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ऊर्जा स्वच्छ, कुदरत का कवच

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Jul 11, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Jul 2015 12:56:20

आज जब विश्व अर्थव्यवस्था वैश्विक और उदारवादी हो रही है, गांव शहरों में बदल रहे हैं। तो तुलनात्मक रूप से पहले के मुकाबले ऊर्जा के स्रोतों की मांग और उत्पादन आवश्यकता और अधिक बढ़ गयी है। वर्ष 2030-40 तक समस्त विश्व की ऊर्जा आवश्यकताएं वर्तमान की तुलना में 50-60 प्रतिशत तक बढ़ जाएंगी। हमें प्रकृति का दोहन उसके सम्मान को बनाए रखकर करना होगा। प्रकृति ने हमें जो भरपूर संसाधन दिये हैं वे मनुष्य की आवश्यकता पूर्ति के साथ-साथ कवच के रूप में उसकी रक्षा में भी सहायक हैं। प्रकृति में ऊर्जा के ऐसे विकल्प हैं जो स्थायी एवं टिकाऊ है। ऊर्जा के परंपरागत स्रोत चाहे थर्मल अथवा कोयला हो या पेट्रोलियम देर-सबेर इनका संकट उत्पन्न होना ही है। इसके ठीक विपरीत ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जल विद्युत ऊर्जा एक प्रकार से प्रत्यक्ष रूप से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं।
सौर ऊर्जा की दृष्टि से भारतवर्ष समृद्ध हो सकता है क्योंकि यहां वर्ष में औसतन 250 से 300 दिन सूर्य की प्रचुर रोशनी और उष्णता उपलब्ध रहती है। इसी सच्चाई को व्यक्त करते हुए सरदार सरोवर नर्मदा निगम लि. (एसएसएनएनएल) मुख्य अभियंता, के यू.सी. जैन कहते हैं- 'सौर ऊर्जा मिशन को भारत में गति इसलिए भी बढ़ सकती है क्योंकि यहां पर किसी भी यूरोपीय देश के मुकाबले 70 प्रतिशत अधिक सौर विकिरणें उपलब्ध हैं। अन्य विद्युत परियोजनाओं की तुलना में सौर ऊर्जा संयंत्र बहुत तेजी से कार्य कर सकता है।' बेशक इस समय हमारे देश में सौर ऊर्जा से इस लक्ष्य की तुलना में बहुत कम मात्र 62 मेगावाट ऊर्जा का ही उत्पादन हो पाता है। लेकिन देश में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में नितनवीन अनुसंधान हो रहे हैं।
इसी कड़ी में कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एण्ड टेक्नोलॉजी, कोच्चि के वैज्ञानिक डॉ. के.पी. विजयकुमार ने एक पतला 'फिल्म सोलर बैग' तैयार किया है, यह फिल्म सोलर सेल बहुत हल्का है और इसकी लागत भी बहुत कम है। एक किलोवाट के सेल की लागत 10,000 रुपए है। जो देश के हर परिवार द्वारा आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है।
सौर ऊर्जा पैनल का अनुभव बांटते हुए गांव-चक, गजरौला, रामपुर (उ.प्र.) के गिरिराज सिंह प्रजापति कहते हैं- 'मैंने अपने घर में सौर ऊर्जा पैनल लगाया है, इससे हम बल्ब जलाते हैं और टीवी चलाते हैं। हम 6 भाइयों में से 5 भाइयों ने घरों में सौर पैनल लगा रखे हैं। इसकी कीमत ज्यादा नहीं होती, कुल 17000 रु. में 150 वाट, इन्वर्टर और बैट्री सहित सोलर पैनल का खर्च आता है। यह 6 घंटे में चार्ज हो जाता है। अंधेरे के पर्याय उ.प्र. में ही नहीं देश के सभी राज्यों में सौर पैनल का प्रयोग होना चाहिए।'
पवन ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व के प्रमुख देशों- अमरीका, जर्मनी, स्पेन और चीन के बाद भारत का पांचवां स्थान है। 45 हजार मेगावाट तक के उत्पादन की संभावना वाले इस क्षेत्र में फिलहाल देश में 1210 मेगावाट का उत्पादन होता है। देश के लगभग 13 राज्यों के 190 से अधिक स्थानों में पवन ऊर्जा के उत्पादन की प्रबल संभावना
विद्यमान है। सौर और पवन ऊर्जाएं विज्ञान और यांत्रिकी अथवा तकनीकी सहयोग के बजाय प्रकृति की कृपा पर ज्यादा निर्भर करती हैं।
सौर ऊर्जा पैनल के साथ परंपरागत घराटों की आवश्यकता पर जोर देते हुए अर्की-सोलन (हि.प्र.) में शिक्षा व समाज से जुड़े नागेश भारद्वाज कहते हैं-  'सौर ऊर्जा बहुत उपयोगी एवं पर्यावरण के अनुकूल होती है। कम लागत वाली इस पद्धति को सरकार भी प्रोत्साहन
देती है।
