अखण्ड राष्ट्र-साधना
July 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

अखण्ड राष्ट्र-साधना

by
Mar 14, 2015, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 14 Mar 2015 16:07:48

 

डॉ. मनमोहन वैद्य

वर्ष 2011 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वेबसाइट में एक खण्ड जोड़ा गया- 'जॉइन आऱ एस़ एस़ '। इसका उद्देश्य था उन लोगों को संघ से जुड़ने का अवसर प्रदान करना, जिन लोगों तक संघ अभी पहुंच नहीं पाया था या जो लोग अभी संघ से दूर थे। इसका परिणाम बड़ा चौंकाने वाला आया। बड़ी संख्या में लोग, विशेषकर युवा, संघ से जुड़ने लगे। संघ से जुड़ने वालों की संख्या कितनी थी, इसका अंदाजा इन आंकड़ों में मिलता है। 2012 में प्रतिमास 1000 लोग संघ से जुड़े। यह संख्या 2013 में 2500 और 2014 में 9000 थी। इनसे ही संघ के बढ़ते फैलाव का अनुमान लगाया जा सकता है। यह संघ की बढ़ती विश्वसनीयता और प्रभाव को दर्शाता है। संघ ने यह विश्वसनीयता और प्रभाव निरन्तर निष्काम भाव से काम करने के बाद प्राप्त किया है। संघ का प्रभाव तात्कालिक न होकर विचार की ताकत का परिणाम है। तभी तो दुष्प्रचार के बीच भी बड़ी संख्या में लोग संघ से स्वयं जुड़ रहे हैं। इस विचारधारा को मूर्त रूप देते समय संघ के संस्थापक परम पूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की कल्पना समय और सन्दर्भ की सीमाओं से ऊपर थी। यही कारण है कि बदलते समय और सन्दभार्ें के बीच संघ का क्षितिज निरंतर बढ़ता जा रहा है। डॉ. हेडगेवार के जीवन और दर्शन संघ के लिए नींव की पत्थर की तरह हैं, जिन्होंने राष्ट्र के वैभव को सवार्ेपरि बना दिया, 'अहं' के स्थान पर 'वयं' को स्थापित किया। उनका जीवन झंझावातों से टकराता रहा, पर राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव ने सतत उनके संकल्प को मजबूत किया। यही संकल्प संघ शक्ति के रूप मंे हमारे सामने है।
संघ का यह विशाल वटवृक्ष एक तरफ आसमान को छूने के लिए प्रयत्न करता दिखता है, वहीं दूसरी ओर उसकी अनेक जटाएं फिर से जमीन में जाकर इस विशाल विस्तार के लिए रस-पोषण करने हेतु नई-नई जमीन तलाश रही हैं तथा अपनी जड़ों को और गहराई में गाड़ कर अधिक मजबूती प्रदान कर रही हैं। इस सुदृढ़, विस्तृत और विशाल वट वृक्ष का बीज कितना कसदार एवं शुद्ध होगा, इसकी कल्पना से ही मन रोमांचित हो उठता है। संघ रूपी इस विशाल वटवृक्ष को रोपने वाले डॉ. हेडगेवार की 125वीं जन्मतिथि इस वर्ष प्रतिपदा से शुरू हो रही है। डॉ. हेडगेवार कैसे थे, यह जानने के लिए संघ को जानना होगा।
नागपुर में वर्ष प्रतिपदा के पावन दिन 1 अप्रैल, 1889 को जन्मे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जन्मजात देशभक्त थे। आजादी के अन्दोलन की आहट भी मध्य प्रान्त के नागपुर में सुनाई नहीं दी थी और केशव के घर में राजकीय आन्दोलन की ऐसी कोई परम्परा भी नहीं थी, तब भी शिशु केशव के मन में अपने देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेज के बारे में गुस्सा था तथा स्वतंत्र होने की अदम्य इच्छा थी। इस सन्दर्भ से जुड़े अनेक प्रसंग हैं। विक्टोरिया रानी के राज्यारोहण के हीरक महोत्सव के निमित्त विद्यालय में बांटी मिठाई को केशव द्वारा (उम्र 8 साल) कूड़े में फेंक देना या पंचम जॉर्ज के भारत आगमन पर सरकारी भवनों पर की गई रोशनी और आतिशबाजी देखने जाने के लिए केशव (उम्र 9 साल) का मना करना, ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जो उनके व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। बंग-भंग विरोधी आन्दोलन का दमन करने हेतु अंग्रेजों ने वन्देमातरम् के उद्घोष करने पर पाबन्दी लगा दी थी। 