दलाई लामा का 80वां जन्मदिन: चीनी चुनौती और दीवार से दलाई लामा
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दलाई लामा का 80वां जन्मदिन: चीनी चुनौती और दीवार से दलाई लामा

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Jul 4, 2015, 12:00 am IST
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दिंनाक: 04 Jul 2015 11:30:52

6 जुलाई को परम पावन दलाई लामा का 80वां जन्मदिन है। तिब्बती जनता और दलाई लामा के प्रशंसकों के लिए यह दिन कुछ ज्यादा ही महत्व रखता है। शायद इसी कारण जरूरत और परंपरा दोनों को ध्यान में रखते हुए इसे इस साल दो बार मनाया जा रहा है। परंपरागत तिब्बती कैलेंडर के अनुसार भारत की तिब्बती बस्तियों में जन्मदिन के समारोह 21 जून को आयोजित किए गए जबकि विदेशों में बसे तिब्बतियों और अमरीका में दलाई लामा के समर्थकों की मांग पर उनकी उपस्थिति में जन्मदिन 6 जुलाई को मनाया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार, दलाई लामा अमरीका से पहले 28 जून को ब्रिटेन में रुके जहां यूरोप के सबसे बड़े संगीत समारोह ग्लैस्टनबैरी म्यूजि़क फैस्टिवल में वह मुख्य अतिथि थे। चीन सरकार की धमकियों की परवाह किए बिना समारोह के आयोजकों ने न केवल दलाई लामा को मुख्य अतिथि बनाया बल्कि विख्यात रॉक गायिका पैटी स्मिथ ने 2 लाख 3 हजार दर्शकों के साथ उनके सम्मान में 80वें जन्मदिन के लिए खासतौर से लिखा गया 'हैप्पी बर्थडे' गीत भी गाया। ऐसे में चीन सरकार का भड़कना स्वाभाविक ही था। उधर तिब्बत से आ रहे समाचारों से पता चलता है कि 6 जुलाई के दिन दलाई लामा के जन्मदिन समारोहों पर पाबंदी लगाने की चीनी पुलिस और सेना की तैयारियों को धता बताते हुए कई स्थानों पर 21 जून को लोगों ने प्रार्थनाएं कीं। इस सिलसिले में कई गिरफ्तारियों के समाचार भी मिले हैं।
 दुनिया भर के सम्मान
दलाई लामा को नोबल शांति पुरस्कार, मैग्सेसे पुरस्कार, टैम्पलटन अवार्ड और अमरीका के कांग्रेशनल गोल्ड मैडल जैसे दर्जनों चोटी के पुरस्कारों समेत डेढ़ सौ से ज्यादा बार सम्मानित किया जा चुका है। दुनिया का शायद ही कोई ऐसा बड़ा विश्वविद्यालय होगा जिसने उन्हें डाक्टरेट की उपाधि का सम्मानित न किया हो। आम जनता के स्तर पर भी उनकी लोकप्रियता का हाल यह है कि उनकी विदेश यात्राओं के दौरान उनके भाषणों के टिकट महीनों पहले बिक जाते हैं। इतना ही नहीं, ठसाठस भरे ओलंपिक स्टेडियम के बाहर दलाई लामा की एक झलक पाने के लिए हजारों लोग खड़े रहते हैं।
आसान नहीं है दलाई लामा होना
एक ओर है दुनिया की सबसे ताकतवर और बेरहम सत्ता से मिलने वाली धमकियां तो दूसरी ओर है आम लोगों की ओर से मिलने वाला अथाह प्यार। लेकिन अगर तिब्बत के एक गरीब किसान के इस बेटे की 80 साल की जीवन यात्रा को देखा जाए तो पता चलेगा कि यह रास्ता कितना कांटों भरा रहा है।
