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अपनी बात-आइए, योग करें

by
Jun 13, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 13 Jun 2015 13:51:30

संयुक्त अरब अमीरात के विभिन्न उद्यानों में लोग योग कर रहे हैं। 'ओम' से अपने दिन की शुरुआत करने वाले 'योगी' हैदर पाकिस्तान में योग प्रशिक्षुओं से घिरे बैठे हैं। दुबई के प्रसिद्ध जबील पार्क में योग के चाहने वालों का अच्छा-खासा जमघट है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से नौ दिन पहले योग के सामूहिक अभ्यास के लिए यहां करीब 12 हजार लोगों के आने का अनुमान है। ये आंकड़े और दृश्य बताते हैं कि स्वस्थ जीवनशैली ऐसी बात है जिसके लिए विश्व आग्रही और एकमत हो रहा है।
लेकिन दुराग्रहियों की भी अपनी एक अलग ही दुनिया है। कांग्रेस की पूर्व हमजोली एआईएमआईएम द्वारा 'योग दिवस' को मजहबी विरोध के लपेटे में लेने की कोशिश इसी दुनिया का नजारा कराती है। विश्वभर में मुसलमानों के लिए असदुद्ीन ओवैसी के बयानों की अहमियत भले चिंदी भर न हो, सेकुलर ब्रिगेड के लिए यह तानने लायक मुद्दा है। लेकिन ठहरिए, उम्र के लिहाज से योग के सामने सेकुलर शब्द बहुत छोटा है। व्याख्या और परिभाषा तो छोडि़ए जिस वक्त यह शब्द भी अस्तित्व में नहीं था तब भी दुनिया योग कर रही थी। योग मानवता को परस्पर जोड़ने वाला सेतु है।
'वसुधैव कुटुम्बकम्' का भाव रखने वाली संसार की सबसे पुरानी सभ्यता में वैमनस्य और विष के लिए जगह नहीं है। यह मानवीयता के पोषक सूत्रों पर खड़ी है। इस बात से मुट्ठीभर सेकुलरों के पेट में दर्द हो सकता है, लेकिन दुनिया आज इस तथ्य पर एकमत होने की दिशा में बढ़ रही है। जिन 175 देशों ने विश्व मंच पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से जुड़ी भारतीय पहल का स्वागत-अनुमोदन किया उनमें से 40 मुस्लिम बहुल और अधिकांश ईसाई जनसंख्या की प्रधानता वाले देश हैं। खास बात यह कि योग के ऐसे-ऐसे गुणग्राहक विदेशों में हैं जिन्होंने इसे मुहिम के तौर पर बढ़ाया है। अच्छी जीवन पद्धति के लिए यह ऐसा जुनून है जिससे हम भारतीय भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। योग जहां परंपरा और जीवन पद्धति का हिस्सा रहा उस देश में रक्तचाप, हृदयाघात, मधुमेह, अवसाद और तनाव के मामलों का चढ़ता ग्राफ इस बात का संकेतक है कि जीवन पद्धति की शेखी बघारने में हम भले आगे रहे किन्तु अपनी ही ज्ञान परंपरा संजोने-सहेजने में पिछड़ गए। यह जागने का वक्त है।
वैसे, योग भारतीय जीवन परंपरा का हिस्सा और पहचान है, इसे कौन नकार सकता है? यह नकार बाहर नहीं है, स्वीकार्यता घर के भीतर भी बढ़नी चाहिए।
हिंसा और उन्माद की लपटों में घिरी दुनिया को हर जीव में समान चेतना देखने वाला समाज सही राह दिखा सकता है, इस बात से किसकी असहमति है? भारत को इस दिशा में अगुआ बनकर बढ़ना चाहिए।
पंचमहाभूतों का आदर करने वाली प्रकृतिनिष्ठ संस्कृति वायु, जल, प्रकाश, आकाश के प्रदूषण की मार झेलती धरती को राहत पहुंचाने का सबसे सरल रास्ता दिखाती है, इस तथ्य को कौन झुठला सकता है? लेकिन अपने वनों को नष्ट और नदियों को दूषित कर हम संसार के सामने कैसा उदाहरण रख रहे हैं? 21 जून यदि विश्व के लिए अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है तो इसके मायने भारत के लिए रस्मी आयोजन से कहीं ज्यादा हैं। यह उन मान्यताओं और पद्धतियों पर दृढ़ता और पारदर्शिता से कदम बढ़ाने का अवसर है जिनका महत्व दुनिया समझ रही है, किन्तु हम जानते हुए भी भुला बैठे हैं।
 सांस के आने-जाने का क्रम सबके लिए है। सूरज की गर्मी सबके लिए है। अच्छी बातों पर ध्यान, मन को शांत, तन को स्वस्थ रखना जरूरी सबके लिए है। योग सबके लिए है।
योग जोड़ता है। अपने भीतर झांकने, विराट वैश्विक चेतना को अनुभव करने की खिड़की खोलता है। योग संवाद है। आज दुनिया योग के नाम को सार्थक करते हुए जुड़ रही है। संवाद कर रही है। आइए,  उन अच्छी बातों के लिए एक हो जाएं, मिलकर कदम बढ़ाएं जिन बातों में हम सबका, पूरे संसार का भला है। फ्लैट की छत, घर का आंगन, पड़ोस का पार्क या कोई और जगह। हम सबके इंडिया गेट और जबील पार्क हमारे आस-पास ही हैं।
 

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