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.मातृ मन्दिर के अजिर के दीप सा चिर ज्योत्स्ना में।
है पुजारी अमर केशव, आज भी रत अर्चना में।।
ज्ञान अमृतमय पुरातन, मधुर स्वर था वह सुनाता,
विमल संस्कृति तीर्थ पावन, हर कदम पर था बनाता;
उत्स वह राष्ट्रीयता का आज भी है भावना में।।1।।
है पुजारी अमर केशव, आज भी रत अर्चना में।।
कर्ममय सम्पूर्ण जीवन, यज्ञ पावन बन गया था;
मृत्यु का विकराल क्षण भी, भाग्य भावी बन गया था;
आज भी वाणी तरंगित, प्रार्थना आराधना में ।।2।।
है पुजारी अमर केशव, आज भी रत अर्चना में।।
आज भी धरती हिलाते, कदम लाखों हैं उसी के;
आज भी तम ध्वस्त करते, कर करोड़ों हैं उसी के;
आज भी है तेज दीपित, लोकमन संचेतना में ।।3।।
है पुजारी अमर केशव, आज भी रत अर्चना में।।
प्रार्थना में मातृ भू की, शब्द उसके अर्थ भी है;
ध्येय निष्ठा, वीरव्रत है, राम शर अव्यर्थ भी है;
बढ़ रहा हिन्दुत्व फिर से, संगठन की प्रेरणा में।।4।।
है पुजारी अमर केशव, आज भी रत अर्चना में।।
दत्तोपंत ठेंगड़ी
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