राजनीति और मोहरे - पेड़ पर झूलता किसान और निर्मम राजनीति
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राजनीति और मोहरे – पेड़ पर झूलता किसान और निर्मम राजनीति

by
May 2, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 May 2015 14:10:02

दिल्ली में आआप की राजनैतिक रैली…। स्थान जंतर मंतर…। जंतर मंतर का निर्माण भी कभी राजस्थान के शासक ने ही करवाया था। उद्देश्य शायद ज्ञान विज्ञान का प्रसार और लोगों में तार्किक विश्वास जगाना था। उसी राजस्थान के दौसा से चलकर एक आदमी गजेन्द्र सिंह दिल्ली आता है। गजेन्द्र किसान है। साधारण किसान नहीं बल्कि जागृत किसान है और कहा जाता है कि राजस्थान विधानसभा के लिये चुनाव भी लड़ चुका था । यह अलग बात है कि विधानसभा में पहुंचना उसके भाग्य में नहीं था। वह आम आदमी पार्टी की रैली में खुद आया है या उसे इस मौके पर विशेष रूप से बुलाया गया है, यह अभी जांच का विषय है। लेकिन मीडिया में जो छन-छन कर आ रहा है , उसके अनुसार उसे दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बुलाया था। खैर यह रहस्य तो जांच के बाद ही खुलेगा। जंतर-मंतर पर आम आदमी की इस रैली में अरविन्द केजरीवाल को, 'भारत में किसानों की दशा और दिशा' पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना है। उसको यह बताना है कि देश में किस प्रकार किसान दु:खी होकर आत्महत्या कर रहे हैं। अपने विषय को प्रभावी बनाने के लिये वे मंच पर सभी तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। मसलन बोलते वक्त आवाज का उतार चढ़ाव, शारीरिक भाव भंगिमा, चेहरे पर विभिन्न भंगिमाओं का प्रदर्शन, आदि आदि। दरअसल भाषण भी अभिनय का एक रूप बन गया है। अभिनय जितना सशक्त, प्रभाव उतना ज्यादा। श्रोता को बांध लेने का मंतर। उसको कील लेने का जंतर। इस काम के लिए जंतर-मंतर से अच्छी जगह और कौन सी हो सकती है? लेकिन ऐन उस मौके पर सचमुच किसी किसान द्वारा आत्महत्या कर लेने की घटना शायद पहली बार हुई है।
केजरीवाल मंच पर किसानों की दशा दिशा पर आंसू बहाना शुरू करते हैं और गजेन्द्र सिंह पास के नीम के पेड़ पर चढ़ना शुरू करता है। वह स्वयं राजस्थानी वेशभूषा में है। जाहिर है हजारों की भीड़ में एक अलग वेशभूषा वाला व्यक्ति सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करेगा ही! गजेन्द्र सिंह के पास एक झाड़ू और एक गमछा भी है। गमछा देश के आम किसान का प्रतीक है और झाड़ू आम आदमी पार्टी का चुनाव चिन्ह है। वह नीम के पेड़ पर चढ़ जाता है। अब जंतर-मंतर पर दो मंच बन गये हैं। एक मंच जिस पर केजरीवाल किसानों की दशा दिशा के बारे में आंसू बहा रहे हैं और दूसरा मंच नीम का पेड़ जिस पर एक किसान गजेन्द्र सिंह लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा है । वैसे खबर यह भी है कि नीम के पेड़ का मंच संभालने से पहले गजेन्द्र सिंह ने अपने परिवार के किसी सदस्य को फोन करके यह भी कहा कि टैलीविजन चालू करो और देखो।
लेकिन धीरे-धीरे नीम के पेड़ पर जो हो रहा है, वह ज्यादा खतरनाक होता जा रहा है। गजेन्द्र सिंह आत्महत्या भी कर सकता है, इसकी आशंका बननी शुरू हो गई है। लेकिन नीम के आसपास खड़े लोग गजेन्द्र सिंह को नीचे उतारने की कोशिश नहीं करते। यहां संशय का लाभ दिया जा सकता है कि भीड़ का व्यवहार इन परिस्थितियों में आम तौर पर इसी प्रकार का होता है। सड़क पर किसी दुर्घटना में घायल व्यक्ति खून से लथपथ पड़ा होता है और लोगबाग मन ही मन दुख व्यक्त करते हुए पास से निकलते रहते हैं। कोई उसे अस्पताल ले जाने की जहमत नहीं उठाता। परन्तु केजरीवाल तो आम आदमी पार्टी में होते हुये भी आम आदमी नहीं थे। वे दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने भी अपना भाषण बीच में रोककर गजेन्द्र सिंह को नीम से नीचे उतारने का प्रयास नहीं किया। उधर केजरीवाल भाषण देते रहे, इधर गजेन्द्र सिंह ने झाड़ू छोड़ कर गमछा निकाल लिया और नीम की एक मोटी शाखा से बांधना शुरू कर दिया। लेकिन अभी भी मुझे लगता है कि वह मरना नहीं चाहता था। उसने अपने परिवार वालों को फोन पर बता रखा था कि वह रात को घर आ जायेगा। इधर गमछा गले तक में डाल लेने की नौबत आ चुकी थी लेकिन अभी भी उसे कोई नीम के पेड़ से उतारने की कोशिश नहीं कर रहा था। इस मोड़ पर यदि केजरीवाल अपना भाषण, चाहे थोड़ी देर के लिये ही सही, छोड़कर नीम के उस पेड़ के नीचे आ जाते तो शायद गजेन्द्र सिंह को पेड़ से नीचे उतारा जा सकता था। या फिर उसे स्वयं ही नीचे उतर आने के लिये मनाया जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। और उधर गजेन्द्र सिंह सचमुच गले में गमछा डालकर नीम के पेड़ से लटक गया। बताया जाता है कि केजरीवाल ने कहा था कि इसे नीचे उतारो, लेकिन जब उनके कार्यकर्ता इस काम के लिये नीम के पेड़ पर चढ़े तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कोई वाक्य कब बोलना है, इसका भी उपयुक्त समय होता है। शायद वह समय निकल चुका था। गजेन्द्र सिंह के श्वास पूरे हो चुके थे। अब वह किसी के काम का नहीं रहा था। इसलिये उसकी लाश धड़ाम से नीचे गिरी।
अब मुख्य प्रश्न केवल इतना ही बचता है कि केजरीवाल द्वारा उठाई गई समस्या को और धारदार बनाने हेतु, 'लाईव डेमांस्ट्रेशन' देने के लिए, दौसा से चलकर आया गजेन्द्र सिंह किस की 'स्क्रप्टि' का शिकार हुआ? उसकी यह पूरी पटकथा किसने लिखी? जिसने भी यह पटकथा लिखी, उसने वह पूरी तरह उसे बता भी दी थी या फिर आधी बता दी थी और आधी छिपा दी थी और गजेन्द्र सिंह उसी आधी छिपा ली गई पटकथा का शिकार हो गया? कहीं ऐसा तो नहीं की पूरे मामले को चमत्कारिक बनाने के लिये गजेन्द्र सिंह का दुरुपयोग किया गया हो और इसी में वह अपनी जान गंवा बैठा? झाड़ू से शुरू हुई और गमछे पर जाकर खत्म हुई गजेन्द्र सिंह की यह कहानी बहुत ही करुणाजनक है। लेकिन यह पता लगाना जरूरी है कि गजेन्द्र सिंह की मौत की यह पटकथा किसने लिखी? इस पूरी कहानी में आप के प्रवक्ता का बयान बहुत आपत्तिजनक है। किसी ने पूछा कि केजरीवाल ने भाषण छोड़कर गजेन्द्र सिंह को बचाने की कोशिश क्यों नहीं की? तो प्रवक्ता ने गुस्से में आकर कहा कि केजरीवाल क्या पेड़ पर चढ़ जाते? बात प्रवक्ता ने बिल्कुल अपनी सोच के अनुसार ही कही है लेकिन वे इतना तो जानते होंगे कि बहुत ज्यादा समय नहीं बीता जब केजरीवाल आम आदमी को राहत पहुंचाने के नाम पर बिजली के खम्भे पर तेजी से चढ़ गये थे। लेकिन जब गजेन्द्र सिंह को बचाने की बात आई तो उन्हें पेड़ पर चढ़ना नागवार लगा। लेकिन आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष की इस संवेदनशीलता को लेकर जब देश भर में हल्ला होने लगा तो वे चैनलों पर दहाड़ें मार कर रोने लगे। जब आम आदमी पार्टी द्वारा खेली गई इस नौटंकी पर देश के आम आदमी का गुस्सा फूटने लगा तो केजरीवाल ने भी तुरन्त पैंतरा बदला और, मुझसे एक बार फिर गलती हो गई, कहते हुये मुआफी मांगने लगे।
इस पूरी घटना की जिसने भी पटकथा लिखी थी, और उसकी एक प्रति गजेन्द्र सिंह के हाथों में थमा दी होगी, उसने इसका संचालन इतने घटिया तरीके से किया कि गजेन्द्र सिंह को न चाहते हुए भी अपने प्राणों से हाथ धोने पड़ा। वैसे केवल रिकार्ड के लिए आम आदमी पार्टी ने गजेन्द्र सिंह के परिवार को दस लाख रुपये देना मान लिया है। कम से कम इस पूरे मामले में दूध का दूध और पानी का पानी होना ही चाहिए।  -डा कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

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