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मित्र के घर लक्ष्मी पधारी थीं, पौत्री के रूप में। बधाई देने गया। वे पढ़े लिखे लोग हैं अत: कन्या आने से सामान्यत: जो मातम का माहौल होता है वह उनके यहां होने की आशा नहीं थी। फिर भी! बात ये है कि मित्र के बेटा, बहू दोनों उच्चशिक्षा प्राप्त हैं और अच्छी नौकरियों में हैं। ऐसे लोग अब कन्यारत्न के जन्म से निराश नहीं होते। और अब तो हर जगह दीवारें कन्या आगमन पर खुशी मनाने के संदेशों से पटी पड़ी हैं। रेडियो ,टीवी सभी नारी शक्ति का अभिनन्दन करते रहते हैं। प्रधानमंत्री स्वयं लाडली के साथ सेल्फी लेने की सलाह देकर बेटी को उसका न्यायोचित स्थान दिलाने की बात करते हैं। ऐसे में कन्या रत्न के जन्म पर अपने मित्र परिवार को गर्मजोशी के साथ बधाई देने में संकोच कैसा? बात ये थी कि ये उनकी दूसरी कन्या थी। पहली कन्या के आगमन पर पूरा स्वागत हुआ था, लड्डू बंटे थे। पर मुझे डर था कि इस दूसरी कन्या को ये लोग वह न समझें जिसे अंग्रेजी मुहावरे में 'टू मच ऑफ ए गुड थिंग' कहते हैं।
इस संकोच के बावजूद मित्र के घर का माहौल देख कर मैं बहुत संतुष्ट हुआ। पूरा परिवार बहुत प्रफुल्लित था। नवजात कन्या के माता-पिता इतने प्रसन्न थे मानो मुंहमांगी मुराद पूरी हो गयी हो। बातों-बातों में खुलासा हुआ कि इस कन्या के जन्म के दिन ही भारतीय प्रशासनिक सेवा और अन्य प्रथम श्रेणी की सेवाओं का परीक्षाफल संघ लोक सेवा आयोग ने जारी किया था। योग्यता क्रम में सवार्ेच्च पांच स्थानों पर महिला उम्मीदवारों ने शानदार परचम लहराया था। उनमें भी तीन तो पहले से ही भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत थीं। महिलाओं के लिए ऐसे शानदार नक्षत्र में इस नवजात कन्या ने जन्म लिया था कि दूसरे ही दिन उत्तर प्रदेश की प्रादेशिक प्रशासनिक सेवाओं में भी महिला उम्मीदवारों ने शिखर स्थानों पर अपने परचम लहरा दिए। मैं पहुंचा तो हर्ष विह्वल युवा पिता नवजात को अपने चेहरे के पास लाकर सेल्फी खींच रहे थे। उनकी पत्नी की खुशी भी उतनी ही उजागर थी। मैंने बधाई दी। आशा जताई कि यह कन्या भी एक दिन आई.ए.एस. की परीक्षा में टॉप करेगी। पर बच्ची के पिता ने मुंह बनाकर कहा 'कभी बहन मायावती ने स्वर्गीय कांशीराम जी से अपनी ऐसी ही इच्छा व्यक्त की थी तो उन्होंने कहा था तुम्हें मैं वो बनाऊंगा, जिसके सामने आई.ए.एस. अफसर हाथ जोड़े खड़े रहेंगे। मैं तो अपनी बिटिया को मायावती जी जैसा बनाना चाहता हूं।' बच्ची की दादी जो अब तक चुप थीं बोल पड़ीं 'अरे फिर तो ये भी बड़े-बड़े पाकोंर् में अपनी मूर्तियां लगवाएंगी'। उनके पति बोले 'सिर्फ लगवाएंगी नहीं, बाकायदा अपनी ही मूर्ति का उद्घाटन करेगी, उस पर माला भी चढ़ायेगी'। बच्ची की मां भी उत्साह से बोली 'कितने अच्छे पर्स हाथ में लेकर अपनी मूर्तियों के लिए मॉडलिंग करती हैं न?' दादा जी हंस कर बोले 'मैं तो पर्स की डिजाइन नहीं साइज देखता हूं। उनकी निजी समृद्धि का शानदार प्रतीक है। ये बिटिया भी उतनी ही समृद्धि पाए तो हमारी सात पीढि़यां तर जाएं'।
बच्ची के पिता ने लगातार तीन चार सेल्फी क्लिक करते हुए कहा 'अरे वो बेचारी तो इस समृद्धि का स्पष्टीकरण सी.बी.आई.और अदालतों को देते-देते गुमनामी के अंधेरे में खो गयी हैं। हमारी बिटिया तो जयललिता जैसा बनेगी, जिनकी आय से अधिक संपत्ति अदालत मानकर भी मामूली कदाचार कहकर बक्श देती है। और अब तो वे फिर से मुख्यमंत्री हैं। समृद्धि हो तो ऐसी हो'।
धन दौलत को इतनी महत्ता मिलना मुझे अच्छा नहीं लगा। मैं बोला 'अरे आपलोग ममता जी को क्यूं भूल रहे हैं। न फैंसी पर्स, न हीरे-जवाहरात। पैरों में बस एक सादी हवाई चप्पल। पर दम इतना कि जगह-जगह बम फूटते हैं। बेचारे मार्क्सवादियों से लेकर टाटा तक सबके छक्के छुड़ा दिए लक्ष्मी के चक्कर में शक्ति की अनदेखी ठीक है क्या?'
इसके बाद बात नवजात के नामकरण पर आई जो बातें हो रही थीं उनके सन्दर्भ में किसी ने रिद्धि सुझाया किसी ने सिद्धि, किसी ने संपदा तो किसी ने शक्ति पर हर नाम पर कभी नवजात के पिता, तो कभी मां, कहते कुछ जमा नहीं थक कर मैं चुप हो गया तो वे बोले 'आप तो लेखक हैं, चुप क्यूं हो गए। मैंने थकी आवाज में कहा मैं क्या बताऊं,आपको तो किसी की कोई बात ही नहीं जमती अचानक बच्ची का पिता खुश होकर चिल्लाया 'यूरेका, मिल गया, मिल गया उसका नाम। हम उसे जमाती बुलायेंगे। है न अंकल?' मुंह बिचकाने की बारी अब मेरी थी। 'भला ये भी कोई नाम हुआ 'मैंने कहा। पर बच्ची के पिता का उत्साह कम न हुआ। बोला 'अंकल, इस जमती में तो जयललिता, ममता और मायावती तीनों के नाम छुपे हुए हैं। सिर्फ एक के गुण क्यूं, अब मेरी बिटिया में इन तीनों महारथी देवियों के गुण आयेंगे। जमाना देखेगा'। मेरे मुंह से अनायास निकला 'बाप रे बाप'।
अरुणेन्द्र नाथ वर्मा
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