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बड़े काम की शुरुआत हमेशा छोटे काम से ही होती है। बस मन में कुछ करने की इच्छा होनी चाहिए। मेरे मन में भी कुछ ऐसा ही करने की इच्छा थी इसलिए मैंने महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने का बीड़ा उठाया है। मैंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर करने के अलावा मार्केटिंग में एमबीए व बी. एड. किया है। कॉलेज के दिनों ही मैं रेडियो के साथ जुड़ गई थी। 'पार्ट टाइम' नौकरी करके अपना खर्च निकालती थी। ऑफिस जाते समय 'ट्रैफिक सिग्नल' पर बच्चों और महिलाओं को भीख मांगते देखती थी तो बड़ा दुख होता था। झुग्गी-झोपडि़यों के इलाकों से गुजरते हुए भी बच्चों को यूं ही घूमते देख सोचती थी कि इनके लिए कुछ करना चाहिए। वर्ष 2007 में पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करने के बाद पूरी तरह से एक निजी एफएम चैनल के साथ जुड़ गई। ऑफिस जाना, काम खत्म करके घर आना और छुट्टी के दिन दोस्तों के साथ फिल्म देखना, खरीदारी करना, यही दिनचर्या थी। अच्छी नौकरी थी, वेतन भी अच्छा था, लेकिन मन बड़ा विचलित सा रहता था। बार-बार मन में आता था कि कुछ ऐसा करूं कि मन को संतुष्टि मिले। मैंने कई गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) से संपर्क किया लेकिन मुझे वैसा सकारात्मक जवाब नहीं मिला जिससे मैं संतुष्ट हो जाती।
वर्ष 2009 में 'फुल टाइम' नौकरी छोड़कर एक कॉलेज में पत्रकारिता पढ़ाना शुरू कर दिया। वर्ष 2013 तक वहां पढ़ाया, लेकिन फिर करने की इच्छा तो कुछ और थी इसलिए नौकरी छोड़ दी और 'श्रमजीवी' नाम से एक एनजीओ पंजीकृत कराया और नोएडा के होशियारपुर गांव में गरीब बच्चों को गांव की चौपाल में पढ़ाना शुरू कर दिया। कुछ शुरुआती महीनों मेंे दिक्कतें आईं, लेकिन फिर बच्चों ने पढ़ने में रुचि लेनी शुरू कर दी। डेढ़ वर्ष की मेहनत के बाद आज करीब 45 बच्चों को नियमित दो घंटे पढ़ाने जाती हूं। इसके अलावा सेक्टर-16 की झुग्गियों में 'एजुकेशन सेंटर' शुरू किया है। यहां पर से 20 बच्चों का चयन कर एक 'कंप्यूटर इंस्टीट्यूट' में उनका दाखिला कराया। उनका सारा खर्चा एनजीओ उठाता है। एनजीओ के लिए न तो मैं कोई सरकारी मदद लेती हूं और न ही किसी से अपेक्षा रखती हूं। कुछ पुराने मित्र हैं, जो एनजीओ में अपनी इच्छा से मदद करते हैं। आगे मेरी योजना गरीब महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई व ब्यूटीशियन का काम सीखने की व्यवस्था करने की है। अगले दो महीनों में इसकी शुरुआत कर दी जाएगी।
हाल ही में मैंने एक निजी स्कूल से बातचीत की है, जो हमारे बच्चों को बहुत कम फीस पर अपने स्कूल में दाखिला देने के लिए तैयार हुआ है। और भी कई स्कूलों से मैं और मेरे साथी बातचीत कर रहे हैं ताकि जिन बच्चों के लिए मैं काम कर रही हूं उन्हें और बेहतर शिक्षा मिल सके। मेरे एनजीओ से मेरे कुछ मित्र भी जुड़े हैं, जो स्वेच्छा से यहां पर आकर काम करते हैं और मदद करते हैं। मैं स्वयं भी रेडियो में 'पार्टटाइम' काम करती हूं। पढ़ाई के हम बच्चों से छोटे- छोटे नाटक भी करवाते हैं, ताकि उनमें आत्मविश्वास बढ़े और वे एक जिम्मेदार नागरिक बन सकें। ल्ल
निर्णायक मोड़ – कॉलेज के दिनों में ही रेडियो में काम कर अपना खर्चा निकालने लगी थी, लेकिन अभावग्रस्त गरीब बच्चों को देखा तो उनके हित में जुट गई।
प्रेरणा – मेरे माता-पिता ही मेरी प्रेरणा हैं। उन्होंने हमेशा यही सिखाया कि मनुष्य को सदैव दूसरों के लिए जीना चाहिए न कि अपने लिए।
विजय मंत्र – यदि किसी कार्य को करने की ठान लें तो फिर पूरी ईमानदारी से करने का प्रयास करें। इससे बड़ा कोई और विजयमंत्र मुझे नजर नहीं आता।
संदेश – हम जो भी करें उसे सदैव बेहतर करने का प्रयास करना चाहिए। स्वयं से कोई भी ऐसा कार्य न करें जिससे किसी को कष्ट हो।
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