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27 जुलाई की संध्या बड़ी उदास थी जब देश ने यह समाचार सुना कि मिसाइल मैन कहे जाने वाले भारत के सपूत अब्दुल कलाम साहब का शिलांग में हृदय आघात से निधन हो गया। कौन भारतीय होगा जिसकी आंखें नम नहीं हुई होंगी और चेहरा उदास नहीं हो गया होगा। उसे ऐसा लगा कि उसके निकट का कोई इंसान इस दुनिया से उठ गया है। यह व्यक्ति भारत की आन-बान और शान था भारत को गौरवांवित करने वाली असंख्य हस्तियों ने समय-समय पर जन्म लिया है लेकिन आज के युग के सबसे ताकतवर हथियार अणु बम का सफल प्रयोग कर दुनिया को दिखला दिया कि भारत की अहिंसा किसी कायर की नहीं है, बल्कि उस बहादुर की है जिसने भारत के विरोधियों को यह संदेश दिया है कि हमें यदि किसी ने छेड़ा तो हम उसे छोड़ने वाले नहीं हैं। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एटम बम का परीक्षण करते हुए यह संदेश दिया कि हम किसी पर हमला करने के लिए इसका उपयोग करने वाले नहीं हैं, लेकिन भारत को किसी ने तिरछी निगाह से देखा तो अपने इस हथियार के माध्यम से उसे धूल चटाने में भी नहीं हिचकिचाएंगे। वे पड़ोसी देश जो भारत को बारम्बार धमकियां दिया करते थे, अब उनके सामने भारत का लोहा मानने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। पिछले दिनों पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश जब हमले के लिए बाहें चढ़ाने लगे और अपने ही घर में बैठे हुए लोगों से भयभीत होने लगे तब बाहर की शक्तियों से अणुबम प्राप्त करने की जुगाड़ करने की तिकडम स्वाभाविक थी। उनके मन में यह बात उठने लगी काश उनके यहां भी कोई अब्दुल कलाम होता। देश की पुरानी पीढ़ी ने देश को गुलामी से आजाद कराया लेकिन सुरक्षित भारत की कल्पना अटलजी के समय में साकार हुई। भारत में आत्मविश्वास की भावना भरने का गौरव 21वीं शताब्दी के नेताओं और वैज्ञानिकों को जाता है। दु:ख है तो केवल इस बात का कि विश्व ने कलाम साहब को नोबल पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया। हथियार तैयार करने की तकनीक का ही मामला नहीं था बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी भारत को ताकतवर देश बनाकर सभी मर्यादाओं का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम के पद चिह्नों पर चलता हुआ यह नायक सदा-सदा के लिए रामेश्वरम् लौट आया। अपने पुरखों के इस नगर में कलाम साहब का समय-समय पर आते रहना स्वाभाविक बात है, लेकिन इस बार रामेश्वरम् आए तो सदा-सदा के लिए मौन थे।
अब्दुल कलाम से पहले भारत की सक्रिय राजनीति और साहित्य की दुनिया में अपना नाम अमर कर जाने वाला एक अन्य व्याक्ति भी कलाम के नाम से ही जाना जाता है। अंतर केवल इतना है यह अब्दुल कलाम थे तो वे अबुल कलाम। उनका नाम तो मोहयुद्दीन था लेकिन इतने विद्वत्ता थे के अबुल कलाम कहलाए। अरबी में अबू पिता को कहा जाता है। वे वाचस्पति थे इसलिए साहित्य में पितामह कहलाए। केवल पुस्तक के ज्ञान के कारण नहीं बल्कि उनके रोम-रोम में मां भारती की भक्ति और राष्ट्रीयता की शक्ति का समावेश था। इसलिए उनकी विद्ववता को सलाम करने के लिए उन्हें अबुल कलाम की पदवी से सुशोभित किया गया। भारत की जनता ने अपने इस नायक को अबुल कलाम से सम्बोधित किया। एक अबुल कलाम बने तो दूसरे अब्दुल कलाम। अंतर इतना है कि देश की जनता ने विश्व को स्पष्ट रूप में एक संदेश दिया कि जो सरस्वती की सेवा करेगा वह अबुल कलाम भी बनेगा। कलाम और अब्दुल कलाम भी। देश को तोड़ने वाले की नहीं, बल्कि उसे जोड़ने वाले का सम्मान करने की चली आई परम्परा सदा जीवित रहेगी। कलाम यानी उक्त शब्द साहित्य और विज्ञान दोनों का द्योतक है। भारत को तोड़ने वाले एक नए देश के मालिक तो बन गए लेकिन टूटते रहना अब उनका भाग्य और अब्दुल का यह कैसा संगम है? अबुल का अर्थ होता है पितामह और अब्दुल यानी बंदा अर्थात् भक्त। इसी प्रकार दोनों के पितामह और भक्त के रूप में अपने-अपने ढंग से भारत की सेवा की। एक कला क्षेत्र में तो दूसरे विज्ञान के क्षेत्र में अबुल कलाम माने जाते थे कि भारत की धरती में जो गुण और महिमा है वह किसी अन्य