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दीमापुर में आयोजित हिन्दू सम्मेलन से वहां के हिन्दुओं में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है। चर्च प्रेरित अलगाववादी और विद्रोही गुटों के कारण नागालैंड में हिन्दुओं की स्थिति कुछ अच्छी नहीं कही जा सकती है। इस वातावरण में वहां सम्मेलन होना बड़ी बात है।
गत दिनों विश्व हिन्दू परिषद् की स्वर्ण जयंती के अवसर पर नागालैण्ड के दीमापुर में हिन्दू सम्मेलन का आयोजन हुआ। विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय मार्गदर्शक मंडल के वरिष्ठ सदस्य एवं पूर्व केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानान्द ने ध्वजारोहण कर सम्मेलन का आरंभ किया। इस अवसर पर बहुत बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। वहां हिन्दुओं की जो स्थिति है उसे देखते हुए इस सम्मेलन को बड़ा सफल माना गया। स्वामी चिन्मयानन्द जी ने कहा कि ईसाई बहुल क्षेत्रों में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद नागालैण्ड के हिन्दू अपनी संस्कृति, अपनी परम्परा, अपने धर्म को सुरक्षित रखे हुए हैं। इसके लिए वे प्रशंसा के पात्र हैं। इसके पूर्व स्वागत समिति के अध्यक्ष सुगन चांद बाजारी ने सभी का अभिनन्दन किया। उत्तर-पूर्व क्षेत्र के संगठन मंत्री दिनेशचंद्र उपाध्याय ने स्वर्ण जयंती उत्सव पर हिन्दू सम्मेलन की आवश्यकता और संगठन का परिचय प्रस्तुत किया। 'काछारी ट्रायबल काउंंसिल' के अध्यक्ष एस़ के़ केम्प्राई ने भी सारगर्भित भाषण से जनमानस को प्रभावित किया।
सम्मेलन में विभिन्न मंदिरों, सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों के प्रमुखों को सम्मानित भी किया गया। विभिन्न पंथ, सम्प्रदायों के कलाकारों ने परम्परागत नृत्य एवं गायन से सभा को मंत्रमुग्ध किया। प्रसाद वितरण के साथ हिन्दू सम्मेलन की समाप्ति हुई।
इसके कुछ ही दिन बाद नागालैण्ड में दुर्गा वाहिनी की देखरेख में मातृ सम्मेलन भी आयोजित हुआ। इसमें बड़ी संख्या में महिलाओं ने भाग लिया। इस अवसर पर विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय महामंत्री श्री चम्पत राय का प्रेरक भाषण हुआ। ल्ल प्रतिनिधि
5-25 अप्रैल तक होगी 84 कोसी यात्रा
विश्व हिन्दू परिषद् ने 84 कोसी परिक्रमा यात्रा आयोजित करने की घोषणा की है। यह यात्रा वैशाख कृष्ण प्रतिपदा तद्नुसार 5 अप्रैल, 2015 रविवार को मखभूमि (मखौड़ा) जिला-बस्ती से आरम्भ होकर वैशाख शुक्ल सप्तमी तद्नुसार 25 अप्रैल, 2015 शनिवार को मखौड़ा में ही आकर पूर्ण होगी। इस प्रकार परिक्रमा का यह अनुष्ठान 21 दिवसीय होगा। विशेष कार्यक्रम सीताकुण्ड, अयोध्या में सीता नवमी (27 अप्रैल) को होगा। यह जानकारी विश्व हिन्दू परिषद् ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारत एक आध्यात्मिक राष्ट्र है। इसकी सांस्कृतिक राजधानी अयोध्यापुरी है। अयोध्या अथवा अवधपुरी धाम की पौराणिक दृष्टि से सांस्कृतिक सीमाएं निर्धारित हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने तीर्थक्षेत्र की अस्मिता व वहां की परम्पराओं को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए तीर्थक्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण कर, उसकी परिक्रमा करने का सांस्कृतिक विधान जन-जन के हृदय में स्थापित किया है।
पौराणिक मान्यतानुसार अवधपुरी धाम की तीन परिक्रमा (पंचकोसी, चौदह कोसी, चौरासी कोसी) करने का विधान अनन्तकाल से है, जिसका उल्लेख अनेक पौराणिक ग्रन्थों में मिलता है। अभी तक 84 कोसी परिक्रमा में एक निश्चित संख्या में ही कुछ साधु-सन्त और सद्गृहस्थ भाग लेते रहे हैं, जबकि धार्मिक, सांस्कृतिक दृष्टि से इस 84 कोसी परिक्रमा का महत्व बहुत अधिक है।
ल्ल प्रतिनिधि
कलाकारों ने सीखे कला के नए गुर
पिछले दिनों पटना (बिहार) में संस्कार भारती द्वारा पांच दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला में देशभर के कलाकार आए और रंगमंच की विभिन्न विधाओं से परिचित हुए, लेकिन इस कार्यशाला का सबसे अधिक जोर अभिनय विधा पर रहा। कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एऩ एस़ डी.) के प्राध्यापक डॉ़ अजय मलकानी ने कहा कि भारत में नाटक की श्रेष्ठ परंपरा रही है। पूरी दुनिया अब मानने लगी है कि ईसा पूर्व दसवीं शताब्दी में ही भारत में पंचम वेद रचा गया है। यह नाटक के बारे में था। भरत मुनि को नाट्य कला का प्रारंभकर्ता माना जाता है। यहां के नाट्य शास्त्र में 6 हजार श्लोक और 37 अध्याय हैं। यह विश्व की सर्वश्रेष्ठ कृति है। डॉ़ मलकानी ने कहा कि रंगमंच कोई एक कला नहीं, बल्कि यह कलाओं का समुच्चय है। दुनिया की सभी कलाओं का सम्मिश्रण रंगमंच है। मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ़ नरेन्द्र प्रसाद ने संस्कार भारती द्वारा आयोजित इस कार्यशाला की सराहना करते हुए कहा कि बिहार सभी विधाओं में आगे है। कार्यशाला के संयोजक रीतेश परमार ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक और सुखद क्षण है। कार्यशाला में कलाकार गार्गी मलकानी, चित्रकार प्रो़ श्याम शर्मा, संस्कार भारती के नाट्य सह संयोजक श्री रविशंकर खरे, संस्कार भारती के क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री अशोक तिवारी आदि उपस्थित थे। ल्ल प्रतिनिधि
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