बदलाव के पुरोधा दिनकर
July 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

बदलाव के पुरोधा दिनकर

by
May 16, 2015, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 16 May 2015 14:06:19

 

 

तुफैल चतुर्वेदी
गीता के सबसे अधिक उद्घृत किये जाने वाले श्लोकों में से एक 'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:' है। जब जब धर्म की हानि होती है तो हे अर्जुन! मैं अवतार लेता हूं। मेरी समझ से इसका अभिप्राय है कि जब-जब राष्ट्र, देश कठिनाई में आता है तब-तब समाज से ही उसमें चैतन्यता, स्फूर्ति लाने वाले महान लोग प्रकट होते हैं। बीसवीं शताब्दी का प्रारंभिक काल, यूरोप में आर्थिक उथल-पुथल बढ़ने लगी थी। प्रकृति की शक्तियों का दोहन और उनका मनुष्य के सुखों के लिए उपयोग करने की योजनाएं बनायी जा रही थीं। परिणामत: समाज में तुलनात्मक रूप से आर्थिक अंतर बढ़ रहा था। भारत कुछ हद तक इन योजनाओं की उपज को खपाने का क्षेत्र बना हुआ था अत: यह अंतर यहां भी बढ़ रहा था। भारतीय राष्ट्र का प्रमुख और प्रभावी वर्ग भी यूरोपीय पादरियों की फैलाई गप्पों पर विश्वास करने लगा था और अपनी राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियों को नहीं निबाह रहा था अर्थात भारत दैन्यता से घिरा हुआ था। आर्थिक, सामाजिक कठिनाइयां राष्ट्र को ग्रसे हुए थीं। स्पष्ट है इसका परिणाम राष्ट्र के दुर्बल होने के रूप में होता ही होता, तभी प्रकृति के गर्भ से 23 सितम्बर 1908 को राष्ट्र को प्रेरणा देने वाले महा कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बिहार के जिला बेगूसराय अंतर्गत आने वाले ग्राम सिमरिया घाट में हुआ।
पटना विश्वविद्यालय से बी़ ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक हाईस्कूल में अध्यापक हो गए। 1934 से 1947 तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्ट्रार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर कार्य किया। 1950 से 1952 तक मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह महाविद्यालय (एल़एस़कॉलेज) में हिन्दी के शिक्षक रहे, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर कार्य किया और इसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने। तीन बार राज्यसभा के सांसद रहे दिनकर जी को पद्मविभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया। आपकी पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा 'उर्वशी' के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कर प्रदान किए गए। दिनकर जी को उनके साथियों तथा प्रेस के लोगों ने गांधीवादी कहा जिस पर उनका कहना था मैं बुरा गांधीवादी हूं।
महान धनुर्धर अर्जुन को सव्यसाची इसीलिए कहा जाता है कि वे दोनों हाथों से एक बराबर के कौशल से धनुष चला सकते थे। साहित्य के अथोंर् में दिनकर जी भी सव्यसाची थे। काव्य और गद्य दोनों में एक सी प्रभावी महारत रखने वाले राष्ट्रकवि दिनकर आधुनिक युग की हिन्दी के प्रमुख लेखक और ओज के श्रेष्ठ कवि हैं। रामधारी सिंह दिनकर को राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत, क्रांतिपूर्ण संघर्ष की प्रेरणा देने वाली ओजस्वी कविताओं के कारण असीम लोकप्रियता मिली और उन्हें 'राष्ट्रकवि' नाम से विभूषित किया गया। रात-दिन राष्ट्र के हित-चिंतन में लीन दिनकर जी अहिंसा, क्षमा के नहीं अपितु सशक्त होने, सबल होने के पक्षपाती थे। 1200 वषोंर् के बाद अंगड़ाई लेकर जागा राष्ट्र विश्व भर में जगमगाये, माथा ऊंचा किये भारत विश्व का नेतृत्व करे इस भाव से दिनकर जी लगातार साहित्य-साधना करते रहे। उनकी कविताओं के कुछ अंशों का पाठ स्वयं को स्फूर्ति से भर देने का काम है। 26 जनवरी 1950 को उस समय भारत की तैंतीस करोड़ जनता के संवैधानिक गणतंत्र बनने पर दिनकर जी हुंकार भरते हैं। उनकी यह कविता इसलिए भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है कि बाद के वषोंर् में इसकी एक पंक्ति 'सिंहासन खाली करो जनता आती है' प्रत्येक राजनीतिक आंदोलन का नारा बन गयी। आपातकाल के विरोध के आंदोलन की यह पंक्ति अदम्य बल बनी।
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है
जनता की रोके राह समय में ताब कहां
वह जिधर चाहती काल उधर ही मुड़ता है
सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा
तैंतीस-कोटि-हित सिंहासन तैयार करो
अभिषेक आज राजा का नहीं प्रजा का है
तैंतीस कोटि जनता के सर पर मुकुट धरो
फावड़े और हल राजदंड बनने को हैं
धूसरता सोने से शृंगार सजती है
दो राह समय के रथ का घर्घर नाद सुनो
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है