में नहीं। इसलिए इसके पिंड और माटी को कोई ठेस नहीं लगना चाहिए। आजादी के समय जब मुस्लिम लीग ने चाहा कि भारत की धरती और उसकी सभ्यता का प्रवाह टूट जाए और भारत खंडित हो जाए तो उन्होंने पाकिस्तान का विरोध कर वहां के राजनीतिक लाभों को लात मार दी और मानवीय मूल्यों की सेवा करने के लिए भारत में ही रहने का दो टूक फैसला कर लिया। भारत का विभाजन करके जिन्ना की जीत तो हुई लेकिन आधी अधूरी। मुस्लिम लीग की साम्प्रदायिकता को वह सफलता नहीं मिली जिसकी आशा जिन्ना ने की थी। इसी प्रकार जब भारत की सुरक्षा का सवाल सामने आया तो यहां के अणु में वैज्ञानिक ताकत भरकर अब्दुल कलाम ने ऐसा चमत्कार किया कि दुनिया देखकर दंग रह गई। सवाल था एटम बम बनाने का। भारत की धरती में भी यूरेनियम तो है लेकिन इतना नहीं कि भारत अधिक संख्या में अणु बम बना सके। इसलिए उनकी खोज थी कि अणुबम थोरियम से भी बनाया जा सकता है। उनकी इस खोज से सभी हैरान थे। अब तो दुनिया के वैज्ञानिकों ने इस पर अपनी मोहर लगा दी है। रामेश्वरम् के इस बेटे को पता था कि दक्षिण भारत में जिसे हम रामसेतु कहते हैं वह पूर्ण रूप से थोरियम से बना है। इसलिए जब पिछली सरकार ने रामसेतु को तोड़ने का तुगलकी निर्णय किया था तब उन्होंने इस अमूल्य धातु को सुरक्षित रखने के लिए चेतावनी दी थी। इसका यह नतीजा आया कि अब कोई सरकार रामसेतु को तोड़ने का साहस नहीं कर सकती। रामेश्वरम का कोई राम भक्त ही जान सकता है कि यह कोई राम से जुड़ी किंवदंती नहीं बल्कि विज्ञान का यथार्थ है। इस पर्वत में ही नहीं बल्कि वहां के समुद्र की रेत में भी थोरियम के कण हैं। पाठकों को बता दें कि कुछ वषोंर् तक अमरीका के जहाज वहां की रेत को चोरी छिपे ले जाते थे जिस पर बाद में तत्कालीन सरकार ने कलाम साहब के कहने से कठोर कार्यवाही की थी।
दुनिया जानती है कलाम साहब पूर्ण रूप से शाकाहारी थे। दो वर्ष पूर्व जब महामना मालवीय जी का शताब्दी समारोह मनाया गया उस समय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र और हिदुन्त्व के प्रति समर्पित प्रसिद्ध उद्योगपति आनंद शंकर पंडिया के प्रयासों से मुम्बई में बांद्रा स्थित नेशनल कॉलेज में मालवीय जी को आदरांजलि अर्पित करने हेतु एक कार्यक्रम में कलाम साहब को आमंत्रित किया गया था। कलाम साहब कार्यक्रम की समाप्ति के पश्चात जब जनता से मिल रहे थे उस समय इस लेखक ने उन्हें अपनी लिखी हुई पुस्तक असलाम और शाकाहार अर्पित की तो वे चौंक गए बड़ी प्रसन्नता से उसके कुछ पन्ने पलटाए। उसमें पवित्र कुरान की वे आयतें उद्धरित की गई थीं जो शाकाहार का समर्थन करती है। मेरी और हंसते हुए बड़े प्रेम से उन्हें पढ़ते रहे। पीठ थपथपाई और अपने हस्ताक्षर करते हुए लिखा वंडरफुल। मुझे लगा मेरा लेखन सफल हो गया।
कलाम साहब कहा करते थे कि जीवन में यदि सूरज बनना है तो पहले जलता सीखना पड़ेगा। राष्ट्रपति बन जाने के बाद भी वे दिल्ली के उस होटल को नहीं भूले जहां वे यदा-कदा बड़ा सांभर और इडली खाने जाया करते थे। वे कहा करते थे वर्षा के समय सभी परिंदे शरण की खोज में रहते हैं, लेकिन बाज नामक पक्षी बादलों से भी ऊंची उड़ान भरकर बरसात से अपना बचाव कर लेते हैं।
भारत के दौरे पर जब पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ आए तो वे राष्ट्रपति भवन में कलाम साहब से मिलने गए। भारतीय अधिकारी बड़े चिंतित थे कि न जाने यह व्यक्ति क्या कह डाले। जब वार्ता प्रारम्भ हुई तो कलाम साहब ने उनसे बातों में कहा सवाल यह है कि पाक और भारत अपने देहातों का उद्धार किस प्रकार करें? अब वे जो वैज्ञानिक तरीके बतलाने लगे तो मुशर्रफ सुनकर दंग रह गए। इस वार्ता का समय 30 मिनट तय किया गया। जब बात समाप्त हुई तो 28 मिनट हो चुके थे। राजनीतिक बातों की उठा-पटक करने आए मुशर्रफ अपना मुंह लटकाए चुपचाप राष्ट्रपति भवन से बाहर आ गए। विदेश मंत्रालय के अधिकारी यह सब देखकर कलाम साहब के कमाल पर दंग थे। मुशर्रफ ने अपनी डायरी में लिखा जो इंसान करोड़ों के उत्थान की बात कर रहा हो उसके सामने जंग के शोलों की बात नहीं हो सकती।
मुजफ्फर हुसैन
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