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'मिसाइल मैन' नहीं रहे, देश ने एक बहुमूल्य रत्न को खो दिया। उनका जाना देश के लिए अपूरणीय क्षति हैं। अत्यंत गरीब परिवार में जन्मे कलाम अपनी प्रतिभा के बल पर देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचे। न मोह न माया बस आनंद ही आनंद। सदैव इसी जीवनमंत्र को लेकर कलाम सादगीपूर्ण जीवन जीते रहे। एक वैज्ञानिक, एक शिक्षक और एक राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने स्वयं को सार्थक सिद्ध किया। ऐसे युगपुरुष जिनका जीवन इस देश की प्रतिभा का उदाहरण और विभाजनकारी शक्तियों के हर प्रश्न का सहज उत्तर है।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम का अवसान पूरे देश को स्तब्ध कर गया। एक दिन पूर्व जब देश में मजहब के नाम पर 'मानवाधिकारों' की दुहाई देते हुए देश के सेकुलर लामबंद हो रहे थे वहीं दूसरी ओर आतंक की झुलस पर उनकी खामोशी आपराधिक प्रतीत होती थी। ऐसे में डॉ. कलाम का जाना पूरे जनमानस को हर भेदाभेद से परे एक राष्ट्रभक्त वैज्ञानिक को विछोह से आहत कर गया।
रामेश्वरम में दुकानें बंद थीं। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के गांव धनुषकोडी में मल्लाहाओं ने अपनी नावें समुद्र में नहीं उतारी। मिसालमैन को अंतिम विदाई देने के लिए जनसैलाब सड़कों पर उमड़ा हुआ था। जिस विद्यालय में कलाम ने प्राथमिक शिक्षा ली थी वहां के शिक्षक और वहां पढ़कर कलाम जैसा बनने का सपना देखने वाले हर बच्चे की आंखों में नमी थी। होती कैसे नहीं आखिर उनके आदर्श डॉ. कलाम उनके बीच जो नहीं रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर व सैन्य अधिकारियों समेत लाखों देशवासियों ने उन्हें अंतिम विदाई दी। राजकीय सम्मान के साथ उनके पार्थिव शरीर को सुपर्दे ए खाक कर दिया गया। कलाम स्वयं कहते थे 'जिस दिन यह शरीर थक जाएगा, अपने आप गिर जाएगा। फिर उसमें उठने की ताकत नहीं रहेगी और मैं अपने घर लौट जाऊंगा'आज जब डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम हमारे बीच में नहीं हैं तो बात हो रही है उनकी सादगी की, सच्चाई की, दूरदर्शिता की और राष्ट्रहित में उनके द्वारा किए गए योगदान की। वे भले ही हमारे बीच न हों लेकिन उनके सपने, उनकी दूरदर्शिता और उनके द्वारा कहे अनमोल वचन सदैव हमारे साथ रहेंगे।
'मिसाइल मैन' नाम से प्रसिद्ध डॉ. कलाम ने देश को जो दिया, वह बहुमूल्य है, उसका कोई मोल नहीं, कोई तुलना नहीं। भारत को 'विजन 2020' के रूप में विकसित भारत का सपना देने वाले कलाम का जीवन संतों वाला ही रहा। उनका बचपन अत्यंत गरीबी में बीता। पढ़ाई का खर्च चलाने के लिए अखबार बेचे। एक बार अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा था कि ' मैं अपने बचपन के दिन नहीं भूल सकता, मेरे बचपन को निखारने में मेरी मां का विशेष योगदान है। उन्होंने मुझे अच्छे-बुरे को समझने की शिक्षा दी। छात्र जीवन के दौरान जब मैं घर-घर अखबार बांट कर वापस आता था, तो मां के हाथ का नाश्ता तैयार मिलता। पढ़ाई के प्रति मेरे रुझान को देखते हुए मेरी मां ने मेरे लिए छोटा-सा लैंप खरीदा था, मैं उस लैंप की रोशनी में बैठकर रात को पढ़ता था। अगर मां साथ न होती तो मैं यहां तक न पहुंच पाता। 15 अक्तूबर 1931 को तमिलनाडू के रामेश्वरम में एक छोटे से गांव धनुषकोडी में एक मध्यमवर्गीय नाविक परिवार में पैदा हुए कलाम अपनी विलक्षण प्रतिभा और बेहद सरल स्वभाव के चलते वह देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंचे।
वैज्ञानिक कलाम
