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उदात्त भारतीय परंपराओं के बिना भारतीय संस्कृति की व्याख्या और समझ अधूरी है। सनातनी व्यवस्था अगर युगों से बची हुई है तो इसकी बड़ी वजह उसके अंदर सन्निहित उदात्त चेतना है। पश्चिम की विचारधारा पर आधारित लोकतंत्र के जरिए जब से नवजागरण और कथित आधुनिकता का जो दौर आया, उसने सबसे पहले सनातनी व्यवस्था को ठेस पहुंचाने और ठहराने की कोशिश की। लेकिन इसी दौर में एक शख्स अपनी पूरी सादगी और विनम्रता के साथ तनकर हिंदुत्व की रक्षा में खड़ा रहा। उसने अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा और कठिन तप के सहारे आधुनिकता के बहाने हिंदुत्व पर हो रहे हमलों का न सिर्फ मुकाबला करने की जमीन तैयार की, बल्कि देवनागरी पढ़ने वाले लोगों के जरिए दुनियाभर में हिंदुत्व, सनानती व्यवस्था, सनातन ज्ञान और उदात्त संस्कृति को प्रचारित करने में बड़ी भूमिका निभाई। गोरखपुर में गीताप्रेस के जरिए हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार के साथ ही सनातन ज्ञान की ज्योति को जनमानस में फैलाने में हनुमान प्रसाद पोद्दार का योगदान अप्रतिम है। भाई जी के नाम से विख्यात हनुमान प्रसाद पोद्दार की महत्वपूर्ण सेवा को स्वतंत्रता आंदोलन और उसके बाद के करीब आधे दशक तक न सिर्फ राजनीति बल्कि समाज और साहित्य की बड़ी हस्तियों ने भी सम्मान दिया। बेशक आज ईमेल और एसएमएस का जमाना है, लिहाजा गहन वैचारिक चिंतन, संवाद और विमर्श की प्रक्रिया पूरी तरह ठप पड़ती जा रही है। सोशल मीडिया पर जो विमर्श हो भी रहा है, उसमें गहराई कम, उथलापन ज्यादा है। इसके साथ ही उस पर तात्कालिकता का जोर है। विमर्श के संदर्भ बेशक तत्कालिक होते हैं। लेकिन उनकी गहराई एक दौर का विश्लेषण करती है और एक बड़े दौर के वैचारिक आयामों का अक्स भी होती है। भाई जी के साथ हुए विभिन्न हस्तियों के पत्रव्यवहार में इसके बार-बार दर्शन होते हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति रहे अच्युतानंद मिश्र ने भाई जी के साथ हुए सामाजिक और राजनीतिक तमाम हस्तियों के पत्रव्यवहार को संपादित किया है। समय संस्कृति नाम की पुस्तक को पांच खंडों में विभाजित किया गया है। इसमें शामिल तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री गोविंदबल्लभ पंत को लिखा पत्र हनुमान प्रसाद पोद्दार के व्यक्तित्व की ऊंचाई और गहराई दोनों को समझने के लिए काफी है। इस पत्र में भाई जी ने खुद के प्रति पंत के लिखे पत्र को उद्घृत किया है- आपने मेरे लिए लिखा है कि आप इतने महान हैं, इतने ऊंचे महामानव हैं कि भारतवर्ष को क्या, सारी मानवी दुनिया को इसके लिए गर्व होना चाहिए। मैं आपके स्वरूप के महत्व को न समझकर ही आपको भारतरत्न की उपाधि देकर सम्मानित करना चाहता था। आपने उसे स्वीकार नहीं किया, यह बहुत अच्छा किया। आप इस उपाधि से बहुत-बहुत ऊंचे स्तर पर हैं। मैं तो आपको हृदय से नमस्कार करता हूं।' आज के दौर में जब बिना किसी सामाजिक सरोकार के कुछ लोगों की सर्वत्र जय-जयकार होने लगती है, उसी भारतरत्न के प्रस्ताव को लेकर कभी राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू की सहमति से तब के गृहमंत्री गोविंदबल्लभ पंत गोरखपुर जैसी जगह पर जाते हैं और भाई जी से इसे लेने के लिए निवेदन करते हैं लेकिन वह इसे स्वीकार करने से बड़ी विनम्रता से इंकार कर देते हैं। इस कार्य से उनके व्यक्तित्व का अंदाजा लगाया जा सकता है।
आज हिंदुत्व की चर्चा करने वाले राजनेताओं खासकर कथित प्रगतिगामी धारा का विरोधी होने का खतरा रहता है। लेकिन भाई जी के इस पत्रव्यवहार संकलन को पढ़कर आपको पता चलेगा कि पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद किस तरह की चीजें पढ़ना चाहते थे और गीताप्रेस की पत्रिका कल्याण में कैसी सामग्री छपने का सुझाव वह स्वयं देते थे। इस संग्रह में पोद्दार जी को लिखे गांधी जी के भी पत्र शामिल हैं। 8 अप्रैल, 1932 के पत्र में गांधी जी स्वयं लिखते हैं कि ईश्वर में विश्वास रखने से ही मैं जिंदा बच गया। इस संग्रह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक पूज्य श्रीगुरुजी के भी पत्र हैं। जिसमें उन्होंने हनुमान प्रसाद पोद्दार से वक्त पर लेख लिख न पाने के लिए क्षमा मांगी है। यहां यह बता देना जरूरी है कि श्रीगुरुजी ने पोद्दार जी के निवेदन पर कल्याण के लिए लेख भी लिखा था। उनका लेख विशुद्घ प्रेममयी मानवता, कल्याण के 33वें वर्ष के विशेषांक मानवता अंक में प्रकाशित हुआ था। पोद्दार जी मुंबई राज्य के गवर्नर रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्रीप्रकाश के भी सतत् संपर्क में रहे और उन्हें भी लिखने के लिए प्रेरित करते रहे।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला भी उनके लिए लिखते रहे। हिंदी में वियोगी हरि के नाम से विख्यात हरिप्रसाद द्विवेदी की ख्याति गांधीवादी पत्रकार के तौर पर रही है। उन्होंने भी कल्याण और गीताप्रेस के लिए लिखा। संत साहित्य के मर्मज्ञ के तौर पर मशहूर रहे बलिया के पंडित परशुराम चतुर्वेदी ने भी उत्तर भारत के कुछ संतों की जीवनियां पोद्दार जी के लिए लिखी थीं।
इस संग्रह में अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंशराय बच्चन का भी एक पत्र शामिल है जिससे पता चलता है कि उन्होंने भी जनगीता गीताप्रेस के लिए लिखी और उसकी कॉपी सुधारी थी। लक्ष्मीनारायण गर्दे, विश्वनाथ मिश्र, विद्यानिवास मिश्र, आदि-आदि कितनी ही हस्तियों से लिखवाना, उनके मंतव्य जानना और इसके जरिए कल्याण को संस्कृत्युपयोगी बनाने में पोद्दार जी की बड़ी भूमिका रही। हिंदी समाज में प्रभुदत्त ब्रह्मचारी के काम को गोरखपुर के गीताप्रेस के जरिए भी दुनिया ने ज्यादा जाना है। पोद्दार जी से उनके संवाद के कई पत्र इस संग्रह में शामिल हैं। इस संग्रह में पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी का वह पत्र भी शामिल हैं, जिसमें उन्होंने पोद्दार जी को खरी-खरी सुनाई है।
इस पूरे संग्रह से गुजरते हुए पता चलता है कि पोद्दार जी के तौर पर मौन तपस्या ने किस हद तक भारतीयता की सेवा की है। कल्याण और गीताप्रेस के माध्यम से उन्होंने हिन्दुत्व व सनातनता को जन-जन तक पहुंचाया है। आज उनके द्वारा तैयार किया पौधा वटवृक्ष का रूप ले चुका है। इस पूरे कार्य के पीछे उनकी लगन, उनका सेवाभाव और अथाह करुणामयी पीड़ा ही थी। ल्ल उमेश चतुर्वेदी
पुस्तक का नाम – पत्रों में समय संस्कृति
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के कुछ विशिष्ट पत्र
सम्पादन – अच्युतानंद मिश्र
प्रकाशक – प्रभात प्रकाशन
मूल्य – 350/रु.
पृष्ठ – 255
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