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नई दिल्ली। लोकसभा में यूं तो भ्रष्टाचार और दूसरे मुद्दों पर बहस पहले भी हुई है लेकिन मानसून सत्र में ललित मोदी प्रकरण को लेकर हुई बहस में केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जिस आक्रामकता और प्रामाणिकता के साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को कांग्रेस और गांधी परिवार के चोरी छिपे कारनामों की याद दिलाई तो कांग्रेस तिलमिला उठी। इतनी कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी खुदे नारे लगाते हुए सदन के बीचोंबीच आ गईं। लेकिन सुषमा स्वराज ने कांग्रेस को उसके भ्रष्ट कारनामों का आइना दिखाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। सुषमा स्वराज ने भोपाल गैस कांड में हजारों लोगों की मौत के लिए दोषी एंडरसन को भगाने से लेकर बोफ र्स तोप सौदे में दलाली प्रकरण में शामिल होने के आरोपी क्वात्रोकी के राज खोलना शुरू किए तो सोनिया गांधी ने अपने हाथ कानों पर ऐसे रख लिए जैसे वे सच को सुनना नहीं चाहतीं। आखिर सच कड़वा जो होता है और सुषमा सदन में सच बोल रही थीं।
सुषमा स्वराज ने एंडरसन और क्वात्रोकी मामले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की भूमिका का तथ्यों और दस्तावेजों के साथ उल्लेख किया तो सोनिया और राहुल गांधी के चेहरों पर तनाव साफ नजर आने लगा। कारण, एंडरसन और क्वात्रोकी को लेकर कांग्रेस खुद सवालों के घेरे में आ गई। रही सही कसर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पूरी कर दी। लिहाजा कांग्रेस जेटली की बात सुने बिना ही संसद का मैदान छोड़ गई। सत्ताधारी भाजपा नेताओं ने ललित मोदी प्रकरण में सुषमा स्वराज पर सवाल खड़े कर मोदी सरकार की छवि खराब करने की कांग्रेस की रणनीति को भी पूरी तरह विफल कर उल्टा उसे कटघरे में खड़ा कर दिया। कारण ललित मोदी, एंडरसन और क्वात्रोकी भारत से बाहर गए या भागे तो कांग्रेस के शासन में गए। इसलिए जवाब अब कांग्रेस को देना होगा।
असल में तो कांग्रेस की रणनीति भी यही थी लेकिन कांग्रेस को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि जिस ललित मोदी प्रकरण को लेकर उसने संसद की कार्यवाही ठप करके रखी थी उस पर जब चर्चा होगी तो सदन में उल्टा घिर जाएगी। कांग्रेस को उम्मीद थी कि सत्तापक्ष कार्य स्थगन प्रस्ताव के तहत चर्चा के लिए तैयार नहीं होगा। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने प्रश्नकाल चलने देने और नियमों का हवाले देते हुए एक बार तो कांग्रेस का कार्य स्थगन प्रस्ताव नामंजूर कर दिया पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कांग्रेस को लगभग ललकारते हुए लोकसभा अध्यक्ष से निवेदन किया कि कांग्रेस जिस नियम के तहत और जिस शब्द के साथ चर्चा करना चाहती है उसकी अनुमति प्रदान कर दे, उन्हें कोई आपत्ति नहीं। बस एक शर्त है कि जब वह बोलें तो कांग्रेस उनकी बात सुने, सदन से बहिर्गमन न करे। लिहाजा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने पक्ष और विपक्ष की बात सुनने के बाद कांग्रेस और अन्य विपक्षी सदस्यों के कार्यस्थगन प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए चर्चा शुरू करा दी। कांग्रेस की ओर से उसके नेता मल्लिकार्जुन खडगे ने चर्चा की शुरुआत की। उन्होंने ललित मोदी प्रकरण को लेकर सुषमा स्वराज और सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए।