डॉ. कलाम की प्रारंभिक शिक्षा रामेश्वरम स्थित प्राथमिक विद्यालय स्कूल में हुई। अक्सर अपने भाषण में वह अपने जीवन के संस्मरण बताया करते थे। इन्हीं संस्मरणों में एक में वह प्राथमिक शिक्षक सुब्रह्मण्यम अय्यर का उदाहरण देते थे। जिनकी वजह से उन्हें प्रेरणा मिली और वह एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में गए। दरअसल एक बार उनके शिक्षक सुब्रह्मण्यम ने बच्चों से पूछा कि चिडि़या कैसे उड़ती है ? कक्षा का कोई बच्चा जवाब नहीं दे पाया तो उनके शिक्षक सभी बच्चों को समुद्र किनारे ले गए। वहां उन्होंने उड़ते हुए पक्षियों को दिखाकर सभी बच्चों को पक्षियों के उड़ने के कारण व उनके शरीर की बनावट के बारे में बताया। कलाम ने तभी तय कर लिया कि वह इसी क्षेत्र में कैरियर बनाएंगे।
वर्ष 1950 में उन्होंने तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज में बीएससी में दाखिला ले लिया। बीएसी पूरा करने के बाद उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में (एम. आई.टी) में दाखिला ले लिया। पहला वर्ष पूरा करने के बाद उन्होंने वैमानिकी यानी एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग को अपने प्रमुख विषय के रूप में चुना। यहां से पढ़ाई पूरी के करने बाद कलाम एमआईटी सो एक प्रशिक्षु के रूप में काम करने के लिए हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एच.ए.एल) बंगलौर चले गए। वहां पर उन्होंने विमान इंजनों पर काम किया। वर्ष 1958 में उन्होंने रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय में वरिष्ठ वैज्ञानिक के तौर पर काम करना शुरू किया। नौकरी के पहले वर्ष के दौरान ही उन्होंने ऑफिसर इंचार्ज आर. वरदराज की मदद से एक अल्ट्रासोनिक लक्ष्यभेदी विमान का डिजाइन तैयार करने में सफलता प्राप्त कर ली। इसके बाद उन्हें बंगलौर में स्थापित वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान में भेज दिया गया। वहां पर ग्राउंड इक्विपमेंट मशीन के रूप में स्वदेशी होवरक्रॉफ्ट का डिजाइन तथा विकास करने के लिए एक टीम बनाई गई। वैज्ञानिक सहायक के स्तर पर इसमें चार लोग शामिल थे।, जिसका नेतृत्व करने का कार्यभार निदेशक डॉ. ओ. पी. मेदीरत्ता ने डॉ. कलाम पर सौंपा। उड़ान में इंजीनियरिंग मॉडल शुरू करने के लिए उन्हें तीन वर्ष का समय दिया गया। भगवान शिव के वाहन के प्रतीक रूप में इस होवरक्राफ्ट को 'नंदी ' नाम दिया गया। इसके बाद उन्हें इंडियन कमेटी फॉर रिसर्च की ओर से साक्षात्कार के लिए बुलावा आया। उनका साक्षात्कार अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम सराभाई ने खुद लिया। इस साक्षात्कार के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति में रॉकेट इंजीनियर के पद पर उन्हें चुना गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में उनका काम 'टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च' के कंप्यूटर केंद्र में काम शुरू किया। वर्ष1962 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने केरल में त्रिवेंद्रम के पास थुंबा नामक स्थान पर रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र स्थापित करने का फैसला किया। इसके लिए डॉ. कलाम को रॉकेट प्रक्षेपण से जुड़ी तकनीकी बातों का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए अमरीका में नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) भेजा गया। छह महीने का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद जब डॉ. कलाम नासा से लौटे तो 21 नवंबर, 1963 को भारत का 'नाइक-अपाचे'नाम का पहला रॉकेट छोड़ा गया। यह साउंडिंग रॉकेट नासा में ही बनाया गया था।
