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'भारत इलेक्ट्रानिक्स' मेंफ्रांसीसी फर्म ने वायदा पूरा नहीं किया

by
Apr 28, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 28 Apr 2015 11:36:18

निज प्रतिनिधि द्वारा
नई दिल्ली। गत वर्ष सुरक्षा विभाग द्वारा संसद में आश्वासन दिया गया था कि शीघ्र ही भारत इलेक्ट्रानिक्स में पूरी शक्ति से उत्पादन कार्य प्रारंभ कर देगा, किन्तु उसकी स्थिति पुन: डांवांडोल हो गई है। ध्यान रहे इस उद्योग में लगभग 8 करोड़ रुपया लगा हुआ है और राष्ट्र की सुरक्षा की दृष्टि से उसका अत्यधिक महत्व है।
1954 में ब्रिगेडियर कपूर द्वारा इस उद्योग में टेक्नीकल व्यवस्थापक का पद उस समय स्वीकार किया गया था जबकि दिल्ली के दो विशेषज्ञों द्वारा इस ओर से अपना हाथ खींच लिया गया था। यह ज्ञात नहीं कि उक्त विशेषज्ञों द्वारा उससे अपना हाथ क्यों खींचा गया था। किन्तु अब श्री कपूर भी, सुना जाता है, पुन: लौटकर सेना में जा रहे हैं। सबसे खेद का विषय यह है कि गत दो वर्षों में जिनमें श्री कपूर कर्ताधर्ता रहे हैं, भारत इलेक्ट्रानिक्स ने न केवल कोई उन्नति ही नहीं की है वरन् उसकी स्थिति दो वर्ष पूर्व की स्थिति से भी बदतर हो गई है।
हैदराबाद के निजाम द्वारा अरब सैनिकों का संगठन
मुसलमानों की राष्ट्रविघातक कार्यवाहियां पुन: सक्रिय

निज प्रतिनिधि द्वारा
नई दिल्ली। मुसलमानों की राष्ट्रघातक मनोवृत्ति कुछ दिनों से दबी हुई प्रतीत होती थी किन्तु अब वह पुन: जोर-शोर के साथ उभरने लगी है। वे पुन: भारत में इस्लामी राज्य की स्थापना का स्वप्न देखने लगे हैं। मुस्लिम जगत के अध्यक्ष पद से फर्रुखाबाद में कलकत्ता के भूतपूर्व मेयर श्री बदरुज्जा द्वारा दिया गया विषाक्त भाषण 'पाञ्चजन्य' में प्रकाशित हो चुका है। अब हैदारबाद के निजाम साहब के घातक मनसूबों की कहानी भी प्रकाश में आई है।
हैदराबाद के एडवोकेट श्री बी. जो. केसकरने वहीं के एक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में निजाम साहब के मनसूबों का रहस्योद्घाटन करते हुए शिकायत की है कि वे (निजाम साहब) स्वयं की सशस्त्र सेना तैयार कर रहे हैं। श्री केसकर ने न्यायालय के समक्ष एक दस्तावेज भी प्रस्तुत किया है। जिसमें भारतीय दण्ड विधि संहिता की धारा 16 के अंतर्गत उन अपराधों की जानकारी दी गई है, जो सशस्त्र कानून के अंतर्गत आते हैं।
दस्तावेज में बताया गया है, कि नगर भर में निजाम की जो सम्पत्ति है उसकी देख-रेख के लिए नियमित 1000 सिपाही हैं जो तरह-तरह की गैरकानूनी बंदूकों से सुसज्जित हैं। ये सिपाही सर्फ ए खास के भीतर अपराधियों पर मुकदमे चलाते हैं और उन्हें दण्ड भी देते हैं।
श्री केसकर ने यह भी बताया कि निजाम की इस सेना में अनेक अरब सैनिक पहले निजाम साहब की 'मैसराम पल्टन' में थे। श्री केसकर द्वारा आरोप लगाया गया है कि बंदूक आदि शस्त्रास्त्रों का प्रशिक्षण देने के लिए सरकारी पुलिस का प्रयोग किया जाता है। निजाम साहब ने विशालकाय सेना तैयार करने के लिए हिटलरी तरीकों को अपनाया है। पुराने शिक्षार्थियों को, शिक्षा समाप्त होते ही निकाल दिया जाता है और उनके स्थान पर नए सिपाहियों को भर्ती कर लिया जाता है।
श्री केसकर का आगे कहना है कि इस प्रकार भारत के अंदर राज्य सरकार की आंखों के सामने इस प्रकार की सेना तैयार होती चली आ रही है और इस और कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। आपने इस सैनिक संगठन को भारत विरोधी तथा पंचमांगी बताया है। मामला न्यायायलय में दर्ज कर लिया गया है।
मुसलमानों की राष्ट्रघातक मनोवृत्ति का दूसरा समाचार बाराबंकी ( उ. प्र.) से प्राप्त हुआ है। जमायत उलेमा के नेता अब्दुल वफा ने स्थानीय नेवलेट इस्लामिया कॉलेज के प्रांगण में भाषण देते हुए कहा है कि 15 अगस्त 1947 के पश्चात् भारत में सबके लिए बहार आई पर मुसलमानों के लिए खिजा आई। कभी मुसलमान इस देश में शासक, ओहदेदार और खुशहाल थे लेकिन अब जो गांव गरीब, परेशान और वीरान हो वहां समझ लो मुसलमान बसते हैं। आपने कहा है कि इस्लाम खतरे में है ….. सरकार धर्म निरपेक्ष नहीं है। सन 50 में शाहजहांपुर में तिरंगा झंडा लेकर लोग मुसलमानों को जिबह करने आए थे। उर्दू का तिरस्कार हो रहा है। अनिवार्य प्रारम्भिक शिक्षा में हमें हिंदुओं का धर्म और तहजीब सीखनी पड़ती है। गणेश को पूजनीय और श्रीकृष्ण को अवतार बताया जाता है। हमारे बच्चे सलाम की जगह हाथ जोड़कर नमस्ते करना सीखते हैं। आपने आगे मांगा, मुसलमानों के लिए अलग मकतब हों, जहां दीनी तालीम दी जाए। आपने आगे फर्माया कि हमारी जरूरियात की हर बात रसूल पाक से मिलेगी। मुसलमानों को हर इल्म इस भावना से सीखना चाहिए कि वह उन्हीं की चीज थी जो दूसरो के पास चली गई।

अरब राष्ट्र सोचें
भारत-शासन की विदेश नीति न तो जनभावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है और न राष्ट्र के हितों का संरक्षण। पश्चिम एशिया के संघर्ष में उसने जो नीति अपनायी , उसे जनता का समर्थन नहीं मिल सका। जब ब्रिटेन ने स्वेज पर बमबारी की थी तब हिन्दुस्तान की जनता ने भारी रोष प्रकट किया था। हम लोग सदैव से अरब देशों की मित्रता के हामी रहे हैं। किन्तु तब भारत पाक संघर्ष में हमारे प्रति सरासर अन्याय होते हुए भी अरब देशों ने हमारे साथ मौखिक सहानुभूति भी प्रकट नहीं की, बल्कि जॉर्डन ने हमारे विरुद्ध पाकिस्तान की वकालत की, तो भारत की जनता को अरबों से भारी निराशा हुई। यह निराशा ही लोगों के बदलते हुए रुख के लिए जिम्मेदार है। यदि अरब देश वास्तव में भारत से मित्रता चाहते हैं तो उन्हें हमारी भावनाओं को समझना होगा। जब अरब देश हमारे शत्रु देशों के साथ संबंध रख सकते हैं तो हम अपने ऊपर भी यह बन्धन नहीं लगा सकते कि हम इस्रायल के साथ कोई सम्बन्ध न रखें। (पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार-दर्शन खण्ड-7 पृष्ठ संख्या 86)

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