सुषमा स्वराज शांति के साथ खडगे के भाषण को सुनती रहीं लेकिन जब सुषमा स्वराज बोलने के लिए खड़ी हुई तो कांग्रेस के सदस्य प्रधानमंत्री को बुलाने की मांग करते हुए नारेबाजी और हंगामा करने लगे। कांग्रेस की रणनीति थी कि शोर-शराबे के चलते सदन नहीं चल पाएगा और सुषमा स्वराज को अपनी बात रखने का या तो मौका नहीं मिलेगा या फिर सुषमा स्वराज की बात शोर शराबे में दब कर रह जाएगी। लेकिन सुषमा स्वराज ने जैसे जैसे एक एक कर कांग्रेस के आरोपों का जवाब देना शुरू किया उनका भाषण कांग्रेसी सदस्यों की नारेबाजी पर भारी पड़ने लगा। करीब तीस मिनट के सुषमा स्वराज के पूरे भाषण के दौरान कांग्रेसी सदस्य नारे लगाते रहे लेकिन सुषमा नहीं रुकीं। सुषमा स्वराज ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे अर्जुन सिंह की आत्मकथा वाली किताब निकाल कर भोपाल गैस कांड में हजारों लोगों की मौत के लिए दोषी एंडरसन को देश से भगाने के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की भूमिका और बदले में अमरीकी जेल में बंद एक अपराधी आदिल शहरयार को इसलिए छुड़वाने का चिट्ठा खोलना शुरू किया क्योंकि आदिल का परिवार गांधी परिवार का नजदीकी माना जाता था। उसे सुनकर सोनिया और राहुल गांधी सहित पूरा सदन सन्न रह गया। और जब सुषमा स्वराज ने क्वात्रोकी का मामला उठाते हुए राहुल गांधी से अपनी मां से यह पूछने को कहा कि उनसे पूछें कि क्वात्रोकी को भगाने के लिए कितने पैसे लिए गए? तो सोनिया और राहुल के साथ समूची कांग्रेस को जोर का झटका लगा। लिहाजा कांग्रेसी सदस्यों ने इस झटके से ध्यान हटाने के लिए और जोर जोर से नारे लगाने शुरू कर दिए। पर सुषमा स्वराज जैसे ठान के आई थीं कि अपनी शब्द वाणी से कांग्रेस को मानसून सत्र में धो डालेंगी और उन्होंने ऐसा किया भी।
सुषमा स्वराज ने जहां एंडरसन से लेकर क्वात्रोकी मामले में कांग्रेस को आइना दिखाया वहीं ललित मोदी प्रकरण में भी उन्होंने कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर दिया। सुषमा स्वराज ने ललित मोदी को मदद देने से लेकर अपने परिजनों को बदले में कोई रकम मिलने के आरोप से भी साफ इंकार कर दिया। स्वराज ने पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम और उनकी पत्नी का जिक्र करते हुए हितों के टकराव का उदाहरण दिया और कहा कि ललित मोदी मामले को लेकर हितों के टकराव का जो आरोप कांग्रेस उन पर लगा रही है उसमें कहीं कोई दम नहीं है। सुषमा स्वराज ने सिलसिलेवार कांग्रेस के हर सवाल का उत्तर दिया। तो सत्ताधारी भाजपा और राजग घटकों के सभी सदस्यों ने हर बार मेजें थपथपा कर सुषमा का समर्थन किया। चर्चा के दौरान भाजपा और उसके सहयोगी दल जहां एकजुट टीम के रूप में नजर आ रहे थे वहीं विपक्ष बिखरा हुआ नजर आ रहा था। कई गैर कांग्रेसी दलों ने सदन को ठप करने और काम न होने देने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस पर निशाना भी साधा। तो भाजपा और राजग सदस्यों ने ललित मोदी प्रकरण को लेकर सदन में कोई कामकाज न होने देने के लिए कांग्रेस को आड़े हाथों लिया। लिहाजा कांग्रेस के आचरण को लेकर कई सवाल और खड़े हो गए।
सुषमा स्वराज के भाषण से भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी खासे प्रभावित हुए और उन्होंने स्वराज की पींठ थपथपाते हुए उन्हें बधाई दी। वित्त मंत्री अरुण जेटली, आडवाणी और सुषमा सहित भाजपा खेमे में जहां जीत जैसा नजारा था वहीं कांग्रेस खेमे में मायूसी। लिहाजा केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली जैसे ही बोलने खडे़ हुए तो कांग्रेस और उसके सहयोगी दल सदन से बहिर्गमन कर गए। भाजपा सदस्यों ने चुटली लेते हुए कहा भी कि मैदान छोड़ कर कहां जा रहे हो, चर्चा अभी बाकी है। बहरहाल, ललित मोदी प्रकरण में सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने जिस प्रकार संसद के भीतर कांग्रेस को घेरा उसे देख-सुन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने अंदाज में दोनों को सार्वजनिक रूप से बधाई देने में देर नहीं लगाई। -मनोज वर्मा
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