1935 में तिब्बत के तेरहवें दलाई लामा की मृत्यु के बाद वहां की परंपरा के अनुसार वह फिर से जन्म लेने वाले थे। उनके इस अवतारी बालक को खोजकर उसे तिब्बत का अगला शासक और धर्मनेता बनाया जाना था। 1939 में जब उस अवतारी बच्चे को खोजने वाली विद्वान लामाओं का एक दल सुदूर आम्दो प्रांत के एक अनाम जैसे गांव ताक्तसेर पहुंचा तब तक 4 वर्षीय ल्हामो थोंडुप के गरीब किसान माता-पिता को अंदाजा भी नहीं था कि चौदहवें दलाई लामा का अवतार उनके घर में पल रहा है।
लगभग डेढ़ साल तक चली कई तरह की जांच-परख के बाद तिब्बत के विद्वान इस नतीजे पर पहुंचे कि ताक्तसेर के घोडि़या हकीम का यह बेटा ही अगला दलाई लामा है। (विस्तृत विवरण के लिए बाक्स देखें) राजधानी ल्हासा में तड़क-भड़क और संगीतमय समारोह में दलाई लामा के पद पर बिठाए जाने के बाद ल्हामो थोंडुप को नया नाम 'तेनजिन ग्यात्सो' दिया गया। फिलहाल वह तिब्बत का सवार्ेच्च धर्मनेता था। 18 साल का होने पर उसे देश के शासक की जिम्मेदारी दी जाने वाली थी। तब तक कार्यकारी रीजेंटों की एक मंडली दलाई लामा की ओर से देश का शासन चलाने वाली थी। लेकिन पोताला महल में अपनी गद्दी पर बैठते ही छह वर्षीय तेनजिन को एहसास हो गया कि उसका बचपन खत्म हो चुका है। 

दलाई लामा एक ऐसे तिब्बत में पलकर बड़े हुए जहां की परंपरा में दूसरे देशों और समाजों के साथ रिश्ते लगभग प्रतिबंधित थे। विदेशी रिश्तों के नाम पर ल्हासा में केवल भारत की अंग्रेज सरकार, नेपाल और चीनी दूतों के छोटे-छोटे कार्यालय थे। वहां विदेशी और आधुनिक शिक्षा पर पाबंदी थी। दलाई लामा के भाग्य से दूसरे विश्वयुद्ध के आखिरी दौर में आस्ट्रिया के दो पर्वतारोही भारत के एक युद्धबंदी शिविर से भागकर ल्हासा आ पहुंचे थे। इनमें से एक हाइनरिश हारेर के साथ उनकी दोस्ती हो गयी क्योंकि वह दलाई लामा को अंग्रेजी सिखाने को राजी हो गया था। बाहर की दुनिया के बारे में दलाई को जो ज्ञान मिला वह ज्यादातर हाइनरिश से ही मिला था। हालांकि तिब्बत में आधुनिक तकनीकी का दखल नहीं था लेकिन किशोर दलाई लामा ने भारत से आए एक तिब्बती ड्राइवर की मदद से पिछले दलाई लामा के गैराज में जंग खा रहीं तीन विंटेज कारों में से एक के पुर्जे निकालकर एक डॉज़ कार को चालू कर लिया। खाली वक्त में इस कार को वह शहर में अपने गर्मियों के महल नोरबूलिंका में चलाया करते थे। तकनीकी रुचि वाले इस किशोर ने पिछले दलाई लामाओं को भेंट में मिले खिलौनों और घडि़यों खोलकर फिर से सही करना भी सीख लिया।
महलांे की राजनीति
लेकिन एक धार्मिक राज्य होने के बावजूद तिब्बत देश महलों में चलने वाली राजनीति और चालबाजियों से मुक्त नहीं था। दलाई लामा के शासक बनने पर उन्हें जो अधिकार मिलते थे वे किसी अमरीकी राष्ट्रपति, इंग्लैंड की महारानी, भारत के प्रधानमंत्री, पाकिस्तान के फौजी तानाशाह, वेटिकन के पोप और ईरान के अयातुल्लाह से कहीं अधिक थे। हर बार पुनर्जन्म के आधार पर नए दलाई लामा की नियुक्ति का तिब्बत को यह लाभ हुआ कि देश की सत्ता पर किसी एक घराने या गुट का कब्जा नहीं हो पाया। परंपरा ने भी प्रशासन में एक संतुलन बनाए रखा।