डॉ. कलाम को जीवन का अगला सबसे बड़ा अवसर तब मिला तब उन्हें भारत के सैटेलाइट लांच वेहिकल (एस.एल.वी.) परियोजना का प्रबंधक बनाया गया। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य एक भरोसेमंद प्रमोचन यान विकसित करना था जो चालीस किलोग्राम के एक उपग्रह को पृथ्वी से 400 किलोमीटर की ऊंचाई वाली कक्षा में स्थापित कर सके। इसमें एक बड़ा काम था यान के चार चरणों के लिए एक रॉकेट मोटर सिस्टम का विकास। हाई एनर्जी प्रोपेलेंट के इस्तेमाल में सक्षम रॉकेट मोटर सिस्टम में इस्तेमाल के लिए 8.5 टन प्रोपेलेंट ग्रेन निर्मित किया जाना था। एक अन्य कार्य था नियंत्रण तथा मार्गदर्शन। यह एक बड़ी परियोजना थी। सभी गतिविधियों में तालमेल बैठाना और टीम का कुशल नेतृत्व करना डॉ. कलाम के लिए एक चुनौती था। कड़ी मेहनत के बाद 18 जुलाई, 1980 को सुबह आठ बजकर तीन मिनट पर श्रीहरिकोटा रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र से एस.एल.वी.-3 ने सफल उड़ान भरी। इस परियोजना की सफलता ने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दी। उनकी इस उपलब्धि के लिए डॉ. कलाम को 26 जनवरी 1981 को 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया गया। वर्ष 1982 में डॉ. कलाम को डीआरडीएल (डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट लेबोरेट्री) का निदेशक बनाया गया । उसी दौरान अन्ना यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया। कलाम ने तब रक्षामंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. वीएस अरुणाचलम के साथ इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आईजीएमडीपी) का प्रस्ताव तैयार किया। स्वदेशी मिसाइलों के विकास के लिए कलाम की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई। इसके पहले चरण में जमीन से जमीन पर मध्यम दूरी तक मार करने वाली मिसाइल बनाने पर जोर था। दूसरे चरण में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल, टैंकभेदी मिसाइल और रिएंट्री एक्सपेरिमेंट लॉन्च वेहिकल (रेक्स) बनाने का प्रस्ताव था। सितंबर 1985 में त्रिशूल, फरवरी 1988 में पृथ्वी और मई 1989 में अग्नि का परीक्षण किया गया। डॉ. कलाम की इन्हीं सफलताओं के चलते उन्हें 'मिसाइल मैन' के रूप में प्रसिद्धि मिली और वर्ष 1990 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। वर्ष 1992 से 1999 तक डॉ. कलाम ने रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहाकर और डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) के महानिदेशक के रूप में कार्य किया। वर्ष 1997 में उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' प्रदान किया गया। भारत ने 11 तथा 13 मई 1998 में राजस्थान के पोखरण में कुल पांच सफल परमाणु परीक्षण किए। हालांकि इससे पहले 1974 में पोखरण में भारत अपना पहला प्रायोगिक परमाणु परीक्षण कर चुका था लेकिन 1998 में किए गए परमाणु परीक्षण के बाद ही भारत ने खुद को परमाणुशक्ति संपन्न देश घोषित किया। इस अनुसंधान में डॉ. कलाम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्ष 1999 में डॉ. कलाम ने डीआरडीओ को छोड़ने का फैसला किया लेकिन सरकार ने उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया और भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के पद पर नियुक्त कर दिया गया। वे वर्ष 2001 तक इस पद पर रहे।
