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पाञ्चजन्य के पन्नों से
वर्ष: 12 अंक: 21
1 दिसम्बर 1958
उन भीषण जीप और सैन्य-सामग्री के सौदों को यथार्थ में अभी कोई भुला नहीं पाया होगा जिसके लिए लंदन स्थित उच्चायुक्त के रूप में श्री कृष्ण मेनन उत्तरदायी थे। अब, रक्षामंत्री के रूप में, उनका संबंध कुछ ऐसे संदिग्ध निर्णयों के साथ बताया जा रहा है जो भारी चिंता व आशंका उत्पन्न करने के कारण बने हुए हैं। जो बातें कही जा रही हैं, यदि उनमें से आधी भी सत्य है, तो आवश्यक नहीं कि संकट में-भीषण संकट में पड़ने के लिए श्री मेनन को षड्यंत्रकारियों की सहायता लेनी पड़े।
कोई समाधान नहीं
लंदन की ट्रक कम्पनी, 'हाई मोटर्स' के साथ अभी हाल में सुरक्षा मंत्रालय के हुए सौदे को ही ले लिया जाए। इस कंपनी का कार्य उस खारिज सैन्य सामग्री के अवशेषों (प्रयोजनीय) को प्राप्त करना था जो अब तक समुद्र में फेंक दी जाती थी। विचार बहुत सुन्दर हैं किंतु अंत में हमें दिखाई देगा कि श्री मेनन द्वारा रक्षित सामग्री पर हुआ व्यय इस तमाशे के द्वारा हुई उपलब्धि से कहीं अधिक बैठेगा। कुछ भी हो, इस संबंध में खुले दिमाग से विचार किया जाना चाहिए। जिस बारे में दिमाग को खुला रखना इतना सरल नहीं है वह यह है कि सर्वप्रथम 'हाई मोटर्स' को ऐसे काम के लिए चुना ही क्यों गया जिसका उसे तनिक भी अनुभव नहीं है। यथार्थ कार्य तो एक इटेलियन फर्म को हार्ड मोटर्स के उपठेकेदार के रूप में करना होगा। यह काम पूरा करने का दायित्व सीधा इटेलियनों को ही क्यों नहीं सौंपा गया, इसका समाधान उन ऊल जुलूल उपायों के अतिरिक्त कहीं नहीं खोजा जा सकता जो श्री मेनन व्यपार के हेतु अपनाते हैं। यह नम्बर एक बात है। दूसरे नम्बर की बात यह कि हार्ड मोटर्स कहा जा सकता है कि इसका फर्म की साख से क्या मतलब। चलिए हम इसे भी स्वीकार किए लेते हैं। किंतु आशा करते हैं, हमें इस तथ्य से तनिक सा भिन्न भी अनुमान करने की अनुमति प्रदान की जायेगी कि सुरक्षा मंत्रालय को इस बात का ज्ञान था कि इंग्लैंड के एक कर वंचन मामले में हार्ड मोटर्स कंपनी शामिल थी। तीसरी बात। हार्ड मोटर्स से संबंध रखने वले भारतीय की किसी भी क्षेत्र विशेष पुलिस द्वारा खोजा नहीं जा सकता है। अकेली इस बात का भले ही कोई महत्व न हो, किंतु अन्य तथ्यों की श्रृंखला में अध्ययन करने से उसमें थोड़ी नहीं, काफी दुर्गंध आने लगती है।
गंदा सौदा
चौथी बात। अब तक हार्ड मोटर्स सुरक्षा विभाग से 9 लाख से भी अधिक रुपए प्राप्त कर चुकी है। और यदि इतना सौदा ही काफी न जंचा तो वह (हार्ड मोटर्स कंपनी) प्राप्त किए गए अवशिष्ट छीलन को उन दामों पर पुन: खरीद लेगी जो बाजार के दामों से काफी नीचे निश्चित कर दिए गए हैं। यदि इस गंदे सौदे में किसी चीज को दूर नहीं रहने दिया गया है तो वह है वह आदर्श जो जीप तथा सैन्य-सामग्री ठेकों में विद्यमान था। आप कहते हैं, क्या यह सब कुछ इतना पर्याप्त नहीं है कि इसके आधार पर राष्ट्रसंघ में कश्मीर के मामले पर श्री मेेनन द्वारा किए गए सद्कृत्य को भुलाया जा सके?
जनसंघ तेजी से न बढ़ा तो देश कल्याण नहीं
केवल विरोध से ही काम पूरा नहीं, जनसंघ की आर्थिक नीति की विजय
म.प्र. जनसंघ अधिवेशन में पं. उपाध्याय के उद्गार
-हमारे विशेष प्रतिनिधि द्वारा-
खंडवा, 23 नवम्बर। अखिल भारतीय जनसंघ के महामंत्री पं. दीनदयाल उपाध्याय ने आज यहां मध्य प्रदेश जनसंघ के तृतीय सम्मेलन के अवसर पर प्रदेश के जनसंघ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज विश्व तथा देश की राजनीति में तेजी के साथ उथल-पुथल हो रही है। ऐसी स्थिति में देश में शांतिपूर्ण प्रजातंत्र तथा भारतीय जीवन पद्धति को बनाए रखने हेतु यह आवश्यक है कि देश में जनसंघ के सामर्थ्य को बढ़ाया जाये। उन्होंने कहा कि आज समाज में प्रवृत्तियां बदल रही हैं, इस स्थिति में शांत होकर बैठना हानिकर होगा।
देश में राजनीतिक शून्य
श्री उपाध्याय ने कहा कि आज देश की राजनीति में तेजी से परिवर्तन हो रहा है तथा जनता का विश्वास उठ चुका है। बहुसंख्यक जनता कांग्रेस से नाराज है और अधिकांश जनता आज किसी दल के पीछे नहीं है। यह स्थिति सबसे भयानक है। आज अनेकों वर्ष पूर्व से जबसे पाकिस्तान की आवाज उठी, वह आवाज प्रबल हुई, प्रत्येक घटना के बाद यह सोचा जाने लगा कि बस अब शांति हो जाएगी, पर आज भी समस्याएं मुंह फैलाए खड़ी हैं।
राष्ट्र श्रद्धा का केन्द्र
हमारे साहित्यकारों ने भी राष्ट्र की इस एकात्मता को ही वाणी का परिधान पहनाकर जन-समाज के सम्म्ुख उपस्थित किया। रामायण और महाभारत हमारे राष्ट्र के साहित्य की अमूल्य सम्पत्ति बन गये। भगवान राम और कृष्ण का चरित्र आदर्श के रूप में राष्ट्र के सामने उपस्थित हुआ। इनके जीवन में हिन्दू समाज ने अपनी हृदय की भावनाओं का व्यक्तीकरण पाया। हमारे साहित्यकारों ने भी राष्ट्र की श्रद्धा के इन केन्द्रों के प्रति अपनी श्रद्धा के दो फूल चढ़ाकर आत्मसुख का अनुभव किया तथा जनता की इस श्रद्धा को अमर बनाया। इस युग में कोई कवि ऐसा नहीं दिखता जिसने राम और कृष्ण पर काव्य न लिखे हों, जिसने अपने काव्य का विषय रामायण और महाभारत में से न चुना हो।
-पं. दीनदयाल उपाध्याय
विचार दर्शन खण्ड-7, पृष्ठ संख्या 54
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