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उड़ीसा के प्रसद्धि स्वतंत्रता सेनानी गौर हरिदास के संघर्ष पर बनी हन्दिी िफल्म 'गौर हरि दास्तान : दी फ्रीडम फाइल' 14 अगस्त को पूरे देश में प्रदर्शित की गई। गौर हरिदास 1946 में मात्र 15 वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद गए थे। तिरंगा फहराने के आरोप में उन्हें अंग्रेज सरकार ने जेल भेज दिया था। जेल से उनकी रिहाई के कुछ समय बाद देश स्वतंत्र हो गया। इसके बाद वे जीवन-यापन चलाने के लिए मुम्बई में खाद्यी ग्रामोद्योग में काम करने लगे। वे गांधी जी की प्रेरणा से स्वत़ंत्रता सेनानी बने थे। इसलिए उन्हें कभी अपने को स्वतंत्रता सेनानी सद्धि करने की जरूरत नहीं पड़ी। लेकिन 1976 में उनके बड़े बेटे अनिल के इंजीनियरिंग कॉलेज में नामांकन कराते समय उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के प्रमाणपत्र की जरूरत पड़ी। तब वे बेटे के आग्रह पर अपनी जेल यात्रा के कागजात लेकर स्वतंत्रता सेनानी का प्रमाणपत्र लेने के लिए मुम्बई स्थित जिलाधिकारी के कार्यालय पहुंचे। लेकिन उन्हें इसके लिए 32 वर्ष संघर्ष करना पड़ा। सम्बंधित कार्यालय के बाबुओं को लगता था कि उड़ीसा के एक स्वतंत्रता सेनानी को महाराष्ट से स्वतंत्रता सेनानी का प्रमाणपत्र कैसे दिया जाए। गौर हरिदास को महाराष्ट के अधिकारियों और बाबुओं को यह समझाने में 32 वर्ष लग गए कि उड़ीसा और महाराष्ट का स्वतंत्रता आन्दोलन एक ही था। उनके इसी संघर्ष को इस िफल्म में बताया गया है। िफल्म के नर्दिेशक हैं अनंत महादेवन। गौर हरिदास की भूमिका अभिनेता विनय पाठक ने निभाई है। यहां देवब्रत घोष से हुई बातचीत के प्रमुख अंश प्रस्तुत हैं-
आप एक स्वतंत्रता सेनानी हैं। क्या आप मानते हैं कि आजादी के बाद देश सही राह पर आगे बढ़ रहा है?
मैं ओडिशा के बालासोर में मात्र 15 वर्ष की आयु में 1946 में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गया था। लेकिन मुझे स्वतंत्रता सेनानी प्रमाणपत्र (ताम्रपत्र) लेने के लिए 32 वर्ष तक कड़ा संघर्ष करना पड़ा। इस दौरान मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया गया कि जैसे कि मैं कोई धोखाधड़ी कर रहा हूं और स्वतंत्रता सेनानी को मिलने वाली सुविधाओं का दुरुपयोग करना चाहता हूं। इसके लिए मुझे साबित करना पड़ा कि मैं कोई गलत व्यक्ति नहीं हूं और एक स्वतंत्रता सेनानी हूं। कई बार मुझे महसूस होता है कि ब्रिटिशकाल हमारे शासन से बेहतर था क्योंकि तब हम जानते थे कि हमारा कौन शत्रु है।
क्या आप इस बारे में विस्तार से बताएंगे ?
इस फिल्म में कुछ चीजें समाहित की गई हैं जैसे ब्रिटिशकाल बुरा था और उन लोगों ने हमारा शोषण भी किया, लेकिन उनका शासन बेहतर था। उन्होंने हमारी अर्थव्यवस्था और उद्योगों का पूरी तरह से दोहन किया, लेकिन उन्होंने अपने कार्य के प्रति ईमानदारी बरती। जैसे कि सड़क निर्माण, पुलों का निर्माण, इमारतें बनाना आदि। ब्रिटिश काल में भारत को जो रूप दिया गया था वह आज भी बरकरार है। आज हमारे देश में हो रहे कार्य और संसाधनों को हम स्वयं बिखरते देख रहे हैं। ईमानदारी और जवाबदेही ये दोनों बातें आज के भारत से लगभग गायब हैं। ब्रिटिश काल में आंदोलन करने के दौरान मैं जेल गया। मैं महसूस करता हूं कि वह समय कम से कम आज के समय से कहीं अच्छा था।
क्या आप सोचते हैं कि आज देश में एक नए आंदोलन की आवश्यकता है?
