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शिक्षा क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत

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Jun 27, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Jun 2015 12:13:02

अंक संदर्भ : 7 जून, 2015

आवरण कथा 'सबक सयाना' ने शिक्षा की मूल परिभाषा को स्पष्ट किया है। शिक्षा के संबंध में उचित सवाल उठाकर पाञ्चजन्य ने समाज में एक नई चर्चा की शुरुआत की है और प्रश्न उठाया है कि हमारा समाज किसे शिक्षा समझ रहा है और शिक्षित होने की निशानी किसे मान रहा है। असल में लोगों को आज शिक्षित व्यक्ति वही लगता है जो अत्यधिक पैसा कमा रहा हो या फिर किसी बड़ी कंपनी या अन्य किसी संस्थान में नौकरी कर रहा हो। असल में शिक्षा की मूल परिभाषा   है कि स्वयं शिक्षित होकर समाज को आलोकित करना न कि सिर्फ पैसा कमाना। अगर ऐसा है तो शिक्षा सार्थक है नहीं तो वह निरर्थक है।
—राममोहन चन्द्रवंशी
टिमरनी, जिला-हरदा (म.प्र.)
ङ्म पाञ्चजन्य ने शिक्षा के वास्तविक स्वरूप को साकार करने वाले व्यक्तियों का उल्लेख करके समाज को प्रेरणा देने का काम किया है। आज हम देखते हैं कि अंकों की अंधी दौड़ मची हुई है। उसी आड़ में शिक्षा एक व्यवसाय बनकर फल-फूल रही है। शिक्षा का स्तर जिस प्रकार गिरा और उसके गिरने के कारण जो नुकसान हुआ उसके परिणाम हम सबके सामने हंै। आज के युवा को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी अपने लक्ष्य का पता ही नहीं है। क्योंकि उसने शिक्षा नहीं ली, उसने तो अंकों की अंधी दौड़ में अपने को शामिल करके किसी तरह डिग्री हासिल की है।  पढ़ाई का स्तर इतना गिरता जा रहा है कि 'शिक्षा' और शिक्षा ग्रहण करने वालों का भविष्य अंधकार में डूबा हुआ स्पष्ट नजर आता है। मौजूदा शिक्षा प्रणाली देश के लिए बहुत ही खतरनाक है। इस प्राणाली को जितना जल्दी बदला जाये उतना समाज के लिए अच्छा होगा।
—हरिओम जोशी
 चतुर्वेदी नगर, भिण्ड (म.प्र.)
ङ्म नैतिक मूल्यों के बगैर शिक्षा अधूरी है। आज के स्कूली पाठ्यक्रम में विज्ञान और तकनीक का ज्ञान तो दिया जाता है लेकिन देश की विरासत, संस्कृति और नैतिक मूल्यों के समावेश से आज की शिक्षा कोसों दूर है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। स्वतंत्रता के बाद देश से अंग्रेज तो चले गए पर मैकाले नाम के खलनायक ने यहां की शिक्षा रूपी विरासत को तार-तार कर दिया क्योंकि वह जानता था कि अगर यहां की शिक्षा प्रणाली को विकृत कर दिया तो भारत का जो सांस्कृतिक स्वरूप है वह स्वत: ही नष्ट हो जायेगा। बहरहाल अब समय आ गया है जिस शिक्षा प्रणाली को सरकारों ने विकृत किया उसे पुन: मूल स्वरूप प्रदान         किया जाए।
—मनोहर मंजुल
 पिपल्या-बुजुर्ग  (म.प्र.)
ङ्म हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा में एक प्रस्ताव पारित हुआ था कि बच्चों को मातृभाषा में ही शिक्षा दी जानी चाहिए। यह प्रस्ताव अगर लागू होता है तो भारत की जो शिक्षा प्रणाली लगभग नष्ट हो चुकी है वह फिर से नया जन्म ले लेगी। दूसरी बात अंग्रेजी भाषा को बच्चों के ऊपर थोपा जा रहा है, जो नहीं होना चाहिए। दरअसल अंग्रेजी को भी ऐच्छिक विषय में शामिल करना चाहिए। असल में आज लोगों की जो एक धारणा बनती जा रही है कि अंग्रेजी में बोलने वाला ही विद्वान होता है, वह गलत है। भाषा सिर्फ बात करने का माध्यम भर है। इसलिए किसी भाषा का बोझ बच्चे की अनिच्छा से उस पर नहीं थोपा जाना चाहिए। नहीं तो उसके परिणाम भी घातक होंगे।
—गुलाबचन्द्र अग्रवाल
 शहडोल (म.प्र.)
ङ्म  केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा पिछले 10 वर्षों की नाकामियों के निशान मिटाते हुए सरकार के कामयाबी की ओर बढ़ते कदम, विरोधियों के मंसूबों  पर पानी फेर रहे हैं। सरकार द्वारा जनहित में जो कार्य किए जा रहे हैं उनको देखकर विरोधी तिलमिलाए हुए हैं। प्रधानमंत्री श्रेष्ठ भारत बनाने के जुनून और जज्बे के साथ बिना रुके-बिना थके आगे बढ़ रहे हैं।  
—तरुण चुग
 44, कटरा मोतीराम, अमृतसर (पंजाब)
ङ्म भारत में आज की शिक्षा प्रणाली देखकर मैकाले की आत्मा अपनी सफलता पर अट्टहास कर रही होगी क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने विचार को फैलते देखकर प्रसन्न एवं गौरवान्वित होता है। आज भारत में मैकाले के इतने मानसपुत्र उत्पन्न हो चुके हैं कि उन्हें भारतीय संस्कृति, पुरातन शिक्षा पद्धति में सब कुछ हेय-तुच्छ प्रतीत होता है। इसमें हमारी और हमारी सरकारों की गलती रही है। हमने ही मैकाले की प्रणाली को आगे बढ़ाया है। अभी भी समय है जब हम अपनी गलती को सुधार कर पुरातन शिक्षा प्रणाली को लागू करके समाज को व्यवस्थित कर सकते हैं।
—नीरज शर्मा
 मुरादनगर, जिला-गाजियाबाद (उ.प्र.)
जहरीली विदेशी साजिश
मैगी नूडल्स में मिले खतरनाक रसायनों  के बाद उस पर लगे प्रतिबंध  के साथ अब अन्य विदेशी कंपनियों के उत्पादों पर भी शंका के बादल मंडराने लगे हैं।  इसके पहले भी पेप्सी-कोक जैसे उत्पादों में खतरनाक स्तर के रसायन एवं कीटनाशक मिलने के समाचार आते रहे हैं। असल में सभी विदेशी उत्पाद भारत में स्थानीय उत्पादों को नष्ट करके अपने को उत्पाद बाजार में थोप देते हैं और अंधाधुंध कमाई करके यहां से अकूत मात्रा में पैसा बाहर ले जाते हैं। सरकार को चाहिए कि वह सभी विदेशी उत्पादों की सघनता से जांच कराये और अगर कोई भी उत्पाद गलत मिलते हैं तो तत्काल उन पर भी प्रतिबंध लगाए।
—डॉ. सुशील गुप्ता
 बेहट बस स्टैण्ड, सहारनपुर (उ.प्र.)
मिलता करारा जवाब
पूर्वोत्तर में  सेना के जवानों की हत्याएं चिंता का विषय है। आतंकी देश में घुसपैठ करने की फिराक में हैं। वे देश में अशान्ति का माहौल बनाना चाहते हैं। लेकिन हमारी सेना के हौसले और नजरों से वे नहीं बच पाते और मारे जाते हैं। सेना के इस हौसले पर देश को नाज है।
—प्रदीप सिंह राठौर
 बक्शी का तालाब, लखनऊ (उ.प्र.)
झूठ का पुलिन्दा
लेख 'महाराणा प्रताप और झूठी बुनियाद पर खड़ा अकबर' हकीकत से रूबरू कराता है। दरअसल भारत के इतिहास को कितना विकृत किया गया इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अकबर को महान बनाया गया, जिसने देश को हानि पहुंचाई और यहां की संस्कृति को नष्ट किया, वहीं राणा प्रताप जैसे शूरवीर योद्धा और देशभक्त को इतिहास में षड्यंत्रपूर्वक भुलाया गया।  आज समय है जब देश के लोगों को जानना चाहिए कि महाराणा प्रताप और शिवाजी जैसे शूरवीर, राष्ट्रभक्त देश के गौरव व प्रेरणास्रोत हैं,            अकबर नहीं।  
—कादम्बरी
बुद्धा मार्ग, मंडावली (नई दिल्ली)

