आजन्म जलती रही राष्ट्रभक्ति की लौ
July 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

आजन्म जलती रही राष्ट्रभक्ति की लौ

by
Mar 14, 2015, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 14 Mar 2015 13:11:13

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

तुफैल चतुर्वेदी

किसी भीकाल में समाज में प्रधानता उन मनुष्यों की होती है जिनमें निजी और अपने परिवार को समृद्घ करने के लिए जीने की प्रवृत्ति होती है। इसके लिए साम, दाम, दंड, भेद जिस प्रकार से संभव हो आगे बढ़ना जीवन का लक्ष्य होता है। इस प्रकार की सोच रखने वाले लोग अपने सुख-भोग के लिये विचार करते हैं, कार्य करते हैं। ऐसा करते-करते कई बार अपने निजी-परिवार के लिए कुछ अन्य सहायकों की आवश्यकता पड़ती है तो योजना और कार्य में विस्तार हो जाता है। अनेकों लोगों का सहयोग लेकर बड़ा कार्य खड़ा करने के बावजूद ये जीवन शैली व्यष्टि-वाचक जीवन शैली ही कहलाती है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इस जीवन-शैली से ऊपर उठ जाते हैं और निजी जीवन, निजी परिवार से अधिक की चिंता करते हैं। इन्हीं लोगों को समाज समष्टि की चिंता-विचार करने के कारण महापुरुषों की श्रेणी में रखता है।
आंध्र प्रदेश के निजामाबाद जिले के कंदकूर्ती गांव में वेदों और शास्त्रों का पीढ़ी दर पीढ़ी अध्ययन करने वाला ब्राह्मण परिवार रहता था। हिन्दुओं पर निजाम के अमानुषिक अत्याचार जब सहनसीमा को पार कर गए तो उस परिवार के नरहरि शास्त्री कंदकुर्ती त्याग कर नागपुर आ गए। नागपुर में शास्त्री जी को भोंसला सरकार का आश्रय मिला। शास्त्री जी की तीसरी पीढ़ी आते-आते अंग्रेजों ने भोंसला शासन का अंत कर दिया और राज्याश्रित परिवार विपन्न स्थिति में आकर पौरोहित्य से जीवन-यापन करने लगा। इसी परिवार की चौथी पीढ़ी में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जन्मे। आप अपने पिता बलिराम पंत की पांचवीं संतान थे। आपसे दो भाई और दो बहिनें बड़ी थीं और एक बहिन छोटी थी। बलिराम पंत जी ने बड़े भाइयों को तो वेदाध्ययन के लिए संस्कृत पाठशाला भेजा मगर केशव की मानसिक संरचना को परम्परागत न देखकर नील सिटी स्कूल में भर्ती कराया। कर्मकांडी परिवार के केशव प्रारम्भ से ही खुले और दृढ़ विचारों वाले थे। उनके मानस की झलक बचपन से ही मिलने लगी थी।
केशव जब सात वर्ष के ही थे तो उनके विद्यालय में ब्रिटिश महारानी के गद्दी पर बैठने की साठवीं वर्षगांठ का समारोह मनाया जा रहा था। केशव के विद्यालय में भी अंग्रेजी प्रशासन ने 22 जून 1897 को मिठाई बंटवाई मगर केशव ने यह कहकर मिठाई फेंक दी कि विक्टोरिया हमारी महारानी नहीं हैं। इसके चार साल बाद 1901 में ब्रिटिश सम्राट एडवर्ड के गद्दी पर बैठने का उत्सव मनाने के लिए आतिशबाजी की जा रही थी। किशोर केशव न केवल उसे देखने ही नहीं गए बल्कि अपने साथियों को भी समझा कर जाने से रोकने में सफल रहे।
