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'युवाओं में संघ के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है'

by
Aug 1, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Aug 2015 14:43:50

नैनीताल में संघ की तीन दिवसीय बैठक के बाद सहसरकार्यवाह श्री भागय्या ने संघ के विस्तार और गांवों में विकास और कौशल निर्माण के कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। प्रस्तुत हैं प्रमोद कुमार द्वारा उनसे हुई बातचीत के अंश:-
ल्ल    संघ की नैनीताल बैठक में क्या प्रमुख निर्णय लिए गए?
 पिछले 5-6 वषोंर् में संघ का कार्य तेजी से बढ़ा है। समाज का प्रतिसाद भी बढ़ रहा है। संघ शिक्षा वर्गों में हजारों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। प्राथमिक वर्गों में तो शिक्षार्थियों की संख्या एक लाख तक थी। आमतौर पर ऐसे वर्गों में सभी शिक्षार्थी युवा होते हैं। शाखाओं की भी संख्या बढ़ रही है।
ल्ल  राष्ट्रीय स्तर पर वर्तमान स्थिति क्या है?
 कश्मीर घाटी के 14 जिलों और असम के कुछ सुदूर क्षेत्रों को छोड़कर, संघ की उपस्थिति देश के प्रत्येक जिले में है। कुल 55 हजार मंडलों में से आज 25 हजार मंडलों में कार्य विस्तृत हुआ है। इस वर्ष हर मंडल में पहुंचने की योजना है। प्रान्त और क्षेत्र स्तर के सभी कार्यकर्ता और अधिकारी एक खंड का प्रवास करेंगे, जिसे पहले तालुका या ब्लॉक कहा जाता था, जिसमें 3-4 मंडल होते थे। कार्यकर्ता उन गांवों तक भी जाएंगे जहां अभी संघ की शाखा नहीं है। ऐसे गांवों में वे 2-3 महीने सघन कार्य करके ऐसे किसानों और श्रमिकों को चुनेंगे जो गांव में स्थायी रूप से रहते हैं। फिर एक निश्चित दिन पूरे देश में ब्लॉक स्तर पर एक कार्यक्रम होगा। इस साल संघ का यह सबसे बड़ा विस्तार कार्यक्रम रहने वाला है।
ल्ल    क्या इस हेतु कोई खास दिन तय हुआ है?
नहीं, यह हर प्रांत में उनकी सुविधा के अनुसार तय किया जायेगा। योजना यह है कि प्रांत और क्षेत्र स्तर तक के कार्यकर्ता सुबह से लेकर शाम तक पूरे दिन ब्लॉक में काम करेंगे। इसके पीछे प्रमुख रूप से 3 उद्देश्य हैं। पहला, सामाजिक सौहार्द। गांववासियों को यह लगना चाहिए कि उनका गांव एक परिवार की तरह है। कुछ मतभेद हो सकते हैं पर हम सब एक हैं। दूसरा उद्देश्य है जैविक कृषि को प्रोत्साहित करना। हम किसानों को रासायनिक कृषि छोड़ने के लिए प्रेरित करेंगे। तीसरा उद्देश्य है व्यक्ति, परिवार में प्रेम, स्नेह, सामाजिक सौहार्द, कड़ी मेहनत आदि का संरक्षण और प्रोत्साहन। हम लोगों से दैनंदिन व्यवहार में 'मातृवत् परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत्, आत्मवत् सर्वभूतेषु…' के प्राचीन विचार पर चलने का आग्रह करेंगे।'आत्मवत् सर्वभूतेषु' से हमारा तात्पर्य है पूरे ब्रह्माण्ड में एक ही ईश्वर की अनुकंपा। इसलिए ऊंच-नीच या अस्पृश्यता का सवाल ही पैदा नहीं होता। इसी तरह परद्रव्येषु लोष्ठवत् का अर्थ है भ्रष्ट तरीकों से कमाया गया धन विष के समान है। हमें अपने द्वारा उपार्जित साधनों में खुश रहना चाहिए। अगर अपने अंदर यह भाव विकसित किया जाए तो महिलाओं के प्रति होने वाले अत्याचार और अपराध कम हो जाएंगे। कानून अपना काम करे, पर संघ का दृष्टिकोण यही है। जब हम लोगों को कुटुम्ब प्रबोधन कार्यक्रम में यह श्लोक समझाते हैं तो बड़ा उत्साहजनक प्रतिसाद मिलता है।
ल्ल    क्या देश में कहीं यह अभियान शुरू हुआ है?
 हां, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र में पिछले 2 वषोंर् से यह पूरी गंभीरता के साथ चल रहा है। समाज में जमीनी सचाई को जानने के लिए कार्यकर्ताओं ने सर्वेक्षण करना शुरू कर दिया है। पिछले एक वर्ष से सरसंघचालक हर गांव में एक कुएं, जलाशय, मंदिर और संस्कार स्थल होने का आह्वान कर रहे हैं। लेकिन जमीनी सचाई दर्शाने वाले आंकड़े किसी के पास नहीं हैं। इन सर्वेक्षणों से इसमें मदद मिल रही है। आने वाले दिनों में हम पूरे देश में ऐसा करने वाले हैं। अभी तक का अनुभव बहुत अच्छा रहा है। लोगों को, स्वयंसेवकों और संघ से जुड़े संगठनों जैसे अभाविप, विहिप, समरसता मंच, किसान संघ आदि तथा वरिष्ठ संतों, शंकराचार्यों और आर्ट ऑफ लिविंग, गायत्री परिवार जैसी संस्थाओं के प्रयासों से कई गांवों में मंदिरों में सभी लोगों का प्रवेश संभव हुआ है। लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।  हमें किसी की भावना को आहत किए बिना लोगों को शिक्षित करना होगा। कुछ स्थानों पर अच्छे परिणाम मिले हैं, कुछ पर उदासीनता दिखाई दी है। वहां पर हम लोगों को जागरूक करना चाहते हैं। मार्च माह में इस संबंध में निर्णय लिया गया था, पर इसकी बारीकियों पर काम चल रहा है। यह अगले वर्ष मार्च तक जारी रहेगा।
यहां मैं एक बात का उल्लेख करना चाहूंगा। 'पाञ्चजन्य' और 'आर्गनाइजर' द्वारा बाबासाहेब आंबेडकर पर हाल में प्रकाशित विशेषांक सामाजिक सौहार्द मजबूत करने की ओर अच्छा प्रयास साबित हुए हैं। बाबासाहेब वंचित वर्गों के न केवल भगवान थे, बल्कि वे देश के भी एक महान नेता थे। उन विशेषांकों में उनके जीवन और कार्य को समग्रता के साथ प्रकाशित किया गया था। अब हम यह कार्य विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संगठनों की मदद से करने की कोशिश कर रहे हैं।
ल्ल    राजमार्ग परियोजना क्या है?
 राष्ट्रीय और राज्यीय राजमार्गों पर बहुत से गांव पड़ते हैं। इन अधिकांश गांवों में संघ कार्य नहीं है। हम ऐसे गांवों के लोगों को अलग गतिविधियों के द्वारा जागरूक कर रहे हैं। वहां 6 घंटे का एक कार्यक्रम चलता है जिसमें हर गांव के लोग शामिल होते हैं। इस दौरान 3 बैठकें की जाती हैं। तंजौर का एक बड़ा सुखद अनुभव बताता हूं। वहां ऐसी एक बैठक में सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी मौजूद थे। उन्होंने लोगों से पूछा कि हिन्दू समाज में क्या व्याधियां हैं? लोगों ने बताया, अस्पृश्यता, भेदाभेद, वंचितों का नकारा जाना आदि। उन्होंने बताया कि हमारी कमजोरी के कारण भी बाहर के लोग हम पर हमले करते हैं, इसलिए हमें पहले अपने घर को व्यवस्थित करना चाहिए। भैयाजी ने उन्हें 3 रास्ते बताए- सरकार या किसी स्वयंसेवी संगठन पर निर्भरता अथवा अपने साथ और लोगों को जोड़कर स्वयं यह कार्य करना। उनमें से 90 प्रतिशत ने कहा, 'हम यह काम स्वयं करेंगे'। तंजौर में ही एक अन्य बैठक में भैयाजी के साथ अपने अनुभव बांटते हुए कुछ लोगों ने कहा कि अब उन्हें हिन्दी सीखने की आवश्यकता लगती है। भैयाजी ने इसकी वजह पूछी। उन्होंेने कहा,हमारे प्रधानमंत्री दुनिया में जहां भी जाते हैं, हिन्दी में बोलते हैं। हम उनको सुनते तो हैं पर समझ नहीं पाते। उनकी बात समझने के लिए हमें हिन्दी सीखनी होगी। हमें लगता है कि राजमार्गों के पास रहने वाले ग्रामीणों को उनके सांस्कृतिक मूल्यों, मंदिरों आदि के प्रति जागरूक करना चाहिए। इस परियोजना पर पिछले 2 साल से काम चल रहा है और अब तो इसमें और गति आ गई है।
ल्ल    क्या पर्यावरण संरक्षण की भी कोई  योजना है?
 विहिप ने अपने स्वर्ण जयंती वर्ष में लाखों पौधे रोपने का निर्णय लिया है। अन्य स्थानों पर स्वयंसेवक भी इस कार्य में जुटे हैं।
ल्ल सरसंघचालक जी का कहना है कि कार्य विस्तार के लिए वातावरण अनुकूल है। क्या यह केन्द्र में वर्तमान सरकार की वजह से है या समाज के अधिक जागरूक होने की वजह से? क्या इन दोनों से अलग कोई अन्य कारण है?
 पिछले 90 वषोंर् से स्वयंसेवक पूरी निष्ठा के से काम कर रहे हैं। संघ कार्य बढ़ने की वजह से लोगों ने संघ की ओर देखना शुरू किया है। कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान, उ.प्र.,म.प्र. और छत्तीसगढ़ में अस्पृश्यता का उन्मूलन हो गया है। लोगों का स्वयंसेवकों में विश्वास बढ़ा है। संघ का कार्य टेलीविजन या अखबारों पर आश्रित नहीं है। हम अपने स्वयंसेवकों के व्यवहार के आधार पर कार्य करते हैं। संघ के 1.5 लाख प्रकल्प चलते हैं। राजनीतिक वातावरण में बदलाव के साथ ऐसे अनेक लोग और संगठन, जो पहले अप्रत्यक्ष रूप से हमारी सहायता करते थे, अब खुलकर हमारे साथ जुड़े हैं। इंटरनेट के माध्यम से 'संघ से जुड़ें' अभियान को भी अच्छा प्रतिसाद मिला है। सभी प्रान्तों में हजारों लोग संघ से जुड़ रहे हैं।
ल्ल आपने कहा अब गांव पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है। उन शहरी क्षेत्रों का क्या जहां, मीडिया की मानें तो, शाखाओं की संख्या घट रही है?
यह कहना गलत है कि शाखाओं की संख्या घट रही है। सभी छोटे अथवा बड़े शहरों में इस वर्ष हमारी हर बस्ती तक पहुंचने की योजना है। हम हर बस्ती में सांस्कृतिक पुनर्जागरण देखना चाहते हैं। गांवों और शहरों, दोनों में बड़े पैमाने पर भारत माता पूजन करने की योजना बनाई है। इन योजनाओं में हम हर वर्ग के लोगों को आमंत्रित करते हैं। शिक्षा व्यवस्थाओं के बदलाव के साथ सुबह छात्र शाखाएं लग रही हैं। आईटी क्षेत्र से जुड़े युवाओं की साप्ताहिक शाखाएं चल रही हैं।

ल्ल    कॉलेज विद्यार्थियों तक पहुंच बनाने के लिए क्या किया जा रहा है?
देश में पिछले साल हुए वर्गों में हजारों कॉलेज विद्यार्थियों की सहभागिता रही। अब हम उनको साप्ताहिक शाखाओं और सेवा कार्यों से जोड़ने की योजना बना रहे हैं। इंटरनेट के माध्यम से 'संघ से जुड़ें' कार्यक्रम का अच्छा परिणाम दिखा है। बंेगलुरू में समर्थ भारत कार्यक्रम में इंटरनेट पर एक अपील जारी की गई थी जिसे पढ़कर 900 महिलाओं सहित 4000 लोग दो दिनों के लिए साथ आए थे। हमने 42 क्षेत्रों की पहचान की है जहां ये लोग अपनी सेवाएं दे सकते हैं। उदाहरण के लिए,जैविक कृषि, अनाथालय, मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए काम करना, सांस्कृतिक विकास, मानव मूल्य, कन्वर्जन रोकना, घर वापसी, महिला कल्याण, बाल विकास, सेवा बस्ती विकास आदि। इन 4000 लोगों ने अपनी-अपनी रुचि के अनुसार बैठकों में हिस्सा लिया। इसमें इतने उत्साहजनक परिणाम आए कि उनमें से 50 लोग पूर्णकालिक निकले और कई अल्पकालिक कार्यकर्ताओं के तौर पर जुड़ गए। वे हर रविवार समाज के लिए लगाते हैं। 'आपके पास थीम है तो हमारे पास टीम, आपके पास टीम है तो हमारे पास थीम', इस नारे ने उनमें बहुत उत्साह पैदा किया। हैदराबाद में करीब सौ कंपनियों के सीईओ और आईटी व्यवसायी साथ आए। इस तरह हमने कार्पोरेट उद्यमियों को विकास कार्यों से जोड़ा।
ल्ल    जैविक कृषि को प्रोत्सहित करने के लिए क्या योजना  है?
 रासायनिक कृषि के मुकाबले जैविक कृषि कम खर्चीली और अधिक उत्पादन देने वाली है। लेकिन पिछले 60 सालों में किसानों का इस पर से भरोसा उठ गया है। आज लाखों किसान जैविक कृषि सफलता के साथ कर रहे हैं। स्वयंसेवक उनके बीच एक नेटवर्क बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ स्थानों पर आदर्श खेत विकसित किए जा रहे हैं ताकि किसान उसे सामने से देखकर अपना सकें। जैविक कृषि न केवल स्वास्थ्य और आय में वृद्धि करती है, बल्कि खर्च भी कम करती है। इसके साथ ही जुड़ा है गोसंरक्षण। गाय भले दूध देना बंद कर दे तो भी अपने मूत्र और गोबर से किसान के लिए धनोपार्जन का माध्यम बनती है। यह वैज्ञानिक रूप से भी प्रमाणित हुआ है। यह संदेश हर घर, हर गांव और किसान के दिल तक पहुंचना चाहिए। हम इसी का प्रयास कर रहे हैं। बड़ी संख्या में किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने के इस दौर में जैविक कृषि रामबाण की तरह है। नागपुर की देवलापार गोशाला में गो उत्पादों के साथ कुछ अच्छे प्रयोग किए गए  हैं। हैदराबाद की एकलव्य फाउंडेशन 10 वषोंर् से वनवासी क्षेत्रों में अच्छे प्रयोग कर रही है। वे तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश में आदर्श परियोजनाएं विकसित कर रहे हैं। एक स्थान पर उन्होंने 6 एकड़ बंजर भूमि पट्टे पर ली और उसे उपजाऊ बनाकर जैविक कृषि के माध्यम से गजब के परिणाम सामने रखे। उन्होंने ब्रह्मस्त्र और गोशक्ति दवाएं तैयार करके आम, पपीता जैसे फलों पर उसके गजब के परिणाम प्राप्त किए । अब रंगारेड्डी जिले में उन्होंने 100 एकड़ का खेत खरीदा है। उसके लिए लोगों ने चंदा दिया था। उनसे अपील की गई थी आप इसके लिए 5 से 10 लाख रुपये दान करें। आपके परिवार को ही नहीं, पूरे समाज को इससे हर चीज मिलेगी। अब कुछ सेवानिवृत्त नौकरशाहों, कृषि वैज्ञानिकों और आईटी व्यवसायियों ने इस परियोजना के लिए हाथ मिलाए हैं। कार्यकर्ता गणित, भौतिकी, अंग्रेजी आदि की कक्षाएं चलाकर बेराजगार युवाओं में कौशल को निखारते हैं। 

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