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जम्मू-कश्मीर में भाजपा पीडीपी सरकार गठन को लेकर राजनीतिक गलियारों में बहस के दौर जारी हैं। प्रस्तुत हैं भाजपा और पीडीपी के बीच गठबंधन बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राममाधव से पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर की बातचीत के मुख्य अंश।
लोगों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने मसर्रत आलम को रिहा कर भाजपा को झटका दिया है। आपका क्या कहना है?
राज्य के लोगों की इच्छाओं को देखते हुए बहुत सोच-समझकर भाजपा ने पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार बनाने का निर्णय लिया था। लेकिन जम्मू-कश्मीर सरकार ने एकतरफा निर्णय करके मसर्रत आलम को रिहा किया। यह निर्णय केवल भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं को ही दु:ख देने वाला नहीं है, बल्कि समूचे देश के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है। चंूकि हम सरकार में सहभागी हैं इसलिए हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम इस एकतरफा निर्णय का विरोध करें। इस मामले में जम्मू-कश्मीर के उपमुख्यमंत्री के नेतृत्व में भाजपा के सभी विधायक राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह से मिले हैं और अपना विरोध दर्ज कराया है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने केन्द्रीय गृह मंत्रालय को जो रपट भेजी है उससे गृह मंत्रालय भी सन्तुष्ट नहीं है। सवाल उठता है कि जन सुरक्षा अधिनियम के तहत इतने वर्षों से कैद व्यक्ति की रिहाई की प्रक्रिया में किन मानकों को आधार बनाया गया है? हालांकि यह प्रक्रिया भाजपा-पीडीपी सरकार बनने से पहले ही शुरू हो गई थी। यह देखना होगा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में राज्य सरकार अपनी सख्तियों और कानूनी प्रावधानों के बावजूद बिना केन्द्र सरकार की अनुमति के ऐसा कोई भी बड़ा निर्णय नहीं ले सकती है।
आपको पीडीपी के साथ आगे रिश्ता जारी रखना है। ऐसे में आप अपने कार्यकर्ताओं को समझाने के लिए उनको क्या सन्देश देना चाहते हैं?
प्रश्न केवल भाजपा के कार्यकर्ताओं का नहीं है, यह पूरे देश के लोगों का मुद्दा है और इस पर सबकी चिन्ता उचित है। यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है, देश की सुरक्षा का मामला है। हम मानते हैं कि हमारे कार्यकर्ताओं में इस प्रकरण से भारी आक्रोश है और जनता में भी निश्चित रूप से असन्तोष है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम लोगों की संवेदनाओं को स्वीकारें और राज्य में चुनी हुई सरकार देश के लोगों की भावनाओं को भी समझें।
ल्ल यदि भविष्य में इस तरह की घटना फिर दुहराई जाती है तो उस स्थिति में भाजपा की क्या भूमिका होगी?
हमारा पूरा प्रयास होगा कि इस तरह के प्रकरण, जिनसे देश की जनता के मन में आशंका पैदा हो और देश की सुरक्षा पर प्रश्न खड़े हों, भविष्य में न दुहराए जाएं। भविष्य में सब कुछ न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत ही होगा, ऐसा हम अपने कार्यकर्ताओं और देश के लोगों को भी विश्वास दिलाना चाहते हैं। राज्य सरकार के द्वारा ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया जाएगा जो स्थानीय नागरिकों को कष्ट देने वाला हो और अलगाववादी ताकतों को प्रोत्साहन देता हो।
न्यूनतम साझा कार्यक्रम में भाजपा की ओर से जम्मू-कश्मीर के लोगों के हितों के लिए कौन से विशेष प्रावधान किए गए हैं?
सरकार का गठन ही न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत हुआ है। न्यूनतम साझा कार्यक्रम में स्थानीय जनता और राज्य के हितों के साथ-साथ देश की सुरक्षा और संप्रभुता का भी ध्यान रखा गया है। सरकार शरणार्थियों की उचित व्यवस्था पर ध्यान देगी, चाहे पाकिस्तान से आए हुए शरणार्थी हों या घाटी से विस्थापित हुए कश्मीरी हिन्दू। विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन को भी न्यूनतम साझा कार्यक्रम में शामिल किया गया है। इन सभी मुद्दों पर सरकार आपसी सलाह और परिचर्चा के बाद कार्य करेगी।
विपक्ष मुख्यमंत्री सईद पर पाकिस्तान का पक्षपाती होने का आरोप लगा रहा है। इससे भाजपा के लिए भी असहज स्थिति बन रही है। इस पर आप क्या कहेंगे?
आज अपनी-अपनी सोच के अनुसार जम्मू-कश्मीर के विषय में सबकी अलग-अलग धारणाएं हैं। पहले दिन ही मुख्यमंत्री ने जो बोला था, वह भावनात्मक था या उनका स्वाभाविक वक्तव्य, यह वह स्वयं जानें, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की रीति, नीति और विचार उनको भी पता है। सत्ता के लिए हम देश की सुरक्षा और स्वाभिमान से कोई समझौता नहीं करेंगे। हम आशा करते हैं और हमने स्पष्ट सन्देश भी दिया है कि राज्य की चुनी हुई सरकार के नेता अथवा प्रतिनिधि, जो सार्वजनिक विचार रखें, वह न्यूनतम साझा कार्यक्रम के अनुरूप हों। दोनों ही पार्टियों को इसी नीति का पालन करना चाहिए।
भाजपा और पीडीपी वैचारिक रूप से राजनीति के दो अलग-अलग ध्रुव हैं। सत्तासीन होने के तुरन्त बाद से यह भेद सामने भी आया है। क्या आपको पूरा विश्वास है कि यह गठबंधन सरकार पूरे छह वर्ष चलेगी?
हां, यह सच है कि दोनों ही दलों की विचारधारा और कार्यनीति में बड़ा अन्तर है। इसलिए सोचने में और सरकार गठित करने में दो-तीन महीने लग गए। हमारी दृढ़ इच्छा है कि यह सरकार पूरे छह वर्ष अच्छी तरह चले। इन दोनों दलों का मिलना वास्तव में एक असंभव सी बात लग रही थी, लेकिन जम्मू-कश्मीर की जनता के हित में जो कुछ हुआ, यदि यह सरकार सफलतापूर्वक चलती है तो यह एक इतिहास होगा। राष्ट्रवाद से प्रेरित भाजपा अगर एक क्षेत्रीय दल के साथ आई है तो केवल जम्मू-कश्मीर की जनता के कल्याण और विकास के लिए। हम जम्मू-कश्मीर के अल्पकालिक नहीं, दीर्घकालिक विकास के पक्ष में हैं।
भाजपा के नेतृत्व में सारे देश में सुशासन और विकास का नारा दिया जाता है। क्या जम्मू-कश्मीर के परिप्रेक्ष्य में भी ऐसी कोई ठोस नीति बनाई गई है?
हमने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में 80 प्रतिशत बिन्दु केवल विकास, सामाजिक और मानवीय एजेंडे से सम्बंधित रखे हैं, 10 प्रतिशत सुशासन से सम्बंधित और 10 प्रतिशत सामान्य राजनीतिक मुद्दों से सम्बंधित हैं। राज्य की जनता के विकास के लिए ये मुद्दे एक या दो दिन के लिए नहीं, बल्कि स्थाई एवं टिकाऊ सिद्ध होंगे। जम्मू-कश्मीर एक अच्छे राज्य की तरह विकसित हो, सुरक्षित और शान्त वातावरण के साथ समृद्ध हो, यही हमारी और सारे देश के लोगों की इच्छा है। हम जम्मू और कश्मीर के लोगों को परस्पर निकट लाने का प्रयास करेंगे और राष्ट्रीय एकता की मिसाल कायम करेंगे।
मसर्रत की रिहाई पर विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा भाजपा की नीयत पर शक करने और उनके एक साथ आने को आप देशभक्ति मानते हैं या केवल राजनीति?
यह शुद्ध रूप से राजनीति है, क्योंकि जो लोग प्रश्न उठा रहे हैं, उन्होंने कई बार अलगाववादियों को प्रोत्साहन दिया है। इन लोगों ने हमेशा अतिवादियों को प्रश्रय दिया है। जहां तक हमारी नीयत की बात है तो भाजपा का चिन्तन सबको मालूम है। हमारी देशभक्ति पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगा सकता है। हमने कभी भी किसी विध्वंसकारी तत्व को प्रोत्साहित करने की बात नहीं की।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को राज्य में सरकार गठित होने के बाद दो बार संसद में जम्मू-कश्मीर के बारे में स्पष्टीकरण देना पड़ा है। भाजपा के एक रणनीतिकार होने के नाते क्या आपने सोचा था कि ऐसी स्थिति आएगी?