हिमाचल के कई घरों में इसका प्रयोग हो रहा है। इसी प्रकार परंपरागत घराट हिमाचल में पहले प्रत्येक तहसील के अंदर दिखाई पड़ते थे, अब कुछ कम हो गए हैं। लेकिन हमें आज भी पानी से चलने वाले इन्हीं घराटों में पिसा आटा सही लगता है। मुम्बई की फिल्म नगरी से पहाड़ लौटे उत्तराखंड के टिहरी जिले की भिलंगना घाटी में लोक संस्कृतिकर्मी महरगांव के सत्तेसिंह कैंतुरा और उनके पुत्र राजेन्द्र सिंह कैंतुरा ने परंपरागत घराट को जीवंत रखते हुए उसमें 50 से 60 बल्ब क्षमता की विद्युत ऊर्जा निर्माण का यंत्र तैयार किया है। सत्तेसिंह कैंतुरा कहते हैं कि पिछले पांच वर्षों से बिना आधुनिक तकनीक का सहारा लिए मेहनत से हमने यह यंत्र बनाया है जिसे हम घराट ही कहते हैं। यह चक्की का भी काम करता है और बिजली उत्पादन भी। हमारा लक्ष्य है कि पूरे गांव के लिए इसी घराट से बिजली पैदा की जाय।'
जल विद्युत ऊर्जा से देश में कुल ऊर्जा उत्पादन के 25 प्रतिशत ऊर्जा उत्पादित होती है। देश के उत्तर एवं उत्तर-पूर्वी राज्यों- जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में लक्षित विद्युत उत्पादन के लिए कई छोटी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं बन चुकी हैं एवं कई निर्माणाधीन हैं।
नवीकरणीय ऊर्जा के साधन के रूप में बायोमॉस से निर्मित ऊर्जा के उत्पादन में भारत चौथे स्थान पर है। विशेषकर लकडि़यों, गन्ने के अपशिष्ट, गेहूं के सरकण्डों तथा पौधों के अवशेषों से इसका निर्माण होता है। इसके अतिरिक्त कार्बनिक उत्पादों विशेषकर पशुओं के गोबर, रसोई के अपशिष्ट तथा कृषि वानिकी के उत्पादों से बायोगैस तैयार की जाती है। भारत बायोगैस के उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर आता है। प्रकृति के भूगर्भ में विद्यमान कोयले से प्राप्त थर्मल पावर ऊर्जा के उत्पादन में सर्वाधिक 64 प्रतिशत योगदान देता है। जल विद्युत से 24.6 प्रतिशत उत्पादन, परमाणु ऊर्जा 2.9 प्रतिशत और पवन ऊर्जा से 1 प्रतिशत उत्पादन होता है।
इसी प्रकार ऊर्जा के अन्य वैकल्पिक स्रोत के रूप में पनबिजली परियोजनाओं के माध्यम से जल की धार में विद्यमान गतिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलकर बिजली का उत्पादन किया जाता है। बशर्ते लोगों को उजाड़कर व विस्थापित कर बड़ी सुरंग परियोजनाओं अथवा नदी की धारा को बदलने की जिद को छोड़कर लघु पनबिजली योजनाएं छोटी नदियों पर बनें।
विश्वभर में आज नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। वर्ष 2013 में अमरीका ने इसके लिए 35.8 प्रतिशत निवेश, यूरोपीय संघ ने 48.4, चीन ने 56.3 जबकि इनकी तुलना में भारत ने मात्र 6.1 प्रतिशत निवेश प्रतिवर्ष नवीकरणीय ऊर्जा पर किया है। इसी कड़ी में हम देखते हैं कि जर्मनी ने सौर ऊर्जा क्षमता 114 से बढ़कर 36 हजार मेगावाट और पवन ऊर्जा 6000 से बढ़कर 35 हजार मेगावाट तक पहुंच गई। 2020 तक कुल ऊर्जा में अक्षय ऊर्जा की भागीदारी 35 प्रतिशत और 2050 तक 80 प्रतिशत बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है।
सरकार राष्ट्रीय स्तर पर ऊर्जा बढ़ाने के विशेष कार्यक्रम संचालित करने को प्रोत्साहन दे रही है। और तो और शैवाल जैसी विशेष खाद को भी इसमें शामिल किया जा रहा है। जो पौधों के साथ मिलकर मानव के लिए विशिष्ट एवं उपयोगी भूमिका निभाता है। यह खाद का भी काम करता है और सीवर के गंदे पानी को शुद्ध करने के भी उपयोग में लाया जा सकता है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि वैश्विक व्यवस्था में बढ़ते पर्यावरण संकट को रोकने के लिए और लगातार बढ़ती आबादी की अनंत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत ही एकमात्र उपाय हैं। इस नवीकरणीय अथवा अक्षय ऊर्जा को संजोने एवं संवर्द्धित करने के लिए आवश्यक है कि सौर, पवन एवं जल ऊर्जा सहित वैकल्पिक ऊर्जा का संरक्षण किया जाए।
केवल सरकार के भरोसे न रहकर स्वैच्छिक संस्थाओं एवं व्यक्तिगत रूप में रुचि लेकर राष्ट्र की प्रगति के इस व्यापक अभियान में सबको मिलकर लगना होगा। इससे न केवल हमारे ऊर्जा भंडार में असीम वृद्धि होगी बल्कि यह रक्षा कवच के रूप में पर्यावरण संकट से बचाएगी।      – सूर्य प्रकाश सेमवाल