उन्नीसवीं सदी का यह काल भारत में वैचारिक उथल-पुथल का काल है। 19 जुलाई 1905 को भारत के तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन कर दिया गया। जो 16 अक्तूबर 1905 से प्रभावी हुआ। इस नए प्रान्त की रचना बंगाल के बड़े मुसलमान जमींदारों, मुसलमान नवाबों और अंग्रेजों के सामूहिक षड्यंत्र ने की थी। मूलत: यह बंगाल के पूर्वी क्षेत्र को मुस्लिम बहुल प्रदेश बनाने की चाल थी। जिसका प्रभाव असम के हिन्दू बहुल चरित्र पर भी डाला जाना था। इस नए बने प्रान्त का नाम पूर्वी बंगाल और असम था। इसकी राजधानी ढाका और असम का अधीनस्थ मुख्यालय चट्टोग्राम था। नए प्रान्त की जनसंख्या तीन करोड़ दस लाख थी, जिसमें एक करोड़ अस्सी लाख मुसलमान और एक करोड़ बीस लाख हिन्दू रखे गए थे। बंगाल के ही नहीं भारत भर के हिन्दू इस विभाजन से हतप्रभ रह गए। उपयुक्त जनांदोलन हुआ और 1911 में विभाजन रद्द कर दिया गया। ऐसे ही हत्कर्मों के लिए 1906 में ढाका के नवाब सलीमुल्लाह खान के प्रत्यक्ष नेतृत्व में मुस्लिम लीग का जन्म हुआ। परोक्ष में अंग्रेजों का धन, प्रबंधन, नीतिकारों का समर्थन, प्रशासन की सक्रियता थी।
बाल केशव इन परिस्थितों में बड़े हो रहे थे। वे नियमित व्यायाम के लिए जाते थे। उनकी प्रतिबद्घ देशभक्ति, सामाजिक जीवन में प्रवृत्ति देखकर डॉ. मुंजे बहुत प्रभावित हुए। डॉ. मुंजे मध्य प्रान्त के सामाजिक जीवन के प्रमुख स्तम्भ थे, क्रान्तिकारी विचारधारा से प्रभावित थे और गुप्त क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग भी लेते थे। केशव भी इन गतिविधियों में भाग लेने लगे। उनकी लगन और क्षमता देखकर मध्य प्रान्त के क्रन्तिकारी नेतृत्व ने डॉ. मुंजे के माध्यम से कलकत्ता भेजा। कलकत्ता तब क्रांतिकारियों का तीर्थ था। केशव ने वहां नेशनल मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई का निश्चय किया। वहां पढ़ते समय केशव का सम्पर्क श्यामसुन्दर चक्रवर्ती, नलिन किशोर गुहू, जोगेश चन्द्र चटर्जी जैसे उस काल के प्रमुख क्रांतिकारियों से हो गया। कलकत्ता के सामाजिक जीवन के प्रमुख व्यक्तियों जैसे मोतीलाल घोष, विपिन चन्द्र पाल, रासबिहारी बस, डॉ. आशुतोष मुखर्जी इत्यादि से भी उनका परिचय हुआ। डॉक्टरी की पढ़ाई के साथ-साथ क्रान्तिकारी कायोंर् में यथासंभव भाग लेते हुए केशव 1914 में 70-़80 प्रतिशत अंक लाकर डॉक्टर बन गए।
ब्रिटिश भारत में आज के मध्य प्रदेश, छत्तीस गढ़, महाराष्ट्र को मिलाकर मध्य प्रान्त हुआ करता था और इसकी राजधानी नागपुर थी। सन 1911 की जनगणना में मध्य प्रान्त की जनसंख्या 1,60,33,310 आंकी गयी थी। पूरे मध्य प्रान्त में केवल 75 चिकित्सक थे। इनमें से एक डॉक्टर के लिए यह बिलकुल सहज ही होता कि वह चिकित्सा का कार्य करे। मध्य प्रान्त की इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए 75 चिकित्सकों की संख्या कुछ भी नहीं थी। किसी भी डॉक्टर की प्रेक्टिस जमना केवल दुकान खोलने भर से हो जाने वाला कार्य था। सुनिश्चित था कि इस परिस्थिति में कोई भी चिकित्सक सफल ही होगा। स्वाभाविक भी था कि कोई डॉक्टर अपने परिवार के लिए अथार्ेपार्जन करे। समाज में अपना, परिवार का गौरव बढ़ाये। अत्यंत निर्धन पृष्ठभूमि से उठकर श्रीमंतों की श्रेणी में आये किन्तु डॉक्टरी पढ़े व्यक्ति ने निजी हित, परिवार के हित ताक पर रख कर न भूतो न भविष्यति जैसी पद्घति से समाज के संगठन का
प्रथम विश्व युद्घ के बाद यूरोप के क्षितिज पर छा रहे थे। ऐसी अनेकों बड़ी घटनाओं के कारण भारत में भी वैचारिक उथल-पुथल हो रही थी। अंग्रेज सम्प्रभुओं की चिरौरी करती रहने वाली कांग्रेस की दिशा-दशा बदल रही थी। मुस्लिम लीग द्वारा हिन्दुओं का अहित होता देख कर राष्ट्रवादी नेतृत्व ने महामना मदन मोहन मालवीय जी के नेतृत्व में 1911 में अमृतसर में हिन्दू महासभा का गठन किया। 28 जुलाई 1914 को यूरोप में प्रथम विश्वयुद्घ प्रारम्भ हो गया। इस्लामी खिलाफत का केंद्र तुर्की धुरी राष्ट्रों के साथ लड़ रहा था। अंग्रेजों ने तुर्की को दबाव में लेना शुरू किया। परिणामत: भारत के मुसलमानों में अंग्रेजों के खिलाफ क्षोभ उभरने लगा। अंग्रेजों को दबाव में देखकर क्रान्तिकारी नेतृत्व सशस्त्र संघर्ष में प्रवृत्त हो गया। 1915 में गांधी भारत लौट आये। गांधी जी और उनके नेतृत्व में कांग्रेस के लोग इस आशा में कि युद्घ के बाद अंग्रेज भारत को 'डोमिनियन स्टेटस' दे देंगे, अंग्रेजों का हर प्रकार से युद्घ में साथ दे रहे थे। यहां तक कि सेना में भारतीयों की भर्ती करने में कांग्रेस के लोग भाग-दौड़ कर रहे थे। डॉ. जी इसके विरोध में थे। उनका मानना था कि शत्रु का संकट काल हमारे लिए स्वर्णिम अवसर है। उन्होंने कांग्रेस के नेताओं द्वारा युद्घ के लिए भारतीय सैनिकों की भर्ती करने का प्राणप्रण से विरोध किया।
व्यक्ति की क्षमताओं से संगठन की क्षमताएं सदैव बड़ी होती हैं। (क्रांतिकारी कार्यों की अत्यंत सीमित क्षमताओं, बीच-बीच में नरेंद्र मंडल जैसे अनेकों संगठनों में कार्य करने, तत्कालीन समाज की मनस्थिति देखते हुए डॉ. जी ने कांग्रेस में प्रवेश करने का निर्णय लिया।) कांग्रेस का कार्य बढ़ाने के लिए उन्होंने मध्य प्रान्त का दौरा किया। कांग्रेस के गरम दल और नरम दल में बंटे लोगों में मतभेद बढ़ रहे थे और उन्होंने लगभग मनभेद का स्वरूप ले लिया था। 1916 में लोकमान्य तिलक के नेतृत्व में कांग्रेस ने अंग्रेजों के प्रति मुसलमानों के रोष को भुनाना चाहा। इसके लिये कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के साथ लखनऊ में एक साथ अधिवेशन किये। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने मुस्लिम समाज में उपेक्षित-तिरस्कृत मुस्लिम लीग के साथ घोर हिन्दू विरोधी समझौता करके उसमें जान फूंक दी।
11 नवम्बर 1918 को द्वितीय विश्वयुद्घ समाप्त हो गया। अंग्रेजों ने सदियों से उत्पात मचाते आये तुर्की के इस्लामी खलीफा का पद समाप्त कर दिया। सदियों बाद अरब क्षेत्र स्वतंत्र हो गया। जॉर्डन, सीरिया, फिलस्तीन, लेबनान, इराक खिलाफत छोड़ गए। तुर्की के इस्लामी साम्राज्य के खंड-खंड हो गए। इसके विरोध में 1919 को भारत में खिलाफत वापस लाने का आंदोलन शुरू हो गया। भारत का मुस्लिम नेतृत्व इसे काफिरों के सामने इस्लाम की हार की तरह देख रहा था। गांधी जी ने इसे अवसर की तरह देखा और कांग्रेस को खिलाफत आंदोलन में झोंक दिया। कांग्रेस के मोहम्मद अली जिन्ना जैसे बहुत से वरिष्ठ नेता उनके इस निर्णय के विरोध में थे। उन्होंने गांधी जी को इस खिलाफत के खतरों से चेताया मगर गांधी जी अड़े रहे। तिलक का 1920 में देहावसान हो जाने के कारण गांधी जी के नेतृत्व को आम सहमति प्राप्त हो गयी थी। उनकी जिद के कारण किसी की भी एक नहीं चली। अनेकों लोगों ने कांग्रेस छोड़ दी।
इसी उथल-पुथल में 1920 में कांग्रेस का नागपुर में बीसवां अधिवेशन तय हुआ। नागपुर अधिवेशन कांग्रेस का तब तक का सबसे बड़ा अधिवेशन होने जा रहा था। इसकी सुचारु व्यवस्था के लिए डॉ. जी ने 1200 वालंटियरों की भर्ती और प्रशिक्षण का कार्य किया। अधिवेशन में 20,000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। खुले सत्रों में उपस्थिति 30,000 तक पहुंची। सभी कार्य व्यवस्थित और सुचारु रूप से हुए। इसके पीछे डॉ. जी का रात दिन अथक परिश्रम, सटीक पूर्व योजना और उनका त्रुटिहीन कार्यान्वन और प्रबंधन था। वे एक अत्यंत कुशल संगठनकर्ता के रूप में उभरे, प्रशंसित और प्रतिष्ठित हुए।
अधिवेशन के बाद डॉ. जी पूरे मनोयोग से कांग्रेस के अनुशासित सिपाही की तरह असहयोग आंदोलन में जुट गए। सैकड़ों लोगों की नागपुर असहयोग समिति में भर्ती करायी। सारे मध्य प्रान्त के दौरे किये। दर्जनों सभाओं के माध्यम से हजारों लोगों को सम्बोधित किया। ब्रिटिश सरकार से असहयोग का वातावरण बनाया। 1921 में ब्रिटिश सरकार ने उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया और एक साल के सश्रम कारावास की सजा दी। 11 जुलाई 1922 को अपनी सजा पूरी करके डॉ. जी जेल से छूटे। हजारों लोगों की भीड़ ने उनका स्वागत किया। तब तक गांधी जी की अहमन्यता ने चौरी-चौरा की घटना के कारण बिना किसी अन्य नेता से विचार-विमर्श किये आंदोलन को वापस ले लिया था। कांग्रेस के कार्यकर्ता हताश और निराश थे। डॉ. हेडगेवार ने प्राणप्रण से मध्य प्रान्त के कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने का कार्य किया। उनका परिश्रम कांग्रेस के नेताओं की दृष्टि में आया और उन्हें भूरि-भूरि प्रशंसा के साथ मध्य प्रान्त का सहमंत्री बनाया गया। इस जिम्मेदारी के साथ डॉ. हेडगेवार के प्रान्त के दौरों में वृद्घि हो गयी। उन्होंने दर्जनों सभाओं के माध्यम से हताश समाज में आशा का संचार किया। इसी क्रम में उन्होंने नागपुर से मराठी दैनिक स्वातंत्र्य शुरू किया। तेजस्वी संपादक के नेतृत्व में स्वातंत्र्य ने पहले अंक से ही पाठकों में जगह बना ली। स्वातंत्र्य की नीति राष्ट्र के पक्ष में खरा-खरा बोलने की थी। समाचार पत्र इस हद तक निर्भीक था कि उसने सम्पादकीय में कई अवसरों पर अपने हितचिंतक डॉ. मुंजे की भी आलोचना की। एक ओर मध्य प्रान्त में डॉ. हेडगेवार राष्ट्र जागरण के कार्य में जुटे थे दूसरी ओर केरल खौल रहा था। खिलाफत आंदोलन हर प्रकार से असफल हो कर समाप्त हो चुका था। खिलाफत आंदोलन के केरल के प्रणेता मुल्लाओं ने स्थानीय मुसलमान मोपलाओं में यह प्रचार कर दिया कि खिलाफत सफल हो गयी है। अब समय आ गया है कि खिलाफत को काफिरों से पाक कर दिया जाये। हिन्दुओं के खिलाफ भयंकर दंगे हुए। हजारों हिन्दुओं को भयानक नृशंसतापूर्वक मार डाला गया। हजारों हिन्दू नारियों के साथ भयानक बर्बर बलात्कार हुए। असंख्य हिंदू स्त्रियों ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए आत्महत्या का मार्ग चुना। सैकड़ों मंदिर तोड़ डाले गए। लाखों हिंदू मुसलमान बना लिए गए। इस महामूर्ख आंदोलन में कांग्रेस को मनमाने ढंग से धकेल देने वाले गांधी जी मौन हो कर ये सब देखते रहे।
अब तक डॉ. हेडगेवार हर प्रकार के सामाजिक कार्य का प्रयोग कर चुके थे। सारे माध्यमों को जाँच-परख चुके थे और इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि बिना राष्ट्र जागरण के किसी भी आंदोलन का कुछ मतलब नहीं है। आंदोलन क्षणिक उत्तेजना देते हैं। कुछ कोलाहल होता है और समाज वापस सो जाता है। मुसलमानों की, अंग्रेजों की अधीनता तो केवल बीमारी का बाहरी उभार मात्र है। जब तक देश का असली राष्ट्र अर्थात हिन्दू सन्नद्घ नहीं होगा कोई उपाय उपयोगी नहीं होगा। आज अँगरेज चले भी गए तो कल कोई और नहीं आएगा इसकी कोई सुनिश्चितता नहीं है। अंग्रेजों की गुलामी तो केवल बाहरी फुंसी की तरह है। मूल समस्या राष्ट्र की धमनियों में रक्त का दूषण है। यही वह प्रस्थान बिंदु था जहां उन्होंने सब प्रकार के राजनैतिक-सामाजिक कार्य छोड़ कर विजयादशमी के दिन संघ की स्थापना की और मध्य प्रान्त की डेढ़ करोड़ से भी अधिक संख्या के केवल 75 डॉक्टरों में एक, क्रांतिकारी कायोंर् को जानने वाले, क्रांतिकारी कायोंर् में सक्रिय रहे तेज-पुंज, प्रान्त की कांग्रेस के परिश्रमी प्रदेश सहमंत्री इन सारे कायोंर् से विमुख हो कर मोहिते के बाड़े में कुछ बच्चों के साथ कबड्डी और खो-खो खेलने लगे।
विचार कीजिये कि वही बीज आज विश्व के सबसे बड़े, अनंतभुजा वाले कृष्ण के विराट रूप जैसा जानने में आता है। इसके पीछे की संकल्पना, योजना, संरचना कैसे मानस ने की होगी? राष्ट्र को परम वैभव के शिखर पर पहुँचाने का नागपुर से उठा विचार सारे भारत में फैला तो इसके पीछे जिन मौन साधकों का अथक परिश्रम है, उनका निर्माण कैसे हुआ होगा? राष्ट्र के उत्थान के लिए दैनिक एकत्रीकरण का कोई ढंग आवश्यक है और उसके लिए शाखा पद्घति का निर्माण किस मानस ने किया होगा? अपनी जान दे देना बड़ी बात है मगर बहुत बड़ी बात नहीं है, कोई भी सैनिक ऐसा कर सकता है मगर दूसरे को जीवन दे देने के लिए प्रवृत्त करना सरल काम नहीं है। इसके लिए सेनापति चाहिए होते हैं। नागपुर से देश की हर दिशा में निकले दादा राव परमार्थ, शिव राम पंत जोगलेकर, माधव राव मुले, राजा भाऊ पातुरकर, मुलकर जी, यादव राव जोशी, भाऊ राव देवरस, द्वितीय सरसंघचालक परम पूज्य माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर, परम पूज्य मधुकर दत्तात्रेय देवरस, जैसे जीवन त्यागी, आजीवन व्रती, निस्पृह महापुरुषों की शृंखला का निर्माण कर सकने में सक्षम व्यक्तित्व कैसा रहा होगा? एक क्षण में सरकारी आजीविका छोड़ कर सारा जीवन राष्ट्र के चिंतन में लगा-गला देने वाले बाबा साहब आपटे जैसा तपस्वी किसको देख कर उस रूप में ढला? पतत्वेषु कायो का मूर्त रूप? ध्येय आया देह लेकर, जैसी सोच का मूर्तिमंत स्वरूप? ऐसे ही लोग महापुरुष तो नहीं कहलाते।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

अर्थ जगत: कर्ज न बने मर्ज, लोन के दलदल में न फंस जाये आप; पढ़िये ये जरूरी लेख

जर्मनी में स्विमिंग पूल्स में महिलाओं और बच्चियों के साथ आप्रवासियों का दुर्व्यवहार : अब बाहरी लोगों पर लगी रोक

सेना में जासूसी और साइबर खतरे : कितना सुरक्षित है भारत..?

उत्तराखंड में ऑपरेशन कालनेमि शुरू : सीएम धामी ने कहा- ‘फर्जी छद्मी साधु भेष धारियों को करें बेनकाब’

जगदीप धनखड़, उपराष्ट्रपति

इस्लामिक आक्रमण और ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया : उपराष्ट्रपति धनखड़

Uttarakhand Illegal Madarsa

बिना पंजीकरण के नहीं चलेंगे मदरसे : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दिए निर्देश

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

अर्थ जगत: कर्ज न बने मर्ज, लोन के दलदल में न फंस जाये आप; पढ़िये ये जरूरी लेख

जर्मनी में स्विमिंग पूल्स में महिलाओं और बच्चियों के साथ आप्रवासियों का दुर्व्यवहार : अब बाहरी लोगों पर लगी रोक

सेना में जासूसी और साइबर खतरे : कितना सुरक्षित है भारत..?

उत्तराखंड में ऑपरेशन कालनेमि शुरू : सीएम धामी ने कहा- ‘फर्जी छद्मी साधु भेष धारियों को करें बेनकाब’

जगदीप धनखड़, उपराष्ट्रपति

इस्लामिक आक्रमण और ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया : उपराष्ट्रपति धनखड़

Uttarakhand Illegal Madarsa

बिना पंजीकरण के नहीं चलेंगे मदरसे : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दिए निर्देश

देहरादून : भारतीय सेना की अग्निवीर ऑनलाइन भर्ती परीक्षा सम्पन्न

इस्लाम ने हिन्दू छात्रा को बेरहमी से पीटा : गला दबाया और जमीन पर कई बार पटका, फिर वीडियो बनवाकर किया वायरल

“45 साल के मुस्लिम युवक ने 6 वर्ष की बच्ची से किया तीसरा निकाह” : अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत के खिलाफ आक्रोश

Hindu Attacked in Bangladesh: बीएनपी के हथियारबंद गुंडों ने तोड़ा मंदिर, हिंदुओं को दी देश छोड़ने की धमकी

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies