आवरण कथा - सेल्फी में लाडली
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आवरण कथा – सेल्फी में लाडली

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Jul 4, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Jul 2015 12:44:50

सेल्फी में लाडली की यह पहल सकारात्मकता से ऊर्जावान समाज में ही संभव है। ऐसी कि सरकार की किसी योजना को व्यक्ति और समाज अपनाने में जुट जाए और सुदूर गांव का एक सरपंच ऐसी अनोखी पहल कर गुजरे कि उसकी ताकत कई गुना बढ़ा दे। यहां तक कि प्रधानमंत्री उसकी सराहना किए बिना न रह पाएं और देशवासियों से मन की बात करते हुए उस अनोखी पहल को जन-आंदोलन बनाने का आग्रह करें। 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' के संदर्भ में आज #SelfieWithDaughter को देशभर में अभूतपूर्व उत्साह के साथ मिल रहा जनसमर्थन यह बताता है कि नकारात्मकता जब हद से गुजर जाती है, तो उसे मिटाने सकारात्मक रुझान आकार लेता ही है। बस, एक पुकार की प्रतीक्षा होती है।

-अजय विद्युत
बात शुरू करें उससे पहले कुछ प्रश्न। क्या लाडली संग सेल्फी खींचकर सोशल साइट पर डालने भर से…
–  देश में बेटियों की हालत सुधर जाएगी?
–    जो बेटियां दुनिया में आने से पहले ही भ्रूण हत्या की शिकार हो जाती हैं, उस पर रोक लग पाएगी?
–     देश की लगभग पचास फीसद वे बेटियां, जो अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ चुकी हैं, उनकी पढ़ाई फिर से शुरू हो पाएगी?
–    देश में 1000 लड़कों पर 918 लड़कियां… लिंग अनुपात में यह भारी असमानता दूर हो पाएगी? (हरियाणा समेत कुछ राज्यों में तो स्थिति इससे कहीं ज्यादा भयावह है)
–    देश में चल रहे अल्ट्रासाउंड क्लीनिक, जहां लड़के की चाह रखने वालों को चोरी-छुपे यह बताया जाता है कि आने वाला बेटा है या बेटी… और वे डॉक्टर जो बेटी को दुनिया में आने से पहले ही मौत दे देते हैं, उन पर लगाम कसी जा सकेगी?
–    क्या दहेजलोभियों की मानसिकता सेल्फी से बदल सकती है? (अकेले उत्तर प्रदेश में ही दो हजार दहेज हत्याएं हो चुकी हैं)
–    महिलाओं के प्रति अपराध रुकेंगे और महिलाओं को भयमुक्त माहौल मिलेगा?
इन सवालों के जवाब हमें अपने समाज के भीतर से ही मिलेंगे। आइए, पहले हरियाणा के जींद जिले के बीबीपुर गांव चलते हैं।
सुनील जगलान गांव के 33 साल के एक ऊर्जावान सरपंच हैं। #SelfieWithDaughter को शुरू करने का विचार इनके दिमाग में सबसे पहले आया था। जगलान चाहते हैं कि लोग बेटियों को दुनिया में गौरव का स्थान दें। अभी 9 जून को उन्होंने एक अभियान शुरू किया। बेटियों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए यह एक प्रतियोगिता थी कि बेटियों के साथ सेल्फी खींचिए और पुरस्कार जीतिए। इसमें प्रतिभागियों को व्हाट्सएप के नंबर पर सेल्फी भेजने को कहा गया था। कुछ ही हफ्तों में यह अभियान समूचे सोशल मीडिया पर छा गया। लोगों ने अपनी बेटियों के साथ खींची सेल्फी को 'शेयर' करना शुरू कर दिया। 12 प्रदेशों से मिली 794 सेल्फियों में से 3 को विजेता चुना गया। विजेताओं को एक ट्रॉफी, एक प्रमाणपत्र और पुरस्कार में 2,100 रुपये दिए गए।
