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अरुणेन्द्र नाथ वर्मा
प्राचीन काल में कमजोर सम्राट आक्रामक पड़ोसी के साथ रोटी-बेटी के सम्बंध का सुरक्षाकवच पहन लेते थे। मध्यकाल में मुगल सेनाओं से राणा प्रताप की तरह जूझने को त्याग कर कई राजपूत राजाओं ने यही रास्ता अपनाया, लेकिन लोकतंत्र की बिसात पर राजनीति का खेल खेलने वाले आधुनिक सामंतगण रोटी का सम्बंध बनाते हैं तो देश को रोटी की तरह मिल बांट कर खाते हैं। सबसे पुराने राजनीतिक दल को अल्पसंख्यक वोट बैंक की असुरक्षा भावना की आग पर अपनी रोटी सेंकते देखकर, नकल में सेकुलरवाद के चूल्हे पर कई छोटे-मोटे दल वैसी ही रोटी सेंकने में जुट गए, पर बेटी का सम्बंध बनाने में अभी तक सारे राजनैतिक दल पिछड़े हुए थे। पिछले दिनों लालू जी ने मुलायम परिवार से जुड़कर राजनीति में रोटी के बाद बेटी के सम्बंध वाले युग का सूत्रपात कर डाला।
सैफई के प्रतापी वंश से सम्बंध जोड़ने के लिए पटना से लालू परिवार दिल्ली आ गया। पटनावासी देखते ही रह गए। चारा घोटाले में दोषी घोषित, जमानत पर छूटे हुए लालूजी को अच्छा अवसर मिला यह दिखाने का कि अदालत कुछ भी कहे, देश की शीर्षस्थ राजनैतिक बिरादरी में उनका हुक्का-पानी अभी बंद नहीं हुआ है।
रोटी और बेटी, दोनों तरह के सम्बंधों में परिवारों की बराबरी से ही रिश्ते में स्थायित्व आता है। इस रिश्ते में भी अधिकांश लक्षण बराबरी के थे। एक परिवार के कर्ता की उर्वरता की बदौलत उनकी अपनी संख्या किसी वंश से कम नहीं है, दूसरे परिवार के अनुभवहीन युवराज की सारी शक्ति लोकसभा चुनाव के बाद अपने वंश में ही सिमट कर रह गई है। वंशों के गठबंधन के लिए चार्टर्ड हवाई जहाज से सफर करने वाले घरातियों और बारातियों दोनों ने मिलकर लोहियाई समाजवाद की खिल्ली उड़ाई। दिल्ली की पांच सितारा शादी में ओढ़ी हुई समाजवाद की चादर पर धब्बे दोनों ने डाले।
सुना है विवाह के अवसर पर उपस्थित प्रधानमंत्री की सुरक्षा के चलते बहुत से मेहमान समारोह स्थल पर पहुंच ही नहीं सके। उन बेचारों की तरह ही मैं भी दूर से ही सोच रहा हूं कि शादी में क्या क्या शानदार प्रबंध किए गए होंगे।
अनुमान लगा रहा हूं कि मवेशियों के चारे से पेट भरने वाले पटनहिया घरातियों ने लखनऊ से आने वाले बारातियों को क्या खिलाया होगा। वहां तो नवाब वाजिदअली शाह के जमाने से ही जाफरान केवड़ा आदि की सुगंध से भरपूर पुलाव बिरयानी के साथ अशर्फी की बघार वाला सालन खाने का रिवाज है। वह भी रामपुर में बुने हुए दस्तरख्वान पर बैठकर। पर नेताजी तो जनता के सामने अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी स्कूलों को गाली देने के साथ साथ उन्ही स्कूलों और विदेशों में उच्च पढ़ाई के लिए अपने परिवार के बच्चों को भेजने के बीच संतुलन बना कर रखते आए हैं।
अत: अवश्य ही बूढ़ों के लिए अवध के मुगलाई गोश्त-पुलाव का और नवजवानों के लिए पिज्जा, चिकन बर्गर आदि का प्रबंध किया गया होगा। पटना वालों का मनपसंद लिट्टी चोखा घरवापसी करते हुए नीतीश जी के लिए बना होगा। बारात में दूल्हे के वाहन को लेकर भी चर्चा छिड़ी होगी। पटना वालों ने पहले सोचा होगा कि बारातियों का काम उनकी मनपसंद सवारी साइकिल से चल जाएगा। वादा करने के बावजूद वे पटना की सड़कों को एक फिल्म अभिनेत्री के गालों जैसा नहीं बना पाए हैं। पटना में शादी होती तो वहां की सड़कों के लिए साइकिल ठीक होती पर 'इवेंट मैनेजमेंट टीम' ने बताया होगा कि दिल्ली-नोएडा में ऑडी कार लोकप्रिय है। अपने चहेते नोएडा के मुख्य इंजीनियर यादव सिंह का हश्र देखने के बाद अखिलेश जी ने अपना दामन साफ रखने के लिए बिना डिक्की वाली ऑडी मांगी होगी। पर कार बनाने वालों ने बताया होगा कि वे बहनजी के जमाने से ही करोड़ों की नकद धनराशि रखने लायक बड़ी डिक्की वाली कारों के आर्डर से दबे हुए हैं, बिना डिक्की की गाडी अब कहां से लाएं।
दूल्हे को हाथी पर बैठाना भी संभव नहीं हुआ। सारे हाथियों को बहन जी ने जो बुक कर रखा है, वह भी नीले रंग में रंगवा कर। चर्चा घोड़े की भी हुई होगी पर दूल्हे ने साफ मना कर दिया होगा क्योंकि प्रदेश में हर घोड़े की नकेल आजम खान अकंल के हाथ में रहती है। बात महारानी विक्टोरिया की बग्घी तक भी पहुंची होगी, जो अब इस लोहियावादी खानदान की पसंदीदा सवारी है पर दादाजी की 75वीं वर्षगांठ के बाद उसका नयापन भी खत्म हो चुका था। बारात में अंतिम अड़चन बैंड बाजे की रही होगी।
बारातियों की आदत सैफई समारोह में फिल्म अभिनेत्रियों के आइटम नंबर देख-देख कर बिगड़ चुकी है। उधर दुल्हन के पिताश्री का मन केवल पटनहिया लोकनृत्य से भरता है। इसी झगड़े में लोहियावादी बघ्घी और समाजवादी नाच सब धरे रह गए। वादों से बर्बाद देश की राजधानी में वंशवाद और समाजवाद के इस गठबंधन में केवल अवसरवाद खुलकर नाच सका। ल्ल
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