सुरक्षा पर हो बात
बंगलादेश में आए दिन हिन्दुओं पर होती वीभत्सपूर्ण घटनाएं चिंता का विषय हैं। यहां पर हिन्दुओं को प्रताडि़त करने से लेकर उनकी हत्याएं आम हैं। उनके घरों को जलाया जाता है, उन्हें मारा जाता है, उनकी जमीनें कब्जा ली जाती है और उनके धार्मिक स्थलों को छिन्न-भिन्न किया जाता है। पर हिन्दुओं के साथ होते जुल्म पर देश की सरकार की नजर तक नहीं जाती है। साथ ही वह मीडिया जो अल्पसंख्यक के नाम पर छोटी सी घटनाओं पर जमीन-आसमान एक कर देती है, वह बंगलादेश मंे हिन्दुओं की हत्या पर अपना मुंह सीकर बैठ जाती है।
—देशबंधु
उत्तम नगर (नई दिल्ली)
हिन्दी को मिले सम्मान
विदेशों में भारत के शासनाधिकारियों द्वारा अंग्रेजी बोलना कष्टकारक होता है। भारत में भी कुछ शासन व प्रशासन से जुड़े लोग सरकारी कार्यक्रमों में ऐसे अंग्रेजी बोलते हैं जैसे यहां सब अंग्रेज हों। भारत में लोग हिन्दी अच्छे से समझते हैं तो क्यों न उनकी ही भाषा में बात की जाये? इसलिए हम सभी का दायित्व है कि हिन्दी को उसका खोया सम्मान वापस दिलायें।
—डॉ. रमेशचन्द्र नागपाल
गाजियाबाद (उ.प्र.)
चिंता का विषय
देश में एक वर्ष में करीब 1 लाख बच्चे  गायब होतेे हैं। वे सभी कहां जाते हैं कोई पता नहीं। कुछ को पुलिस खोज निकालती है और कुछ ऐसे ही गर्त में समा जाते हैं।  जिनके बच्चे गर्त में समा जाते हैं, कोई भी सरकार उनकी सुध तक नहीं लेती। असल में बच्चों का गायब होना बहुत बड़ा कारोबार बनता जा रहा है ।  
—मनोज शर्मा
 (दिल्ली)
योग पर वितंडा
सेकुलर योग को भी धर्म से जोड़कर  लोगों को दिग्भ्रमित कर रहे हैं।  अक्सर देशहित में कोई भी सामाजिक कार्यक्रम होता है तो  सेकुलर  रुदन करने लगते हैं और उसे साम्प्रदायिक रंग देने से नहीं चूकते हैं।  जबकि योगासन का किसी भी मत-संप्रदाय से कोई भी संबंध नहीं है।
—कमलेश कुमार ओझा
पुष्प विहार (नई दिल्ली)

