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स्पैक्ट्रम, खनिज, प्राकृतिक संसाधनों आदि के मौद्रीकरण संबंधित मुद्दों पर एक व्यापक सार्वजनिक नीति की आवश्यकता है। ऐसी जन-नीति जिसका ध्येय जनता एवं राजकोष को अत्यधिक लाभान्वित करना हो और यही उसका परम लक्ष्य हो।
राजीव चंद्रशेखर
भारतीय राजनीतिज्ञ अपने लंबे-चौड़े वायदों एवं वाकपटुता के लिए जाने जाते हैं। अगर उनके ऊपर कोई किताब लिखी जाये, तो पन्ने पलटते हुए आप पायेंगे कि इन राजनेताओं ने क्या-क्या कहा है और अंत में आप अपना सिर पकड़ के बैठ जायेंगे और यह सोचेंगे कि पता नहीं यह लोग क्या-क्या सोचते हैं? भाग्य के इस उलटफेर में कुछ नेताओं ने इस प्रकार कुप्रसिद्घि भी पायी है और संप्रति ऐसा श्री कपिल सिब्बल के साथ हुआ जब जिन्होंने दूरसंचार मंत्रालय के अंतर्गत हुए अब तक के सबसे बड़े टेलीकों घोटाले में शून्य हानि का दावा किया। हाल ही में स्पेक्ट्रम एवं कोयला आवंटन में सफलतापूर्वक हुई नीलामी इस बात को दर्शाती है कि उन अंधेरी रातों से निकलकर देश एवं शासन आज कितना आगे आ चुका है, जब स्पेक्ट्रम एवं कोयला आवंटन मामले में कुछ घनिष्ठ व्यवसायी मित्रों एवं दोस्तों ने आम जनता की संपत्ति एवं ठेके में अपना कब्जा जमा लिया था। जनसंपत्ति की तरफ सरकार की सोच बदलने से एक भारी बदलाव आया है और यह बताना काफी है कि कुछ दिनों पूर्व हम कहां चले गये थे और आज हम कहां जा रहे हैं?
यह बात 12 मई 2007 की है, जब मैं एक नवनिर्वाचित सांसद था, और स्पेक्ट्रम नीलामी को लेकर अपनी आवाज उठा रहा था, उस समय मेरी गर्दन पर ही तलवार लटक गयी और मेरे हाथ से मेरा काम छिन गया। मेरी लाख कोशिशों के बावजूद, स्पेक्ट्रम से संबंधित प्रस्ताव पर मुझे थोड़ा भी सहयोग नहीं मिला। ऐसा अपेक्षित ही था और इसके विपरीत इस उद्योग को ज्यादा पूंजी देने को कहा गया। पर यह आश्चर्यपूर्ण था और मीडिया के कई लोगों ने बिना इसका अर्थशास्त्र समझे इसका विरोध करना शुरू कर दिया कि इससे उपभोक्ताओं को अत्यधिक राशि देनी पड़ेगी। इस बात से एक तथ्य स्पष्ट हो गया कि किस प्रकार उद्योग जगत के हित में व्यवसायी पत्रकार प्रभावित हो गये- ऐसा हाल-फिलहाल में भी देखा जा सकता है। पर इस संबंध में सभी मजबूत शक्तियां इस आवंटन के लिए एकजुट हो गयीं जिसमें मीडिया के कई लोग एवं सरकार भी शामिल थी और जो इस खुल्लमखुल्ला लूट एवं अव्यवस्था के मूल आधार रहे। मैंने 14 नवंबर 2007 से इस संबंध में पत्र लिखना शुरू किया जब संप्रग-1 ने बंदरबाट की तरह लाइसेंस आवंटित करने की शुरुआत की थी। मैंने कहा कि स्पेक्ट्रम आवंटन से संबंधित सारे निर्णय दो मापदंडों- एक, जनहित एवं दूसरा पारदर्शिता के हिसाब से खरे उतरने चाहिए। स्पेक्ट्रम के किसी भी आवंटन में यह बात स्पष्ट थी कि नये लाइसेंस अगले कुछ माह में जारी किये जायेंगे। इस संबंध में दो प्रश्न बहुत जटिल थे कि क्यों सरकार वह मूल्य ले रही थी जो उसे छह वर्ष पूर्व सन् 2001 में एक निविदा के दौरान उद्घृत किया गया था? दूसरा लाइसेंस जारी करने के लिए निविदा आमंत्रित क्यों नहीं की जा रहीं थीं? मैंने 26 नवंबर 2007 को तत्कालीन टेलीकॉम मंत्री ए़ राजा को पत्र लिखकर उपरोक्त मुद्दों की तरफ इशारा किया था। मैंने मंत्री महोदय से इस संबंध में एक वायदा मांगा था कि टेलीकॉम विभाग तुरंत ही पहले से लागू नीति एवं वर्ष 2005 के दिशा निर्देशों को सुधारेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि भविष्य में स्पेक्ट्रम से संबंधित जारी होने वाले किसी भी लाइसेंस को पारदर्शी एवं कई दौर की नीलामी प्रक्रिया द्वारा ही जारी किया जाएगा। फिर 25 सितंबर 2008 को मैंने फिर पत्र लिखकर यह बताया कि 'जनसंपत्ति जैसे स्पैक्ट्रम, खनिज, प्राकृतिक संसाधनों आदि के मौद्रीकरण संबंधित मुद्दों पर एक व्यापक सार्वजनिक नीति बनाये जाने की आवश्यकता है- एक ऐसी जननीति ध्येय जनता एवं राजकोष को अत्यधिक लाभान्वित करना हो और यही उसका परम लक्ष्य हो।'' इस संबंध में मीडिया की अरुचि मुझे आजतक आश्चर्य में डालती है। पर, कुछ पत्रकार ऐसे भी थे जिन्होंने मनमोहन सिंह की सरकार के साथ अपने अच्छे संबंधों के बावजूद इस बारे में खुलकर लिखा। यहां तक कि एक पत्रकार जो अपने पेशे के प्रारंभिक वषोंर् में ही इस घोटाले को उजागर करने में जुटी थीं, उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
बहरहाल, राज बदला कामकाज का ढंग भी बदल गया। जो कोयला कल भ्रष्टाचार की कालिख था आज सरकार के मुनाफे की सुनहरी कहानी लिख रहा है। खुली लूट का खेल खत्म होना देश के लिए राहत की बात है।
कोयला एवं 2 जी स्पेक्ट्रम की सफलतापूर्वक नीलामी, दुर्लभ संसाधनों के आवंटन का एक सवार्ेत्तम तरीका
जो कोयला कल भ्रष्टाचार की कालिख था आज सरकार के मुनाफे की सुनहरी कहानी लिख रहा है
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