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पड़ोस : बंगलादेशी हिन्दुओं की सुरक्षा पर हो बात

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Jun 6, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Jun 2015 14:04:43

 विवेक शुक्ला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बंगलादेश की बेहद अति विशिष्ट यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सड़क एवं संचार संपर्क, सुरक्षा, ऊर्जा, पारागमन, लोगों के आपसी संपर्क और व्यापार पर कई महत्वपूर्ण समझौते होने जा रहे हैं। तीस्ता विवाद के हल की भी उम्मीद जताई जा   रही है।
चरमपंथियों का असर
बेहतर होगा कि प्रधानमंत्री भारत के पड़ोसी देश बंगलादेश में इस्लामिक चरमपंथियों के बढ़ते असर और वहां पर अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर लगातार होने वाले हमलों के मुद्दों को भी उठाएं। बंगलादेश में कुछ समय पहले अमरीकी ब्लॉगर अविजित रॉय की निर्मम हत्या और उनकी पत्नी पर हुए जानलेवा हमले से वहां पर इस्लामिक चरमपंथियों के बढ़ते असर का एहसास हो रहा है। यही नहीं, वहां पर पंथनिरपेक्ष ताकतों और अल्पसंख्यक हिन्दुओं के लिए जीवन के सभी क्षेत्रों में स्थान घट रहा है। अविजित रॉय बंगलादेश मूल के अमरीकी नागरिक थे। वे हिन्दू थे और बंगलादेश में कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ अपने ब्लॉग के जरिए आवाज बुलंद कर रहे थे।
अविजित रॉय और उनकी पत्नी के साथ जो कुछ ढाका में हुआ उससे साफ है कि पंथनिरपेक्ष बंगलादेश का सपना अभी दूर की संभावना है। बंगलादेश की हसीना सरकार का यह परीक्षण होगा कि वह अपने देश में  अल्पसंख्यकों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए सख्ती से पहल करें। खैर, प्रधानमंत्री शेख हसीना के निमंत्रण पर पड़ोसी देश बंगलादेश की पहली यात्रा पर जांएगे तो वह अति विशिष्ट तो होगी ही। बेशक, इस यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंधों को नई दिशा भी मिलेगी। इस दौरान वहां पर हिन्दुओं के सूरते-हाल पर भी बात हो जाए तो क्या बुराई है।
नाकाम हसीना सरकार
बंगलादेश में शेख हसीना वाजेद के प्रधानमंत्री बनने के बाद उम्मीद थी कि अवामी पार्टी सरकार हिन्दुओं के जान-माल की रक्षा करेगी, लेकिन इसके विपरीत उन पर हमले तेज हो गए। राजशाही, जेसोर और  दीनाजपुर आदि में हिन्दुओं पर हमले बढ़ गए हैं। उनकी संपत्ति को हानि पहुंचाई जा रही है। उत्तरी बंगलादेश के कुछ इलाके और दक्षिणी हिस्से के कई गांवों में हिन्दुओं के खिलाफ हुई हिंसा के बाद 100 से भी ज्यादा हिन्दू परिवार अपना घर छोड़कर भाग गए। ये वास्तव में बेहद निराशाजनक है कि बंगलादेश सरकार हिन्दुओं की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पा रही है।
वहां के हिन्दुओं को जिहादी कसाइयों का आसान ग्रास बनने से बचाना होगा। इस बाबत अंतरराष्ट्रीय बिरादरी और भारत सरकार को सक्रिय होना होगा। भारत सरकार इस बात को सुनिश्चित करे कि बंगलादेश की धरती पर हो रहे जिहादियों के आतंक को रोका जाए और जो लोग वहां से पलायन को मजबूर हैं, उन्हंे सीमा पर ही 'सीमा सुरक्षा बल' के शिविरों के द्वारा सुरक्षा व सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। बंगलादेश में जेसोर, देबीगंज, राजशाही, मोईदनारहाट, शांतिपुर, प्रोधनपारा और आलमनगर में हिन्दुओं पर सर्वाधिक अत्याचार हो रहे हैं। कुछ समय पहले वहां बंगलादेश के खुलना शहर में एक काली मंदिर को तोड़ने की कोशिश हुई। शरारती तत्वों ने इसे आग के हवाले कर दिया था। 2011 की जनगणना के बाद वहां देश की कुल आबादी में मात्र 8 फीसद ही हिन्दू रह गए हैं।
