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भारतीय सेना ने 9 जून की सुबह म्यांमार की सीमा में घुसकर 38 उग्रवादियों को मौत के घाट उतार दिया और 7 घायल कर दिए। इस 'ऑपरेशन' में मारे गए उग्रवादियों की संख्या इससे अधिक होने का भी अनुमान है। सेना के इस साहसिक कार्य को पूरे देश ने सराहा है। गत 4 जून को डोगरा रेजीमंेट के जवानों पर किए गए हमले का सेना ने जवाबी कार्रवाई करते हुए मुंहतोड़ जवाब दिया है। सीमा पार जाकर उग्रवादियों को सबक सिखाने की दृष्टि से इस कदम को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हालांकि इस कार्रवाई के बाद कुछ उग्रवादियों के पूर्वोत्तर राज्यों में घुसने की आशंका को ध्यान में रखते हुए गृहमंत्रालय द्वारा 'एडवाइजरी' भी जारी की गई है।
सेना ने गत 4 जून को उग्रवादियों के हमले में शहीद हुए 18 जवानों के बलिदान पर त्वरित प्रतिक्रिया स्वरूप जब रणनीति बनानी शुरू की तो मालूम हुआ कि मणिपुर और नागालैंड की सीमा से सटे म्यांमार में उग्रवादी छिपे हुए हैं। उग्रवादियों ने म्यामांर के काचीन प्रांत में प्रशिक्षण शिविर बनाया हुआ था। इसके बाद 9 जून को कार्रवाई कर उग्रवादी संगठन एनएससीएन (खापलांग) और केवाईकेएल के दो शिविरों में मौजूद उग्रवादियों को ढेर कर दिया गया। सीमा पार जाकर की गई कार्रवाई से पूर्व म्यांमार में उग्रवादियों के छिपे होने की सूचना मिलने पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल, सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने पूरी रणनीति बनाई थी। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इसे हरी झंडी दे दी गई और म्यांमार सरकार से संपर्क साधा गया। वहां की सरकार और सेना को विश्वास में लेने के बाद 'ऑपरेशन' का रास्ता साफ हो गया।
वायुसेना द्वारा उग्रवादियों के शिविरों के चित्र लिए गए और फिर हेलीकॉप्टर की मदद से 'ऑपरेशन' को आगे बढ़ाया गया। भारतीय सेना के 70 कमांडो ने मात्र 40 मिनट में अपनी कार्रवाई को अंजाम दे दिया। इसके लिए सेना की दो टीमें बनाई गई थीं। इन सभी को हेलीकॉप्टर की मदद से उतारा गया था। 'ऑपरेशन' के दौरान वायुसेना के हेलीकॉप्टरों द्वारा भी पूरी निगरानी बरती गई थी। सेना के ऑपरेशन के दौरान म्यांमार से सरकार लगातार संपर्क बनाए हुए थी। सीमा पार उग्रवादियों के 60 से अधिक शिविर हैं और अभी मात्र दो ही शिविर उड़ाए
गए हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल भविष्य में संयुक्त कार्रवाई को ध्यान में रखते हुए जल्द ही म्यांमार दौरे पर भी जाएंगे। पूर्वात्तर में उग्रवादियों पर नकेल कसने की दृष्टि से इसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस विषय पर दोनों देशों की सरकारें आपस में संपर्क बनाए हुए हंै। म्यांमार में 9 जून को हुई कार्रवाई गत वर्ष 2014 में हुए भारत-म्यांमार समझौते का ही परिणाम है। उस समय दोनों देशों के बीच सूचनाएं आदान-प्रदान करने को लेकर भी करार हुआ था।
