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देश में कुछ ऐसे शिक्षण केन्द्र हैं जहां आधुनिक शिक्षा तो दी जाती है लेकिन परंपराओं पर आधारित संस्कारप्रद वातावरण भी छात्र के जीवन को चहुंमुखी विकास प्रदान करता है। परिसर में सुबह वेद की ऋचाएं गूंजती हैं तो कक्षाओं में गणित और विज्ञान की पढ़ाई होती है। पढि़ए ऐसे ही चार अनूठे विद्यालयों का संक्षिप्त विवरण जो शिक्षा के किताबी घेरे से परे विद्यार्थियों को संस्कार और जीवन की सही दिशा देने में जुटे हैं।
गीता निकेतन आवासीय विद्यालय, कुरुक्षेत्र
21 जनवरी, 1973 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक पूज्य श्रीगुरुजी द्वारा कुरुक्षेत्र में स्थापित गीता निकेतन आवासीय विद्यालय विद्या भारती द्वारा संचालित है। यह भारतीय परंपरा और नैतिकता के साथ छात्रों को आधुनिक एवं गुणवत्तापरक शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए विख्यात है। इस विद्यालय ने न केवल 100 फीसद उत्तीर्णता का रिकॉर्ड बरकरार रखा है अपितु 10वीं-12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होने वाले 80 फीसद से अधिक परीक्षार्थी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होते हैं। कई विद्यार्थी जेईई, एनटीएसई, एमएसटी, एआईपीएमटी, एआईईईई और एडीए आदि परीक्षाओं में स्थान बना लेते हैं। विद्या भारती में शारीरिक शिक्षा, योग, संगीत, संस्कृत और कम्प्यूटर आदि विषयों को अध्यापन सूची में रखा गया है, जिनके बिना भारतीय विद्यालयों में बच्चे के चरित्र निर्माण और बहुआयामी विकास के लिए शिक्षण संभव नहीं है। सभी छात्रों के लिए शारीरिक और खेल प्रतियोगिता आवश्यक है। शरीर और बुद्धि को सशक्त बनाने के लिए योग प्रशिक्षण भी दिया जाता है। संस्कृत को छठी से कक्षा दस तक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। कम्प्यूटर शिक्षण के लिए विद्यालय में पूरी व्यवस्था की गई है। ल्ल
प्रबोधिनी गुरुकुल- शिमोगा, कर्नाटक
मानव संसाधन को विकसित करने के उद्देश्य से स्थापित यह संस्थान परंपरागत भारतीय मेधा के आधार पर आधुनिक ज्ञान देकर छात्रों को तैयार करता है। इस गुरुकुल में छात्रों के ऊपर किताब या पाठ्यपुस्तकों का बोझ नहीं है और न ही उनके अभिभावक ऊंची फीस और 'दान राशि' के तनाव में रहते हैं। यहां ज्ञान चारदीवारियों में बंद कमरों में नहीं, खुले में दिया जाता है। प्रत्येक वर्ष 9-10 वर्ष आयु समूह के 15-20 लड़के यहां प्रवेश लेते हैं। छह वर्ष की शिक्षण अवधि को छह गणों-श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, प्रतिभा, धृति और धीहि में विभक्त किया गया है। छह वर्ष की समाप्ति के बाद छात्र स्वतंत्र रूप से एसएलसी की परीक्षा देता है। इस प्रकार कुल 86 विद्यार्थी इस परीक्षा में अब तक उत्तीर्ण हो चुके हैं। इस गुरुकुल में पंचमुखी शिक्षा- वेद, विज्ञान, योग, कृषि और ललित कलाओं का शिक्षण दिया जाता है। इसके साथ ही वे खिलौने बनाते हैं और जैविक सब्जियों का उत्पादन करते हैं। ल्ल
गुरुकुल कुरुक्षेत्र, कुरुक्षेत्र