हमारे पूर्व राष्ट्रपति, हमारे सबसे बड़े वैज्ञानिकों में से एक और असंख्य मनों को प्रकाशित करने वाले दूरद्रष्टा डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के निधन के साथ भारत ने अपने महान सपूतों में से एक को खो दिया है। उन्होंने एक वैज्ञानिक के तौर पर हमारी रक्षा तैयारियों को अत्यन्त प्रभावशाली और मौलिक बनाने में योगदान दिया था। राष्ट्रपति के रूप में अपने अनुकरणीय आचरण के माध्यम से उन्होंने राष्ट्रपति कार्यालय की प्रतिष्ठा बढ़ाकर भारत को गौरवान्वित किया था। मन्दिरों के नगर रामेश्वरम् में गुमनामी में रह रहे एक छोटे से बालक से लेकर भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति बनने तक डॉ. अब्दुल कलाम का जीवन असाधारण साहस, दृढ़ संकल्प, दृढ़ता और उत्कृष्टता प्राप्त करने की इच्छा की कहानी रहा। उनकी जीवन गाथा ने और हमारे प्रक्षेपास्त्रों अग्नि, पृथ्वी, आकाश, त्रिशूल और नाग की जीवनगाथा ने हमारे राष्ट्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रक्षेपास्त्र शक्तियों के मध्य स्थापित किया है। डॉ. कलाम, जो भारत की समृद्ध विरासत में आस्था और हमारे प्रतिभाशाली युवाओं में अडिग विश्वास रखते थे, भारत को एक ज्ञानवान समाज और सशक्त राष्ट्र बनाना चाहते थे। उनकी मृत्यु पर, जो हमारे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है, पूरे राष्ट्र के साथ गहरा दु:ख बांटते हुए, हम उनके शोक-संतप्त परिवार के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं और सर्वशक्तिमान परमात्मा से दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं।
—श्री मोहनराव
भागवत, सरसंघचालक एवं भैय्या जी जोशी, सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
डॉ. कलाम की मृत्यु से हमने भारत के एक महान सपूत को खो दिया है, जिसने सारा जीवन मातृभूमि और इसके लोगों के कल्याण के लिए समर्पित किया। वे जीवनभर जन-जन के राष्ट्रपति रहे और मृत्यु के बाद भी रहेंगे। कलाम को विज्ञान और नवोन्मेषता के जुनून के लिए याद किया जायेगा। एक सुविख्यात वैज्ञानिक, प्रशासक, शिक्षाविद् और लेखक होने के साथ-साथ भारत के रक्षा अनुसंधान एवं सुरक्षा प्रणाली के प्रवर्तक के रूप में उनकी उपलब्धि बेजोड़ है। —प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति
मेरे व्यक्तिगत जीवन में डॉ. कलाम एक अच्छे व वरिष्ठ मार्गदर्शक थे। मुझे उनके साथ बहुत निकट से कार्य करने का सुअवसर मिला। मैंने अपने व्यक्तिगत जीवन में एक मार्गदर्शक खो दिया जो देश के सभी लोगों विशेषकर युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत था। आज देश एक महान वैज्ञानिक, अप्रतिम राष्ट्रपति और इससे बढ़कर एक प्रेरणादाई शख्सियत पर शोकाकुल हैं देश ने एक ऐसा सपूत खो दिया जो राष्ट्र को मजबूत करने के लिए कार्य करता रहा उन्होंने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण भारत के युवाओं को मजबूत और स्वावलंबी बनाने के लिए दिया। वे एक महान वैज्ञानिक, मेधा से युक्त प्रबुद्ध राजनेता और सच्चे देशभक्त थे जिन्होंने अपने कार्यों के माध्यम से लाखों युवाओं और प्रौढ़ों को प्रेरणा दी। —नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री
भारतमाता के सपूत, राष्ट्रपति पद भी जिनसे विभूषित हुआ, 'मिसाइल मैन' के नाम से जिन्होंने संसार में प्रसिद्धि प्राप्त की, 1998 में बड़ी कुशलता से देश परमाणु शक्ति सम्पन्न हो गया और दुनिया जान न सकी, अन्त तक जो स्वयं को अध्यापक कहलाने में गौरव अनुभव करते थे, जिन्होंने जीवन में कभी किसी को कष्ट नहीं दिया, उन्होंने अनायास मृत्यु प्राप्त की। ऐसे स्वर्गीय डॉ़ ए़ पी.जे़ अब्दुल कलाम के प्रति हम विनम्रतापूर्वक श्रद्धांजलि समर्पित करते हैं। मैं उनके अनायास निधन से दु:खी हूं। परिवारजनों एवं शुभचिन्तकों को परमात्मा धैर्य एवं शक्ति प्रदान करे, यह भी प्रार्थना करता हूं।