गौरतलब है कि 4 जून को चंदेल जिले के पास 6 डोगरा रेजीमेंट के जवानों को निशाना बनाया गया था। उग्रवादियों ने म्यांमार की सीमा से मात्र 20 किलोमीटर दूर, जबकि इम्फाल से 80 किलोमीटर दूर पारलांग और चिरांग गांव के बीच सेना के गश्ती दल पर हमला बोला था। यह स्थान काफी संकरा और घुमावदार है जिसके एक तरफ ऊंची पहाड़ी और दूसरी तरफ गहरी खाई है। गश्त कर रही सेना की टुकड़ी को विस्फोटक लगाकर उड़ा दिया गया था। जवान उस समय चंदेल से इम्फाल जा रहे थे। सभी उग्रवादी अत्याधुनिक हथियारों से लैस थे। उनके पास ग्रेनेड लांचर और रायफल थे।
दरअसल म्यांमार और भारत के 324 किलोमीटर लंबी अन्तरराष्ट्रीय सीमा पर चर्च का जाल बिछा हुआ है। चर्च द्वारा वनवासी समाज के लोगों में देश विरोधी भाव जगाकर उन्हें ईसाई बनाया जा रहा है। वनवासी क्षेत्र में बिजली, पानी, चिकित्सा और सड़क मार्ग का अभाव है। ऐसे में उग्रवादियों द्वारा इन मार्गों का इस्तेमाल कर भारत की सीमा में घुसना और विदेश हथियारों से जवानों पर हमला कर कई सवाल खडे़ करता है। यहां चर्च उग्रवादियों की शरणस्थली बने हुए हैं और ईसाई मिशनरी इनके लिए कथित जासूसी भी करते हैं। ये लोग उग्रवादियों को सेना और सुरक्षा बलों की हर हरकत की जानकारी मुहैया कराते हैं। इसके बदले में मिशनरियों को विदेशों से अकूत धन मिलता है।
सूत्रों के मुताबिक चीन के एक आतंकवादी संगठन ने हाल ही में पश्चिमी दक्षिणी पूर्वी एशिया को मुक्त कराने हेतु 'यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ वेस्टर्न साउथ ईस्ट एशिया' (यूएलएफडब्ल्यूएसईए) का गठन किया है। एनएससीएनसीके इसका नेतृत्व कर रहा है। यूएलएफए-आई प्रमुख परेश बरुआ ने एक स्थानीय टीवी चैनल को बताया कि चंदेल में जवानों पर हमला एनएससीएन के प्रमुख एस. एस. खापलांग ने कराया है। जिस तरह से उग्रवादियों ने सीमा पार से प्रवेश कर हमले को अंजाम दिया, उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि थल सेना के लिए अन्तरराष्ट्रीय सीमा को पूरी तरह से सील करना संभव नहीं है। जंगल और पहाड़ों के बीच पगडंडी के रास्ते उग्रवादी भारत की सीमा में घुसकर हमला कर फरार हो जाते हैं।
इसके लिए जरूरी है कि अन्तरराष्ट्रीय सीमा पर 10 से 15 किलोमीटर के क्षेत्र को शून्य आबादी वाला क्षेत्र घोषित कर दिया जाए। इस क्षेत्र में घुसने वाले प्रत्येक व्यक्ति की सेना द्वारा सघन जांच होनी चाहिए। सेना को अत्याधुनिक हथियारों से लैस किया जाए और सीमा पर बिजली की पर्याप्त व्यवस्था की जाए जिससे कि रात के समय भी कोई सीमा पार से प्रवेश न कर सके। साथ ही सेना के हेलीकॉप्टर द्वारा सीमा वाले क्षेत्र पर निगरानी बरती जानी चाहिए।
जांच के दौरान ऐसे संकेत मिले हैं कि उग्रवादियों द्वारा किया गया हमला पूर्व नियोजित था। उन्होंने नक्शे तैयार कर लेकर गश्त करने वाले जवानों की आवाजाही और समय पर पूरी निगरानी बरती थी। कई दिनों तक रेकी करने के बाद ही उग्रवादियों ने जवानों पर हमला किया था और उसके बाद आसानी से वहां से फरार भी हो गए थे। – -जगदम्बा मल्ल
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