पनबिजली विद्युत उत्पादन में भी सहायक होतीं और स्थानीय लोगों को बिजली और जीविका दोनों ही दे देतीं, लेकिन अब तक देश में इन्हें केवल व्यवसाय के रूप में लाभ प्राप्ति का माध्यम मात्र बनाया गया है। मंदाकिनी, पिंडर और भिलंगना जैसी घाटियों में कम लागत की 4-5 मेगावाट क्षमता की पनबिजली योजनाओं के निकट यदि छोटे कारखाने स्थापित हो जाते तो स्थानीय लोगों को बिजली के साथ रोजगार भी मिलता। यह पर्यावरण की दृष्टि से भी उचित रहेगा। इस प्रकार का लक्ष्य रखकर जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर और हिमाचल आदि हिमालयी राज्य आत्मनिर्भर भी होंगे और अपेक्षित ऊर्जा का उत्पादन करने में भी सहायक सिद्ध होंगे।          
-पद्म विभूषण चण्डी प्रसाद भट्ट, चिपको नेता एवं शीर्ष पर्यावरणविद्

जम्मू -कश्मीर स्वर्ग माना जाता है। यहां परंपरागत घराट थे । बड़े-बड़े तालाब और कुएं होते थे । जम्मू से 40 किमी. दूर पुरमंडल में हमारा अपना कुआं था । आज जैसे-जैसे हम अपनी भाषा को भूल रहे हैं उसी प्रकार घराटों,तालाबों और कुओं को भी भूल रहे हैं।  जबकि इनका संरक्षण जरूरी है।                                       
– पद्मा सचदेव
हिन्दी एवं डोगरी की सुप्रसिद्ध लेखिका

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