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अपनी बात :चमक बनी हुई है

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May 23, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 23 May 2015 12:53:39

पिछले साल 16 मई को आए युगांतरकारी चुनाव परिणामों की यह वर्षगांठ है। नतीजों के दस दिन बाद जिस सरकार का गठन हुआ उसके पंचवर्षीय सफर का पहला पड़ाव। हालांकि यात्रा आधी हो इसमें भी डेढ़ वर्ष पड़ा है, लेकिन भारत को मिली यह सरकार अलग है। ऐसी सरकार है जो कांग्रेस से अछूती है। इस सरकार के कामकाज का आकलन करने को मीडिया और राजनीतिक आलोचकों की अकुलाहट का जो हाल है उसे देखते हुए एक वर्ष का समय ज्यादा है। ऐसी मियाद, जिसके पूरा होेने के इंतजार में सरकार गठन के पहले दिन से करवटें बदली जा रही थीं।
भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की यह पहली ऐसी सरकार है जिसे मिला बहुमत चौंकाने वाला था। यह पहली ऐसी सरकार है जिसे समर्थकों की अपार आकांक्षाओं और विरोधियों की निर्मम आलोचनाओं के बीच से गुजरते हुए राह बनानी है। पाञ्चजन्य द्वारा कराए गए देशव्यापी सर्वेक्षण से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि सरकार ने प्राकृतिक आपदाओं और विपरीत घरेलू-वैश्विक स्थितियों से पार पाते हुए यह राह बनाई है। सर्वेक्षण में यह बात खुलकर सामने आई कि खबरों की राजधानी में चाहे जैसी चर्चाएं पकती-परोसी जाती रही हों, इस सरकार ने सही दिशा में मजबूती और तेजी से आगे बढ़ते हुए जनता का दिल जीता है।
जिस देश में हर रोज, हर अखबार, हर समाचार चैनल नए भयानक घपले-घोटालों की खबरों से अटा रहता था वहां पूरे एक वर्ष केंद्र सरकार की किसी गड़बड़ी की खबर न होना कितनी बड़ी बात है! घपले और इसकी खबरों का सूखा यकीनन कुछ को सालता होगा,परंतु देश के लिए कलंक की अंतहीन कथाओं से बाहर आना क्या किसी चमत्कार से कम है! अपने पहले ही वर्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत राजग सरकार ने यह चमत्कार दिखाया है।
खास राजनेताओं की मुंहलगी नौकरशाही की जकड़न, महत्वपूर्ण मुद्दों पर त्वरित फैसलों की बजाय अनिर्णय पोसने वाली समितियों की बेडि़यां…अवरोध और हिचक के कितने फासले इस सहज-सुगम-सक्रिय सरकार ने इस एक वर्ष में पाट दिए , इसका हर्ष लोगों की प्रतिक्रियाओं में दिख रहा है। उन्नत लड़ाकू विमान की जरूरत इस देश में तब से अनुभव की जा रही थी जब दुनिया ने मोबाइल फोन नहीं देखा था। संचार क्रांति के अगुआ देश के पास राफेल जैसा विमान और इससे जुड़ी तकनीक भी आ रही है, यह क्या कम संतोष की बात है! व्यग्र करते पड़ोसियों से घिरे देश के लोगों के दिलों को ठंडक देने का यह काम इस सरकार ने किया है।
14 वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के अनुरूप केंद्र से राज्यों को मिलने वाली राशि का अंश 32 से बढ़ाकर 42 फीसदी करना क्या यह कम बड़ी बात थी! ऐसा करने का साहस क्या कभी पूर्ववर्ती सरकारें कर सकीं? संघीय व्यवस्था में राज्यों के लिए बड़ा दिल रखना, खनन अधिकार की नीलामी रायल्टी में राज्यों का हिस्सा रखना, केंद्रीय कैबिनेट मंत्रियों की ही भांति देश के मुख्यमंत्रियों की एक टोली को मजबूत बनाने के लिहाज से सरकार ने कमाल की दूरदृष्टि दिखाई है।
कमजोर क्रय क्षमता के मारे करोड़ों ऐसे आम भारतीयों को, जो सिर्फ थोक वोट के तौर पर मौके पर खरीद-फुसला लिए जाते थे, हाशिए पर पड़े उन लोगों को बचत खाते और बीमा योजना से जोड़ने का पहाड़ सा काम इस सरकार ने एक साल में कर दिखाया है। भले बचत गुल्लक भर हो लेकिन लोग प्रधानमंत्री जनधन योजना को खुलकर सराह रहे हैं। निम्न और मध्यमवर्ग के लिए राहत के झुनझुने चाहे जितने बजाए गए हों, वास्तविक तौर पर इतने बड़े स्तर पर मदद को अमली जामा इस सरकार ने ही पहनाया है। हर दिन पसीना बहाने और कमाने वाले ऐसे लोग, जिनके उद्यम-उद्योग की जरूरत 5000 रुपए की मदद से सध सकती है, बेजा ब्याज क्यों चुकाएं? यह पूर्णत: मानवीय सवाल पूर्व की सरकारों के मन में नहीं कौंधा! इस सरकार ने मुद्रा बैंक की स्थापना कर बताया है कि उसकी सर्वसमावेशी योजना में स्मार्ट सिटी के सपने के साथ फुटपाथ पर काम करने वालों की चिंता भी है।
सब कुछ रुका थमा पड़ा था। कोफ्त थी, कुढ़न थी। हताशा और अवसाद इस देश के किसानों और जवानों की जिंदगी का हिस्सा बन गया था। दुनिया के मन में भारत की तस्वीर थी भी तो सिर्फ पाकिस्तान की शैतानियों में उलझे ऐसे बेबस देश के रूप में जिसकी सामाजिक सोच आपराधिक, राजकीय सोच गुलाम और आर्थिक सोच अपने देश को सिर्फ बड़ी सी मंडी समझने तक सीमित थी। 12 माह में 18 देशों की यात्रा करते हुए प्रधानमंत्री ने विश्व में भारत की छवि बदलने और कुंठाओं के जाल में घिरते नौजवानों को नई उम्मीद दी है। दुनिया के सबसे युवा देश के प्रधानमंत्री ने निवेश व कूटनीति के मोर्चे पर ऐसी तेजी दिखाई है जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। सांस्कृतिक-सामरिक पहलुओं को समग्रता से समेटते हुए उन्होंने भारतीय पहचान को नई ऊंचाई दी है, यह बात विश्व और विशेषज्ञ अनुभव कर रहे हैं।
इतना अच्छा होने के बावजूद विरोधियों द्वारा पैदा की गई कुछ भ्रान्तियां भी हैं। किसान को रोजगार के विकल्प मुहैया कराने, गांव में शहरों सी सुविधाएं पहुंचाने और विकास-रोजगार में सबको भागीदार बनाने के लिए सरकार ने जो महत्वाकांक्षी भूमि अधिग्रहण संबंधी संशोधन प्रस्तुत किए हैं, तमाम अच्छी मंशा के बावजूद उसकी बात जनता तक स्पष्टता से नहीं पहुंच सकी है। सरकार से कदमताल अपेक्षित है किन्तु बाबूशाही की सुस्ती पूरी तरह टूटी नहीं है।
बहरहाल, सरकार का समय कम बीता है, कदम-कदम पर आकलन ज्यादा हुआ है। जनाकांक्षाओं के ज्वार पर सवार राजग सरकार से लोगों को अपार उम्मीदें हैं और एक वर्ष बाद भी जनता की आंखों में उस चमत्कार की चमक बरकरार है।

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