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मैं चाहता हूं, कि आप सब अपने जीवन को शुद्ध बनाएं, ईमानदार रहें, और आपको जीवन में कभी भी कोई कमी नहीं होगी। मैंने हमेशा एक उदाहरण कायम किया है इतने वर्षों में, न तो विचार से, न शब्दों से और न ही कर्म से मैंने कभी भी किसी का बुरा किया, किसी एक भी व्यक्ति को मैंने कभी बुरा नहीं कहा। मैं उसका श्रेय नहीं लेना चाहता, क्योंकि मैं तो ऐसा ही हूं। लेकिन मैं चाहता हूं, कि आप भी अपने जीवन को ऐसे ही संभाल कर चलें, ध्यान रखें, मैं सिर्फ यह कह रहा हूं, कि ऐसा संभव है, यह असंभव नहीं है। ऐसा संभव है, कि आप एक शुद्ध जीवन जियें, और साथ ही संसार में भी सफल रहें। असली सफलता सिर्फ तभी आती है, जब हम ज्ञान के मार्ग पर चलें। इसलिए, आप एक बात याद रखें, कि आपको विनम्र होना है। विनम्र रहें। विनम्रता के साथ-साथ गरिमा भी रखें। शिष्ट गरिमा के साथ विनम्रता!
विनम्र होने का अर्थ यह नहीं है, कि आप लचीले, कमजोर रहें। वह तो कोई भी हो सकता है, विनम्र, नूडल्स जैसा! और फिर आपको शिष्ट होने के लिए बहुत कठोर भी नहीं होना है। शिष्ट रहें और शिष्टता के साथ विनम्रता। करुणा और बल। मासूम और बुद्धिमान। आप इसमें और भी शब्द जोड़ सकते हैं।
दुविधा कहां है?
प्रश्न : मैं दुविधा में हूं। मैं गुरुग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानता हूं। आपके सान्निध्य में आकर मुझे भीतर से खुशी अनुभव हुई है। अब मैं किसे गुरु मानूं?
श्री श्री : दुविधा कहां हैं? गुरुग्रन्थ साहिब तो बड़ा पूजनीय ग्रन्थ है। उसे तो मानना ही है। गुरु व्यक्ति नहीं है, गुरु तो विवेक है, ज्ञान है। चाहे वह ज्ञान पुस्तक में हो, व्यक्ति में या चेतना में। उसी ज्ञान को तो मान रहे हो। गुरु तत्व को ही गुरु मान रहे हो। मन में उलझन पैदा मत करो। मन अपने आप यह उलझन पैदा कर लेता है। गुरुग्रन्थ साहिब में वेदों के ज्ञान का निचोड़ है। तो इस ग्रन्थ का सम्मान करें। इसमें कोई विकल्प ही नहीं है।
माता हमारी पहली गुरु होती है।
स्कूल में अध्यापक हमारे दूसरे गुरु।
आध्यात्मिक गुरु या सत्य का ज्ञान देने वाले सद्गुरु होते हैं। जीवन में गुरु तत्व जब जगता है तो पूरी तरह से रहता है। इसलिए मन में भय रखने की इतनी आवश्यकता नहीं है। सहजता में रहो, प्रेम में रहो, मस्ती में रहो।
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