लेकिन एक दलाई लामा की मृत्यु के बाद अगले दलाई लामा के व्यस्क होने तक सत्ता व्यवस्था में लगभग बीस साल के 'अवकाश काल' ने कई तरह के निहित स्वार्थ केंद्रों को पनपने का भी भरपूर मौका दिया। धार्मिक और नागरिक अधिकारियों और सामंतों ने शासक दलाई लामा की अनुपस्थिति में निजी हितों के लिए अपने पदों का भरपूर फायदा उठाया।
चीनी नरसंहार
इसके बाद तिब्बत पर चीन ने कब्जा जमा लिया, लेकिन दुनिया से कटे रहने के कारण तिब्बत को न तो किसी देश ने सहयोग दिया और न उसके लिए दुनिया में आवाज उठाई। बाद में जब चीनी शासकों ने तिब्बती जनता की भावनाओं और संस्कृति का सम्मान करने के अपने वादों को बेरहमी से तोड़ा तब दलाई लामा को अपनी जान बचाने के लिए भारत में शरण लेनी पड़ी। इस कांड में चीनी सेना ने लगभग 80 हजार तिब्बतियों की हत्या कर दी और लगभग इतने ही लोग अपने नेता के पीछे शरणार्थी बनकर तिब्बत से बाहर आए।
निर्वासन में आजादी
तिब्बत के सौभाग्य से भारत में निर्वासन में मिली आजादी और सहयोग ने दलाई लामा को अपनी सूझ और संगठन क्षमता दिखाने का भरपूर अवसर मिला। 56 साल बाद आज हालत यह है कि दलाई लामा ने बचे खुचे लोगेां के बूते पर संगीत, धर्म, कलाएं और विज्ञान समेत तिब्बत की संस्कृति और राष्ट्रीय पहचान के हर पहलू को फिर से जीवित कर लिया है।
लेकिन बढ़ती उम्र में दलाई लामा के सामने आज ऐसी गंभीर चुनौती खड़ी है जिससे पार पाना बहुत आसान नहीं है। पिछले कुछ साल में चीन ने तिब्बत में रेल, सड़कें, हवाई अड्डे और सैनिक छावनियां विकसित करने के साथ-साथ वहां चीनी जनता को लाखों की संख्या में बसाकर तिब्बतियों को उनके ही देश में अर्थहीन अल्पसंख्यक बनाने का अभियान लगभग पूरा कर लिया है। उसका अगला लक्ष्य दलाई लामा की मुत्यु के बाद अपने चुनिंदा बालक को उनकी गद्दी पर बिठाना है जिससे तिब्बत का सिरदर्द हमेशा के लिए खत्म हो जाए।
2007 में चीन सरकार ने एक विशेष कानून 'आर्डर नंबर-5' घोषित किया जिसके अनुसार किसी भी अवतारी लामा को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमाणपत्र के बिना 'अवतार' नहीं माना जाएगा। इसी कानून के तहत वर्तमान दलाई लामा की मृत्यु के बाद चीन सरकार ने अगला दलाई लामा खुद चुनने की घोषणा भी कर दी है। चीन के आक्रामक तेवरों को देखते हुए यह तय है कि दलाई लामा के आने वाले हर जन्मदिन पर उनके सामने खड़ी चीनी चुनौती लगातार गंभीर होती जाएगी। 

 

  ऐसे खोजे गए वर्तमान दलाई लामा

तिब्बती व्यवस्था में दलाई लामा महायान बौद्धमत का सवार्ेच्च धर्मगुरु होने के साथ-साथ देश का शासक भी होता है। पदेन दलाई लामा के अवसान के बाद विद्वान लामा उसके अगले अवतारी बालक को खोजकर उसे अगला दलाई लामा नियुक्त करते हैं। प्रथम दलाई लामा आज से 724 साल पहले 1391 में पैदा हुए थे। लेकिन इस पद को 'दलाई लामा' नाम 16वीं शताब्दी में मंगोल राजा आलतान खान ने दिया था। दलाई लामा को बौद्धधर्म में करुणा के बुद्ध अवलोकितेश्वर का अवतार माना जाता है। वर्तमान दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो इस परंपरा में 14वें हैं।
