|
भारत युवाओं का देश है। आने वाला समय भारत का है। तमाम लोग, यहां तक कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बार बार यही बात दोहराते हैं। किसी भी देश की तरक्की उस देश के युवाओं के हाथ में होती है। यदि युवा चाहे तो देश की दिशा और दशा दोनों बदल सकते हैं। हम भी कुछ नया करने की आकांक्षा मन में लिए अपने काम में जुटे हैं। मैं जब 22 वर्ष का था तो अपने तीन दोस्तों के साथ मिलकर एक छोटी सी कंपनी की शुरुआत की। मैंने सूचना तकनीकी (आईटी) से इंजीनियरिंग की है जबकि कंपनी में बराबर के साझेदार मेरे तीनों मित्र श्रेयस उपासने, शशांक सक्सेना और शशांक त्यागी भी इंजीनियर ही हैं।
शशांक सक्सेना ने कंप्यूटर साइंस, शशांक त्यागी और श्रेयस ने इलेक्ट्रानिक्स से इंजीनियरिंग की है। वर्ष 2010 में जब मैं इंजीनियरिंग के द्वितीय वर्ष का छात्र था तो छोटी-छोटी आईटी कंपनियों से प्रोजेक्ट लेकर उस पर काम करता था। इस बीच एक कंपनी से बड़ा प्रोजेक्ट मिला, जिसमें इलेक्ट्रानिक्स का काम ज्यादा था। इसलिए मैंने अपने मित्र शशांक सक्सेना से संपर्क किया और उसके माध्यम से बाकी लोगों से मिला। वर्ष 2011 में हम चारों मित्रों ने मिलकर 'अतरिम इलेक्ट्रानिक्स प्राइवेट लिमिटेड' नाम से कंपनी का पंजीकरण करा लिया। हमारी कंपनी दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाले छोटे-छोटे इलेक्ट्रोनिक डिवाइस बनाने का काम करती है।
वैसे मेरे मित्रों ने कॉलेज के दिनों में ही इस कंपनी का खाका तैयार कर लिया था। 'मिनिस्ट्री ऑफ माइक्रो स्माल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज' ने हमारी कंपनी द्वारा बनाए गए तीन उपकरणों 'स्मार्ट पावर सेवर, टयूवैल ऑटोमेशन सिस्टम और अलर्ट एक्सीडेंट सिस्टम' के लिए 20 लाख रुपए का अनुदान भी दिया। इससे हम सभी को और बल मिला और कुछ नया करने की प्रेरणा भी मिली। कुछ नया करने के उद्देश्य को लेकर हमने कंपनी की शुरुआत की। मैं और मेरे मित्र नित कुछ नया करने का प्रयास करते हैं। ऐसा नहीं है कि इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी का अवसर नहीं मिला। इंडियन नेवी समेत कई बड़ी आईटी कंपनियों में चयन हुआ, लेकिन नौकरी करनी ही नहीं थी। करना था तो सिर्फ अपना कुछ काम। मुझे और मेरे सभी मित्रों को कुछ नया करने धुन सवार थी इसलिए कंपनी बनाई। बल्कि श्रेयस तो इंजीनियरिंग में आगे पढ़ाई के लिए दो वर्ष विदेश में भी रहा। इस दौरान उसे कई अच्छी नौकरियों के मौके मिले लेकिन पढ़ाई पूरी के वह फिर वापस लौट आया और कंपनी को आगे बढ़ाने में फिर से जुट गया।
फिलहाल कंपनी में चार संस्थापक सदस्यों के अलावा आठ लोग नौकरी करते हैं। कंपनी का सालाना टर्नओवर करीब 50 लाख रुपए है। विदेशों की कई कंपनियों से करार हैं। इसकेतहत हम उन्हें उपकरण बनाकर देते हैं। चारों मित्रों ने आपस में काम बांटा हुआ है। मैं कंपनी के वित्त मामले, बिजनेस डेवलपमेंट का काम देखता हूं। श्रेयस और शशांक सक्सेना रिसर्च और तकनीकी काम देखते हैं, जबकि शशांक त्यागी कंपनी में 'ऑपरेशन' का सारा काम देखते हैं। हमारी कंपनी में हम हर उस युवा का स्वागत करते हैं जिसके पास कुछ नया 'आइडिया' हो। यदि हमारे साथ कोई जुड़ना चाहता है तो हम उसका स्वागत करते हैं, बशर्ते सामने वाले में कुछ नया करने का जज्बा हो। पिछले चार वर्षों से हमारी कंपनी को लगातार काम मिल रहा है। हर वर्ष कंपनी का लाभ बढ़ रहा है और हमें बाजार से सकारात्मक जवाब न मिला हो। ल्ल
निर्णायक मोड़ – इंजीनियरिंग में दाखिला लेने के दौरान ही मैंने सोच लिया था कि पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी नहीं करनी है। मेरे सभी मित्रों की सोच यही थी।
प्रेरणा- तमाम बड़े उद्यमियों को देखने से पता लगा कि जिसने कुछ नया किया वही बड़ा बना। चाहे वह बिल गेट्स हों या अजीम प्रेमजी।
विजय मंत्र – कुछ भी नया करने से पहले हमेशा शोध करना चाहिए। योजनाएं तभी सफल होती हैं, जब योजना को क्रियान्वित करने से पहले उस पर विचार हो।
संदेश – अनपढ़ वह नहीं है जो पढ़ना लिखना नहीं जानता, बल्कि अनपढ़ वह है जो कुछ जानने के बाद उसे भूलकर कुछ नया सीखने की कोशिश न करे।
टिप्पणियाँ