सक्रिय पंथनिरपेक्ष ताकतें
 हालांकि पाकिस्तान के विपरीत एक संतोष की बात ये है कि वहां पर अब भी कुछ लोग हिन्दुओं और पंथनिरपेक्ष ताकतों पर हमला करने वालों के विरुद्ध खडे़ हो जाते हैं। कुछ समय पहले सभी ने अखबारों और टीवी में उन तस्वीरों को जरूर देखा होगा कि जिसमें बंगलादेश में मीरपुर के कसाई कट्टरपंथी इस्लामी नेता अब्दुल कादिर मुल्ला को फांसी देने के न्यायालय के फैसले के बाद बड़ी संख्या में लोग ढाका की मुख्य सड़कों पर अपनी खुशी और संतोष प्रकट कर रहे हैं। उन लोगों के चेहरों के भाव को आप पढ़ सकते हैं। कुछ इस तरह से लग रहा है कि मानो एक लंबी हसरत पूरी हो गई हो। उसके बाद मीरपुर के कसाई को फांसी मिलने के बाद जो माहौल बना, उससे साफ है कि बंगलादेश चार दशक से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद भी उन कसाइयों को भूला नहीं है, जिन्होंने अपने ही देशवासियों का कत्लेआम करवाया था। इन देशवासियों में ज्यादातर हिन्दू ही थे। मुल्ला उन पांच नेताओं में से थे जिन्हें बंगलादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने फांसी की सजा दी थी। इस न्यायाधिकरण की स्थापना 1971 के संघर्ष के दौरान हुए अत्याचारों की जांच हेतु वर्ष 2010 में की गई थी। कुछ अनुमानों के मुताबिक 1971 के अत्याचारों में 30 लाख लोगों की मौत हुई थी।
जमात पर पाबंदी
 मुल्ला के बहाने बंगलादेश की जमात-ए-इस्लामी को जानना जरूरी है। जमात-ए-इस्लामी बंगलादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बंगलादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) की साझेदार है। 1970 के दशक में शेख हसीना के पिता और बंगलादेश के संस्थापक कहे जाने वाले शेख मुजीबुर रहमान ने जमात पर पाबंदी लगाई थी। लड़ाई में पाकिस्तान की मदद करने की वजह से यह प्रतिबंध लगाया गया। 1975 में रहमान की हत्या के बाद बंगलादेश की सैन्य सरकार ने प्रतिबंध को रद्द कर दिया। जमात-ए-इस्लामी का गठन 1941 में मुस्लिम मजहबी विशेषज्ञ अबु आला मुआदूदी ने किया।  
जमात ने मानवता के साथ कत्लेआम किया था 25 मार्च,1971 को। उस काली रात की मिसालें दुनिया के इतिहास में बहुत कम दिखाई देती हैं। पाकिस्तानी फौजों ने इसी रात 'सर्च लाइट ऑपरेशन' शुरू किया और एक रात में 10 हजार से ज्यादा लोग मौत के घाट उतार दिए गए। सर्च लाइट ऑपरेशन  पाकिस्तानी सेना के अकेले के बस की बात नहीं थी, लिहाजा फौरन जमात-ए-इस्लामी ने अपनी भूमिका निभानी शुरू कर दी। गैर-मुसलमानों(पढ़े हिन्दू) तथा बुद्धिजीवियों की पहचान करने में मुल्ला और उसके साथियों ने बड़ी भूमिका निभाई। महत्वपूर्ण है कि खून का यह खेल जो ऑपरेशन सर्च लाइट से शुरू हुआ तो 14 दिसंबर, 1971 तक लगातार चलता ही रहा। 30 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई और लगभग तीन लाख महिलाएं बलात्कार का शिकार हुइंर्। बंगलादेश मुक्तिवाहिनी की खिलाफत करने और मौत का तांडव रचने में किसी और का नहीं जमात-ए-इस्लामी का ही हाथ था। उसने हिन्दुओं का वहां पर बड़ी बेरहमी से कत्ल किया था।         ल्ल 

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