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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में 1 जुलाई को 'डिजिटल इण्डिया' नाम की महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की। इस योजना को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कुछ लोग इस योजना को 'खेल बदलने' वाली योजना कह रहे हैं, तो कुछ लोग इसे 'गरीबी हटाओ' जैसा एक और सरकारी झुनझुना कह कर खारिज कर रहे हैं। बहुत लोग ऐसे भी हैं जो इस योजना से सहमत तो हैं, परन्तु इसके आर्थिक पक्ष को लेकर बहुत उत्साहित नजर नहीं आ रहे हैं। इन परिस्थितियों में कई सवाल उठते हैं। इसके बावजूद सही मायनों में देखा जाए तो 'डिजिटल इण्डिया' एक दूरदृष्टि युक्त बहुत ही महत्वाकांक्षी और बहुआयामी परियोजना है। इसका लक्ष्य न सिर्फ आर्थिक विकास को गति देना है, बल्कि सामाजिक और सरकारी ढांचे के व्यवहार में मूलभूत परिवर्तन लाना भी है। इस परियोजना का मूल उद्देश्य सारे सरकारी ढांचे को दूरसंचार तकनीक से जोड़ते हुए सरकारी काम-काज और सेवाओं को नागरिकोन्मुखी बनाना, आम आदमी तक दूरसंचार तकनीकी का लाभ पहुंचाना और भारत को अपने दूरसंचार और इलेक्ट्रानिक्स सामान के उत्पादन में सक्षम बनाना है। इस योजना के अंतर्गत सरकार 'ब्राडबैण्ड हाईवे', समग्र मोबाईल कनेक्टिविटी, ई-गवनेंर्स, ई-क्रान्ति, गांवों को इन्टरनेट से जोड़कर खेती सम्बंधी और अन्य उपयोगी जानकारी का समय से आदान-प्रदान और सरकारी सेवाओं व सुविधाओं को प्राप्त करने से सम्बंधित मूलभूत सुविधाएं स्थापित करेगी।
सरकार 'डिजिटल इण्डिया' के अंतर्गत दूरसंचार तकनीकी की आधारभूत सुविधाओं को हर गांव तक स्थापित करेगी। ऐसा करने के लिए सरकार को हजारों करोड़ रुपए खर्च करने होंगे और साथ ही लाखों की संख्या में कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होगी जो दूरसंचार यंत्रों को स्थापित और परिचालित करेंगे। साथ ही बाजार में दूरसंचार यंत्रों की मांग बढ़ेगी। इससे दूरसंचार यंत्र बनाने वाली कम्पनियों को उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा। इसके लिए इन कम्पनियों को अधिक मात्रा में कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होगी। यानी प्रत्यक्ष रूप से लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा। ठीक उसी तरह से सेवा क्षेत्र भी हजारों की संख्या में रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इस तरह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर लाखों लोगों (परिवारों) की क्रयशक्ति बढ़ेगी। इससे बाजार में विभिन्न तरह की वस्तुओं की मांग बढ़ेगी।
'डिजिटल इण्डिया' अभियान में 2019 तक लगभग 20,000 करोड़ रु़ से अधिक का निवेश होना है। इससे मंदी से जूझती अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और भारतीय घरेलू विकास दर को भी फायदा मिलेगा। यह योजना न केवल भारत की विकास दर को बढ़ाने में सहायक होगी, बल्कि भारत में नवीन शोधों, विचार एवं आविष्कारों को बढ़ावा देने में सहयोगी होगी। इस तरह भारत के कुशल दूरसंचार विशेषज्ञ भारत के लिए कुछ बेहतर काम करने का अवसर पाएंगे जो अब तक उपलब्ध नहीं था। साथ ही यह परियोजना दूरसंचार और मुख्यत: इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों में आत्मनिर्भरता को प्राप्त करने का उद्देश्य भी रखती है। सरकार इस परियोजना के सहारे भारत का इलेक्ट्रानिक्स आयात पर निर्भरता शून्य तक पहुंचाना चाहती है। अभी भारत उच्च तकनीकी इलेक्ट्रानिक्स के क्षेत्र में लगभग पूरी तरह आयात पर निर्भर है और हजारों करोड़ रुपए देश से बाहर सिर्फ इस मद में जाते हैं और साथ ही लाखों लोगों का रोजगार भी दूसरे देशों में जाता है। सरकार का यह कदम यदि सही तरीके लागू किया गया तो भारत न सिर्फ इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाएगा, बल्कि निर्यात भी कर सकेगा। यह परियोजना आयात-निर्यात के बीच की खाई को भरने में भी सहयोगी होगी। इससे रुपए को मजबूती भी मिलेगी और मजबूत रुपया आयात खर्च को कम करने में सहायक भी होगा (निर्यात पर नकारात्मक असर पड़ सकता है)। यानी यह योजना भारत के आर्थिक और सामाजिक भविष्य को सकारात्मक दिशा देने की क्षमता रखती है। ल्ल
ग्रीस समस्या का भारत पर कोई खास असर नहीं
ऐसे समय पर जब भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर औसत रही है, यूरोपीय संघ के सदस्य देश ग्रीस में कर्ज की समस्या बढ़ती ही जा रही है। ऐसा नहीं है कि ग्रीस अचानक ही आर्थिक परेशानियों में घिर आया है। ग्रीस पिछले कई वषार्ें से आर्थिक रूप से परेशान रहा है और ग्रीस का यूरोपीय संघ में बने रहने पर सवाल उठता रहा है। इसका कारण है कि ग्रीस की पिछली सरकारों ने खुले हाथ से कर्ज लेकर सरकारी धन को लुटाया है। आज ग्रीस पूरे यूरोप के लिए परेशानी का कारण बन गया है और भारत भी इससे अछूता नहीं रह पाएगा। वैसे तो भारत का ग्रीस के साथ कोई खास आर्थिक सम्बंध नहीं है। दोनों देशों के बीच अल्प मात्रा में ही व्यापार होता है, लेकिन भारत का यूरोपीय संघ के देशों मुख्यत: ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी आदि देशों से बहुत बड़ी मात्रा में व्यापारिक लेन-देन है और ग्रीस की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए यूरोपीय संघ के देश हर तरह का प्रयास करेंगे। इससे भारत में आने वाले विदेशी निवेश में कमी आएगी। उम्मीद की जा रही है कि यूरोपीय देश अपने देश में ब्याज दर को बढ़ा सकते हैं जिससे भारत से भी कुछ विदेशी पैसा वापस जाएगा। इसके बावजूद भारत के लिए कोई गंभीर आर्थिक समस्या खड़ी नहीं होने वाली है।
राजीव उपाध्याय
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