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वैदिक मंत्रों की ध्वनि के साथ सैकड़ों की संख्या में लोगों ने भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देकर हिंदू नववर्ष का स्वागत किया। मौका था लोककला एवं संस्कृति को समर्पित अखिल भारतीय संस्था 'संस्कार भारती' दिल्ली प्रांत द्वारा विक्रमी संवत् 2072, युगाब्द 5117 के अभिनंदन समारोह का।
पाञ्चजन्य ब्यूरो
21 मार्च, दिल्ली के वजीराबाद स्थित यमुना तट के सूरघाट पर ठीक सूर्योदय से पहले भक्ति गीतों की स्वर लहरियां गूंज रही थीं। सूर्योदय से पूर्व की लालिमा लिए हुए अंधेरे में सूरघाट की सीढि़यों पर जगमगा रहे नन्हें-नन्हें दीप नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। जैसे ही पूर्व दिशा से भगवान सूर्यनारायण अपने पथ पर अग्रसित हुए और उनकी पहली किरण धरा पर आई वैसे ही यमुना तट मंगलवाद्यों और शंख की ध्वनि से गुंजायमान हो गया। वैदिक मंत्रों की ध्वनि के साथ सैकड़ों की संख्या में लोगों ने भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देकर हिंदू नववर्ष का स्वागत किया। मौका था लोककला एवं संस्कृति को समर्पित अखिल भारतीय संस्था 'संस्कार भारती' दिल्ली प्रांत द्वारा विक्रमी संवत् 2072, युगाब्द 5117 के अभिनंदन समारोह का। वर्ष प्रतिपदा के इस अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर भारत के पूर्व उप-प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी अपनी पुत्री प्रतिभा आडवाणी के साथ उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्कार भारती के अखिल भारतीय संरक्षक श्री योगेंद्र बाबा ने की। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिल्ली प्रांत सह संघचालक श्री आलोक कुमार विशेष तौर पर उपस्थित थे।
कार्यक्रम के दौरान सूरघाट पर अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। कवि गजेंद्र सोलंकी के गीत 'है हमारी संस्कृति का गान संवत् विक्रमी, काल गणना की अमिट पहचान संवत् विक्रमी' को जनसमूह ने उनके साथ-साथ जब दोहराया तो एक अलग ही दृश्य उपस्थित हो गया। हिंदू नववर्ष का स्वागत करते जनसमूह के भावों की आभा देखते ही बनती थी। सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान श्री दुर्योधन प्रधान के समूह ने मृदंग और मंजीरे की ध्वनि से ऐसा समां बांधा कि लोग झूम उठे। कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय गायन प्रतियोगिताओं में प्रतिभागी रह चुकी आठ वर्षीया बालिका श्रेया बसु द्वारा सूर्यनारायण की उपासना में प्रस्तुत भजन 'हृदय के तारों से उठती झनकारों से ग्रहण हो आराधना, आनंद भरे गीतों से करो मेरी उपासना' को दर्शकों से अपार सराहना मिली। स्वयं श्री लालकृष्ण आडवाणी ने बालिका से बातचीत की और उसे प्रोत्साहित किया। संस्कार भारती की शास्त्रीय संगीत संयोजिका अदिति शर्मा ने शास्त्रीय गायन प्रस्तुत किया। दीप्ति गुप्ता ने नृत्य द्वारा भगवान सूर्य की आराधना कर मनोरम प्रस्तुति दी।
सूरघाट पर मौजूद चित्रकारों द्वारा विभिन्न रंगों से 'कैनवास' पर बनाए गए चित्र ऐसे लग रहे थे मानो वे सजीव हों। कार्यक्रम के अंत में मुख्य अतिथि श्री लालकृष्ण आडवाणी ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि वर्ष 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई, वर्षों तक संघ स्वामी विवेकानंद जी की कल्पना को साकार करने में लगा रहा कि भारत में हम ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करें जो राष्ट्र के प्रति समर्पित हों, जीवन में शुद्धता को स्वीकार करें और भारत को एक महान देश बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। मुझे याद है जब मैं स्वयंसेवक बना और पहला सवाल पूछा ' हम राजनीति में रुचि क्यों नहीं लेते' तो मुझे बताया गया कि संघ के संस्थापक कहते हैं कि गुलाम देश की कोई राजनीति नहीं होती। इसलिए यदि राजनीति की बात सोची तो तभी जब भारत स्वतंत्र हो गया। मैं इसलिए यह बात कर रहा हूं कि संघ द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में शुरू किए गए कार्यों में से संस्कार भारती भी एक है।
संस्कार भारती ने अपनी स्थापना के साथ भारत की ललित कलाओं, नृत्य और संगीत में लोगों की रुचि जागृत की तब से लेकर लगातार मैं संस्कार भारती के अनेक कार्यक्रमों में जाता रहा हूं लेकिन जितना सुंदर कार्यक्रम आज देखा है वैसा पहले कभी नहीं देखा। यहां आकर मन आनंदित हो गया। मैं सभी को और यहां उपस्थित सभी कलाकारों को धन्यवाद देता हूं। सभी कलाकारों ने बहुत उत्तम प्रस्तुति दी। आप सभी को नववर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। मेरी कामना है कि यह पूरा वर्ष देश को महान बनाने वाला हो। भारत पूरे विश्व के प्रमुख देशों में से एक स्वीकार हो यह हमारी कल्पना और हमारा लक्ष्य है। आप सभी को अंत:करण से बहुत-बहुत शुभकामनाएं कि भगवान का आशीर्वाद हम सब पर और संवत्सर भारतवर्ष पर विशेष रूप से बना रहे।
वर्ष प्रतिपदा
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 'वर्ष प्रतिपदा' कहलाती है। इस दिन से ही नया वर्ष प्रारंभ होता है। हिन्दू संस्कृति के अनुसार इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इस दिन सृष्टि के मुख्य-मुख्य देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्वों, ऋषि-मुनियों, मनुष्यों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीटाणुओं का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का पूजन किया जाता है। इस दिन से नया संवत्सर शुरू होता है अत: इस तिथि को नव-संवत्सर भी कहते हैं। संवत्सर अर्थात् बारह महीने का काल विशेष। संवत्सर उसे कहते हैं, जिसमें सभी महीने पूर्णत: निवास करते हों। वर्ष प्रतिपदा तो भारतीयों का गौरव है, इसी दिन भगवान श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था। रा. स्व. संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का जन्म भी इसी दिन हुआ था। इसी दिन आर्य समाज की स्थापना हुई तथा शकों को पराजित करते हुए विक्रमादित्य ने हिन्दुओं का स्वाभिमान स्थापित किया।
संवत्सर का विशेष महत्व
मालूम हो कि ललित कलाओं तथा साहित्य की अ.भा. संस्था संस्कार भारती कलाओं के माध्यम से संस्कार-सक्षम- समाज के निर्माण में जुटी है। देशभर में होने वाले कार्यक्रमों की श्रृंखला में दिल्ली के वजीराबाद स्थित यमुना के सूरघाट पर यह कार्यक्रम प्रतिवर्ष करती आ रही है। दर्शक इस कार्यक्रम की वर्षभर प्रतीक्षा करते हैं तथा नवसंवत्सर के दिन सूर्योदय के लगभग एक घंटे पूर्व सीढि़यों पर बैठकर अपना स्थान गहण कर लेते हैं ताकि उन्हें निराश न होना पड़े, किन्तु इस वर्ष के कार्यक्रम की भव्यता कुछ और ही थी।
उल्लेखनीय है कि देश की सबसे बड़ी सांस्कृतिक संस्था संस्कार भारती 42 प्रान्तों में 1500 इकाइयों के माध्यम से इस अनुष्ठान को समर्पित है। हिमालय तथा कच्छ से अरुणाचल तक यह संस्था संगठित है।
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