—अशोक सिंहल, संरक्षक, विश्व हिन्दू परिषद्
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आम आदमी के राष्ट्रपति थे। उन्होंने भारत के युवाओं के मन को जगाया और आगे बढ़ने का सपना दिखाया। —डॉ. मनमोहन वैद्य, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
मैं सुप्रसिद्ध राजनेता और कुशल वैज्ञानिक पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के निधन से बहुत दु:खी हूं। मैं सौभग्यशाली रहा कि ऐसे प्रतिभावान और सहृदय महामानव को नजदीक से जानने का अवसर मिला। उनके निधन से देश ने न केवल एक लोकप्रिय राष्ट्रनायक अपितु एक सर्वाधिक कुशल तकनीक विशेषज्ञ भी खोया है जो देश के उत्थान एवं विकास के लिए बच्चों और युवाओं को ऊंचा लक्ष्य और कार्य करने की प्रेरणा देते रहे। डॉ. कलाम से मेरा निकट संबंध तब बना जब वह भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहाकार और मैं विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री था। इसके बाद भारत के राष्ट्रपति के रूप में उनके केन्द्रीय विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों के 'विजिटर' और मैं केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में मेरा उनसे नियमित रूप से संवाद रहा और नजदीक से कार्य करने का सम्बंध बना। उनका निधन देश के लिए एक बड़ी क्षति है और मेरे लिए भी व्यक्तिगत क्षति। देश के लिए हजार कलामों की आवश्यकता पड़ेगी, ऐसे महान पुरुष बहुत और दुर्लभ ही हैं। डॉ. कलाम की मृत्यु ने एक रिक्त स्थान छोड़ दिया जिसको भरना बहुत कठिन है। —डॉ. मुरली मनोहर जोशी, पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री
चमत्कारिक प्रतिभा के धनी डॉ़ ए़ पी़ जे. अब्दुल कलाम भारत के ऐसे पहले वैज्ञानिक हैं, जो देश के राष्ट्रपति पद पर भी आसीन हुए। वे देश की ऐसी विभूति थे, जिन्हें राष्ट्रपति बनने से पूर्व देश के सवार्ेच्च सम्मान 'भारतरत्न' से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही साथ वे देश के इकलौते ऐसे राष्ट्रपति थे, जिन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर देश सेवा का व्रत लिया था। विधि के विधान एवं प्रभु इच्छा के सम्मुख सबको नतमस्तक होना ही पड़ता है। वे अंतिम श्वास तक सक्रिय रहे। मैं स्वयं एवं समस्त विश्व हिन्दू परिषद् परिवार की ओर से दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
—डॉ. प्रवीण तोगडि़या, अन्तरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष, वि. हि. प.
डॉ. कलाम भारत-रूस की नजदीकी मित्रता का सूत्रधार माना जाएगा। उन्होंने दोनों देशों को मध्य परस्पर सहयोग बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
—ब्लादीमीर पुतिन, रूस के राष्ट्रपति
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के परिवार और मित्रों के प्रति संवेदना। उनकी मृत्यु विज्ञान समुदाय के लिए भी एक बड़ी क्षति है।
—मोहम्मद नजीब तुन रजाक
मलेशिया के राष्ट्रपति
डॉ. कलाम की मृत्यु दु:खद है। वह मेरे जैसे लाखों लोगों के लिए प्रेरणादायी व्यक्ति थे। हमारे पास उनके जीवन से सीखने के लिए बहुत कुछ है।
—अशरफ गनी, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति
डॉ. कलाम के जीवन की शुरुआत सहज थी, लेकिन वह भारत के रक्षा अनुसंधान संगठन के शीर्ष वैज्ञानिक के रूप में चमके। उसके बाद 11वें राष्ट्रपति के रूप में देश की सेवा करते हुए वे भारत में लोगों के राष्ट्रपति के रूप में स्थापित हुए।
—ली.सियेन.लूंग, सिंगापुर के प्रधानमंत्री (फेसबुक पर)
डॉ. अब्दुल कलाम एक ऐसे व्यक्ति थे जो भारत को एक नई यात्रा पर ले गए हैं। आप हम सभी को शताब्दियों तक निरंतर प्रेरित करते रहोगो।
