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केरल में दसवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान विषय के प्रश्नपत्र में 'चांद और तारे' का चिह्न प्रकाशित कर दिया गया, जो कि इस्लाम से संबंधित होने के साथ सत्तारूढ़ कांग्रेस की सहयोगी 'इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग' (आईयूएमएल) का प्रतीक चिह्न है। यह घटनाक्रम इन दिनों केरल में बड़ा विषय बना हुआ है और जगह-जगह इसके विरोध में प्रदर्शन जारी है। केरल की सत्ता में जब से 'यूनाइटेड डेमोके्रटिक फ्रंट' (यूडीएफ) की सरकार आई है, तभी से शिक्षा के मामलों में केरल कांग्रेस या आईयूएमएल का सीधेतौर पर हस्तक्षेप है।
गत 17 मार्च को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले छात्रों के सामाजिक विज्ञान के प्रश्नपत्र में पहले और अंतिम पृष्ठ पर 'चांद और तारे' छापे गए, इसका संचालन राज्य परीक्षा बोर्ड द्वारा किया जाता है। 'नेशनल टीचर यूनियन' ने इसे षड्यंत्र बताते हुए आईयूएमएल द्वारा शिक्षा का इस्लामीकरण करार दिया है। भाजपा युवा मोर्चा ने प्रदर्शन कर इसका कड़ा विरोध किया है और निदेशक कार्यालय पर प्रदर्शन भी किया। दरअसल जब से ओमान चांडी की सरकार सत्ता में आई है, तभी से शिक्षा मंत्री पी. के. अब्दु रब, जो कि आईयूएमएल के नेता हैं। शिक्षा के इस्लामीकरण को लेकर कई बार घिर चुके हैं।
इस प्रकरण के सामने आने के बाद मंत्री ने अपनी ओर से सफाई देते हुए कहा कि प्रश्नपत्र केरल के बाहर की प्रिंटिंग प्रेस में छपते हैं और प्रिंटिंग प्रेस वाला ही निर्णय करता है कि उसे प्रश्नपत्र पर कौनसा चिह्न छापना है, जबकि वास्तविकता यह है कि कुछ समय पूर्व शिक्षा विभाग द्वारा निर्देश जारी किया गया था कि जो महिला शिक्षक मंत्री के कार्यक्रम में शामिल होंगी, उनके लिए हरे बॉर्डर वाली साड़ी पहनना अनिवार्य होगा। पिछले वर्ष शिक्षा विभाग ने सभी विद्यालयों को निर्देश दिया था कि वे अपने-अपने विद्यालय में काले रंग के 'ब्लैक बोर्ड' को हरे रंग में परिवर्तित करा दें, लेकिन सरकार को कड़े विरोध के बाद इस निर्णय को वापस लेना पड़ा था। इसी तरह मुस्लिम महिला शिक्षकों के लिए हरा बुर्का पहनना अनिवार्य किया गया था, उस प्रस्ताव को भी सरकार को विपक्ष के कड़े विरोध के बाद वापस लेना पड़ा था।
हिन्दू ऐक्य वेदी के महासचिव कुमान्नुम राजशेखरन ने प्रश्नपत्र में 'चांद-तारा' प्रकाशित होने की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह मुस्लिम लीग द्वारा क्षुद्रनीति के तहत राज्य में शिक्षा का इस्लामीकरण करने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि यह कोई चूक नहीं, बल्कि अस्वीकार्य घटना है। उनका आरोप है कि यह आईयूएमएल की अदृश्य राजनीति का ही प्रमाण है और यह संकेत है कि राज्य सरकार शिक्षा के क्षेत्र में धावा बोल रही है। उन्होंने सभी लोकतांत्रिक संगठनों, राजनीतिक दलों और सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाओं से अपील की है कि वे आईयूएमएल द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ती अनैतिक घुसपैठ को रोकने के लिए आगे आएं वरना आईयूएमएल छात्र वर्ग का अहित ही करेगी।
सोशल मीडिया पर यह विषय इस समय खासी चर्चा में है और सरकार भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रही है। परीक्षा विभाग द्वारा किए गए इस दुस्साहसपूर्ण कार्य पर मचे बवाल को ठंडा करने के लिए इसे मामूली चूक बताया जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि पूरे राज्य में शिक्षण संस्थाओं पर ईसाई और मुसलमान संगठनों का वर्चस्व है। अल्पसंख्यकों द्वारा राज्य में 3340 विद्यालय संचालित हैं, जबकि हिन्दू संगठनों के मात्र 194 विद्यालय ही हैं। ईसाइयों और मुसलमानों द्वारा संचालित 223 कला व विज्ञान के कॉलेज हैं, जबकि हिन्दुआंे के 433 व्यावसायिक कॉलेजों में से 42 ही कॉलेज हैं। इनमें से 258 कॉलेज अल्पसंख्यक, 86 कॉलेज सरकार के और 89 कॉलेज अलग-अलग हिन्दू संगठनों की देखरेख में हैं।
अल्पसंख्सकों को अपने पंथ-मजहब की शिक्षा की छूट है, जबकि हिन्दुओं के ऐसा करने पर रोक है। अल्पसंख्यक संस्थाआंे में पढ़ने वाले हिन्दू छात्रों पर ईसाई और मुस्लिम साहित्य को पढ़ने का दबाव बनाया जाता है। ऐसा उन्हें बदलने के लिए और उनकी भावनाओं को आघात पहंुचाने के लिए किया जाता है। केरल में सेकुलर शिक्षा का कई बार पर्दाफाश हो चुका है।
केरल राज्य में राजकोष का एक बड़ा हिस्सा अल्पसंख्यकों की शिक्षा के नाम पर पिछले 48 वर्षों से खर्च किया जाता है। 'लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रं ट' और 'यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट' ने हमेशा से अल्पसंख्यकों को महत्व देकर उन्हें बढ़ावा दिया है। समाज में इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हाल की रपट के अनुसार राज्य के 199000 शिक्षकों में से मात्र 38 फीसद शिक्षक ही हिन्दू हैं। 1997 की रपट के अनुसार केरल में 14200 कॉलेजों में 76 फीसद शिक्षक अल्पसंख्यक थे।
ये सभी आंकड़े केरल में असंगठित हिन्दू जनसांख्यिकी की गिरावट को प्रदर्शित करते हैं। केरल सरकार सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हिन्दू समाज के छात्रांे को प्रतियोगिता से बाहर का रास्ता दिखाने पर तुली हुई है। इस स्थिति को समझते हुए हिन्दुआंे को चाहिए कि वे अभी भी संभल जाएं और इस गंभीर चेतावनी के प्रति जागरूक हों। ल्ल प्रदीप कृष्णन
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