बिल्कुल, आज देश में सांस्कृतिक क्रांति की सबसे अधिक आवश्यकता है। भारत भूतकाल में अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में पूरे विश्व में चर्चा का केंद्र रह चुका है। हमारी भारतीय संस्कृति और नैतिक मूल्य उस समय राष्ट्र के विकास का आधार थे, लेकिन दुर्भाग्य से आज समाज में कोई व्यक्ति किसी दूसरे को फलता-फूलता देखकर खुश नहीं होता। हर व्यक्ति केवल अपना स्वार्थ साधने में जुटा हुआ है। आखिर कौन नक्सलियों, आत्मघाती हमलावरों और विद्रोहियों को बढ़ावा देता है? बाद में यही लोग गरीब और निचले वर्ग के लोगों के साथ क्रूर से क्रूरतम व्यवहार करते हैं। फूलन देवी इसका उदाहरण हैं। इतिहास गवाह है कि क्रांति हमेशा जड़ से शुरू होती है।
आपको किशोरावस्था में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में शामिल होने के लिए किनसे प्रेरणा मिली?
महात्मा गांधी और मेरे पिता हरिदास मुख्य रूप से मेरे प्रेरणा-स्रोत रहे। मेरे सिर पर गांधी जी का आशीर्वाद रहा और मैं किशोरावस्था में आंदोलन में कूद पड़ा। बाल्यकाल से मुझे अपने पिताजी का सान्निध्य मिला। वे कांग्रेस के कार्यकर्ता थे और सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। उन्हीं से मैंने जीवन के उद्देश्य को जाना। आज भी मैं अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा हूं। मेरे पिताजी कहा करते थे किसी कार्य को अधूरा छोड़ना भी भ्रष्टाचार है। वही बात आज सरकारी विभागों में देखने को मिलती है। मैं भी उसका एक शिकार हूं। घर पर मैं पिताजी के साथ रोजाना प्रार्थना करता था और वे मुझे सदैव जीवन के मूल्यों के बारे में और संघर्ष का सामना करने के लिए प्रेरणा देते थे, जोकि मेरे लिए एक औषधि के समान था। वही औषधि स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक मेरे काम आ रही है।
ऐसा क्यों है कि यदि कोई भारतीय मूल्यों, संस्कृति और विरासत के बारे में बात करता है तो उसे दक्षिणपंथी या भगवा अथवा हिन्दुत्व विचारधारा से प्रेरित करार दे दिया जाता है?
जो लोग ऐसी बातें करते हैं वे अवसरवादी होते हैं। जो उनके पक्ष में होता है उसको वे बढ़ावा देते हैं और जो उनके खिलाफ बोलता है उसे वे लोग भला-बुरा कहते हैं। राजनीति में ऐसे लोगों की बहुत बड़ी संख्या है। ऐसे लोगों में देशभक्ति का अभाव होता है। स्वतंत्रता संग्राम के समय हर व्यक्ति ने समाज, धर्म, मजहब, पंथ से उठकर काम किया, लेकिन अब ऐसा नहीं है। भारत का सामाजिक ताना-बाना ध्वस्त हो गया है। हम एक स्वस्थ और स्वच्छ भारत का निर्माण करने में सफल नहीं हो पाए हैं। आप इसे भारत बुलाएं या इंडिया, लेकिन यह सत्य है कि हमारे पास सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत होने के बाद भी हम एक नकारात्मक माहौल में जीने को बाध्य हैं।
वर्तमान की राजनीतिक व्यवस्था के बारे में आपका क्या दृष्टिकोण है?
आज देश की राजनीति बहुत बुरी स्थिति में है। यह वह भारत नहीं है जिसका सपना हमने तब देखा था जब हम भारत को आजादी दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। आज के समय में कोई भी राजनीतिक दल एक-दूसरे से अलग नहीं है। एक पार्टी जब विपक्ष में होती है, तो वह सत्तारूढ़ पार्टी पर सत्ता के दुरुपयोग का विरोध करती है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है। यह एक नियम सा बन चुका है।
आपने सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानी के नाते दी जाने वाली भूमि लेने से इंकार क्यों कर दिया ?
देखिए आज मुंबई में भूमि की बहुत अधिक कीमत है। मेरे पास स्वयं का फ्लैट है। इसलिए मैंने सरकार से कहा कि यह भूमि किसी जरूरतमंद या भूमिहीन को दे दी जाए। कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था, लेकिन मैंने ऐसा करना उचित समझा।
अपने आपको व्यस्त रखने के लिए आप क्या करते हैं?
मैं लोगों के दस्तावेजों को प्रमाणित करता हूं। इसकी एवज में केवल स्याही का खर्च लेता हूं। मैं गैर सरकारी संगठन 'नेशनल एंटी करप्शन एण्ड क्राइम प्रिवेन्शन काउंसिल' का आजीवन सदस्य हूं। इसके अलावा सामाजिक कार्यों में भी मेरी भागीदारी रहती है। मुझे मिलने वाली 10 हजार की पेंशन में से मैं आठ हजार रुपए सामाजिक कार्यों के लिए , जैसे कैंसर से पीडि़त गरीब बच्चों के इलाज, वृद्धाश्रम, धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थाओं में दे देता हूं।
नोट : यह साक्षात्कार केवल वेबसाइट पर उपलब्ध है
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