दरअसल हरियाणा भारत का सबसे असमान लिंगानुपात वाला प्रदेश है, जहां 1,000 पुरुषों के मुकाबले 877 महिलाएं हैं। जानकारों के अनुसार गैर कानूनी रूप से कन्या भ्रूण हत्या, कन्या शिशु हत्या, अभिभावकों द्वारा ध्यान न दिया जाना और लड़कियों से भेदभाव करना इसके कारण हैं।
घर-घर बेटी संग सेल्फी
जगलान की बेटियों संग सेल्फी की अनोखी पहल सोशल मीडिया के जरिए देश के लोगों से लगातार संवाद रखने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मन को छू गई। और देश की जनता से मन की बात करते हुए उन्होंने #री'ा्रीह्र३ँऊं४ॅँ३ी१ को देशव्यापी वृहद् अभियान बना दिया… 'हरियाणा के बीबीपुर गांव के सुनील ने #SelfieWithDaughter अभियान शुरू किया। हर पिता ने अपनी बेटी के साथ सेल्फी शुरू की। ये कल्पना अच्छी लगी। हरियाणा में बालकों की अपेक्षा बालिकाओं की संख्या बेहद कम है। उसी हरियाणा में एक छोटे से गांव का सरपंच ऐसा काम करे तो अच्छा लगता है। इस घटना से प्रेरणा मिली है। मैं भी आपसे आग्रह करता हूं कि आप भी अपनी बेटी के साथ #SelfieWithDaughter में सेल्फी निकालकर जरूर पोस्ट कीजिए, उसके साथ 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ'इस विचार को ताकत देने वाली कोई 'टैगलाइन' किसी भी भाषा में लिख करके दोगे, उसमें से बहुत प्रेरक 'टैगलाइन' मैं रिट्वीट करूंगा। आप इसे जन आंदोलन में तब्दील करें।'
अभी चंद ही दिन बीते हैं और क्या सोशल, क्या प्रिंट और क्या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सब तरफ इसी की चर्चा है। बल्कि मोहल्लों, गलियों, चौराहों से होते हुए अब तो घर-घर में #री'ा्रीह्र३ँऊं४ॅँ३ी१ जाना पहचाना नाम बन गया है। पूरे देश में इसका असर है। क्या बड़े-क्या छोटे, क्या नामी-क्या अनाम, सभी अपनी बेटियों के साथ सेल्फी खींचकर पोस्ट करने लगे हैं और एक से एक सुंदर 'टैगलाइन' भी लिख रहे हैं।
कारण महत्वपूर्ण
हम सभी के मन में है कि अगर प्रधानमंत्री किसी बात को इतना महत्व दे रहे हैं, तो उसके पीछे अवश्य ही कोई बड़ा कारण होगा।
सबसे बड़ी देश की चिंता गड़बड़ाते लैंगिक अनुपात की है। लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या में तेजी से आ रही गिरावट अब भयावह स्थिति की ओर संकेत कर रही है। हरियाणा की हालत काफी खराब है इस मामले में। कन्या भ्रूण हत्या यहां सबसे ज्यादा है। प्रधानमंत्री ने 24 जनवरी को 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत हरियाणा से करते वक्त यहां के लोगों से साफ कहा था कि वे बेटियों की हत्या न करें।
मात्र एक सेल्फी से एकाएक पूरा समाज नहीं बदल जाएगा, यह अपनी जगह कुछ हद तक सही है। लेकिन बेटी को बेटों जितना मान देना, अधिकार देना, समाज में कुछ खदबदाहट जरूर लाएगा, इसमें संदेह करना ठीक नहीं। समाज में फैली नकारात्मकता को सकारात्मकता ही हरा सकती है, बल्कि हराती है। बस उसे अलग-अलग उंगलियों के बजाय एक मुट्ठी में तब्दील करना भर होता है। यह #SelfieWithDaughter वही करने वाली है। यह 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान की दिशा में देश के लोगों का एक बड़ा कदम साबित होने वाला है। तो इस तरह महिला सशक्तीकरण से लेकर, भ्रूण हत्या, बालिकाओं की अधूरी छूटी पढ़ाई को पूरा कराना, उनकी मेधा और क्षमता का देश के विकास में पूरा इस्तेमाल, समाज और कार्यस्थल में बराबरी का दर्जा, महिलाओं की सुरक्षा जैसे तमाम बिंदुओं को जनमानस का मुद्दा बनाना इन पहलों का महत्वपूर्ण कारण हो सकता है। शासन और जनता में संवाद पहली शर्त है। प्रधानमंत्री मोदी जानते हैं कि अगर संवाद प्रगाढ़ हो जाए, तो ही विश्वास दृढ़ हो सकता है। भरोसा कायम होने पर कुछ भी असंभव नहीं, जैसे दुष्यंत कुमार कहते हैं-
'कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता। एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।'
बेटी की चाहत
समय भी बदल रहा है। हरियाणा में एवन साइकिल कंपनी में मार्केटिंग की जिम्मेदारी संभाल रहे प्रवीन डुडेजा की एकमात्र संतान बेटी है और वे कहते हैं,'मुझे  प्रसन्नता है कि मेरी बेटी है और वही हमारा सब कुछ है। बेटे की कोई चाहत नहीं।' कहते हैं,'बेटी मेरे लिए बेटे से कहीं कम नहीं। उसे अच्छे से पढ़ाकर दुनिया में हर वह सुविधा दूंगा जो मैं बेटे को देता। हमें माता-पिता बनने के लिए एक संतान चाहिए थी जिसकी अच्छे से परवरिश करें, वह बेटा मिले या बेटी, मेरे लिए बराबर है। उसने हमारा परिवार पूरा कर दिया।'यही नहीं अब तो गोद लेने में भी लोग बेटी को प्रमुखता देने लगे हैं। बच्चों को गोद देने वाली अग्रणी गैर सरकारी संस्था 'मातृ छाया' के प्रबंधक सुरेन्द्र धवन बताते हैं कि हमारे पास बच्चा गोद लेने वाले जो लोग आते हैं उनमें ज्यादातर की मांग होती है कि उन्हें बेटी ही चाहिए। बेटों की मांग बहुत कम दंपति करते हैं।
इसकी क्या वजह है? इस सवाल पर धवन कहते हैं, 'अब समाज के एक बड़े तबके की मानसिकता बदल रही है। लोगों को लगता है कि लड़के आगे चलकर मां-बाप का ख्याल नहीं रखते जबकि लड़कियां हमेशा उनके काम आती हैं। अब तो लोग कहते हैं कि लड़का केवल शादी तक हमारा है, जबकि लड़की पूरी जिंदगी हमारी रहती है। और शायद यही कारण है कि वे लड़के के बजाय लड़की को गोद लेना पसंद करते हैं। यह समझिए कि हमारे यहां से लोग अगर बीस लड़कियों को गोद लेते हैं तो चार लड़कों को।'
सेहरा कैसे बंधे
बेटियों के साथ की गई क्रूरता का ही नतीजा है जो आज के नौजवान भुगत रहे हैं। हरियाणा में तमाम युवकों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल रही हैं और ऐसा तकरीबन हर गांव में है। जींद के रहने वाले दो किसान है अनिल कुमार और सुनील लांबा। दोनों उम्र के तीसरे दशक में हैं, लेकिन गृहस्थी कब बसा सकेंगे कुछ पता नहीं। मायूस होकर कहते हैं,'हरियाणा में दुल्हन की तलाश सरकारी नौकरी पाने जितनी मुश्किल है।' पंजाब और कुछ अन्य राज्यों में भी ऐसे ही हालात आने लगे हैं।

 

सुनील जगलान की कहानी, उनकी जुबानी

मैं दो बेटियों का पिता हूं। बेटियों के संग सेल्फी खींचने की प्रतियोगिता मेरा पहला जागरूकता अभियान नहीं है। जनवरी 2012 में अपनी पहली बेटी के जन्म के बाद ही मैंने लैंगिक समानता को लेकर जागरूकता पैदा करनी शुरू कर दी थी। पहली बेटी के जन्म के बाद मैंने अस्पताल के स्टाफ को मिठाई बांटी तो उन्होंने इनकार कर दिया था। मुझसे कहा गया कि मैं एक लड़की के जन्म की खुशी क्यों मना रहा हूं? इसी तरह से अगले दिन मैंने गांव में भव्य आयोजन किया तो गांव वालों ने भी यही सोचा था कि लड़का होने की खुशी मनाई जा रही है।
मैंने गौर किया है कि किन्नर भी लड़का होने पर ही घर वालों को आशीर्वाद देते हैं, लड़की होने पर नहीं। इसे लेकर भी मैंने अलग से एक अभियान चलाया था। सच कहूं तो शहर से पढ़ाई पूरी करने के बाद से ही समाज में लड़कियों के साथ भेदभाव को लेकर मैं चिंतित रहता था। 2010 में सरपंच बनने के बाद से मैंने लैंगिक समानता को लेकर खुद को समर्पित कर दिया। जिले में गिरते लिंगानुपात को लेकर हुए शोध में भी मैं शामिल रहा और इसके लिए सामाजिक मुद्दों में महिलाओं की भागीदारी को भी बढ़ाया।
19 जून को मेरा जन्मदिन होता है। इसे मैं महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए आयोजन के रूप में मनाता हूं। मेरी इस सोच के पीछे मेरे माता-पिता की परवरिश और संस्कारों का बड़ा हाथ है। मेरी तीन बहनें हैं और तीनों ही मेरे बराबर पढ़ी-लिखी हैं। माता-पिता ने कभी हमारे बीच भेदभाव नहीं किया।
मैंने 14 जुलाई, 2012 को हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली की 112 खापों की एक महापंचायत बुलाई थी और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ मृत्युदंड की मांग करते हुए संयुक्त संकल्प को अपनाने के लिए इन्हें प्रेरित किया था। बुजुर्ग असहज थे और महिलाएं भी उनके सामने अपनी बात रखने से हिचक रही थीं। धीरे-धीरे मैंने उनका डर दूर किया और हिम्मत दी।
पहली बार औरतों ने बिना किसी बंधन के भागीदारी की और बिना डरे खाप के आला नेताओं पर सवाल उठाए। एक-से-एक अक्खड़ प्रधानों ने उनके सामने हथियार डाल दिए। कानून में तो बहुत पहले लिंग परीक्षण पर रोक लग चुकी थी, लेकिन इतने साल बाद आखिरकार खाप के सभी बुजुर्ग इस बात पर सहमत हो सके कि कन्या भ्रूण हत्या को हत्या के बराबर ही माना जाए।
हरियाणा में बमुश्किल 20 फीसद स्कूली लड़कियां ही कॉलेज जा पाती हैं क्योंकि उनके माता-पिता को डर रहता है कि दूर शहर में स्थित संस्थानों में जाते या लौटते समय इन पर यौन हमले हो सकते हैं।
फिलहाल पंचायत, ग्रामीण लड़कियों को सुरक्षित संपर्क साधन मुहैया कराने के लिए राज्य सरकार पर दबाव डालने के लिए अभियान चला रही है, ताकि बेटियां बेखौफ होकर पढ़ सकें और माता-पिता उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित न रहें।
बीबीपुर की पंचायत ने 2014 में एक संकल्प पारित करते हुए गांव के सरकारी बजट के आधे हिस्से पर महिलाओं का पूरा नियंत्रण कायम कर दिया है। मुझे, मेरे साथियों और गांव की महिलाओं को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में ज्यादा से ज्यादा खाप नेता दकियानूसी परंपराओं से मुक्त होंगे। फिलहाल तो यह सुखी कस्बा अपनी महिलाओं के मामले में धारा के विपरीत तैर रहा है। आपको इसका पता गांव के प्रवेशद्वार से ही चल गया होगा, जिस पर लिखा है कि 'बीबीपुर-औरतों की दुनिया' में आपका स्वागत है।

ब्लॉगवार्ता/ईचौक
…तो हम सबके'प्यारे' बेटे कुंआरे रह जाएंगे
ये दुनिया क्या है? किसने की इसकी सृष्टि? ईश्वर ने, अल्लाह ने या 'गॉड' ने? मतभेद हो सकते हैं। ज्यादा फंस गए तो फसाद भी हो सकता है। हालांकि, इन अधूरे-अनदेखे सच को नकारकर परम सत्य को मान लें तो ज्ञानी हैं- मां से सृष्टि है, मां से ही दुनिया है। सरकार तो जोर लगा रही है, आप भी लगाएं। आज की हमारी-आपकी बेटी कल की मां है, सृष्टि है, इसे बचाएं। कहीं ऐसा न हो कि हिसार के दो गांवों की तरह मजाक बनकर रह जाएं हम सबके गांव-शहर। हरियाणा के हिसार जिले में दो गांव हैं- मुजादपुर और बालक। दोनों खबरों में हैं, लेकिन गलत कारणों से। मुजादपुर में प्रति 1000 लड़कों पर 273 लड़कियां हैं जबकि बालक गांव में प्रति 1000 लड़कों पर 385 लड़कियां। लिंगानुपात के हिसाब से हरियाणा वैसे भी देश में सबसे पिछड़ा (879 लड़कियां के मुकाबले1000 लड़के) हुआ है। शायद यही वजह रही होगी कि प्रधानमंत्री मोदी ने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत हरियाणा के पानीपत से की।  एक दूसरी खबर भी है-उत्तर प्रदेश के आगरा से। दो बेटियों की मां को जिंदा जला दिया गया। कारण- वह बेटे नहीं पैदा कर पा रही थी। हरियाणा और उत्तर प्रदेश- दोनों अलग-अलग समाज हैं। एक विज्ञान को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल (भ्रूण परीक्षण और फिर गर्भपात करवाना) कर रहा है तो दूसरा विज्ञान की नई परिभाषा (महिला बेटे नहीं पैदा कर पा रही है) ही लिख रहा है। लेकिन एक चीज दोनों ही समाजों में समान है- मोह, पुत्र-मोह। समाज के नजरिये और सोच में व्यापक बदलाव की जरूरत है। यह हो सकता है। सरकार दम लगा रही है। हम सबको भी आगे आना होगा। चीजें सीखनी होंगी, सोच बदलनी होगी। दूर मत जाइए, हरियाणा के बीबीपुर गांव के सरपंच सुनील जगलान को ही देखिए। अपनी बेटी से प्यार करते हैं। इतना कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी 'मन की बात' में उनका जिक्र कर डाला। दरअसल जगलान ने ही 'बेटी बचाओ, सेल्फी बनाओ' अभियान की शुरुआत की थी, जो बड़े स्तर पर #SelfieWithDaughter के नाम से मशहूर हुआ।
लिंगानुपात के मुद्दे पर सरकार को हम जागरूकता, शिक्षा, कड़े कानून की कमी के लिए कोस सकते हैं। पांच साल के बाद उसे कुर्सी से धकेल सकते हैं। लेकिन कोई अपनी बेटी से प्यार करे या न करे, उसे जीवन देखने दे या न देखने दे, बेटे के समान हक दे या न दे, इसके लिए सरकार की तरफ अपनी शुतुरमुर्गी गर्दन न उठाएं। खुद अपने गिरेबां में झांकें। कहीं ऐसा न हो कि मुजादपुर और बालक गांव की जगह कल हमारे-आपके गांव की खबर आए…कहीं ऐसा न हो कि हम सबके 'प्यारे' बेटे कुंआरे रह जाएं…।                  -चंदन कुमार

इस बार कुछ खास होगा रक्षाबंधन
सेल्फी के अलावा महिलाओं, बेटियों को ताकत देने के लिए प्रधानमंत्री ने एक और महत्वपूर्ण पहल की है जो अपनी तरह की अनूठी है। अगले महीने रक्षाबंधन है। भाई-बहन के प्रेम का त्योहार। प्रधानमंत्री ने इसे भी हाशिए पर खड़ी बालिकाओं-महिलाओं को समाज की मुख्यधारा के परिवारों के साथ लाने का अनूठा अवसर बना दिया है। यह भी सबसे ज्यादा चर्चा में शामिल रहने वाला विषय बन चुका है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हम सभी देशवासी रक्षाबंधन के त्योहार के पहले एक जबरदस्त जन आन्दोलन खड़ा करें और माताओं-बहनों को जन सुरक्षा योजना का लाभ सुलभ कराने में सहायक बनंे। उन्होंने कहा कि घर में खाना पकाने वाली कोई बहन हो या बर्तन साफ करने वाली बहन हो या हमारे खेत में मजदूरी करने वाली कोई बहन हो या फिर हमारे परिवार में ही अपनी बहनंे हांे… हम रक्षाबंधन के पवित्र त्योहार को ध्यान में रखते हुए 12 रुपए वाली और 330 रुपए वाली जन सुरक्षा योजनाएं जीवन भर के लिए अपनी बहनों को उपहार में दे सकते हैं। यह रक्षाबंधन का भाई की तरफ से बहन को एक बहुत बड़ा उपहार हो सकता है।
हम सब मिलकर इस साल रक्षाबंधन का त्योहार अपने आस-पास गरीब बहनों को समर्पित कर दें। क्या हम रक्षाबंधन के दिन इसे एक बड़ा आंदोलन नहीं बना सकते हैं?

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