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शिक्षा माने क्या? भारी बस्तों में मोटी-मोटी किताबें लेकर स्कूल-कॉलेज जाना और वहां नोट्स बनाकर परीक्षा में अच्छेे अंकों की जुगत में भिड़ जाना ही क्या शिक्षा है? या शिक्षा का मतलब है कोचिंग सेन्टरों मंे मोटी रकम देकर जवाबों को रट लेना और 90-95 प्रतिशत अंक लेकर कॉलोनी में सीना तानकर इस अकड़ के साथ चलना कि है कोई हमसे ज्यादा पढ़ाकू ? आज के भौतिक संदर्भों में तो शायद इस जंजाल को अच्छे नंबरों से पार कर जाना ही पढ़ा-लिखा, शिक्षित होने की निशानी माना जाता है। उसी का मोल भी ऊंचा माना जाता है।
लेकिन इस प्रक्रिया के पार का संसार ज्यादा अर्थ रखता है एक व्यक्ति के जीवन में। अर्थ, समाज और देश के संदर्भ में। खुद ऊंचे दर्जे की पढ़ाई करके मोटी तनख्वाह पर किसी एम.एन.सी. में नौकरी बजाना एक बात है, लेकिन अपनी शिक्षा से दूसरों के जीवन को आलोकित करना एक सर्वथा भिन्न और सराहनीय बात है। समाज में ऐसे लोगों की काफी संख्या है जो तमाम कष्टों और अभावों के बीच राह बनाते हुए पर-हित में अपना जीवन होम कर रहे हैं, प्रचार और टीम-टाम से दूर, छोटी सी किरण से अभावग्रस्त, बेसहारा गरीब बालकों का जीवन रोशन कर रहे हैं, या विधवाओं में रोजी-रोटी कमाने, अपने पैरों पर खड़े होने का सामर्थ्य पैदा कर रहे हैं। सनातन पथ के संस्कारों में पगे ऐसे कितने ही लोगों से पाञ्चजन्य ने संपर्क किया और उनके सद्प्रयासों की जानकारी ली। उनमें से कुछ चुनिंदा लोगों के प्रेरक जीवन-परिचय में गुंथा है इस बार का हमारा यह आयोजन।
प्रस्तुति : राहुल शर्मा, आदित्य भारद्वाज एवं अश्वनी मिश्र
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