दिनकर जी शासकीय सेवा में रहकर भी राजनीति के दबाव में आये बिना निरंतर उत्कृष्ट साहित्य सृजन करते रहे। उनकी साहित्य चेतना राजनीति से निर्लिप्त ही नहीं रही बल्कि तात्कालिक राजनीति के और राजनेताओं के सम्पर्क में रहने के कारण उनके साहित्य में निर्भीकता से ऐसे तथ्य प्रकट हुए हैं, जिनके माध्यम से तत्कालीन राजनैतिक परिदृश्य तथा राजनेताओं की प्रवृत्तियों का परिचय प्राप्त हो जाता है। कविताओं में क्रांति का उद्घोष करके युवकों में राष्ट्रीयता व देशप्रेम की भावनाओं का ज्वार उठाने वाले दिनकर समाज के अभावग्रस्त वर्ग के लिये बहुत खिन्न और दु:खी थे। 1954 में आई अपनी पुस्तक 'दिल्ली में रेशमी नगर' की कविता में किसानों की दुर्दशा पर महानगर दिल्ली में बैठे राजनेताओं और अधिकारियों को लताड़ते हुए दिनकर जी कहते हैं-
रेशमी कलम से भाग्य-लेख लिखने वाले
तुम भी अभाव से कभी ग्रस्त हो रोये हो
बीमार किसी बच्चे की दवा जुटाने में
तुम भी क्या घर-भर पेट बांध कर सोये हो
चल रहे ग्राम-कुंजों में पछिया के झकोर
दिल्ली लेकिन ले रही लहर पुरवाई में
है विकल देश सारा अभाव के तापों में
दिल्ली सुख से सोयी है नर्म रजाई में
तो होश करो दिल्ली के देवों होश करो
सब दिन तो ये मोहनी न चलने वाली है
होती जाती हैं गर्म दिशाओं की सांसें
मिट्टी फिर कोई आग उगलने वाली है
हो रहीं खड़ी सेनाएं फिर काली-काली
मेघों से उभरे हुए नए गजराजों की
फिर नए गरुड़ उड़ने को पांखें तोल रहे
फिर झपट झेलनी होगी नूतन बाजों की
1200 वषोंर् के लगातार चले संघर्ष के बाद 1947 में खंडित ही सही किन्तु राष्ट्र स्वतंत्र हुआ। उसकी दीन-हीन-मलिन दशा को बदलने के लिए कृतसंकल्प आत्मविश्वास से ओतप्रोत दिनकर जी प्रेरित करते हैं-
अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का
सारी रात चले तुम दु:ख झेलते कुलिश निर्मम का
एक खेप शेष है किसी विध उसे पार कर जाओ
वह देखो उस पार चमकता है मंदिर प्रियतम का
आकर इतने पास फिरे वह सच्चा शूर नहीं है
थक कर बैठ गए क्या भाई मंजिल दूर नहीं है
अपने कालजयी काव्य 'रश्मिरथी' में कर्ण के मन में चल रही उथल-पुथल का अद्भुत वर्णन करते हुए दिनकर जी लिखते हैं –
हरि काट रहे हैं आप तिमिर की कारा
अर्जुन के हित बह रही उलट कर धारा
शत-पाश व्यर्थ रिपु का दल फैलाता है
वह जाल तोड़ हर बार निकल जाता है
बज चुका काल का पटह भयानक क्षण है
दे रहा निमंत्रण सबको महा-मरण है
छाती के पूरे पुरुष प्रलय झेलेंगे
झंझा की उलझी लटें खेंच खेलेंगे
कुछ भी न रहेगा शेष अंत में जाकर
विजयी होगा संतुष्ट, तत्व क्या पाकर
कौरव विलीन जिस पथ पर हो जायेंगे
पांडव क्या उससे राह भिन्न पाएंगे
लम्बे समय से शांत पड़ी धमनियों का रक्त अहिंसा की मूढ़ व्याख्या के कारण ठहर सा गया था। विश्व-इतिहास बताता है कि अहिंसा व्यक्तिगत गुण शायद हो सके मगर देश की रीति-नीति तो अहिंसा पर आधारित नहीं हो सकती। वीर-भाव के शब्दों के अप्रतिम धनी दिनकर जी अपनी अद्भुत रचना 'शक्ति और क्षमा' में राष्ट्र को ललकारते हुए कहते हैं-
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो
सच पूछो तो शर में ही बसती है दीप्ति विनय की
संधि-वचन सम्पूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की
सहनशीलता, दया क्षमा को तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है
अहिंसा, अकर्मण्यता, निराशा के काल में राष्ट्र को गीता के कर्मयोग का सन्देश देते हुए दिनकर जी कहते हैं-
वैराग्य छोड़ बांहों की विभा संभालो
चट्टानों की छाती से दूध निकालो
है रुकी जहां भी धार शिलाएं तोड़ो
पीयूष चंद्रमाओं का पकड़ निचोड़ो
चढ़ तुंग शैल शिखरों पर सोम पियो रे
योगियों नहीं विजयी के सदृश जियो रे
जब कभी अहम पर नियति चोट देती है
कुछ चीज अहम से बड़ी जन्म लेती है
नर पर जब भी भीषण विपत्ति आती है
वह उसे और दुर्धर्ष बना जाती है
चोटें खा कर बिफरो कुछ और तनो रे
धधको स्फुलिंग में बढ़ अंगार बनो रे
छोड़ो मत अपनी आन सीस कट जाये
मत झुको अनय पर व्योम भले फट जाये
दो बार नहीं यमराज कंठ धरता है
मरता है जो एक ही बार मरता है
तुम स्वयं मृत्यु के मुख पर चरण धरो रे
जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे
अनगढ़ पत्थर से लड़ो लड़ो किटकिटा नखों से दांतों से
या लड़ो रीछ के रोमगुच्छ पूरित वज्रांत हाथों से
या चढ़ विमान पर नर्म मुट्ठियों से गोलों की वृष्टि करो
आ जाये लक्ष्य जो कोई निष्ठुर हो तुम उसके प्राण हरो
सो धर्मयुद्घ छिड़ गया स्वर्ग तक जाने के सोपान लगे
सद्गति-कामी नर-वीर खड्ग से लिपट गंवाने प्राण लगे
छा गया तिमिर का सघन जाल मुंद गए मनुज के ज्ञान नेत्र
द्वाभा की गिरा पुकार उठी जय धर्मक्षेत्र ! जय कुरुक्षेत्र!
हिमालय का आह्वान करते हुए भी उनके मन में राष्ट्र की चिंता पुकार उठती है। उनकी चिंता आशाओं से भरी, जगमगाती हुई भोर की ओर बढ़ने का संदेश देती है-
मेरे नगपति ! मेरे विशाल !
ओ, मौन, तपस्या-लीन यती! पल भर को तो कर दृगुन्मेष
रे ज्वालाओं से दग्ध, विकल है तड़प रहा पद पर स्वदेश
सुखसिंधु, पंचनद, ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना की अमिय-धार
जिस पुण्यभूमि की ओर बही तेरी विगलित करुणा उदार
जिसके द्वारों पर खड़ा क्रान्त सीमापति! तू ने की पुकार
'पद-दलित इसे करना पीछे पहले ले मेरा सिर उतार
उस पुण्यभूमि पर आज तपी! रे, आन पड़ा संकट कराल
व्याकुल तेरे सुत तड़प रहे डस रहे चतुर्दिक विविध व्याल

मेरे नगपति! मेरे विशाल
कितनी मणियां लुट गईं? मिटा कितना मेरा वैभव अशेष
तू ध्यान-मग्न ही रहा, इधर वीरान हुआ प्यारा स्वदेश
वैशाली के भग्नावशेष से पूछ लिच्छवी-शान कहां
ओ री उदास गण्डकी! बता विद्यापति कवि के गान कहां
तू तरुण देश से पूछ अरे, गूंजा कैसा यह ध्वंस-राग
अम्बुधि-अन्तस्तल-बीच छिपी यह सुलग रही है कौन आग
प्राची के प्रांगण-बीच देख, जल रहा स्वर्ण-युग-अग्निज्वाल
तू सिंहनाद कर जाग तपी! मेरे नगपति! मेरे विशाल!
रे, रोक युधिष्ठिर को न यहां, जाने दे उनको स्वर्ग धीर
पर, फिर हमें गाण्डीव-गदा, लौटा दे अर्जुन-भीम वीर
कह दे शंकर से, आज करें वे प्रलय-नृत्य फिर एक बार
सारे भारत में गूंज उठे, 'हर-हर-बम' का फिर महोच्चार
ले अंगड़ाई हिल उठे धरा कर निज विराट स्वर में निनाद
तू शैलराट हुंकार भरे फट जाए कुहा, भागे प्रमाद
तू मौन त्याग, कर सिंहनाद रे तपी आज तप का न काल
नवयुग-शंखध्वनि जगा रही तू जाग, जाग, मेरे विशाल
24 अप्रैल 1974 को आपका स्वर्गवास हुआ।
दिनकर जी के काव्यानुष्ठान के बारे में कुछ वरिष्ठ लोगों के उद्गार जानने योग्य होंगे-
समाज को जगाने वाले ऐसे रणमत्त आह्वान देने वाला चारण, राष्ट्र को समर्थ-सक्षम चाहने वाला कवि- देश का कैसा दुर्भाग्य है कि कांग्रेस का राज्याश्रय प्राप्त छिछोरे, छोटे और बौने लोगों द्वारा बिसराया गया। उनकी बौड़म सोच से टपकी तथाकथित नई कविता का भार चूंकि छंद सह नहीं सकता था इसलिए जलेस, प्रलेस के इन कलेसियों ने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी को सप्रयास भुलाया। किसी अन्य राष्ट्र में ऐसा महाकवि हुआ होता तो वह राष्ट्र अपने ऐसे आख्यान-गायक को पलकों पर रखता। पुरानी कहावत है 'जो राष्ट जो अपने अतीत के गौरव का ध्यान नहीं रखते कभी स्वाभिमानी, गौरवशाली भविष्य निर्माण नहीं कर सकते। देर से ही सही मगर केंद्र सरकार ने संस्कृति के अमर गायक को स्मरण किया है। बदलाव ऐसे ही आते हैं और राष्ट्र ऐसे ही बलशाली बनते हैं। इसी को सिंहावलोकन कहते हैं। 09711296239

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

स्वामी दीपांकर

भिक्षा यात्रा 1 करोड़ हिंदुओं को कर चुकी है एकजुट, अब कांवड़ यात्रा में लेंगे जातियों में न बंटने का संकल्प

पीले दांतों से ऐसे पाएं छुटकारा

इन घरेलू उपायों की मदद से पाएं पीले दांतों से छुटकारा

कभी भीख मांगता था हिंदुओं को मुस्लिम बनाने वाला ‘मौलाना छांगुर’

सनातन के पदचिह्न: थाईलैंड में जीवित है हिंदू संस्कृति की विरासत

कुमारी ए.आर. अनघा और कुमारी राजेश्वरी

अनघा और राजेश्वरी ने बढ़ाया कल्याण आश्रम का मान

ऑपरेशन कालनेमि का असर : उत्तराखंड में बंग्लादेशी सहित 25 ढोंगी गिरफ्तार

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

स्वामी दीपांकर

भिक्षा यात्रा 1 करोड़ हिंदुओं को कर चुकी है एकजुट, अब कांवड़ यात्रा में लेंगे जातियों में न बंटने का संकल्प

पीले दांतों से ऐसे पाएं छुटकारा

इन घरेलू उपायों की मदद से पाएं पीले दांतों से छुटकारा

कभी भीख मांगता था हिंदुओं को मुस्लिम बनाने वाला ‘मौलाना छांगुर’

सनातन के पदचिह्न: थाईलैंड में जीवित है हिंदू संस्कृति की विरासत

कुमारी ए.आर. अनघा और कुमारी राजेश्वरी

अनघा और राजेश्वरी ने बढ़ाया कल्याण आश्रम का मान

ऑपरेशन कालनेमि का असर : उत्तराखंड में बंग्लादेशी सहित 25 ढोंगी गिरफ्तार

Ajit Doval

अजीत डोभाल ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और पाकिस्तान के झूठे दावों की बताई सच्चाई

Pushkar Singh Dhami in BMS

कॉर्बेट पार्क में सीएम धामी की सफारी: जिप्सी फिटनेस मामले में ड्राइवर मोहम्मद उमर निलंबित

Uttarakhand Illegal Majars

हरिद्वार: टिहरी डैम प्रभावितों की सरकारी भूमि पर अवैध मजार, जांच शुरू

Pushkar Singh Dhami ped seva

सीएम धामी की ‘पेड़ सेवा’ मुहिम: वन्यजीवों के लिए फलदार पौधारोपण, सोशल मीडिया पर वायरल

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies