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पुरी में महाप्रभु श्रीजगन्नाथ के नवकलेवर के दर्शनों के लिए अपार जनसमूह उमड़ रहा है। भक्तों की भीड़ जगन्नाथ मंदिर के द्वार पर एकत्र हो 'जय जगन्नाथ' के जयघोष कर रही है, लेकिन पुराने विग्रह से नये विग्रह में ब्रह्म परिवर्तन की प्रक्रिया को लेकर हुए विवाद से करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस भी पहंुचाई है। राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की चुप्पी ने भक्तों के असंतोष को और बढ़ा दिया है। नवकलेवर प्रक्रिया में ब्रह्म परिवर्तन सबसे महत्वपूर्ण होता है। ब्रह्म परिवर्तन को लेकर हुए विवाद के केन्द्र में दइतापति नियोग व नवीन पटनायक सरकार द्वारा नियुक्त श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासक हैं।
ब्रह्म परिवर्तन मध्य रात्रि को होता है, लेकिन इस बार यह परिवर्तन काफी देरी से अर्थात अगले दिन दोपहर को संपन्न हुआ। परंपरा के अनुसार इस कार्य को करने के लिए मंदिर के अंदर केवल दइतापति ही रहते हैं और किसी को अंदर जाने की अनुमति नहीं होती। इस बार ब्रह्म परिवर्तन में हुई देरी तथा विभिन्न दइतापतियों द्वारा विरोधाभासी बयान दिए जाने के कारण श्रीजगन्नाथ भगवान के भक्तों की भावनाएं आहत हुई हैं। दइतापतियों के अनुसार ब्रह्म परिवर्तन की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए दइतापतियों में आपस में विवाद हुआ। अनेक दइतापतियों ने इसमें शामिल होना चाहा, जो कि हजारों वर्षों से चली आ रही मंदिर की परंपरा के विरुद्ध था। यह प्रक्रिया पूर्ण रूप से गुप्त होती है और इसे 'गुप्त सेवा' भी कहा जाता है। पुरी के गोवर्धनपीठ के शंकराचार्य पूज्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज तथा श्रीजगन्नाथ के प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराज दिव्य सिंह देव ने इस मामले पर आक्रोश व्यक्त किया है।
पूज्य शंकराचार्य जी ने कहा कि शिक्षा, रक्षा, संस्कृति, सेवा, धर्म व मोक्ष का संस्थान श्रीमंदिर पुरी को दिशाहीनता की पराकाष्ठा तक पहुंचाकर अराजक तत्वों को आश्रय देने वाला ओडिशा का शासनतंत्र शीघ्र ही अपने चंगुल से श्रीमंदिर पुरी को मुक्त करे । विवाद के लिए श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासन के मुख्य प्रशासक सुरेश महापात्र के जिम्मेदार होने का आरोप है। ओडिशा भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय महापात्र ने कहा कि हजारों साल की परंपरा को तोड़ दिया गया है। उनका आरोप है कि जिन दइतापतियों के कारण यह विवाद हुआ वे बीजद के नेता हैं, लेकिन इस मामले में मुख्यमंत्री ने चुप्पी साध रखी है। पुरी में परंपरा के अनुसार किसी भी वर्ष जब भी पुरुषोत्तम मास आता है, तब पुरी मंदिर में विग्रहों का नवकलेवर होता है। ऐसा 12 से 19 वर्षों के अंतराल पर होता है। नवकलेवर में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा तथा श्री सुदर्शन के नीम के पेड़ से बने विग्रहों का परिवर्तन कर नए विग्रह बनाए जाते हैं।
इसकी प्रक्रिया से कई माह पूर्व वनयाग यात्रा शुरू होती है। इस दौरान दइतापति विग्रहों के लिए उपयुक्त नीम के पेड़ की तलाश में वन में जाते हैं । इन पेड़ों के चयन के लिए निर्धारित व कड़ा सिद्धांत है जिसके तहत पेड़ों में दिव्य चिह्न, शंख, चक्र, गदा, पद्म आदि दृष्टिगोचर होने चाहिए। पेड़ की पहचान होने के बाद संपूर्ण रीति-नीति से पूजा की जाती है और इनकी काष्ठ पुरी के श्रीमंदिर लायी जाती है। फिर निर्धारित समय में इस कार्य को परंपरागत रूप से विग्रह निर्माण करते आ रहे सेवायत विग्रहों का निर्माण करते हैं। चार दइतापति, जिन्हें बाडग्राही कहा जाता है, पुराने विग्रहों से पवित्र ब्रह्म (आत्मा) को नये विग्रहों में स्थानांतरित करते हैं।
समन्वय नंद
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