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'हम बाइबिल नहीं खा सकते, हम उसका बेलचे-फावड़े की जगह इस्तेमाल नहीं कर सकते। अगर आप नेपाल के लिए प्रार्थना कर रहे हैं, तो धन्यवाद। पर मैं आपसे आग्रह करता हूं कि उठें और वास्तव में कुछ करें। रुपया और बाइबिल न भेजें।' आहत और खीझे हुए नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ये बातें सी़ एऩ एन. के एक पत्रकार से कह रहे थे। भूकंप के कई दिनों बाद मलबे के नीचे दबी हजारों लाशें सड़ रही थीं। लाखों लोग बिलख रहे थे। उसी समय नेपाल के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर खड़े एक जहाज से बाइबिल की एक लाख पेपर बैक प्रतियां उतारी जा रही थीं, भूकंप पीडि़तों में बांटने के लिए। ये कोई पहला मामला नहीं है, जब ईसाई मिशनरियों ने किसी मानव त्रासदी को कन्वर्जन का हथियार बनाया हो। 26 दिसंबर 2004 को हिन्द महासागर में आई भयंकर सुनामी ने भारत समेत 14 देशों में कुल दो लाख तीस हजार जिंदगियों को लील लिया था। उस समय भी 'मानव की मुक्ति' के ये ठेकेदार भूखे प्यासे लोगों को रोटी-कपड़े का लालच देकर बाइबिल थमाते घूम रहे थे।
मिशनरी जगत में ऊपर से नीचे तक कुछ बातें समान हैं। 24 मार्च 2015 को पोप फ्रांसिस ने ट्वीट किया था- 'आपदा कन्वर्जन का आह्वान है।' जब नेपाल में धरती हिली तो सोशल मीडिया में भी हलचल मची। सारी दुनिया में मानवीय संवदनाएं उमड़ रही थीं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर लोग मदद और दान की अपीलें कर रहे थे। सब ओर से प्रतिक्रियाएं आ रही थीं। मिशनरियों का मजहबी उन्माद भी चरम पर था। बहुत से इस बात पर खुश हो रहे थे कि भूचाल में नेपाल के अनेक प्रसिद्ध मंदिरों को भारी क्षति पहुंची है। अमरीकी पास्टर टोनी मिआनो ने नेपालियों के घावों पर नमक छिड़कते हुए ट्वीट किया- 'नेपाल के मृतकों के लिए प्रार्थना कर रहा हूं। प्रार्थना कर रहा हूं कि एक भी ध्वस्त मंदिर दोबारा नहीं बनाया जाए और लोग जीसस को स्वीकार करें।' अनेक हिन्दुओं ने इस पर आपत्ति जताई, तो टोनी ने दूसरा ट्वीट किया-'मुझे फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारा भगवान तुम्हारे भ्रष्ट दिमाग के अलावा और कहीं नहीं है।' मृतकों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा था। जोशुआ एग्वीलर ने ट्वीट किया-'1400 सोल्स मारी जा चुकी हैं, और ऊपर जा रही हैं। सोचता हूं उनमें से कितनों ने गॉस्पेल सुनी होगी।'
ब्रायन ई़फ्रेजर का ट्वीट था-'नेपाल में 7़ 8 तीव्रता का भयंकर भूकंप आया। जीसस के शीघ्र लौटने के चिन्ह दिखाई दे रहे हैं।'क्रिस चौडविक ने लिखा-'नेपाल के लिए प्रार्थना कर रहा हूं कि यह आपदा लोगों के लिए गॉस्पेल स्वीकार करने का दरवाजा बने।' जेसन साइक्स ने लिखा-'नेपाल के लिए प्रार्थना कर रहा हूं। आशा करता हूं कि काटने के लिए फसल तैयार मिले।' रॉब आर्मस्ट्रांग ने प्रार्थना की-'इस आपदा के कारण नेपाल के दरवाजे क्राइस्ट के लिए खुल जाएं।' कालार्े एग्वीलर ने नेपाल के लोगों से कहा-'काश, इस विपत्ति में तुम लोग लार्ड जीसस क्राइस्ट को जानो।' पगान (पेगन) पूजा स्थलों की बर्बादी पर खुश होने वाले भी बहुत थे।