आरक्षण की फैलती आग
देश के स्वतंत्र होने के बाद भारत के संविधान में जात-पात के आधार पर अति निर्धन को समानता की स्थिति में लाने के लिए दस वर्षों के लिए आरक्षण लाभ का प्रावधान किया गया था। लेकिन धीरे-धीरे नेताओं ने इसे वोट बैंक का हथियार बना लिया और आज स्थिति यह है कि आरक्षण हटाने की बात कहने मात्र से ही क्या हो सकता है, इसका अंदाजा भी शायद नहीं लगाया जा सकता। हर जाति अपने लाभ के लिए समय-समय पर आरक्षण की मांग लेकर देश-प्रदेश में अराजकता की स्थिति उत्पन्न करती है। सड़क से लेकर सरकारी संपत्ति को जमकर तहस-नहस किया जाता है और हमारी सरकारें मूकदर्शक बनकर इस नजारे को देखती हैं या फिर उनकी बात को येनकेन प्रकारेण मान लेती हैं। लेकिन सवाल है कि क्या आरक्षण के वास्तविक लाभ की प्रतिपूर्ति हो पा रही है? देश में सैकड़ों जातियां हैं और सभी में निर्धन लोग हैं जो प्रतिदिन कमाकर खाने को विवश हैं। यदि वह सभी भी आरक्षण की मांग को लेकर हिंसक आंदोलन  पर उतर आए तो इस देश की क्या हालत होगी? बस कल्पना मात्र से ही रौंगटे खड़े होने लगते हैं। चुनाव से पूर्व राजनीतिक दल विजय प्राप्ति के लिए बिजली-पानी की माफी, सौ दिन में महंगाई भगाने, सत्ता में आते ही आरक्षण देने जैसे लोकलुभावन वादे करके आरक्षण की आग में घी डालने का काम करते हैं।  किन्तु कुर्सी मिलते ही करते क्या हैं, यह देश के लोगों को भलीभांति पता है। आज आरक्षण को लेकर प्रदेशों में जिस तरह का माहौल बना हुआ है वह आने वाले समय में एक ज्वालामुखी का रूप लेने की कगार पर है। हर जाति अपने-अपने लिए आरक्षण की मांग कर रही है, लेकिन सवाल है कि क्या वास्तव में सबको आरक्षण दिया जा सकता है?  मर्ज गंभीर है और इसका इलाज भी धीर-गंभीर होकर करना  चाहिए। क्योंकि यह रास्ता बड़ा ही गलत है जो आने वाले समय में देश की अखंडता को भी तोड़ने में देर नहीं लगाएगा।
—राम सहाय जोशी
28, आलूवालिया बिल्डिंग
 अंबाला छावनी (पंजाब)

योग भगाए रोग
माना पूरे विश्व ने, योग भगाए रोग
लेकिन भारतवर्ष में, मूढ़मंद कुछ लोग।
मूढ़मंद कुछ लोग, दखल मजहब में कहते
ना जाने वे किस पिछड़ी दुनिया में रहते।
हैं 'प्रशांत' जो अंधियारे के प्रेम-पुजारी
उन्हें मुबारक बेअक्लों से उनकी यारी॥    
    —प्रशांत

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