|
श्री शरद लघाटे नहीं रहे
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक, विश्व हिन्दू परिषद् के पदाधिकारी तथा 'पत्र यात्री' के नाम से विख्यात श्री शरद लघाटे का 31 मई को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में निधन हो गया। 75 वर्षीय श्री लघाटे पिछले कुछ समय से मधुमेह से पीडि़त थे। उसी दिन दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ। श्री शरद लघाटे का जन्म 12 अक्तूबर, 1940 को इगतपुरी (महाराष्ट्र) में श्री दत्तात्रेय एवं श्रीमती सुशीला देवी के घर हुआ था। उनके पिताजी रेलगाड़ी के चालक थे। मूलत: कोंकण निवासी यह परिवार बाद में ग्वालियर आ गया। श्री लघाटे 1958 में प्रचारक बने। सर्वप्रथम उन्हें मुरैना नगर और दो वर्ष बाद वहीं जिला प्रचारक की जिम्मेदारी दी गई। इसके बाद उन्हें मंदसौर जिले का काम दिया गया। पूरे जिले में वे साइकिल से घूमते थे। मंदसौर में वे कई वर्ष रहे। आपातकाल के बाद वे भोपाल में ही रहकर प्रांत कार्यवाह इसराणी जी के सहायक के नाते उनका पत्र-व्यवहार देखने लगे। बाद में उन्हें विश्व हिन्दू परिषद् के काम से मुंबई भेजा गया। जहां उन्होंने 'संस्कृति रक्षा निधि' का कार्य देखा। इसके बाद उन्हें दिल्ली में केन्द्रीय कार्यालय बुलाया गया और वे यहां का आर्थिक लेखा-जोखा देखने लगे। अध्ययनशील होने के कारण शरद जी को 'सम्पादक के नाम पत्र' लिखने का शौक था। वे हिन्दी, अंग्रेजी तथा मराठी के पत्रों में चिट्ठियां लिखते थे। धीरे-धीरे उन्होंने इसे एक विधा का रूप दे दिया और 'मेरी पत्र-यात्रा' नामक पुस्तक बना दी, जो सभी नए पत्र लेखकों के लिए मार्गदर्शक है। ल्ल प्रतिनिधि
श्री मोहन कुकिलिया का निधन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री मोहन कुकिलिया नहीं रहे। 3 जून को कोच्चि में उन्होंने अन्तिम सांस ली। वे 87 वर्ष के थे और करीब एक वर्ष से बीमार थे। वे स्वयंसेवकों के बीच मोहनजी के नाम से जाने जाते थे। मोहनजी केरल में पहले कार्यालय प्रमुख और व्यवस्था प्रमुख थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कॉरपोरेशन बैंक में नौकरी शुरू की। 1969 में उन्होंने बैंक की नौकरी छोड़ दी और संघ कार्य में लग गए। उन्होंने लगभग तीन दशक तक केरल के अनेक हिस्सों में संघ कार्य किया और अनेक दायित्वों को निभाया। वे अनेक संगठनों से भी जुड़े थे। ल्ल प्रतिनिधि
टिप्पणियाँ