प्रोग्रेसिव सेक्युलर ह्यूमेनिस्ट नाम से ब्लॉग लिखने वाले माइकल स्टोन ने लिखा-'बिना किसी शर्म के बहुत से ईसाई नेपाल के भयंकर भूकम्प को एक मौका मानकर उसका उत्सव मना रहे हैं। वे अपने मजहबी अंधविश्वासों का विकृत औचित्य सिद्ध करते हुए मौत और तबाही में फायदा देख रहे हैं। जब बर्बादी के घाव ताजा हैं, तब 'रिलीजन' के व्यापारी पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर आये हैं और ईसाइयत बेच रहे हैं। अनेक ईसाई मिशनरी इस विपत्ति का पैसा उगाहने के लिए दोहन कर रहे हैं। पैसा, जो पीडि़तों के दुख दूर करने के स्थान पर नेपालियों तक जीसस की मृत्यु का 'शुभ समाचार' पहुंचाने में खर्च किया जायेगाा या शायद इससे भी बुरा, कि ये पैसा कभी नेपाल नहीं पहुंचेगा, बल्कि चर्च के प्रशासकीय व्यय, जैसे बड़ी तनख्वाहों और पादरियों और उनके अंतरंगों को दिए जाने वाले विशाल भत्तों में फूंक दिया जाएगा। इस बीच जब असंख्य छोटे-बड़े ईसाई चर्च इस त्रासदी का लाभप्रद धन उगाही के लिए उपयोग करेंगे तब अन्य ईसाई इस मौके का ईसाइयत के अपने-अपने ब्रांड का प्रचार करने के लिए उपयोग करेंगे। कुछ ईसाई इस भयंकर भूचाल का जीसस की तयशुदा वापसी के रूप में उत्सव मना रहे हैं तो दूसरे इसे नेपालियों द्वारा ईसाइयत को स्वीकार न करने के कारण ईश्वर द्वारा दिया गया दंड बता रहे हैं।'आगे माइकल स्टोन ने आह्वान किया है कि जो लोग वास्तव में नेपालियों की मदद करना चाहते हैं, वे इन मिशनरियों को दान देने के स्थान पर उन संस्थाओं को दान दें जो बिना मजहबी पूर्वाग्रह के मानवता की सेवा करती हैं।
जिन्होंने इन मिशनरियों को थोड़ा-बहुत भी देखा है वह समझ सकता है कि नेपाल में बात बाइबिल और क्रॉस बांटने तक सीमित रहने वाली नहीं है। जब कन्वर्जन करना हो तो उसके लिए व्यक्ति की परंपरा से चली आ रही आस्था को भी खंडित करना आवश्यक होता है, तभी उसे फुसलाया जा सकता है। इसके लिए मिशनरी हिन्दू देवी-देवताओं के प्रति घृणा फैलाने वाला मुड़े-तुड़े तथ्यों और फरेब से भरा साहित्य स्थानीय भाषाओं में छापकर बांटतें हैं। छोटे-छोटे समूहों में 'अविश्वासियो' को ये साहित्य पढ़कर सुनाया जाता है। सन् 2008 में कर्नाटक के कुछ चचोंर् में हुई तोड़-फोड़ की घटनाओं की जांच के लिए न्यायाधीश सोमशेखर की अध्यक्षता में जांच आयोग गठित हुआ। जांच के बाद आयोग ने बताया कि ईसाई मिशनरियों ने हिन्दू देवी-देवताओं के संदर्भ में अपमानजनक साहित्य का वितरण किया, जिसका उद्देश्य हिन्दुओं में उनके धर्म के प्रति विरक्ति पैदा करना था। इसी भड़काऊ साहित्य की प्रतिक्रिया में उपरोक्त घटनाएं
घटी थीं।
हिन्दू विरोधी ये साहित्य सैकड़ों वषोंर् से जस का तस छापा जा रहा है। चार्ल्स ट्रेवेलियन के 1881 के कथन को देखिए-'मानव जाति द्वारा ईजाद किए सारे पंथों में हिन्दू धर्म मानवीय पाप को महिमामंडित करने तथा अपने प्रतिरूपों को अनुकरण एवं पूजा की वस्तु मानने में सबसे आगे है। हत्या से लेकर छोटी-मोटी चोरी तक के सारे अपराधों के संरक्षक हिन्दू देवकुल में मौजूद हैं।' ये सब आज भी कहा जा रहा है, छापा जा रहा है, उपदेशित किया जा रहा है। हां, श्रोताओं को देखकर शब्द और संदर्भ बदल जाते हैं, मूल भावना यही रहती है कि ईसाइयत के अलावा शेष सब कुछ नर्क की ओर ले जाने वाला है।
इसका ज्वलंत उदाहरण है कैथोलिक बिशप कांफ्रेंस ऑफ इंडिया, पुणे के प्रतिवेदन में प्रस्तुत आलेख जिसमें भगवान बुद्ध एवं महात्मा गांधी को भी नर्क-गामी बता दिया गया। ध्यान रहे ईसाइयत में मृत्यु उपरांत दो ही रास्ते हैं-मुक्ति (स्वर्ग) या नर्क। कांफ्रेंस का प्रतिवेदन कहता है-'वे लोग भी स्थायी मुक्ति पा सकते हैं जो ईसा मसीह के गॉस्पेल तथा उसके चर्च को नहीं जानते, किन्तु ईमानदारी से ईश्वर की चाहत रखते हैं और उसकी कृपा से 'अपने अंत:करण के आदेशों के द्वारा ज्ञात उसकी इच्छा' का अनुकरण करने का प्रयास करते हैं। ऊपर से देखने पर इस कसौटी पर बुद्ध मुक्ति के हकदार बनते दिखाई देते हैं, क्योंकि वे ईसा मसीह के कई सौ वर्ष पहले गुजर जाने के कारण बिना किसी अपनी गलती के उनके गॉस्पेल से अनभिज्ञ रह गए, किन्तु थोड़ा गहराई से देखने पर यह बात खंडित हो जाती है, क्योंकि बुद्ध इस रियायत के दूसरे अंश पर खरे नहीं उतरते। उनके मतों के आधार पर यह नही माना जा सकता कि वे उन लोगों में शामिल हैं जो 'ईमानदारी से ईश्वर की चाहत रखते हैं। दूसरी तरफ, गांधी जी इस रियायत के दूसरे हिस्से के लिए अर्हता रखते हैं क्योंकि वे निश्चय ही 'ईमानदारी से ईश्वर की चाहत रखते हैं और उसकी कृपा से प्रेरित होकर अपने अंत:करण के आदेशों द्वारा उसकी इच्छा को जानकर उसके अनुसार आचरण करने का प्रयास करते हैं। लेकिन उनके बारे में हरगिज नहीं कहा जा सकता कि वे ईसा मसीह के गॉस्पेल और उनके चर्च को नहीं जानते थे। पचास वषोंर् के दरम्यान गॉस्पेल असंख्य बार गांधी जी के सामने रखा गया और उन्होंने अपनी गलती के कारण न तो उसे आत्मसात किया, न चर्च को। इस तरह बुद्ध और गांधी दोनों मुक्ति से वंचित रह गए।'
इन हरकतों के कारण उत्पन्न होने वाले तनाव का संज्ञान लेते हुए सवार्ेच्च न्यायालय ने मिशनरियों की कार्यशैली पर उंगली उठाई थी, जब ग्राहम स्टेन्स के मामले में फैसला सुनाया जा रहा था। न्यायाधीशों ने महात्मा गांधी और पूर्व राष्ट्रपति के़ आऱ नारायणन को उद्धृत करते हुए ईसाई मिशनरियों तथा चर्च को सीख दी थी कि भारत की एकता 'सहिष्णुता और सभी उपासना पद्धति के प्रति आदर' के सिद्धांत पर आधारित है।
लाशों के ढेर पर खड़े होकर मजहब का सौदा करने वालों के चेहरे से सेवा का मुखौटा उतर चुका है। अब इनके चेहरों को दुनिया के सामने लाने का वक्त है। इस घटियापन में मीडिया और बुद्धिजीवियों को मुखर होना चाहिए। क्या नेपाल के आंसू पोंछने के नाम पर उसकी पहचान मिटाने के षड्यंत्रों को इस सदी में स्थान दिया जा सकता है? प्रसिद्घ फोटो पत्रकार केविन कार्टर के एक छायाचित्र को 1994 का फीचर फोटोग्राफी का पुलित्जर पुरस्कार मिला था। पुरस्कार जीतने के तीन माह बाद व्यथित केविन ने आत्महत्या कर ली थी। ये फोटो सूडान के अकालग्रस्त इलाके की थी, जिसमें एक गिद्ध भूख से मरती एक मासूम बच्ची की सांसें थमने की प्रतीक्षा कर रहा था। केविन नेपाल के भूकंप पीडि़तों पर मंडराते इन गिद्धों को देखकर क्या करते? प्रधानमंत्री सुशील कोईराला का वक्तव्य इतिहास के पन्नों का हिस्सा बन गया है।
उन्होंने कहा-'यह देखना आश्चर्यजनक नही है कि इवेंजेलिक गिद्ध पीडि़त लोगों के जीवन से खेल रहे हैं। वे ऐसा ही करते हैं, जब लोग त्रासदी से गुजरते हैं।' लेकिन गिद्ध तो प्रकृतिवश ऐसा करते हैं। सवाल इंसान का है। इंसान जब दूसरे इंसान की पीड़ा का फायदा उठाने लगे, समृद्धि के पंख पर सवार लोग जब लुटे-पिटे लोगों पर घात लगाएं तो उसे क्या कहा जाये? गिद्ध तो ऐसा नहीं करते। -प्रशांत बाजपेई
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