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नई दिल्ली के फिक्की सभागार में 8 जून को शैक्षिक सम्मेलन आयोजित हुआ। इसका विषय था 'भारत के लिए उच्च शिक्षा नीति के आयाम।' इसका आयोजन हिन्दू शिक्षा बोर्ड ने किया था। सम्मेलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में भारतीयता की भावना का अभाव है। हमें शिक्षा का उद्देश्य ही पता नहीं है। जो राष्ट्र का दर्शन है, वही शिक्षा का भी दर्शन होना चाहिए। राष्ट्र और शिक्षा के दर्शन अलग-अलग नहीं हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता है कि छात्रों को अपने 'स्व' और संस्कृति से जोड़ा जाए और उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान की जाए। उन्होंने शिक्षा पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन पर जोर देते हुए कहा कि देश की शिक्षा प्रणाली में हिन्दू विचारों को आत्मसात करके ही उसे पूर्णता प्रदान की जा सकती है और भ्रम को समाप्त किया जा
सकता है।
सम्मेलन को सम्बोधित करती हुईं केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी ने कहा कि सरकार ने नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए राष्ट्रव्यापी परामर्श शुरू कर दिया है। यहां तक कि गांवों में रहने वाले भारतीयों से भी पूछा जा रहा है कि देश की शिक्षा नीति कैसी होनी चाहिए! लोगों के विचारों को जानने के लिए प्रखण्ड, जिला और राज्य स्तर पर भी कार्य चल रहा है। उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल नीति निर्धारण तक ही सीमित नहीं है, और न ही यह विद्यालयों या विश्वविद्यालयों तक ही सिमटी रहे, यह तो मानवता और समाज के अस्तित्व को परिभाषित करती है। उन्होंने भारत को आगे बढ़ाने में मदद करने करने वाली शिक्षा नीति पर जोर देते हुए कहा कि देश की ताकत प्राचीन अवधारणाओं और मूल्यों में निहित है। मूल्याधारित शिक्षा की प्रशंसा पूरी दुनिया कर रही है, पर दुर्भाग्य से हमारे यहां इसे 'भगवाकरण' कहा जा रहा है।
रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु ने उच्च शिक्षण संस्थानों और उद्योगों के बीच संबंध विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत का उपयोग करके अपनी समस्याओं को हल कर सकता है। उन्होंने कहा, 'मैं नहीं चाहता कि भारतीय विश्वविद्यालय हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पदचिह्नों पर चलें, बल्कि वे अपने मूल्यों का अनुकरण करें।'
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कपिल कपूर ने शिक्षा को लोकतंत्रात्मक और संघात्मक बनाने पर जोर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा भारतीय भाषाओं में दी जानी चाहिए और शहरों और गांवों में पर्याप्त शैक्षिक संस्थान होने चाहिए। उन्होंने कहा कि ज्ञान केवल 'शक्ति' न हो, वह 'शुद्ध' भी हो।
वी़ आई़ टी़ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. जी़ विश्वनाथन ने शिक्षा प्रणाली में और अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि व्यावसायिक क्षेत्र में 'इंस्पेक्टर' राज 1991 में ही समाप्त हो गया है, लेकिन शिक्षा क्षेत्र में यह अभी भी जारी है। उन्होंने यह भी कहा कि उच्च शिक्षा संस्थानों के निर्माण में क्षेत्रीय असंतुलन को समाप्त किया जाना चाहिए। भारतीय शिक्षण मंडल के संयुक्त सचिव श्री मुकुल कानिटकर ने शिक्षा प्रणाली में मौजूद आपसी तालमेल के अभावों की बात की। उन्होंने कहा कि 'राष्ट्रीय योजना' और 'शिक्षा योजना' के बीच तालमेल नहीं है। हम देश की आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा प्रदान करने में विफल रहे हैं। केवल स्नातक तैयार करने से काम नहीं चलेगा, कौशल को बढ़ावा देना होगा और अधिक से अधिक व्यावहारिक शिक्षा देनी होगी। उन्होंने कहा कि शिक्षा के बारे में लोगों को जगाने की कोई जरूरत नहीं है, उनमें पर्याप्त जागृति है। लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए लालायित हैं।
इस अवसर पर शिक्षाविद् प्रोफेसर अनिरुद्ध देशपांडे, डॉ. नरेन्द्र फौजदार, श्री टी. वी. मोहनदास पई, प्रोफेसर सतीश मोध, प्रोफेसर पी़ बी़ शर्मा, डॉ. मनोहर शिंदे, प्रोफेसर एम.सी. मिश्रा आदि उपस्थित थे। – प्रतिनिधि
* आज आवश्यकता है कि छात्रों को अपने 'स्व' और संस्कृति से जोड़ा जाए और उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान की जाए।
-डॉ. कृष्णगोपाल, सहसरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
* शिक्षा मानवता और समाज के अस्तित्व को परिभाषित करती है।
-स्मृति ईरानी
केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री
* उच्च शिक्षण संस्थानों और उद्योगों के बीच संबंध विकसित करने की आवश्यकता है।
-सुरेश प्रभु, रेल मंत्री
* भारतीय विश्वविद्यालय हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पदचिह्नों पर न चलें, बल्कि वे अपने मूल्यों का अनुकरण करें।
-जयंत सिन्हा, वित्त राज्यमंत्री
* शिक्षा भारतीय भाषाओं में दी जानी चाहिए और शहरों और गांवों में पर्याप्त शैक्षिक संस्थान होने चाहिए।
प्रो. कपिल कपूर, कुलपति, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय
* केवल स्नातक तैयार करने से काम नहीं चलेगा, कौशल को बढ़ावा देना होगा और अधिक से अधिक व्यावहारिक शिक्षा
देनी होगी।
– मुकुल कानिटकर
संयुक्त सचिव, भारतीय शिक्षण मंडल
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