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बजट 2015 को मीडिया और समाज में मिलीजुली प्रतिक्रयाएं मिली हैं। केन्द्र सरकार के पहले पूर्ण बजट पर पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा से की विशेष बातचीत।
ल्ल बजट 2015 में आयकर छूट न बढ़ाने पर विपक्षी दलों ने काफी चुटकियां ली हैं, शायद इन चुटकियों ने जनता की उम्मीदों को जगाने और झुंझलाहट पैदा करने का काम किया है। आपका क्या कहना है?
सरकार ने जो बजट प्रस्तुत किया है वह ऐतिहासिक है। सरकार को देश के प्रत्येक नागरिक की चिंता है और यह चिंता सतत रूप में है। आम नागरिक को बजट को राष्ट्रीय स्तर पर देखना होगा न कि व्यक्तिगत स्तर पर। जब लोग इसे व्यक्तिगत स्तर पर देखते हैं तो उन्हें लगता है कि हमारी जेब में कुछ नहीं आया। आज अगर भारत की तुलना अन्य विकासशील देशों से करें तो उसमें भारत का सकल घरेलू उत्पाद न्यूनतम स्तर पर है। अब ऐसी स्थिति में हम और अधिक छूट कैसे दे सकते हैं। हमारी सरकार ने जुलाई में आवासीय ऋण पर कर छूट को बढ़ा कर 2 लाख कर दिया। अब बजट में बीमा से जुड़े कर लाभ का दायरा बढ़ाया गया है। जनता को समझना चाहिए कि सरकार घाटे में चल रही है और जो लोग सत्ता छोड़कर गए हैं उनके कारण ही भारत की अर्थव्यवस्था बिगड़ी है। सरकार के पास सीमित पैसा है और उसी पैसे में उसे पूरे देश में किसान के लिए, सर्वशिक्षा अभियान के लिए, ऊर्जा के लिए, सड़क के लिए एवं अन्य क्षेत्रों के लिए कार्य करना है। इसलिए लोगों को समझना होगा कि सरकार किन परिस्थितियों में है। इसीलिए हम लोगों से बराबर बोल रहे हैं कि आप सभी लोग बचत करिए। यह हम सबका बजट है,यह व्यक्ति का नहीं इस देश का बजट है।
ल्ल वित्त मंत्री ने बजट प्रस्तुत करते समय जो पांच चुनौतियां गिनाईं उसमें पहला कृषि क्षेत्र पर दबाव बताया किन्तु कृषि क्षेत्र के लिए आवंटन घटा दिया। ऐसा क्यों?
देखिए, कृषि को सिर्फ खेती तक सीमित नहीं माना जा सकता, ग्रामीण विकास आदि विषय भी इससे जुड़े हुए हैं। इसका क्षेत्र फैला हुआ है। वैसे कृषि क्षेत्र पर हमारी सरकार ने बहुत कुछ दिया है। आप ग्रामीण विकास मंत्रालय देख लें या अन्य। और उसके बाद आप कहें कि क्या वास्तव में इसका बजट घट गया? इसे थोड़ा अलग तरीके से देखने से पूरा चित्र स्पष्ट हो जायेगा। असल में मंत्रालयों का जो खर्चा घटा है उसके पैसे राज्यों को चले गए हैं। जो लोग कह रहे हैं कि कृषि क्षेत्र में आवंटन घटा है, उन्हें यह समझना होगा कि हमने मनरेगा का पैसा 5 हजार करोड़ बढ़ा दिया। वहीं कृषि सिंचाई योजना को सरकार पर्याप्त पैसा उपलब्ध करायेगी। पहले कृषि सिंचाई योजना पर 1 हजार करोड़ रुपये आवंटित था, इसे हमने 5 गुना बढ़ा दिया है।
नाबार्ड को पर्याप्त पैसा दिया है, आगे और भी मिलेगा। प्रधानमंत्री सड़क योजना पर ज्यादा पैसा दिया। सरकार ने जो मनरेगा को इतना पैसा दिया है उससे ग्रामीण क्षेत्रों में काम होगा, सिंचाई के क्षेत्रों पर काम होगा, सड़कों पर काम होगा।
ल्ल बजट को रियायतों में सुधार के बजट के तौर पर देखा जा रहा है। क्या ऐसा है?
जी निश्चित ही ऐसा है। जे.ए.एम. यानी जन धन योजना, आधार कार्ड और मोबाइल के जरिए रियायतों का लाभ जनता तक पूरा पहुंचे और गड़बडि़यां रुकें ऐसा हमारा प्रयास है। आप देखेंगे कि व्यवस्था दुरुस्त होने से योजनाओं का असर नीचे तक दिखेगा। उतने ही पैसों में, सीमित संसाधनों में कार्य कैसे किया जा सकता है यह हम दिखाएंगे। सरकार ने इस बजट में सभी की चिंता की है। कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसको न छुआ गया हो। सरकार के पास सीमित पैसा है, उसी पैसे में उसे सभी कुछ देखना है।
ल्ल बजट को कार्पोरेट बजट कहा जा रहा है?
यह किसी व्यक्ति या वर्ग का नहीं, जनता का, हम सबका बजट है। कार्पोरेट टैक्स घटाया गया है। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि भारत में कार्पोरेट टैक्स की दर कई अन्य देशांे के मुकाबले काफी ज्यादा है। वैसे, कंपनी जगत को विकास के विरोधाभासी रूप में नहीं देखा जा सकता। कारोबार में सुविधा, नई नौकरियों और नई पूंजी के निर्माण में सहायक होती है। यह जरूरी है। बजट के जरिए मेक इन इंडिया, नवोन्मेष, उद्यमिता और कर सुधार की राह तैयार की गई है।
ल्ल बजट में वन रैंक वन पंेशन का जिक्र नहीं है, इसके लिए पैसा कहां से आएगा?
हमारी सरकार ने पिछले ही बजट में इसकी घोषणा कर दी थी। यह हम कर ही रहे हैं। दूसरे, बजट में फिर से वही बात दोहराने का कोई मतलब नहीं था। इस पूरी प्रक्रिया पर कार्य चल रहा है और रक्षा मंत्रालय को आवंटित राशि में इस बात का ध्यान रखा गया है। जैसे ही रक्षा मंत्रालय की ओर से पूरी कार्यवाही हो जाती है इसको पूरा किया जायेगा। ल्ल
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