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पाञ्चजन्य के पन्नों से
(निज प्रतिनिधि द्वारा)
जौनपुर। 'कुछ लोग अनुशासन की कार्यवाही की बात करते हैं। मैं उसका स्वागत करता हूं। पर, मैं यह चाहूंगा कि सबसे पहले उन चार सदस्योंं के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही हो जिन्होंने साम्प्रदायिकता के आवेश में आकर विधान परिषद की सदस्यता के लिए कांग्रेस के आदेश के विरुद्ध वोट दिया। उन सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही हो, जिन्होंने मेरे विरुद्ध बिना कांग्रेस की आज्ञा के सीधे सरकार के पास चुंगी अधीक्षक के प्रश्न पर पत्रक भेजा।' ये शब्द हैं उस पत्र के जो जौनपुर नगरपालिका के कांग्रेसी अध्यक्ष श्री रामेश्वर प्रसाद सिंह ने कांग्रेसी सदस्यों द्वारा लगाए गए आरोपों का उत्तर देते हुए लिखा है।
गत 27 जून को पालिका के चुंगी के अध्यक्ष की नियुक्ति के प्रश्न पर 5 कांग्रेस सदस्यों तथा जनसंघ दल ने पालिका अध्यक्ष के मत का समर्थन किया जब कि अन्य कांग्रेसी सदस्यों ने विरोध किया था और बाद में पालिका अध्यक्ष पर आरोप लगाया था कि वह 'जनसंघी' हैं। विचारार्थ समस्त बातें प्रदेश कांग्रेस के समक्ष प्रस्तुत की जा चुकी हैं। श्री सिंह के वक्तव्य से पता चलता है कि कांग्रेस किस दिशा में जा रही है। श्री सिंह के पत्र के कुछ अंश यहां उद्घृत किए जा रहे हैं। 'नगर निवासी जानते हैं कि मुसलमान की जगह मुसलमान का नारा बुलंदकर कांग्रेस दल में दरार डाली गई है। . . . . चुंगी अधीक्षक के प्रश्न पर दुर्भाग्यवश बोर्ड में प्रारम्भ से ही मतभेद था। पुराने चुंगी अधीक्षक मुहम्मद हनीफ, खां के प्रशंसक आरम्भ में यह चाहते थे कि उनका कार्यकाल बढ़ा दिया जाए। पर मैं इसके पक्ष में नहीं था। बोर्ड के सभी मुस्लिम सदस्यों तथा 4 हिन्दू सदस्यों ने मेरा गला दबाकर सरकार को यह पत्र लिखवाया कि उनका कार्यकाल बढ़ा दिया जाए। परन्तु सरकार ने उसे अस्वीकार कर दिया। पुराने चुंगी अधीक्षक हटे और उसी दिन से मेरे विरुद्ध नारा बुलंद किया गया। मुझसे बार बार कहा गया कि मुसलमान की जगह मुसलमान को दी जाए और बोर्ड के ही दो कर्मचारियों का नाम आगे रखा गया। मैंने इस पद के लिए स. पत्र में आवश्यकता छपवाई। ''
पंजाब सरकार की हिन्दी-नीति घातक तथा दुर्भाग्यपूर्ण
सेठ गोविन्ददास द्वारा अंग्रेजी की वकालत हिंदी के प्रति विश्वासघात
जनसंघ के महामंत्री श्री उपाध्याय का वक्तव्य
रायपुर। भारतीय जनसंघ के महामंत्री श्री दीनदयाल उपाध्याय ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि पंजाब में हिंदी आंदोलन यदि पुन: हुआ तो वह अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण होगा तथा इसका मुख्य कारण आंदोलन वापिस लेने से उत्पन्न स्थिति का लाभ उठाने में सरकार की असफलता ही होगा। 19 और 20 जुलाई को बम्बई में भारतीय जनसंघ की कार्यकारिणी हिन्दी आंदोलन के सम्बन्ध में अपना रुख निश्चित करेगी।
श्री उपाध्याय ने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्य का विषय है कि पंजाब सरकार द्वारा अपने आश्वासनों का पालन नहीं किया जा रहा है। भारत सरकार को तत्काल इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए। गृहमंत्री पं. गोविन्दवल्लभ पंत के हस्तक्षेप पर ही हिन्दी रक्षा आंदोलन वापिस लिया गया था तथा प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा गृहमंत्री पंडित पंत स्वयं अनेकानेक बार कह चुके हैं कि आंदोलन की 60 प्रतिशत मांगें स्वीकार की जा चुकी हैं।
जनसंघ के महामन्त्री श्री दीनदयाल उपाध्याय ने आगे कहा कि 60 प्रतिशत मांगे स्वीकार करना ही पर्याप्त नहीं है। आवश्यक यह है कि स्वीकृत मांगों को कार्यान्वयन में परिक्षित किया जावे। इन समस्त आवश्यकताओं को पूर्ण करने की जिम्मेदारी भारत सरकार पर है तथा भारत सरकार को समस्त आश्वासनों को कार्योन्वित करने के लिए पंजाब सरकार पर दबाव डालना चाहिए। अखिल भारतीय जनसंघ की कार्यकारिणी यही विचार करेगी कि समस्त आश्वासनों को पूर्ण करवाने के लिए कौन सा मार्ग अपनाया जाए।
सेठ गोविन्ददास द्वारा हिन्दी के प्रति विश्वासघात
संसद सदस्य सेठ गोविन्ददास द्वारा हिंदी के सम्बन्ध में हाल ही में मद्रास में दिए गए वक्तव्य की चर्चा करते हुए आपने कहा कि बाबू गोविन्ददास का यह वक्तव्य कि अंग्रेजी को 1965 के पश्चात् भी रखा जावे, अत्यन्त आश्चर्यजनक है तथा यह बिना किसी कारण व्यर्थ ही हिन्दी के प्रति उनका विश्वासघात है। यथार्थ में 1965 के पश्चात अंग्रेजी को बनाए रखने का कोई कारण नहीं है।
श्री उपाध्याय ने कहा कि अभी हाल ही के उपचुनावों में जनसंघ विजय यह स्पष्ट करती है कि आम चुनाव के पश्चात् जनसंघ की स्थिति और दृढ़ हुई है। तथा यह विजय जनसंघ के प्रति जनता के विश्वास की प्रतीक है। श्री उपाध्याय ने कहा कि विधानपरिषदों के चुनावों में अथवा अन्य चुनावों में जनसंघ सदैव अन्य विरोधी दलों चुनाव व्यवस्था करने का समर्थक रहा है।
श्री उपाध्याय ने कहा कि अखिल भारतीय जनसंघ द्वारा समस्त प्रांतीय शाखाओं को आदेश दिया गया है कि अपने अपने क्षेत्र की स्थानीय समस्याओं के समाधान सार्वजनिक हित में करावें। इस दृष्टि से आवश्यक कार्यक्रम बनाने का कार्यप्रांतीय शाखाओं को ही सौंपा गया है।
दिशाबोध
भर्ती के लिए न हो भाषा विशेष के ज्ञान की बाध्यता
केन्द्र में अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी के प्रयोग में शासन की नीति के कारण बराबर कठिनाइयां रही हैं। यह खेद का विषय है कि कांग्रेस शासन ने इस दिशा में सकारात्मक पग उठाने की बजाए विवाद और आशंकाएं पैदा करने का ही काम किया है। जनसंघ ऐसे किसी कदम का समर्थक नहीं जिससे हिन्दी न जानने वालों को किसी भी अधिकार से वंचित रहना पड़े। इस हेतु जनसंघ ने यह मांग की है कि संघ सेवा आयोग की सभी परीक्षाएं प्रादेशिक भाषाओं के माध्यम से हों तथा भर्ती के लिए किसी भी भाषा विशेष के ज्ञान की बाध्यता न रहे। संक्रमण काल में जो अंग्रेजी का प्रयोग करना चाहें उन्हें भी सुविधा दी सकती है।
(पंडित दीनदयाल उपाध्याय: विचार दर्शन, खंड -7 पृष्ठ संख्या 85)
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