बौद्ध और हिंदू परंपरा के अनुसार हर जीव पुनर्जन्म लेता है। अगला जन्म पिछले जन्म के कमार्ें से तय होता है। लेकिन बौद्ध परंपरा में माना जाता है कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्म और ज्ञान के आधार पर निर्वाण पा सकता है जिसे बोधिसत्व के स्तर पर पहुंचना माना जाता है। बोधिसत्व अपने अगले जन्म को खुद तय करने की क्षमता रखता है। लेकिन हर बोधिसत्व से अपेक्षा रहती है कि वह संसार के जीवों के दुख कम करने के लिए बार-बार जन्म लेता रहेगा। इन अवतारी बोधिसत्वों को तिब्बत में 'तुलकू' कहा जाता है। सम्मान के लिए उनके नाम में 'रिंपोछे' जोड़ा जाता है। तिब्बत की विभिन्न बौद्ध ज्ञानधाराओं (संप्रदायों) में ऐसे सैकड़ों तुलकू हैं। चीन में इन अवतारी लामाओं को 'लिविंग बुद्धा' कहा जाता है।
दलाई लामा के बाद दूसरा स्थान पंचेन लामा का माना जाता है। लेकिन उनकी यह वरिष्ठता केवल धार्मिक मामलों तक सीमित है जबकि दलाई लामा देश का शासक भी होता है। परंपरा के अनुसार दोनों में से एक के अवसान के बाद दूसरा उसके अवतारी बालक का गुरु होता है। इस तरह दोनों के बीच गुरु-शिष्य का रिश्ता अदला-बदली करता रहता है। नए दलाई लामा के व्यस्क होने तक वरिष्ठ लामाओं और अधिकारियों की एक रीजेंट कमेटी देश का शासन चलाती है।1935 में 13वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद उनका अवतारी बालक खोजने का काम शुरू हुआ। उनके पार्थिव शरीर को एक आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बिठा दिया गया। अगले दिन पाया गया कि उनका मुख पूर्व की ओर मुड़ा हुआ था। अगले कुछ दिनों में तिब्बती राजधानी ल्हासा के आसमान में उत्तर-पूर्व की ओर शंख, कमल और ऐसी कई शुभ आकृतियों वाले बादल देखे गए। जिस कमरे में शव को रखा गया था उसके उत्तर-पूर्वी कोने में लकड़ी के एक खंभे पर सितारे की आकृति वाली रंगबिरंगी आकर्षक फफूंद उग आयी थी। ये संकेत इस दिशा के महत्वपूर्ण होने का आभास दे रहे थे। कुछ दिन बाद, परंपरा के अनुसार खोजी मंडली ल्हासा से कुछ दूर एक पवित्र झील लामोई लात्सो की यात्रा पर गई। वहां उन्होंने एक ऐसी पहाड़ी चोटी पर ध्यान और पूजा की जहां से झील का सुंदर दृश्य दिख रहा था। ध्यान के दौरान मुख्य रीजेंट को नीली झील की सतह पर तिब्बती भाषा के तीन अक्षर 'अ', 'क' और 'म' दिखाई दिए। उसे एक पहाड़ी पर बने सुनहरी और मूंगे की छतों वाले एक मठ का प्रतिबिम्ब भी जल में दिखा। इस छवि में पहाड़ी के नीचे एक बड़े दालान वाला घर भी दिखा जिसकी छत पर अजीबोगरीब किस्म का परनाला बना हुआ था। इन सभी बातों को विशेष रूप से नियुक्त विद्वानों की एक केंद्रीय खोज मंडली नोट कर रही थी।