एक शताब्दी पुराना गुरुकुल कुरुक्षेत्र किसी परिचय का मोहताज नहीं है। आर्य प्रतिनिधि सभा, रोहतक द्वारा संचालित यह गुरुकुल शिक्षा की गुणवत्ता और मूल्य आधारित शिक्षण के लिए प्रसिद्ध है। इस शिक्षण केन्द्र को महान स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक सरोकारों के लिए समर्पित स्वामी श्रद्धानंद ने 13 अप्रैल 1912 में स्थापित किया था। शिक्षण संस्थान आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा प्रवर्तित आदर्शों एवं जीवन मूल्यों के आधार पर चलाया जाता है। परंपरागत और आधुनिक दोनों संस्कृतियों को साथ लेकर चलने वाला यह संस्थान देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों से आने वाले हजारों छात्रों के जीवन में ज्ञान की लौ जला रहा है। गुरुकुल के प्रधानाचार्य डॉ. वेदव्रत आचार्य के अनुसार, यहां वर्तमान में 5वीं से 12वीं कक्षा तक लगभग 1400 विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं। गुरुकुल का मुख्य ध्येय यह है कि विद्यार्थी स्वयं को अज्ञान, अंध आस्था और अंध विश्वास से बचाते हुए,ऊंची सोच रखें। इसके साथ ही सांस्कृतिक सभ्यता और समाज उत्थान के लिए जागरूकता एवं सकारात्मकता का भाव जागरण करने के उद्देश्य से यहां शिक्षा दी जाती है। यहां धार्मिक, नैतिक और संस्कृत भाषा की शिक्षा सभी छात्रों के लिए अनिवार्य है। इसके साथ ही वैदिक विषयों के अध्ययन के लिए एक अलग शाखा खुल गई है। अष्टांग योग के प्रायोगिक ज्ञान के लिए यहां पूरा ढांचा मौजूद है। परंपरागत और आधुनिक दोनों ही खेलों, जैसे मलखंभ, दण्ड, तलवार, भाला फेंकना, हॉकी, फुटबॉल, बॉलीबाल, जिम्नास्टिक, ऐथलेटिक्स, मार्शल आर्ट, शूटिंग इत्यादि के प्रोत्साहन की पूरी सामग्री उपलब्ध है। छात्रों में सांस्कृतिक कौशल विकास हेतु प्रत्येक सप्ताह बालसभा आयोजित की जाती है। यहां एक गोशाला है जहां से प्रतिदिन छह सौ लीटर दूध मिलता है। ल्ल
मैत्रेयी गुरुकुलम, कर्नाटक
1994 में हिन्दू सेवा प्रतिष्ठान की इकाई अजेय ट्रस्ट द्वारा दक्षिण कन्नड़ जिले के बांतवाल तालुक के अन्तर्गत विट्ठला से चार किलोमीटर दूर मूरकाजी गांव में इस गुरुकुलम की स्थापना की गई है। समय के घात से जो परंपरागत वैदिक नारी शिक्षण समाप्त हो गया था उसको पुनर्जीवित करने के लिए यह गुरुकुलम बनाया गया है। यहां परंपरागत ज्ञान को आधार बनाकर आधुनिक शिक्षा दी जाती है। चारों ओर से अध्ययन परिसर हरे-भरे विशाल पेड़ों से घिरा है जहां न तो श्यामपट्ट की औपचारिकता है और न ही चॉक या डस्टर की। निर्बाध रूप से मौखिक पद्धति द्वारा निरंतर अभ्यास चलता है। इसमें ज्यादातर छात्राएं ग्रामीण क्षेत्रों से आती हैं। बिना जाति, वर्ग के दस वर्ष की आयु की छात्राओं के लिए यहां प्रवेश खुला है। एक बैच में 20 छात्राएं ली जाती हैं। अध्ययन का माध्यम कन्नड़ भाषा है और इसके साथ ही संस्कृत का सामान्य ज्ञान आवश्यक है। यहां भी पंचमुखी शिक्षा पद्धति- वेद, योग, कला-कौशल, विज्ञान और कृषि का अध्ययन बिना औपचारिक परीक्षण और परीक्षा के होता है। ज्ञानावलोकन पद्धति की अवधारणा के आधार पर विद्यार्थी स्वयं प्रश्न तैयार करते हैं और आचार्य उनका समाधान करते हैं। मैत्रेयी गुरुकुलम के विभिन्न पाठ्यक्रमों में 89 छात्राएं हैं, 112 यहां से उत्तीण हो चुकी हैं। एक छोटे से प्रयोग के द्वारा आरंभ इस गुरुकुलम में आज प्रदेश के विभिन्न जिलों के अलावा मध्य प्रदेश से भी छात्राएं अध्ययन करने आ रही हैं। कई संस्कृत की शिक्षिकाएं बन चुकी हैं और कई संस्कृत संभाषण शिविरों का संचालन कर रही है। ल्ल
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