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आशीष कुमार 'अंशु'
अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से नेपाल में आई भयानक तबाही के बाद जो सहायता मिल रही है, वह निराश करने वाली है। संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी की तरफ से आया यह बयान दुनिया के किसी ऐसे व्यक्ति को चिन्तिन कर सकता है, जो मानवता के प्रति संवेदनशील हो। अधिकारी के अनुसार-अभी मदद करने वाले देश नेपाल के पुनर्वास और पुनर्निर्माण पर अधिक ध्यान दे रहे हैं जबकि इस वक्त नेपाल के तमाम शिवरों में रह रहे लाखों लोगों के लिए खाना, स्वच्छ पीने का पानी, शौचालय और तत्कालिक तौर पर रहने का सुरक्षित ठिकाना सबसे बड़ी चिन्ता है। पिछले दिनों विभिन्न शिवरों से महिलाओं और बच्चों की असुरक्षा पर चिन्ता जताती जिस तरह की रिपोर्ट नेपाल के विभिन्न समाचार माध्यमों में आई, उसके बाद भूकम्प पीडि़त महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा भी नेपाल सरकार की एक बड़ी जिम्मेवारी बन गई है। बलात्कार के दर्ज हुए मामले इस चिन्ता को बढ़ा रहे हैं, जबकि नेपाल में सक्रिय गैर सरकारी संगठनों का कहना है कि जो मामले दर्ज हुए हैं, वास्तविक बलात्कारों की संख्या उनसे कई गुणा अधिक है।
नेपाल में आए भूकम्प ने नेपाल के जन जीवन को किस हद तक प्रभावित किया होगा, इस बात का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि 25 अप्रैल को 7.8 की तीव्रता वाले भूकम्प ने एक तिहाई नेपाल के जनजीवन को अस्त व्यस्त कर दिया। 10,000 के आस पास लोगों ने अपनी जान गंवाई।
संयुक्त राष्ट्र के नेपाल में समन्वयक जेमी एमसी गोल्ड्रीक ने एक पत्रकार से बात करते हुए इन शब्दों में अपनी निराशा जताई- 'नेपाल में भूकम्प आने के बाद राहत और बचाव कार्य में जिस तरह की तेजी दिखाई दी थी, अब जब राहत बचाव का काम पूरा हो चुका है। सभी यह सोच रहे हैं कि उनका काम पूरा हो गया।
वास्तव में अब हर तरफ नेपाल के पुनर्निर्माण की बात हो रही है। नेपाल को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करने की बात हो रही है। लेकिन इस नए नेपाल को तैयार होने में लगभग दो साल का वक्त लगने वाला है। सम्भव है, इससे अधिक समय भी लगे। ऐसे समय में नेपाल के 20 लाख पीडि़तों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने विश्व समुदाय से 423 मिलियन डॉलर सहायता की अपील की है। इन पैसों से अगले तीन महीनों के लिए टेन्ट, राशन, पीने का स्वच्छ पानी और शैचालय इत्यादि की व्यवस्था करनी है। जिसकी तरफ इस वक्त विश्व समुदाय का ध्यान नहीं जा रहा है।
आने वाला समय नेपाल में पहाडि़यों पर रहने वालेे लोगों के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। जगह-जगह भूस्खलन की वजह से रास्ता बंद है। राहत सामग्री लेकर जब कोई समूह ऐसे किसी दुर्गम क्षेत्र में पहुंचता है तो वहां छह-सात किलोमीटर चलकर लोग राहत सामग्री लेने के लिए आते हैं। और जो सामग्री उन्हें मिलती है, वह पर्याप्त नहीं है। यह लेने वाले और सामग्री पहुंचाने वाले दोनों ही जानते हैंं। पहाडि़यों पर जाने का रास्ता बरसात में बंद हो इससे पहले जरूरत है, उन दुर्गम क्षेत्रों में राहत सामग्री पहुंचाने की।
नेपाल को 22 मई तक 160 से भी अधिक देशों द्वारा भेजी गई 2670 बिलियन की सहायता राशि प्राप्त हुई है। नेपाल को भारत, चीन, ब्रिटेन, अमरीका, आस्ट्रेलिया, डेनमार्क और दूसरे देशों से मदद मिली है और आने वाले दिनों में मदद का आश्वासन भी। सरकार ने दानदाता गैर सरकारी संगठनों के साथ भी एक सम्मेलन किया।
नेपाल के वित्त मंत्री राम शरण महत के हाल में दिए एक बयान के अनुसार- देश को 500 बिलियन की जरूरत है। भूकम्प प्रभावित दूकानों और घरों के पुनर्निर्माण के लिए और लोगों के पुनर्वास के लिए।
नेपाल में आपदा प्रबंधन निगरानी के लिए एक विशेष संसदीय समिति का गठन किया है। उसे नेपाल के अलग-अलग जिलों से जो रपट मिल रही हैं, वह सरकारी कामकाज को सही नहीं ठहराती। सिंधुपालचौक के कई भूकम्प प्रभावित गांवांे तक सरकार की सहायता नहीं पहुंची है। सिंधुली जिले से आई रपट के अनुसार, भूकम्प को इतना समय बीत जाने के बाद भी जिले के अधिकारी नुकसान का सही-सही आकलन अब तक नहीं कर पाए हैं। जिन परिवारों में किसी की मृत्यु हुई है, उनके परिजनों को सरकारी आदेश से मात्र 5000 रुपए दिया जाना था। रपट के अनुसार धाडिंग जिले में सहायता की यह राशि भी नहीं पहुंची है।
31 मई से नेपाल में स्कूल के दरवाजे बच्चों के लिए खुल गए हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि 8,70,000 स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए नेपाल में कोई स्कूल नहीं है। उनका स्कूल भूकम्प में चला गया। सिंधुपालचौक की बात की जाए तो वहां के 70 फीसद स्कूल तबाह हो गए हैं। नेपाल के लाखों बच्चों को नहीं पता कि इस साल वे स्कूल जा पाएंगे या नहीं?
शक्ति समूह नेपाल की संस्थापक सदस्य चरीमाया तमांग बताती हैं कि किस प्रकार बच्चों को स्कूल में पढ़ाने का झांसा देकर मानव तस्कर अपने साथ बच्चों को नेपाल से बाहर लेकर जा रहे हैं। नेपाल में भूकम्प के बाद उपजी गरीबी और भूख की स्थिति का कुछ असामाजिक तत्व फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैंं। जरूरत है, ऐसे लोगों से सतर्क रहने की। भारत नेपाल की सीमा पर 'मायती नेपाल' नाम की संस्था ने 40 बच्चों को तस्करी से बचाया है।
मायती नेपाल की संस्थापक अनुराधा कोइराला ने सरहद पर बढ़ रही मानव तस्करी की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा- 'कुछ लोग अनुमान से कह रहे हैं कि कोई मानव तस्करी नहीं हो रही है। मैं प्रमाण के साथ कह रही हूं कि तस्करी हो रही है।'
नेपाल की भयावह स्थिति को शब्दों में 'चाइल्ड इन नीड इन्स्टीट्यूट' के रतन लामा ने व्यक्त किया। रतन लामा सिंधुपालचौक के इरखु शिविर में गए थे। वहां रतन ने 200 बच्चों को देखा। उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि बच्चों की सुरक्षा का वहां कोई इंतजाम नहीं था। रतन लामा ने थोड़ी ही देर में बच्चों से दोस्ती कर ली। जब रतन ने उन बच्चों से भारत चलने को कहा तो वे फौरन तैयार हो गए। बकौल रतन लामा- मंै वहां मौजूद सभी बच्चों के लिए बिल्कुल नया व्यक्ति था और वे सभी बच्चे मेरे साथ इतनी सहजता से आने को तैयार हो गए। इरखू में जो स्थिति उत्पन्न हुई मुझे लगता है कि यह मानव तस्करी के लिए सबसे उपयुक्त स्थिति थी।
रतन लामा का इन पंक्तियों के लेखक से बात करने का उद्देश्य यही था कि वे इस भयावह स्थिति को रिपोर्ट कर पाएं। रतन लामा जिन बच्चों से मिले उनके सपनांे का भारत एक ऐसा देश है, जहां आपको जाते ही रोजगार मिल जाता है और इस रोजगार से आप इतने पैसे कमा सकते हैं, जिससे अच्छे कपड़े और मोबाईल आप खरीद पाएं। यूएस स्टेट डिपार्टमेन्ट द्वारा तैयार 'द ट्रेफिकिंग इन पर्सन्स रपट में नेपाल को टियर 02 में रखा गया है। जिसका अर्थ है, ऐसा देश या सरकार जो मानव तस्करी के उन्मूलन के लिए न्यूनतम मानकों का पालन नहीं कर रही है। हालांकि वह ऐसा करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास कर रही है।
सीआईएए के मुख्य आयुक्त लोकमान सिंह कार्की ने अपने एक लेख में नेपाल सरकार से निवेदन किया है कि राहत-बचाव और पुनर्वास के काम की सीख वे भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लें। कार्की ने 2001 के भुज भूकम्प के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर श्री मोदी की दृष्टि और निस्वार्थ सेवा भाव की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए लिखा है, श्री मोदी ने भूज में पीडि़तों के राहत, बचाव और पुनर्वास का जो काम किया, वह उनके राजनीतिक कॅरियर में मील का पत्थर साबित हुआ और आज वे भारत के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैंं।
भूकम्प गुजर चुका है लेकिन नेपाल की चुनौती अब शुरू हुई है। अभी भी नेपाल के पहाड़ी हिस्सों में जो पीडि़त फंसे हैं, उन तक सबसे पहले राहत पहंुचाने की जरूरत है। एक बार बारिश शुरू हो जाने के बाद वहां पहुंचना और भी मुश्किल हो जाएगा। आने वाला समय वास्तव में नेपाल की इच्छाशक्ति की परीक्षा है। जहां उसे खुद को साबित करना ही होगा।
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