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जेल गए, नौकरी भी छूटी
जय प्रकाश नारायण की शामली में विपक्षी दलों की ऐतिहासिक सभा का संयोजक होने और भारतीय मजदूर संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य और भारतीय शुगर मिल मजदूर संघ के महामंत्री दायित्व के चलते मैं आपातकाल के दौरान पुलिस प्रशासन की निगाहों मेंे खासतौर से खटक रहा था और गिरफ्तार किए जाने वाले लोगों की सूची में अव्वल दर्जे में शामिल था। 3 जुलाई, 1975 की रात 10 बजे मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और 4 जुलाई को मुजफ्फरनगर जिला कारागार भेज दिया गया। मुजफ्फरनगर जेल में मालती शर्मा मीसा में निरुद्ध होने के कारण अलग बैरक में बंदी थीं। मेरे जाने से पहले ही जेल की बैरक संख्या तीन में राज्य कर्मचारी नेता बी. एन. शुक्ल, रा. स्व. संघ के जिला संघचालक डॉ़ सूरजभान भार्गव, पूर्व मंत्री सईद मुर्तजा, पूर्व सांसद गयूर अली खां, समाजवादी सत्यवीर सिंह एडवोकेट आदि बंद थे। धीरे-धीरे बंदियों की संख्या बढ़कर 250 हो गई। इनमें 150 से अधिक बंदी रा. स्व. संघ के कार्यकर्ता थे। उस समय आतंक और भय की हालत यह थी कि वकील बंदियों की वकालत को तैयार नहीं थे। शासन और प्रशासन दोनांे ने रा. स्व. संघ कार्यकर्ताओं को खासतौर से शारीरिक और मानसिक यातनाएं दीं। जिला प्रचारक तिलक राज कपूर को कई दिनों तक तीमारदारी कर स्वस्थ किया जा सका। मुझे शामली शुगर मिल की नौकरी से हटा दिया गया। परिवार की माली हालत और खराब हो गई। मैंने दोनों मामलों की स्वयं पैरवी की और आरोप मुक्त होकर एक नवंबर, 1975 को जेल से छूट गया। -घनश्यामदास गुप्ता
नहीं डिगा चरित्र
25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा के समय मैं 35 वर्ष का था। मैं सहारनपुर के वार्ड संख्या 12 पुरानी मंडी से जनसंघ के सभासद और नगर सह मंत्री के तौर पर राजनीतिक रूप से सक्रिय था। एक पुलिस अधिकारी से गिरफ्तारी का दौर चलने की पूर्व सूचना पर सचेत होने के बाद मैंने जनसंघ और रा. स्व. संघ के प्रमुख लोगांे को स्थिति से अवगत कराया। सभी ने आलाकमान से मिले निर्देशों के मुताबिक अपनी भूमिका तय की। विपरीत हालात में भी कोई विचलित नहीं हुआ। आदरणीय रज्जूभैया का देहरादून से आगमन हुआ तो मैं उन्हें जेल चुंगी से स्कूटर पर लेकर तय स्थान पर पहुंच गया। बैठक में उनसे मार्गदर्शन प्राप्त किया। उसके बाद रज्जूभैया बस से मुजफ्फरनगर चले गए। जेल में ही रा. स्व. संघ के जिला संघचालक लाला बिशन लाल मित्तल का निधन हो गया। वे गिरफ्तारी से बच सकते थे, लेकिन वे अपना दायित्व समझते हुए उत्साह के साथ जेल गए। लालाजी के साथी लाजपत राय, डॉ़ बैजनाथ एवं राजेंद्र कर्णवाल भी गिरफ्तारी देकर सहारनपुर जेल गए। तीन महीने की सजा काटकर मैं जेल से बाहर आया। गुप्त रूप से होने वाली बैठकों का आयोजन और आपातकाल के खिलाफ प्रचार सामग्री का वितरण अभियान सुचारु रूप से जारी रखा। -पन्नालाल शर्मा
छात्रों का नुकसान
आपातकाल घोषित होने के चंद रोज बाद ही रा. स्व. संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मैं तब महाराज सिंह कॉलेज सहारनपुर में एम.एससी. का छात्र और सहारनपुर नगर की सायं शाखाओं का कार्यवाहक था। तीन जुलाई, 1975 को रा. स्व. संघ के लोगोें की धरपकड़ हेतु पुलिस ने जबरदस्त छापेमारी की। जिसमें कई प्रमुख नेता भी गिरफ्तार किए गए। जेल में उचित खानपान एवं चिकित्सा सुविधाएं न होने के चलते काफी लोग अस्वस्थ हो गए। इसी दौरान लाला बिशन लाल मित्तल का स्वास्थ्य इतना बिगड़ गया कि उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। न्यायालय में पहली पेशी के दिन मित्तल जी ने 17 जुलाई को प्राण त्याग दिए। तानाशाही के खिलाफ संघ कार्यकर्ता का यह अप्रतिम बलिदान था। उनकी शव यात्रा में हजारों लोग उमड़ पड़े। उनकी प्राणाहुति से मेरा और मेरे युवा साथियों का खून उबलने लगा। हम सभी ने संकल्प लिया कि आपातकाल के हटने तक चैन से नहीं बैठेंगे। मेरा घर उन दिनों सूचना केंद्र के रूप में बदल गया। संघ के विभाग प्रचारक ज्योति जी के निर्देशन में जन जागृति अभियान गुप्त रूप से चलाया गया। विजयादशमी को मेरे घर पर आयोजित पर्व पर कार्यकर्ताओं ने अपने रक्त से शस्त्र पूजन कर आपातकाल के विरोध का संकल्प लिया। मैं अपने कई छात्र साथियों के साथ गिरफ्तारी देकर नवंबर, 1975 में सहारनपुर जेल चला गया। ये सभी इंटर, बी. ए और बी. काम के छात्र थे। तीन माह जेल में रहने के कारण सभी को परीक्षा से वंचित कर दिया गया, लेकिन कोई मायूस नहीं हुआ। सहारनपुर जेल में 150 बंदी थे। -यशपाल भाटिया
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