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गत 18 जुलाई को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में 'सुदर्शन-स्मृति' का लोकार्पण हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक स्वर्गीय कुप्.सी. सुदर्शन की जीवनी पर आधारित इस पुस्तक का प्रकाशन दैनिक 'स्वदेश' ने किया है। लगभग साढ़े छह सौ पृष्ठ की इस पुस्तक मेंे सुदर्शन जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के अनेक प्रसंगों को समाहित किया गया है। विश्व हिन्दू परिषद् के संरक्षक श्री अशोक सिंहल की अध्यक्षता में आयोजित लोकार्पण समारोह की मुख्य अतिथि थीं विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, उत्तर क्षेत्र के क्षेत्र संघचालक डॉ. बजरंगलाल गुप्त और वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी की गरिमामय उपस्थिति रही।
कार्यक्रम में श्री अशोक सिंहल ने कहा कि सुदर्शन जी का व्यक्तित्व ऐसा था कि उन्हें किसी एक ग्रंथ में समेटना मुश्किल है। फिर भी यह ग्रंथ सुदर्शन जी को जानने के लिए काफी है। यह स्वदेश की सुदर्शन जी को गुरु दक्षिणा है। उन्होंने कहा कि संसार में बहुत से लोग ऐसे होतेहैं जो एक ही ढर्रे पर चलते हैं, लेकिन कुछ लोग जन्म से ही रचनात्मक होते हैं। वे हर समय नएपन की तलाश में रहते हैं। सुदर्शन जी ऐसे ही थे। श्रीमती सुषमा स्वराज ने कहा कि सुदर्शन जी एक संत थे और पूरा जीवन उन्हांेने संत जैसा ही जिया। श्री सुदर्शन जी से मेरे पिता जैसे संबंध न होकर माता जैसे संबंध थे, क्योंकि पिता से बात करते समय बहुत सी गरिमाओं का ध्यान रखना पड़ता है, लेकिन माता के सामने खुलकर बात होती है। मैं उनसे खुलकर बात करती थी। वह डांटते भी थे और उतना ही ममत्व भी देते थे। उन्होंने यह भी कहा कि वे किसी भी शोधकर्ता को आगे बढ़ाने का कार्य करते थे। उनके न रहने से सबसे ज्यादा क्षति शोधकर्ताओं को ही हुई है। वे स्वदेशी के पक्षधर थे। वे नहीं चाहते थे कि भारत विदेशों पर आश्रित हो।
डॉ. बजरंगलाल गुप्त ने कहा कि सुदर्शन जी एक बार जैन मुनि आचार्य महाप्रज्ञ के दर्शन करने गए। उनके साथ मैं भी था। आचार्य महाप्रज्ञ ने श्री सुदर्शन जी से कहा कि आप लोग हिन्दू, हिन्दू राष्ट्र जैसे शब्दों को बराबर बोलते हैं। इन शब्दों की जगह और कोई शब्द अनपाएं तो आपको सर्व समाज का साथ मिल सकता है। इस बात पर श्री सुदर्शन जी ने 18 मिनट तक हिन्दू और हिन्दुत्व पर संदर्भ सहित सारगर्भित तर्क रखे। इससे आचार्य जी बड़े प्रभावित हुए और कहा कि आप तो स्वयं चलते-फिरते 'एंसाइक्लोपीडिया' हंै। डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि सुदर्शन जी स्वदेशी के प्रति आग्रही थे। उनका मानना था कि भारत की समस्याओं का समाधान भारत के चिंतन से ही होना चाहिए। सुदर्शन जी के भाई श्री कुप्. सी. रमेश ने युवा सुदर्शन जी की कुछ बातों को याद करते हुए कहा कि वे धुन के पक्के थे। एक बार माता जी ने उनसे कहा कि तुम्हें इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाई, लेकिन इसका कोई लाभ तो हमें नहीं मिला। तुम एक रेडियो बना दो तो समाचार वगैरह सुन लिया करेंगे। उस समय उनके पास समय नहीं था।
उन्होंने कहा कि कुछ दिन बाद आकर रेडियो बना देंगे। कुछ दिन बाद रेडियो बनाने का सामान लेकर वे घर आए और रेडियो तैयार करने में लग गए। उस काम में वे इस तरह जुटे कि उन्हें खाने-पीने की भी सुध नहीं रही। चौथे दिन जब रेडियो तैयार हो गया तब उन्होंने ठीक से भोजन किया। कार्यक्रम में स्वदेश समूह के संपादक श्री राजेन्द्र शर्मा ने बताया कि इस विशेषांक का यह पांचवां लोकार्पण कार्यक्रम है। सुदर्शन जी के जीवन से जुड़े कुछ अन्य स्थानों पर भी इसका लोकार्पण कराया जाएगा। इस अवसर पर अनेक वरिष्ठ लोग उपस्थित थे।
ल्ल प्रतिनिधि
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