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गत 2 सितम्बर को अनेक श्रमिक संगठनों के आह्वान पर भारत बंद रहा। बंद का अधिक असर पश्चिम बंगाल, हरियाणा, केरल और पुद्दुचेरी में दिखा। बाकी जगहों पर बंद आंशिक रहा। उद्योग संगठन एसोचैम के अनुसार इस हड़ताल से देश को लगभग 25 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। हड़ताल में वामपंथी और कांग्रेस समर्थित श्रमिक संगठनों ने भाग लिया, जबकि देश के सबसे बड़े श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। भारतीय मजदूर संघ के अखिल भारतीय महामंत्री विरजेश उपाध्याय ने 1 सितम्बर को जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि मई, 2014 में वर्तमान सरकार के अस्तित्व में आने के बाद श्रम संगठनों का संयुक्त 12 सूत्रीय मांगपत्र का ज्ञापन जून, 2014 में सरकार को दिया गया था। इसके बाद 15 मई, 2015 को तीन मंत्रियों ने श्रम संगठनों से वार्ता की। मजदूर संगठनों की मांग पर 25 मई, 2015 को सरकार ने मांगपत्र पर विचार हेतु केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के नेतृत्व में अन्तर्मंत्रालयीन समिति का गठन किया। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपने आवास पर श्रमिक संगठनों को बुलाकर उनकी समस्याएं सुनीं। वर्तमान सरकार का श्रम संगठनों के संयुक्त मांगपत्र पर निर्णय स्वागत योग्य है। उसे पूरा करने हेतु अपेक्षित समय सरकार को दिया ही जाना चाहिए, ऐसा विचार करते हुए भारतीय मजदूर संघ ने हड़ताल में भाग नहीं लेने का निर्णय किया। -प्रतिनिधि
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