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वैश्विक बाजारवाद और खुली अर्थव्यवस्था के युग में दिनों-दिन बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में विश्वभर में ऊर्जा की आवश्यकता और मांग निरन्तर बढ़ रही है। ऊर्जा के परम्परागत स्रोत चाहे गैस हो, पेट्रोलियम पदार्थ हो जहां उनका भण्डार सीमित है वहीं विश्व के पर्यावरण के लिए भी ये खतरे की घंटी सिद्ध हो चुके हैं। समृद्ध देश हो अथवा विकासशील सभी आज अपना ऊर्जा भण्डार बढ़ाने की जुगत में लगे हैं और इस बात पर भी आम सहमति है कि प्रकृति प्रदत्त ऊर्जा के विकल्पों को तलाशने एवं क्रियान्वित करने से जहां एक ओर वैश्विक ताप और प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी वहीं अक्षय ऊर्जा के रूप में शानदार उपहार भी हमारी झोली में होगा। संयुक्त राष्ट्रसंघ से लेकर विश्व के प्रत्येक मंच पर ऊर्जा के इन वैकल्पिक स्रोतों पर गहन चर्चा और विशेष अनुसंधान पर मंथन के दौर जारी हैं। भारतवर्ष विश्व के अन्य देशों की तुलना में प्राकृतिक संसाधनों से सर्वाधिक समृद्ध है- चाहे सूर्य से प्राप्त उष्मा हो, भूतापीय उष्णता अथवा पवन या जल की प्रचुर शक्ति। देशभर में ऊर्जा प्राप्ति के इन अलग-अलग स्रोतों पर नए अनुसंधान, आविष्कार और प्रयोग हो रहे हैं, जो यह विश्वास दिलाते हैं कि परम्परागत ऊर्जा के मुकाबले ये वैकल्पिक स्रोत सस्ते भी हैं और स्वावलम्बन के प्रतीक। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के जन-जन को ऊर्जा की बचत के साथ अक्षय ऊर्जा के संरक्षण और संवर्द्धन का मंत्र दे रहे हैं। ऊर्जा के इन विशेष प्रयोगों, अनुसंधानों और निरन्तर विकसित हो रहे आयामों पर प्रस्तुत है पाञ्चजन्य का यह विशेष आयोजन-
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