1907 में इस पाबन्दी की धज्जियां उड़ाने के लिए केशव ने प्रत्येक कक्षा में वन्देमातरम् का उद्घोष करवा कर विद्यालय निरीक्षक का 'स्वागत' करवाने की योजना बनाई थी। इसके माध्यम से उन्होंने सबको अपनी निर्भयता, देशभक्ति तथा संगठन कुशलता से परिचित कराया। मुम्बई में चिकित्सा शिक्षा की सुविधा होते हुए भी, उन्होंने कोलकाता में यह शिक्षा प्राप्त करने का निर्णय लिया। इसका कारण था कोलकाता उन दिनों क्रान्तिकारी आन्दोलन का प्रमुख केन्द्र था। उन्होंने शीघ्र ही क्रान्तिकारी आन्दोलन की शीर्ष संस्था 'अनुशीलन समिति' में अपना स्थान बना लिया था। वे 1916 में डॉक्टर की उपाधि के साथ नागपुर वापस आए। घर की आर्थिक अवस्था ठीक न होते हुए भी उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू नहीं किया। यही नहीं उन्होंने विवाह आदि करने का विचार भी त्याग दिया और पूर्ण शक्ति के साथ स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद गए।
1920 में नागपुर में होने वाले कांग्रेस के अधिवेशन की व्यवस्था की जिम्मेदारी डॉक्टर जी के पास थी। इस हेतु उन्होंने 1200 स्वयंसेवकों की भर्ती की थी। कांग्रेस की प्रस्ताव समिति के सामने उन्होंने दो प्रस्ताव रखे थे। भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता और विश्व को पूंजीवाद के चंगुल से मुक्त करना, यह कांग्रेस का लक्ष्य होना चाहिए। पूर्ण स्वतंत्रता का ऐतिहासिक प्रस्ताव कांग्रेस ने दिसंबर, 1929 में स्वीकार कर पारित किया और 26 जनवरी, 1930 को सम्पूर्ण देश में स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय किया। इसलिए डॉक्टर जी ने संघ की सभी शाखाओं पर 26 जनवरी, 1930 को कांग्रेस का अभिनन्दन करने के लिए कार्यक्रम करने की सूचना दी थी। इससे डॉक्टर जी की दूरगामी एवं विश्वव्यापी दृष्टि का परिचय मिलता है।
डॉक्टर जी का सार्वजनिक जीवन, राजनीतिक दृष्टिकोण, दर्शन एवं नीतियां तिलक-गांधी, हिंसा-अहिंसा, कांग्रेस-क्रांतिकारी इन संकीर्ण विकल्पों के आधार पर निर्धारित नहीं था। व्यक्ति अथवा विशिष्ट मार्ग से कहीं अधिक महत्वपूर्ण स्वातंत्र्य प्राप्ति का मूल ध्येय था। इसीलिए 1921 में प्रांतीय कांग्रेस की बैठक में लोकनायक अणे की अध्यक्षता में क्रांतिकारियों की निंदा का प्रस्ताव लेने का प्रयास हुआ। तब डॉक्टर जी ने 'आपको उनका मार्ग पसंद न हो, पर उनकी देशभक्ति पर संदेह नहीं करना चाहिए' यह कह कर उस प्रस्ताव को नहीं आने दिया और राजनीति की तस्वीर बदल दी।
वे कहते थे कि व्यक्तिगत मतभिन्नता होने पर भी साम्राज्य विरोधी आन्दोलन में सभी को साथ रहना चाहिए और इस आन्दोलन को कमजोर नहीं होने देना चाहिए। इस सोच के कारण ही वे खिलाफत आन्दोलन को गांधी जी के समर्थन देने की घोषणा का विरोध होने पर भी चुप रहे और गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन में बेहिचक सहभागी हुए।
संघ की स्थापना
स्वतंत्रता प्राप्त करना किसी भी समाज के लिए अत्यंत आवश्यक एवं स्वाभिमान का विषय होने के बावजूद वह चिरस्थायी रहे तथा समाज आने वाले सभी संकटों का सफलतापूर्वक सामना कर सके इसलिए राष्ट्रीय गुणों से युक्त और सम्पूर्ण दोषमुक्त, विजय की आकांक्षा तथा विश्वास रखकर पुरुषार्थ करने वाला, स्वाभिमानी, सुसंगठित समाज का निर्माण करना अधिक आवश्यक एवं मूलभूत कार्य है, यह सोचकर डॉक्टर जी ने 1925 में विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। प्रखर ध्येयनिष्ठा, असीम आत्मीयता और अपने आचरण के उदाहरण से युवकों को जोड़कर उन्हें गढ़ने का कार्य शाखा के माध्यम से शुरू हुआ। शक्ति की उपासना, सामूहिकता, अनुशासन, देशभक्ति, राष्ट्रगौरव तथा सम्पूर्ण समाज के लिए आत्मीयता और समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से त्याग करने की प्रेरणा इन गुणों के निर्माण हेतु अनेक कार्यक्रमों की योजना शाखा नामक अमोघ तंत्र में विकसित होती गई। सारे भारत में प्रवास करते हुए अथक परिश्रम से केवल 15 वर्ष मंे ही आसेतु हिमालय सम्पूर्ण भारत में संघ कार्य का विस्तार करने में वे सफल हुए।

अपनी प्राचीन संस्कृति एवं परम्पराओं के प्रति अपार श्रद्धा तथा विश्वास रखते हुए भी आवश्यक सामूहिक गुणों की निर्मिति हेतु आधुनिक साधनों का उपयोग करने में उन्हें जरा सी भी हिचक नहीं थी। अपने आपको पीछे रखकर अपने सहयोगियों को आगे करना और सारा श्रेय उन्हें देने की उनकी संगठन शैली के कारण ही संघ कार्य की नींव मजबूत बनी।
संघ कार्य आरंभ होने के बाद भी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए समाज में चलने वाले सभी आंदोलनों के साथ उनका न केवल सम्पर्क था, बल्कि समय-समय पर वे व्यक्तिगत तौर पर स्वयंसेवकों के साथ सहभागी भी होते थे। 1930 में गांधी जी के नेतृत्व में शुरू हुआ सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरंभ में अप्रभावशाली रहा। विदर्भ तिलकवादियों का गढ़ माना जाता था। परन्तु साम्राज्यवाद विरोधी आन्दोलन में व्यक्तिगत मत को किनारे में रखकर इस आन्दोलन में सहभागी होने के लिए उन्होंने विदर्भ में जंगल सत्याग्रह में स्वयंसेवकों के साथ भाग लिया तथा 9 मास का कारावास भी सहन किया। इस सत्याग्रह के साथ आरंभ में 3 -4 हजार लोग थे। सत्याग्रह स्थल पर पहुंचते-पहुंचते 10 हजार लोग हो गए थे। इस समय भी व्यक्ति निर्माण एवं समाज संगठन का नित्य कार्य अविरल चलता रहे, इस हेतु उन्होंने अपने मित्र एवं सहकारी डॉ. परांजपे को सरसंघचालक पद का दायित्व सौंपा था तथा संघ शाखाओं पर प्रवास करने हेतु कार्यकर्ताओं की योजना भी की थी। उस समय समाज कांग्रेस-क्रान्तिकारी, तिलकवादी-गांधीवादी, कांग्रेस-हिन्दू महासभा ऐसे द्वंद्वों में बंटा हुआ था। डॉक्टर जी इस द्वंद्व मंे न फंस कर, सभी से समान नजदीकी रखते हुए कुशल नाविक की तरह संघ की नाव को चला रहे थे। संघ को समाज में एक संगठन न बनने देने की विशेष सावधानी रखते हुए उन्होंने संघ को सम्पूर्ण समाज का संगठन के नाते ही विकसित किया। संघ कार्य को सम्पूर्ण स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर बनाते हुए उन्होंने बाहर से आर्थिक सहायता लेने की परंपरा को बदल कर संघ के स्वयंसेवक ही ऐसे कार्य के लिए आवश्यक सभी धन, समय, परिश्रम, त्याग देने हेतु तत्पर हों इस हेतु 'गुरु दक्षिणा' की अभिनव परंपरा संघ में शुरू की। इस चिर पुरातन एवं नित्य नूतन हिन्दू समाज को सतत प्रेरणा देने वाला प्राचीन एवं सार्थक प्रतीक के नाते भगवा ध्वज को गुरु के स्थान पर स्थापित करने का उनका विचार उनके क्रांतिदर्शी होने का परिचायक है। व्यक्ति चाहे कितना भी श्रेष्ठ क्यों न हो, उसके जीवन एवं व्यक्तित्व की मर्यादा ध्यान में रखकर व्यक्ति नहीं, तत्वनिष्ठा पर उनका बल रहता था। इसके कारण ही आज 9 दशक बीतने के बाद भी, सात-सात पीढि़यों से संघ कार्य चलने के बावजूद संघ कार्य अपने मार्ग से न भटका, न बंटा, न रुका।
