्थाओं की तुलना में प्रभावी रूप से हिन्दी प्रचार-प्रसार का कार्य कर रही है। इसमें सैकड़ों हिन्दी सेवी प्रचारक लगे हैं और दक्षिण भारत के लाखों लोग हिन्दी पढ़कर राष्ट्रीय विकास की मुख्यधारा में शिामल हो रहे हैं।
राजभाषा विभाग अरबों-खरबों खर्च करके आज इस वैश्विक युग में हिन्दी के विकास के लिए कुछ नहीं कर पा रहा है। इन विभागों में हिन्दी को आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के संकायों व अनुसंधानों से जोड़ने के लिए और तकनीकी तथा वैज्ञानिक साहित्य सर्जना के बजाय गिरोहबाजी और गुटबंदी को प्रश्रय मिल रहा है यही गुटबंदी और गुटबाजी हिन्दी को ग्रहण लगा रही है। हिन्दी कालजयी भाषा है। यह लोकवाणी है और इसी ताकत के बूते आज मीडिया, समाज, राजनीति, शिक्षा कला, सिनेमा अथवा खेल सभी जगह हिन्दी का परचम सर्वोपरि लहरा रहा है। समाचार चैनलों पर नजर डालें तो दो दर्जन से भी अधिक समाचार चैनल हैं, जबकि अंग्रेजी में अधिक से अधिक तीन या चार प्रभावी न्यूज चैनल होंगे। लोकप्रिय धारावाहिकों की बात हो या 'रियलिटी शो' की सभी शत-प्रतिशत हिन्दी में चलते हैं।
हिन्दी सिनेमा में एक समय दक्षिण की अभिनेत्रियों का वर्चस्व रहा, वे लोकप्रियता में भी शीर्ष पर रहीं। इस देश की अवसरवादी व कुत्सित राजनीति ही वोट की रोटी सेंकने के लिए हिन्दी की कमर तोड़कर क्षेत्रीय बोलियों और भाषाओं की आग लगाती हैं।
किसी युग में कबीर, प्रेमचंद, निराला व मैथिलीशरण गुप्त जैसे श्रेष्ठ रचनाकार इस देश में थे। वे हिन्दी के विकास की चिंता भी करते थे और उनकी रचनाएं भी ऐसी होती थीं जिनमें आम आदमी रुचि लेता था। हिन्दी में साहित्य सर्जना एक सीमित अखाड़े का रूप धारण कर चुकी है। लेखक विचारधाराओं में बंटे हुए हैं- कुछ ने महिला विमर्श के नाम पर नारी के यथार्थ की अभिव्यक्ति के बहाने यकायक लोकप्रिय होने के लिए रीतिकाल को पीछे छोड़कर अश्लील व भौंडा नख-शिख वर्णन शुरू कर रखा है जिसकी परिणति 'छिनाल विमर्श' तक पहुंच गई है। विश्वविद्यालय कभी हिन्दी सर्जना के प्रमुख केन्द्र हुआ करते थे। देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में स्तरीय साहित्यकार, लेखक व आलोचक होते थे किंतु आज की ग्लोबल हिन्दी पीढ़ी के विश्वविद्यालय शिक्षक केवल वर्तमान स्वार्थ व भविष्य में प्रगति की तिकड़म में लगे रहते हैं। स्नातक कक्षाओं में ही हिन्दी के छात्रों को राजनीतिक विचारधारा का पाठ पढ़ाने के बहाने दलों में बांट दिया जाता है।
विशेष रूप से राजनीतिक पार्टियों के पोस्टर बैनर और उनके एजेंडे निर्माण आदि में सक्रिय रहते हैं। हिन्दी बेचारी के विषय में कौन सोचेगा। हिन्दी के कालजयी आलोचक स्व. डॉ. रामविलास शर्मा कहते थे- 'अजीब विडंबना है, विश्वविद्यालयों के राजनीतिशास्त्र व इतिहास विभागों में उतनी राजनीतिक चर्चाएं व राजनीति नहीं होती जितनी कि हिन्दी में।' यही अकादमियों की संचालन समितियों का हाल है। हिन्दी के लिए आंदोलन की बात तो दूर यदि इन्हें थोड़ी अंग्रेजी आ जाती तो हिन्दी की जगह ये अपनी क्षेत्रीय बोलियों को रखते। जबकि वास्तविक रूप में हिन्दी वाले को यदि संस्कृत का ज्ञान हो तो वह परिनिष्ठित हिन्दी जान सकता है, उर्दू का ज्ञान हो तो अच्छी हिन्दुस्तानी का जानकार हो सकता है और यदि अंग्रेजी का ज्ञान हो जाए तो वह हिन्दी को वैश्विक बना सकता है लेकिन व्यवहार में इसका सर्वथा अभाव है। इसको दूर करने पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
हिन्दी की दुर्दशा के लिए हिन्दी पट्टी, हिन्दी के रचनाकार एवं विश्वविद्यालय में हिन्दी पढ़ाने वाले लोगों को जिम्मेदार ठहराने में गलत कुछ भी नहीं है। हिन्दी के ठेकेदारों व झंडाबरदारों से इतर समाज हिन्दी भाषा बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। हिन्दी की विकास यात्रा जारी है, और अनवरत जारी रहेगी। और यही वैश्विक समुदाय हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने, संयुक्त राष्ट्रसंघ में मान्यता दिलाने एवं विश्वभाषा बनाने में भी समर्थ सिद्ध होगा।
– सूर्य प्रकाश सेमवाल

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Operation Sindoor: भारतीय सेना ने कई मोस्ट वांटेड आतंकियों को किया ढेर, देखें लिस्ट

बैठक की अध्यक्षता करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षा मंत्री, एनएसए, तीनों सेना प्रमुखों के साथ बैठक की, आगे की रणनीति पर चर्चा

Operation Sindoor

सेना सीमा पर लड़ रही, आप घर में आराम चाहते हैं: जानिए किस पर भड़के चीफ जस्टिस

India opposes IMF funding to pakistan

पाकिस्तान को IMF ने दिया 1 बिलियन डॉलर कर्ज, भारत ने किया विरोध, वोटिंग से क्यों बनाई दूरी?

आलोक कुमार

‘सुरक्षा और विकास के लिए एकजुट हो हिन्दू समाज’

प्रतीकात्मक तस्वीर

PIB fact check: पाकिस्तान का भारत के हिमालय क्षेत्र में 3 IAF जेट क्रैश होने का दावा फर्जी

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Operation Sindoor: भारतीय सेना ने कई मोस्ट वांटेड आतंकियों को किया ढेर, देखें लिस्ट

बैठक की अध्यक्षता करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षा मंत्री, एनएसए, तीनों सेना प्रमुखों के साथ बैठक की, आगे की रणनीति पर चर्चा

Operation Sindoor

सेना सीमा पर लड़ रही, आप घर में आराम चाहते हैं: जानिए किस पर भड़के चीफ जस्टिस

India opposes IMF funding to pakistan

पाकिस्तान को IMF ने दिया 1 बिलियन डॉलर कर्ज, भारत ने किया विरोध, वोटिंग से क्यों बनाई दूरी?

आलोक कुमार

‘सुरक्षा और विकास के लिए एकजुट हो हिन्दू समाज’

प्रतीकात्मक तस्वीर

PIB fact check: पाकिस्तान का भारत के हिमालय क्षेत्र में 3 IAF जेट क्रैश होने का दावा फर्जी

Gujarat Blackout

भारत-पाक के मध्य तनावपूर्ण स्थिति के बीच गुजरात के सीमावर्ती गांवों में ब्लैकआउट

S-400 difence System

Fact check: पाकिस्तान का एस-400 को नष्ट करने का दावा फर्जी, जानें क्या है पूरा सच

India And Pakistan economic growth

भारत-पाकिस्तान: आर्थिक प्रगति और आतंकवाद के बीच का अंतर

कुसुम

सदैव बनी रहेगी कुसुम की ‘सुगंध’

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies