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पुरी में आयोजित नवकलेवर रथयात्रा के दौरान हुए हादसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हजारों स्वयंसेवक श्रद्धालुओं की सेवा में तत्पर रहे। गणवेश में संघ के स्वयंसेवकों ने यात्रा के पहले दिन महाप्रभु जगन्नाथ जी की रथयात्रा का दर्शन करने आए श्रद्धालुओं की युद्धस्तर पर मदद की। देश- विदेश से पहुंचे श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की समस्या न हो, यह सुनिश्चित किया गया।
गत 17 जुलाई को नवकलेवर रथयात्रा के दौरान मची भगदड़ में दो लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 10 से अधिक लोग घायल हो गए। यह घटना रथ खींचने के समय हुई थी। नवकलेवर के अवसर पर करीब 15 लाख श्रद्धालु पुरी में पहंुचे हुए थे। भगदड़ की जानकारी मिलते ही पुलिस-प्रशासन के पहंुचने से पहले ही स्वयंसेवकों ने मोर्चा संभाल लिया। घटना के तुरंत बाद राहत के लिए पहंुचे स्वयंसेवकों ने घायलों को अस्पताल पहंुचाने और राहत पहंुचाने का कार्य शुरू कर दिया। घायलों को जिला अस्पताल और एससीबी मेडिकल कॉलेज में ले जाया गया। इसके अलावा बेकाबू भीड़ को नियंत्रित करने और रथ की सुरक्षा आदि कायार्ें में भी स्वयंसेवकों ने प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। उधर ओडिशा सरकार ने इस हादसे के बाद महोत्सव में पहंुचे श्रद्धालुओं का पांच-पांच लाख रुपए का बीमा निर्धारित कर दिया जिसका लाभ मृतकों के परिजनों व घायलों को भी मिलेगा। पहले इसके लिए एक लाख रुपए की राशि तय की गई थी। समन्वय नंद
शुक्रताल में भागवत द्वार का लोकार्पण
भारत के अतुलनीय संत ब्रह्मलीन स्वामी कल्याणदेव महाराज की 11वीं पुण्यतिथि पर उनकी कर्मस्थली महाभारतकालीन ऐतिहासिक धार्मिक स्थल एवं श्रीमद्भागवत की उद्गम स्थली शुक्रताल (मुजफ्फरनगर) में गत 14 जुलाई को उ. प्र. के राज्यपाल राम नाईक ने श्रीशुकदेव आश्रम के मुख्यद्वार का लोकापर्ण किया। इस अवसर पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए राज्यपाल ने कहा कि उ. प्र. भारत का ऐसा हिस्सा है जिसकी पहचान भगवान राम, श्रीकृष्ण एवं गंगा से जुड़ी हुई हैं।
उन्होंने स्वामी कल्याण देेव के जीवन और उनके व्यक्तित्व को अत्यंत प्रेरणादायी बताते हुए कहा कि ऐसे संत की कर्मस्थली पर आकर वह खुद को बहुत धन्य मान रहे हैं। स्वामी कल्याणदेव ने पश्चिमी उ. प्र. के ऐसे क्षेत्रों में शिक्षा की अलख जगाने का बेमिसाल काम किया जो साधनहीन एवं हर तरह से पिछडे़ और उपेक्षित थे।
श्री राम नाईक ने आगे कहा कि स्वामी कल्याण देव तीन शताब्दियों के संत थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदशार्ें से प्रेरित ऊंचे दर्जे के संत ने जीवनपर्यन्त छुआछूत को मिटाने, शिक्षा, स्वदेशी और भारतीय संस्कृति को फैलाने का काम किया। शुक्रताल वह प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्थान है, जहां सर्वप्रथम ऋषि शुकदेव वह महाराज ने वेदव्यास रचित भागवत् कथा अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित को सुनाई थी। इस कथा को सुनने के पश्चात ही राजा परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। सुरेन्द्र सिंघल
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