अहंकार-रहित जीवन
संघ संस्थापक होने का अहंकार उनके मन में लेशमात्र भी नहीं था। इसीलिए सरसंघचालक पद का दायित्व सहयोगियों का सामूहिक निर्णय होने के कारण 1929 में उन्होंने स्वीकार तो किया, परन्तु 1933 में संघचालक बैठक में उन्होंने अपना मनोगत व्यक्त किया। उसमें उन्होंने कहा, 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्मदाता या संस्थापक मैं न होकर, आप सब हैं, यह मैं भली भांति जानता हूं। आपके द्वारा स्थापित संघ का, आपकी इच्छानुसार, मैं एक दाई का कार्य कर रहा हूं। मैं यह काम आप की इच्छा एवं आज्ञा के अनुसार आगे भी करता रहूंगा तथा ऐसा करते समय किसी प्रकार के संकट अथवा मानापमान की मैं कतई चिंता नहीं करूंगा। आपको जब भी प्रतीत हो कि मेरी अयोग्यता के कारण संघ की क्षति हो रही है तो आप मेरे स्थान पर दूसरे योग्य व्यक्ति को प्रतिष्ठित करने के लिए स्वतंत्र हंै। आपकी इच्छा एवं आज्ञा से जितनी सहर्षता के साथ मैंने इस पद पर कार्य किया है, उतने ही आनंद से आप द्वारा चुने हुए नए सरसंघचालक के हाथ सभी अधिकार सूत्र समर्पित करके उसी क्षण से उसके विश्वासु स्वयंसेवक के रूप में कार्य करता रहूंगा। मेरे लिए व्यक्तित्व के मायने नहीं हैं, संघ कार्य का ही वास्तविक अर्थ में महत्व है। अत: संघ के हित में कोई भी कार्य करने में मैं पीछे नहीं हटूंगा।' डॉ़ हेडगेवार के ये विचार उनकी नि:स्वार्थ वृत्ति एवं ध्येय समर्पित व्यक्तित्व का दर्शन कराते हैं। सामूहिक गुणों की उपासना तथा सामूहिक अनुशासन, अत्मविलोपी वृत्ति स्वयंसेवकों में निर्माण करने हेतु भारतीय परंपरा में नए ऐसे समान गणवेश, संचलन, सैनिकी कवायद, घोष, शिविर आदि कार्यक्रमों को संघ कार्य का अविभाज्य अंग बनाने का अत्याधुनिक विचार भी डॉक्टर जी ने किया। संघ कार्य की होने वालीं आलोचनाओं को अनदेखा कर, उनकी उपेक्षा कर वाद-विवाद में न उलझते हुए सभी से आत्मीय सम्बन्ध बनाए रखने का उनका आग्रह रहता था।
प्रशंसा और आलोचना – दोनों ही स्थिति में डॉ. ़हेडगेवार अपने लक्ष्य, प्रकृति और तौर-तरीकों से तनिक भी नहीं डगमगाते थे। 1929 में राष्ट्र सेवा दल के संस्थापक डॉ़ हर्डीकर ने नागपुर में आकर संघ के गैर-राजनीतिक आन्दोलन होने पर आपत्ति जताते हुए कड़ी आलोचना की। डॉक्टर हेडगेवार ने इसकी अनदेखी की। बाद में 1934 मंे डॉ़ हर्डीकर ने डॉक्टर जी को पत्र लिख कर संघ कार्य पद्धति एवं विचार प्रणाली का प्रत्यक्ष अवलोकन करने की इच्छा प्रकट की। आलोचकों को भी अपना बनाने का डॉक्टर जी का अनोखा तरीका था।
1934 में मध्य प्रान्त की विधानसभा में सरकारी कर्मचारी एवं उनके परिजनों को संघ में सहभागी होने पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रस्ताव लाने का प्रयास हुआ। उस समय ब्राह्मण-ब्राह्मणेतर, मराठी -हिन्दी, तिलक-गांधी, हिन्दू-मुसलमान, ऐसी गुटबाजी होने के बावजूद सभी ने संघ के समर्थन में अभूतपूर्व एकता का परिचय दिया और सरकार को प्रस्ताव वापस लेना पड़ा।
1936 में नासिक में शंकराचार्य विद्याशंकर भारती द्वारा डॉक्टर हेडगेवार को 'राष्ट्र सेनापति' उपाधि से विभूषित किया गया। समाचार पत्रों में यह समाचार प्रकाशित भी हुआ और डॉक्टर जी को बधाई सन्देश भी मिले। पर उन्होंने स्वयंसेवकों को सूचना जारी करते हुए कहा कि हम में से कोई भी और कभी भी इस उपाधि का उपयोग न करे। उपाधि हम लोगों के लिए असंगत है। उनका चरित्र लिखने वालों को भी डॉक्टर जी ने हतोत्साहित किया। 'तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहे न रहें', यह परंपरा उन्होंने संघ में निर्माण की। 1939 में पुणे में संघ शिक्षा वर्ग चल रहा था। स्वातंत्र्यवीर सावरकर को जब इसका पता चला तो वे मुंबई से पूना आए और वर्ग में डॉक्टर जी से मिले। उस दिन वर्ग में डॉक्टर जी का भाषण था। उन्होंने स्वयं भाषण नहीं दिया और सावरकर जी से निवेदन किया। सावरकर जी ने अपने भाषण मंें कहा, 'हमारा कार्य मूसलाधार वर्षा जैसा है, जो थोड़े समय मंें ही जलप्लावन उत्पन्न करके अंत में बह जाती है, किन्तु डॉ. हेडगेवार का कार्य उस किसान जैसा है, जो उस पानी को रोककर उसे समाज हित में लगाता है। आप सब लोग डॉ. हेडगेवार के मार्ग का ही अनुसरण करें।'
डॉ. हेडगेवार शब्दों से नहीं, आचरण से सिखाने की पद्धति पर विश्वास रखते थे। संघ कार्य की प्रसिद्धि की चिन्ता न करते हुए, संघ कार्य के परिणाम से ही लोग संघ कार्य को महसूस करेंगे, समझेंगे तथा सहयोग एवं समर्थन देंगे, ऐसा उनका विचार था। 'फलानुमेया प्रारम्भ:' यानी वृक्ष का बीज बोया है। इसकी प्रसिद्धि अथवा चर्चा न करते हुए वृक्ष बड़ा होने पर उसके फलों का जब सब आस्वाद लेंगे तब किसी ने वृक्ष बोया था, यह बात अपने आप लोग जान लेंगे, ऐसी उनकी सोच एवं कार्य पद्धति थी।
इसीलिए उनके निधन होने के पश्चात् भी, अनेक उतार-चढ़ाव संघ के जीवन में आने के बाद भी, संघ कार्य अपनी नियत दिशा में, निश्चित गति से लगातार बढ़ता हुआ अपने प्रभाव से सम्पूर्ण समाज को स्पर्श और आलोकित करता हुआ आगे ही बढ़ रहा है। संघ की इस यशोगाथा में ही डॉक्टर जी के समर्पित, युगदृष्टा, सफल संगठक और सार्थक जीवन की यशोगाथा है। (लेखक रा.स्व.संघ के अ.भा. प्रचार प्रमुख हैं)