निश्चित रूप से हमें पहले से ही मालूम था कि यह रास्ता इतना आसान नहीं है। ईमानदारी से कहूं तो मुख्यमंत्री द्वारा सरकार के गठन के पहले ही सोपान पर दिए गए बयान पर जो विवाद हुआ उससे दु:ख हुआ। नि:सन्देह प्रधानमंत्री जी ने सदन में यही भावना रखी कि देश की संप्रभुता और सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। जब ऐसी घटनाएं होती हैं तो स्वाभाविक रूप से विवाद होता ही है। राज्य के अन्दर इन विषयों और समस्याओं को निपटाने के लिए समन्वय समिति का गठन किया है, जो न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत सरकार चलाने का मार्ग प्रशस्त करेगी। कम से कम इस सम्बंध में केन्द्र सरकार अथवा भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को सोचना नहीं पड़ेगा। भाजपा और पीडीपी के तीन-तीन राज्य स्तरीय नेता निरन्तर परस्पर संवाद औैैैैैैर चर्चा के माध्यम से विभिन्न मुद्दों को राज्य सरकार के सामने लाएंगे जिससे सरकार अपनी भूमिका सही ढंग से निभा पाएगी।
लोगों का कहना है कि जब भाजपा और पीडीपी के विधायकों की संख्या लगभग बराबर है, तो फिर प्रभावी और महत्वपूर्ण मंत्रालय पीडीपी ने अपने पास ही क्यों रखे हैं? क्या भाजपा अपनी सहयोगी पीडीपी के साथ समझौते में पिछड़ी नहीं दिख रही है?
ऐसी बात बिल्कुल नहीं है। दोनों ही दलों ने मंत्रिमण्डल के गठन के लिए एक फार्मूला अपनाया था कि दोनों के ही बराबर-बराबर मंत्री हों। तय हुआ था कि मुख्यमंत्री पीडीपी से, विधानसभाध्यक्ष भाजपा से और दोनों ही दलों के 12-12 मंत्री होंगे और लगभग यही हुआ है। सभी मंत्रालय समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य में ऊर्जा मंत्रालय से सर्वाधिक राजस्व 60-62 प्रतिशत प्राप्त होता है, वह भाजपा के पास है। दूसरा बड़ा मंत्रालय उद्योग का है, जो भाजपा के पास है। स्वास्थ्य और शहरी विकास मंत्रालय, जिनका महत्व लगातार बढ़ रहा है, वह भी हमारे पास हैं। उनके पास तीन बड़े मंत्रालय हैं-गृह, वित्त और राजस्व। गृह मंत्रालय समेत कुछ अन्य मंत्रालय, जो मुख्यमंत्री के अधीन हैं, हमने प्रयास किया है कि वहां भी हमारा कोई राज्यमंत्री हो। इसी तरह हमारे पास जो मंत्रालय हैं, उनमें भी उनके राज्यमंत्री हों। जहां तक पीडीपी के दो ज्यादा काबिना मंत्रियों की बात है, अगले मंत्रिमण्डल विस्तार में हमारे भी दो और कैबिनेट मंत्री बनेंगे। जम्मू और कश्मीर को अलग-अलग नजर से देखने वाले चश्मे को उतारकर हमें और उन्हें समग्र दृष्टि से देखना होगा, साथ ही जम्मू-कश्मीर और देश के बीच में जो रिक्तता है, उसे भरना होगा। जहां तक जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को देश की मुख्यधारा में लाने का मामला है तो यह स्पष्ट है कि जम्मू और लद्दाख का व्यक्ति हमेशा से ही राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ा रहा है। घाटी के बहुत कम प्रतिशत लोग ही अलगाववादी विचारधारा से प्रभावित हैं, उन्हें सही दिशा देने की जरूरत है। जम्मू और घाटी क्षेत्र में जो दूरियां हैं, उनको समाप्त करने की आवश्यकता है। स्वयं मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने पद की शपथ लेने से पूर्व प्रधानमंत्री से मिलने के बाद यह बात कही थी कि उनका पहला लक्ष्य जम्मू और श्रीनगर के बीच की दूरी को कम करना है। हवाई जहाज से जम्मू और श्रीनगर की दूरी आप 20 मिनट में तय कर सकते हैं, जबकि बस से छह घंटे में। लेकिन 60 वर्ष में भी हम जम्मू और श्रीनगर के लोगों को भावनात्मक रूप से एक नहीं कर पाए। यह सरकार इस दूरी को कम करने का प्रयास करेगी।
मीडिया ने जम्मू-कश्मीर के विभिन्न प्रकरणों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अनावश्यक रूप से घेरने का प्रयास किया है। इस पर आपका क्या कहना है?
देखिए यह सामान्य विवेक की बात है बुद्धिजीवी और सामान्य जनता भी जानती है कि पीडीपी से गठबंधन से पूर्व भाजपा ने अपने वैचारिक सहयोगियों से आवश्यक मंत्रणा की थी और सोच-विचार कर सरकार में शामिल हुई है। संघ की भूमिका का प्रश्न ही नहीं उठता है। सरकार तो न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत ही चलनी है, जो सबकी सहमति से बना है। इस विषय में कहीं कोई विवाद नहीं है।
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