—मैत्रीपाला सिरीसेना, प्रधानमंत्री, श्रीलंका
'सेल्फी' विकसित भारत की
मानवर्धन कंठ
आजाद भारत में यदि कोई एक सपना, जिसे हर भारतीय ने देखा-संजोया है, वह है – विकसित भारत का सपना। आज डॉ. कलाम हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके ही नेतृत्व में इस सपने को साकार करने के लिए पटकथा लिखी गई थी, जिसे हम 'विजन 2020' के नाम से जानते हैं। आइए, इस विजन डॉक्युमेंट की एक सेल्फी खींचते हैं और देखने का प्रयास करते हैं कि 1990 के दशक में राष्टृ को समर्पित 'विजन 2020' को कैसे तैयार किया गया था और इसकी खास बातें क्या हैं ़.़
बात 1993 की है, जब डॉ़ एपीजे अब्दुल कलाम 'टेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन फोरकास्टिंग एंड एसेसमेंट काउंसिल ' यानी कि 'टाइफैक' के अध्यक्ष बने थे। इस संस्था की पहली बैठक में काउंसिल के सदस्यों ने फैसला किया था कि साल 2020 तक भारत को आर्थिक रूप से विकसित राष्ट्र में बदलने की योजना तैयार की जाएगी। बीस साल बाद भारत का चेहरा कैसा होगा, इसकी रूपरेखा तैयार करने में उद्योग जगत, शिक्षण-संस्थान, अनुसंधान व सरकारी तंत्र के 5000 से ज्यादा विशेषज्ञ लगभग तीन साल तक प्राणपण से जुटे रहे। चुनौतियों की एक लंबी फेहरिस्त सामने थी :- हाशिये पर जीवनयापन करने वाले बहुसंख्यक भारतीयों का आर्थिक-स्तर सम्मानजनक हो व उनकी शिक्षा और सेहत स्तरीय हो सके। गरीबी का पूर्ण रूप से उन्मूलन हो और निरक्षरता पूरी तरह मिट जाए। कृषि में उत्पादन क्षमता ऐसी गुणवत्तापूर्ण हो कि उससे देश में चौतरफा खुशहाली आ सके। बुनियादी सुविधाओं के मामले में शहरों और देहातों के बीच कोई अंतर न रहे। पर्याप्त बिजली और स्वच्छ पेयजल आम नागरिकों को मुहैया कराई जा सके। दुनिया भर के बड़े विद्वानों, वैज्ञानिकों व आविष्कारकों के लिए भारत एक उपयुक्त केंद्र बन सके। इन तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए पांच क्षेत्रों में आवश्यक बदलाव लाने की तैयारियां शुरू हो गईं: – कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण, शिक्षा एवं स्वास्थ्य, सूचना एवं संचार-प्रोद्योगिकी, ढांचागत विकास और अहम प्रोद्योगिकी में आत्मनिर्भरता। आखिरकार, 2 अगस्त, 1996 में विजन 2020 का शुभारंभ हुआ। अब, जबकि हम 2015 में कदम रख चुके हैं, और भारत को एक विकसित राष्ट्र के रूप में देखने में महज 5 साल बाकी है, वह दिन दूर नहीं जब हम एक ऐसे भारत में जी रहे होंगे, जहां न सिर्फ लोगों के हाथ में स्मार्ट फोन व स्मार्ट वाहन होंगे, बल्कि हर तरफ स्मार्ट सड़कें व स्मार्ट तकनीक छाई होगी।
(लेखक 'टाइफैक' में संप्रेष
शिक्षक कलाम
राष्ट्रपति बनने से पहले कलाम अन्ना मलाई विश्वविद्यालय में छात्रों को पढ़ाते थे। उनकी कक्षा में मात्र 60 बच्चों के बैठने की व्यवस्था थी लेकिन रोजाना ऐसा होता था कि कक्षा में 350 से ज्यादा छात्र पहुंच जाते थे। उनका काम परास्नातक स्तर केछात्रों की सोच को जानना और राष्ट्रीय स्तर पर उनके द्वारा किए गए कामों को छात्रों से साझा करना था। छात्र विभिन्न राष्ट्रीय मिशनों में शामिल रहे डॉ. कलाम के अनुभवों ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते थे। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वयं उन्हें फोन कर राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने के लिए बात की थी। राष्ट्रपति रहते हुए भी डॉ. कलाम लगातार विश्वविद्यालयों में व्याख्यान देते रहे। राष्ट्रपति पद से दायित्वमुक्त होने के बाद भी कलाम शिक्षण, लेखन, मार्गदर्शन और शोध में व्यस्त रहते थे। वह राष्ट्रीय प्रबंधन संस्थान, शिलांग, राष्ट्रीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद, राष्ट्रीय प्रबंधन संस्थान इंदौर में आंगतुक प्रोफेसर के पर जुड़े रहे। डॉ. कलाम बेहद संवाद कुशल थे। अपने व्याख्यानों के बाद वह अक्सर छात्रों से उन्हें पत्र लिखने को कहते थे। वे हमेशा छात्रों के लिखे हुए पत्रों और उनसे प्राप्त होने वाले संदेशों का जवाब देते थे। उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में भी आगंतुक प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दी। अपने अंतिम समय में भी डॉ. कलाम राष्ट्रीय प्रबंधन संस्थान शिलांग में व्याख्यान दे रहे थे। ण और प्रकाशन विभाग के विभागाध्यक्ष हैं)
राष्ट्रपति कलाम
कौटिल्य ने कहा है कि सही व्यक्ति को सही जगह पर बिठाने से हमेशा लोगों का हित होता है। ऐसा हुआ भी। कलाम राष्ट्रपति बने लेकिन उनका जीवन सदैव सादगी भरा ही रहा। जीवनपर्यंत राष्ट्रहित में काम करने वाले डॉ. कलाम की सोच कितनी व्यापक थी कि इसका अंदाजा राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्र के नाम उनके पहले संदेश में ही झलक गया था। अपने पहले संदेश में उन्होंने कहा था 'जब मैं अपने देश की यात्रा करता हूं, जब मैं अपने देश के तटों के चारों ओर तीन समुद्रों की लहरों की आवाज सुनता हूं, जब मैं शक्तिशाली हिमालय ने आने वाली वायु की मृदुलता को महसूस करता हूं, जब मैं उत्तरपूर्व और हमारे द्वीपों की जैव विविधता को देखता हूं तो मैं युवाओं की आवाज सुनता हूं' मैं भारत का गीत कब गा सकता हूं, यदि युवाओं को भारत का गान गाना है तो भारत को एक विकसित देश बनाना होगा, जो गरीबी अशिक्षा और बेरोजगारी से मुक्त हो और आर्थिक समृद्धि, राष्ट्रीय सुरक्षा तथा आंतरिक सद्भावना से ओतप्रोत हो। देश को लेकर डॉ. कलाम की सोच ऐसी ही थी। वामदलों को छोड़कर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए सभी दलों ने एकमत से उनका स्वागत किया था। 18 जुलाई 2002 को संपन्न हुए चुनावों में डॉ. कलाम नब्बे प्रतिशत मतों के भारी बहुमत से भारत के 11वे राष्ट्रपति चुने गए। 25 जुलाई 2007 को उनका कार्यकाल समाप्त हुआ।
आध्यात्मिक व दूरदर्शी कलाम
बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाम वैज्ञानिक होने के साथ-साथ दार्शनिक और शिक्षाविद् भी थे। राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने छात्रों को पढ़ाना नहीं छोड़ा। उनके व्याख्यान को सुनने के लिए हमेशा हॉल की क्षमता से अधिक छात्र और शिक्षाविद मौजूद रहते थे। जगह कम पड़ जाती थी तो खड़े होकर वे उनके व्याख्यानों को सुनते थे। कलाम कविताएं भी लिखते थे। वीणा भी बजाते थे। अध्यात्म से भी वे गहराई तक जुड़े हुए थे। चंूकि वे मुसलमान थे तो नमाज भी पढ़ते थे, लेकिन उन्होंने गीता समेत वेदों का भी गहराई से अध्ययन किया था। भारतीय मिसाइल के जनक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम स्वयं कहते थे कि 'मिसाइल' बनाने की प्रेरणा उन्हें वेदों से मिली। उनका मानना था कि मिसाइल की प्रथम खोज वैदिक भारत में हुई थी, तब इन्हें अस्त्र कहा जाता था। उन्हीं प्राचीन अस्त्रों से उन्हें आधुनिक मिसाइल की प्रेरणा मिली। पोखरण परमाणु परीक्षण के समय उन्होंने कहा था कि उन्होंने वेदों से प्रेरणा ली। वेदों में अपार ज्ञान भरा हुआ है। जितना गहरा उनका चिंतन था। उतनी ही व्यापक उनकी आधुनिक सोच थी। कलाम ने देश को विजन-2020 दिया। उनका सपना वर्ष 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में खड़े होते देखना था।
आदित्य भारद्वाज
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