अगले अवतार की खोज में दो-तीन साल प्रतीक्षा की जाती है ताकि अवतारी बालक कुछ बड़ा हो जाए। तीन साल बीतने पर तय किया गया कि तिब्बत के सभी इलाकों में खोजी दल भेजकर ऐसे बालकों की जांच की जाए जो पिछले दलाई लामा की मृत्यु के बाद पैदा हुए हैं। तीन में से एक राष्ट्रीय मठ सेरा के एक वरिष्ठ लामा क्यूसांग रिंपोछे के नेतृत्व में एक दल को तिब्बत के उत्तर पूर्वी प्रांत आम्दो की दिशा में भेजा गया। रास्ते में यह दल पिछले दो-तीन साल में पैदा हुए लड़कों के बारे में जानकारी इकट्ठी करता गया।
कई महीनों की यात्रा के बाद यह दल आम्दो में ताक्तसेर पहुंचा जो तिब्बत के विख्यात कुंबुम मठ के निकट है। वहां दल के एक सदस्य को पहाड़ी की ढलान पर ठीक वैसा ही मठ दिखा जैसा रीजेंट के विवरण में लिखा था। इसकी छतों का सोने से मढ़ा हिस्सा धूप में चमक रहा था। दूसरे हिस्से का मूंगिया रंग भी दूर से इसे आकर्षक बना रहा था। दल ने गांव के कई लोगों से मुलाकात की। पता चला कि वहां के एक घर में तीन-चार साल का लड़का है। घर का मुखिया गरीब है पर जानवरों का अच्छा हकीम होने के कारण लोकप्रिय है। परिवार का एक बेटा कुंबुम मठ में एक अवतारी लामा है। रिंपोछे को अब 'अ', 'क' और 'म' का रिश्ता आम्दो और कुंबुम से जुड़ता दिखने लगा था। तय हुआ कि तीर्थयात्रियों के रूप में उस घर में एक दिन रहने की भिक्षा मांगी जाए। तिब्बत में तीर्थयात्रियों  को घर में ठहराने और सत्कार करने की पुरानी परंपरा है।
लेकिन वहां पहुंचने से पहले क्यूसांग रिंपोछे ने दल के एक सेवक से अपने कपड़े बदल लिए ताकि घर में इधर-उधर आने-जाने की सुविधा रहे। घर की मालकिन बहुत दयालु थी। उसने उन्हें रात भर अपने यहां ठहराने के लिए तुरंत हामी भर दी। यह घर एक दालान के चारों ओर बना हुआ था। छत पर बारिश के पानी के लिए बांस से बना अजीब सा परनाला भी था। घर में घुसते ही खोजी दल का आश्चर्यजनक तरीके से स्वागत हुआ। लगभग चार साल का ल्हामो थोंडुप रिंपोछे को देखते ही उनसे 'सेरा लामा, सेरा लामा' कहते हुए लिपट गया। रिंपोछे ने ज्योंही अपने चोगे में से सुमिरन माला निकाली बच्चा उस पर लगभग झपटते हुए बोला, 'अरे यह तो मेरी माला है। तुम्हारे पास कहां से आयी?' असल में यह माला पिछले दलाई लामा की निजी सुमिरनी थी। बातों-बातों में ऐसे कई संकेत मिल रहे थे जिनसे लगने लगा कि पिछले दलाई लामा से उसका कुछ संबंध जरूर है। वह बार-बार रिंपोछे के साथ ल्हासा जाने का भी आग्रह कर रहा था।
अगली सुबह खोजी दल ने विदा ली। ल्हासा लौटने पर खोजी दल ने अपनी रिपोर्ट पेश की। तय किया गया कि क्यूसांग रिंपोछे को पिछले दलाई लामा की कई व्यक्तिगत चीजें और उनसे ज्यादा आकर्षक दिखने वाली उनकी नकलें देकर भेजा जाए।
ताक्तसेर पहुंचने पर खोजी दल की हैरानियां खुशी में बदलती गयीं। ल्हामो थोंडुप ने आकर्षक नकली चीज़ों की परवाह किए बिना उन सब चीजों को पहचाना जिन्हें पिछले दलाई लामा इस्तेमाल करते थे। खोजी मंडली को यकीन हो गया कि तिब्बत का नया दलाई लामा मिल गया है। ल्हामो थोंडुप को 14वां दलाई लामा घोषित करके उन्हें नया नाम दिया गया 'तेनजि़न ग्यात्सो'। यही हैं वर्तमान दलाई लामा।  

विजय क्रांति

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