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रोहतक स्थित बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय परिसर में 27 से 29 मार्च तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हरियाणा प्रांत का तरुणोदय (2015) शिविर आयोजित हुआ। शिविर में लगभग पांच हजार तरुणों ने भाग लिया और तीन दिन तक अनेक विधाओं की जानकारी ली और प्रशिक्षण प्राप्त किया।
27 मार्च को शिविर का उद्घाटन संघ के उत्तर क्षेत्र के संघचालक डॉ़ बजरंगलाल गुप्त ने किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 90 वर्ष से व्यक्ति निर्माण के कार्य में लगा है। किसी भी देश व समाज का उत्थान वहां रहने वाले लोगों की दिशा पर निर्भर करता है। शाखा पर आने वाला हर कार्यकर्ता राष्ट्रहित को सवार्ेपरि मानते हुए भारत माता के दु:ख में दु:खी होता है और सुख में सुखी। देश का युवा यदि ठान ले तो कोई भी बाधा भारत माता को विश्व का सिरमौर बनने से नहीं रोक सकती। संघ की शाखा पर ऐसे संस्कार दिए जाते हैं जिससे युवा सामर्थ्यवान बनता है और देशहित में काम करने के लिए तत्पर रहता है। उद्घाटन सत्र में बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. मार्कण्डेय आहूजा सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित थे।
शिविर के दूसरे दिन 'वर्तमान परिवेश में हिन्दुत्व की प्रासंगिकता' विषय पर आयोजित गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि धर्म सभी के लिए कल्याणकारी होता है। धर्म हमेशा शाश्वत होता है। चाहे पूजा-पद्धति कुछ भी हो धर्म जोड़ने का कार्य करता है। सबके जीवन की चिन्ता करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करना ही धर्म है। धर्म को संकुचित दायरे में बांधना ठीक नहीं है। धर्म वह है, जिसके मूल में समभाव हो। सेवा, सहनशीलता, कृतज्ञता जैसे मूल्य हिन्दुत्व की पहचान हैं। उन्होंने कहा कि भारत के दर्शन में आत्मीयता का भाव है। आत्मीयता में संघर्ष नहीं समन्वय होता है। इसी मान्यता व विरासत को भारतीयों को पहचानना चाहिए और अपनी विरासत पर गर्व करना चाहिए। उन्होंने कहा कि विदेशी आक्रमण और भारतीय समाज को मूल से विस्मृत किए जाने के कारण भारतीय समाज में कुछ कमजोरियां आईं। अब समाज के आचरण में मूल्य और बल दोनों को बढ़ाना होगा, ताकि भारत को उत्कर्ष की राह पर पुन: ले जाया जा सके। इस अवसर पर मुख्य अतिथि और अपोलो अस्पताल, दिल्ली के निदेशक डॉ. पुष्पेंद्र नाथ ने कहा कि हिन्दुुत्व सेवा भावना और सहनशीलता की दिशा दिखाता है। उन्होंने सुश्रुत, भाई कन्हैयालाल आदि के जीवन उदाहरण देते हुए कहा कि मनुष्य मात्र की सेवा ही भगवान की सच्ची सेवा है और चिकित्सा जगत में यह भाव होना चाहिए।
शिविर के समापन समारोह को सम्बोधित करते हुए श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि भारत की गौरवशाली परम्परा रही है। इसी गौरवशाली परम्परा के कारण ही आज भारत का बड़ा और शक्तिशाली होना विश्व की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर के कारण ही हम अनेक कालचक्रों का सामना करते हुए टिके रहे। हमने कभी किसी संस्कृति को नकारा नहीं। हमारी समन्वयवादी परम्परा रही है। इसलिए हमने सभी क्षेत्रों में अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। हर क्षेत्र में ज्ञान-विज्ञान को प्रारंभ करने का श्रेय भारत को जाता है। खेती हो, विज्ञान हो या अध्यात्म हम हर क्षेत्र में आगे रहे हैं। चाहे लौह स्तम्भ बनाने की बात हो या स्टेनलेस स्टील भारतवासी हर क्षेत्र में आगे रहे हैं। हमारे वनवासी बंधुओं द्वारा बनाया जाने वाला स्टेनलेस स्टील उच्च कोटि का है, जिसका लोहा बड़ी-बड़ी कम्पनियां मानती हैं। हमने विश्व को ज्ञान दिया है। इतना ही नहीं ज्ञान को विश्व में हर किसी तक पहुंचाने के लिए भारतीयों ने बलिदान तक दिया है। उन्होंने बताया कि जब ह्वेनसांग नालन्दा विश्वविद्यालय से पुस्तकंें लेकर नाव द्वारा चीन जा रहे थे तब तूफान आ गया। नाविक ने कहा कि नाव से कुछ भार कम करना होगा। इस पर ह्वेनसांग की चिन्ता बढ़ गई। उन्हें लगा कि इतनी महत्वपूर्ण और ज्ञानदायिनी पुस्तकें नदी में फेंकनी पड़ेंगीं। उनकी चिन्ता कम करने के लिए नाव पर सवार तीन भारतीयों ने नदी में छलांग लगा दी, ताकि ज्ञान से भरी पुस्तकें चीन जा सकें। उन्होंने कहा कि भारत की परम्परा धर्म आधारित अर्थ, काम और मोक्ष की रही है। संघ इसी महान सांस्कृतिक परम्परा को आगे बढ़ाने और इसके प्रति देश के लोगों में गौरव जगाने के लिए कार्य कर रहा है। हम सब के मन में भारत को परम वैभव तक ले जाने का सपना है। यह सपना तब पूरा होगा जब हम अपने भारत को जानेंगे। उन्होंने कहा कि भारत की उन्नति तब तक संभव नहीं है, जब तक भारत का प्रत्येक व्यक्ति भारत की सभ्यता, संस्कृति व समन्वय की परम्परा पर नहीं चलेगा। आपसी सभी प्रकार के भेदभावों को मिटाकर हमें अपने राष्ट्र के लिए कार्य करना है। उन्होंने कहा कि संघ के बाहरी रूप को देखकर लोगों के मन में अनेक विचार बनते हैं। कोई इसे राजनीतिक संगठन समझता है, कोई व्यायामशाला समझता है, कोई कुछ और समझता है। संघ विशुद्ध रूप से राष्ट्र के प्रति जीने वाले समर्पित कार्यकर्ताओं को तैयार करने का निर्माण केन्द्र है।
इस अवसर पर सरसंघचालक ने ओलंपिक पदक विजेता पहलवान योगेश्वर दत्त, पहलवान परमजीत यादव और विजयपाल को सम्मानित भी किया।
प्रदर्शनी का उद्घाटन
शिविर से एक दिन पूर्व यानी 26 मार्च को शिविर स्थल बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग परिसर में संघ के दर्शन से युक्त राष्ट्र गौरव एवं कर्तव्य बोध जागरण प्रदर्शनी आयोजित हुई। इसका उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और अलवर के सांसद महन्त चांदनाथ ने दीप प्रज्वलित कर और नारियल फोड़कर किया। उन्होंने इस प्रदर्शनी की बड़ी प्रशंसा की। इस अवसर पर उत्तर क्षेत्र के कार्यवाह श्री सीताराम व्यास, सह प्रान्त संघचालक श्री पवन जिंदल, प्रान्त कार्यवाह श्री देवी भारद्वाज, प्रान्त प्रचारक श्री सुधीर कुमार आदि उपस्थित थे।
प्रदर्शनी में 26 जनवरी, 1963 को नई दिल्ली के राजपथ पर आयोजित परेड में संघ के स्वयंसेवकों के भाग लेने वाला चित्र भी शामिल था। उल्लेखनीय है कि परेड में भाग लेने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने संघ को आमंत्रित किया था। समरसता को बढ़ावा देने के लिए हो रहे कायार्ें और सिख गुरुओं के बलिदान से सम्बंधित चित्र भी प्रदर्शनी में शामिल थे।
बाबा सत्यनारायण मौर्य की स्वर लहरियां
शिविर में रात्रि कार्यक्रम में बाबा सत्यनारायण मौर्य ने ऐसा समां बांधा कि युवा शक्ति जोश और उत्साह से भर उठी। कैनवास पर बाबा के थिरकते हाथ और जुबान से निकलते देशभक्ति के गीतों ने ऐसा वातावरण बनाया कि हर हाथ ताली बजाने के लिए मजबूर हो गया। बाबा के हाथ जब कैनवास पर थिरकते थे तो देखते ही देखते कभी भारत माता के चित्र, तो कभी स्वामी विवेकानन्द का चित्र उभर आता था।
उन्होंने डॉ. हेडगेवार का चित्र बनाकर बताया कि आज भारत की संस्कृति, सभ्यता और परम्परा जीवित है तो डॉ. हेडगेवार जैसे भारत माता के पुत्रों के त्याग और तपस्या के कारण। ल्ल
शिविर की झलकियां
ल्ल शिविर में 73 महाविद्यालयीन प्राध्यापक, 109 विद्यालयीन प्राध्यापक और दूरस्थ शिक्षा के 193, पी.एचडी., पी.जी., एम.बी.ए. और एम.सी.ए. के 206, सी.ए., सी.एस. और आई.सी.डब्ल्यू.ए. के 43, बी.टेक के 385, एल.एल.बी. के 76, बी.ए., बी.कॉम, बी.एस.सी., बी.बी.ए. और बी.सी.ए. के 931, डिप्लोमा के 333, आई.टी.आई. के 138, बारहवीं के 734 और अन्य 67 विद्यार्थियों ने भाग लिया।
-शिविर में इन महापुरुषों के नाम पर नगर बसाए गए थे-सम्राट पृथ्वीराज चौहान, महाराजा अग्रसेन, सम्राट हर्षवर्धन, राजा नाहर सिंह, राव तुलाराम, स्वामी दयानन्द और हेमचन्द्र विक्रमादित्य।
-भोजनालय में प्रबंधकों के अतिरिक्त 150 कर्मचारी भोजन बनाने में लगे थे। इन कर्मचारियों ने 5000 स्वयंसेवकों को समय पर भोजन उपलब्ध कराया। उस समय बहुत ही मनोहारी दृश्य उपस्थित होता था जब भोजन मंत्र के उच्चारण के बाद स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ भोजन करते थे।
-शिविर में स्वयंसेवकों ने साफ-सफाई की ऐसी व्यवस्था की थी कि कभी लगा ही नहीं कि वहां हजारों स्वयंसेवक रह रहे हैं। हर चीज पूरी तरह व्यवस्थित थी।
-सभी स्वयंसेवक निर्धारित शुल्क देकर शिविर में आए थे। उनके साथ दैनिक उपयोग की सभी वस्तुएं भी थीं। जैसे खाने के बर्तन, सोने के बिस्तर आदि।
-स्वयंसेवकों ने अनुशासन का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। तभी यह शिविर बहुत ही सुचारू रूप से सम्पन्न हुआ।
-शिविर प्रारंभ होने से एक दिन पहले आंधी-तूफान ने पूरे बौद्धिक पंडाल को अस्त-व्यस्त कर दिया था। उद्घाटन कार्यक्रम शुरू होने में बहुत ही कम समय बचा था। स्वाभाविक रूप से आयोजन की देखरेख करने वाले कार्यकर्ताओं की चिन्ता बढ़ रही थी। तभी बाहर से आए स्वयंसेवकों ने पण्डाल को तैयार करने का बीड़ा उठाया और कुछ ही घंटों में पण्डाल तैयार हो गया। -पाञ्चजन्य ब्यूरो
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