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रामधारी सिंह दिनकर। भारतीय संस्कृति-साहित्य के वह हस्ताक्षर जिनकी कृतियां भारतीय मानस पर सदा के लिए अंकित हो गई हैं। इस माटी की सौंधी महक, इसके ओज-तेज और गौरव को अपने गद्य और पद्य के माध्यम से जन-जन में गुंजित करके देश का गौरवगान करने वाले तेजस्वी कवि के रूप में दिनकर की विशिष्ट पहचान है। 'रश्मिरथी' में युद्धभूमि में शूरवीर कर्ण के मन में उठने वाली शंकाओं का समाधान हो, या 'कुरुक्षेत्र' में रणभूमि का शौर्यपूर्ण विवेचन, इनमें दिनकर की सांस्कृतिक भाव-भूमि का सहज दर्शन होता है। उनके गद्य 'संस्कृति के चार अध्याय' ने भारत की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का बड़ा बारीक विश्लेषण प्रस्तुत कर इस देश के असली मर्म को समझाया है और उन सेकुलरों की बोलती बंद की है जो भारत की बात करने वाले कवियों को एक खास चश्मे से देखने की हिमाकत किया करते हैं। दिनकर तो दिनकर हैं। उन्हें चौखटों में बांधने का बौद्धिक अपराध करने वालों के मुंह पर ताले उन्होंने एक बार नहीं, कई बार लगाए हैं। ऐसे दिनकर की स्मृति में संजोए गए इस आयोजन में प्रस्तुत है इस मनीषी के विविध आयामों की एक संक्षिप्त झलक।
जय हो दिनेश नभ में विहरें,
भूतल में दिव्य प्रकाश करें।।
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