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

रील बनाने पर नेशनल टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की हत्या कर दी गई

गुरुग्राम : रील बनाने से नाराज पिता ने टेनिस खिलाड़ी की हत्या की, नेशनल लेवल की खिलाड़ी थीं राधिका यादव

Uttarakhand Kanwar Yatra-2025

Kanwar Yatra-2025: उत्तराखंड पुलिस की व्यापक तैयारियां, हरिद्वार में 7,000 जवान तैनात

Marathi Language Dispute

Marathi Language Dispute: ‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

‘पाञ्चजन्य’ ने 2022 में ही कर दिया था मौलाना छांगुर के मंसूबों का खुलासा

Europe Migrant crisis:

Europe Migrant crisis: ब्रिटेन-फ्रांस के बीच ‘वन इन, वन आउट’ डील, जानिए क्या होगा असर?

अर्थ जगत: कर्ज न बने मर्ज, लोन के दलदल में न फंस जाये आप; पढ़िये ये जरूरी लेख

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

रील बनाने पर नेशनल टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की हत्या कर दी गई

गुरुग्राम : रील बनाने से नाराज पिता ने टेनिस खिलाड़ी की हत्या की, नेशनल लेवल की खिलाड़ी थीं राधिका यादव

Uttarakhand Kanwar Yatra-2025

Kanwar Yatra-2025: उत्तराखंड पुलिस की व्यापक तैयारियां, हरिद्वार में 7,000 जवान तैनात

Marathi Language Dispute

Marathi Language Dispute: ‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

‘पाञ्चजन्य’ ने 2022 में ही कर दिया था मौलाना छांगुर के मंसूबों का खुलासा

Europe Migrant crisis:

Europe Migrant crisis: ब्रिटेन-फ्रांस के बीच ‘वन इन, वन आउट’ डील, जानिए क्या होगा असर?

अर्थ जगत: कर्ज न बने मर्ज, लोन के दलदल में न फंस जाये आप; पढ़िये ये जरूरी लेख

जर्मनी में स्विमिंग पूल्स में महिलाओं और बच्चियों के साथ आप्रवासियों का दुर्व्यवहार : अब बाहरी लोगों पर लगी रोक

सेना में जासूसी और साइबर खतरे : कितना सुरक्षित है भारत..?

उत्तराखंड में ऑपरेशन कालनेमि शुरू : सीएम धामी ने कहा- ‘फर्जी छद्मी साधु भेष धारियों को करें बेनकाब’

जगदीप धनखड़, उपराष्ट्रपति

इस्लामिक आक्रमण और ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया : उपराष्ट्रपति धनखड़

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies